एक्यूपंक्चर व एक्यूप्रेशर पद्धति
एक्यूपंक्चर व एक्यूप्रेशर पद्धति

एक्यूपंक्चर व एक्यूप्रेशर पद्धति  

भगवान सहाय श्रीवास्तव
व्यूस : 6385 | मई 2016

एक्युपंक्चर चिकित्सा पद्धति में शरीर के कुछ निश्चित बिंदुओं पर सुइयां चुभाकर विभिन्न रोगों का इलाज किया जाता है। यह प्रणाली एक्युप्रेशर चिकित्सा प्रणाली से कुछ हद तक अलग है। इसमें विभिन्न केंद्रों को दबाकर सूइयों को चुभाकर रोगों का इलाज किया जाता है। इस प्रणाली में किसी रोग का इलाज करने के लिए रोगी के शरीर के निश्चित बिंदुओं पर पीतल या अन्य धातु की सुइयों को चुभाया जाता है। ये सुइयां 2 से 25 सेमी. लंबाई की होती हैं तथा इन्हें एक से लेकर लगभग आठ सौ बिंदुओं पर चुभाया जाता है। ये बिंदु मानव शरीर पर एक निश्चित रेखा पर स्थित होते हैं। इन बिंदुओं पर सुइयों को ज्यादा गहरा नहीं चुभाया जाता है और न ही सुई चुभाने में कोई विशेष दर्द महसूस होता है।

रोग के समुचित इलाज के लिए कुछ मिनट से लेकर घंटों तक सुइयां चुभाएं रख सकते हैं। एक्युपंक्चर चिकित्सा मलेरिया, कब्ज, अल्सर, आर्थराइटिस, गठिया, मानसिक रोगी आदि के लिए अत्यंत लाभदायक साबित हुई है। अनभिज्ञता, अज्ञानतावश भारी संख्या में रोगी चिकित्सार्थ लाभ नहीं उठा पाते हैं। आजकल इस प्रणाली में रोगी को बेहोश कर जटिल शल्य चिकित्सा भी की जाती है। इस प्रणाली से मानव जाति को ही नहीं बल्कि पशुओं को भी विभिन्न जटिल रोगों से मुक्ति मिल रही है। मनुष्य की तरह पशुओं में भी इस प्रणाली से सुन्न करके आॅपरेशन किये जाते हैं।

एक्यूप्रेशर: प्रयोग व प्रभाव मानव शरीर के अंगों पर स्थित विभिन्न बिंदुओं से होकर ध्रुव वृत्तीय या मेरीडियन रेखाएं गुजरती हैं। लेकिन बारह महत्वपूर्ण ध्रुव वृत्त हाथों और पैरों में होते हैं। तीन महत्वपूर्ण ध्रुव वृत्त हथेली पर होते हैं। उनमें निकलने वाली रेखाएं (1) फेफड़ों (2) हृदय की ऊपरी झिल्ली जिसे रक्त संचार-कामांगों का ध्रुव वृत्त भी कहा जाता है और (3) हृदय तक जाते हैं। तीन अन्य महत्वपूर्ण ध्रुव वृत्त हाथ के ऊपर होते हैं जिनका संबंध (1) छोटी आंत, (2) तेहरे ध्रुव वृत्त और (3) बड़ी आंत से होता है। इन सभी छः ध्रुव-वृत्तों का सूत्रपात उंगलियों के छोरों से होता है जिन्हें एक्यूपंक्चर में महत्वपूर्ण बिंदु कहते हैं। हथेली की ओर छोटी उंगली के छोर से हृदय का ध्रुव-वृत्त प्रारंभ होता है।

हृदय की झिल्ली का धु्रव वृत्त बीच की उंगली के छोर से प्रारंभ होता है और फेफड़ों का हाथ के अंगूठे से। हाथ के ऊपर की छोटी उंगली के छोर से छोटी आंत का ध्रुव वृत्त प्रारंभ होता है। तेहरा ध्रुव वृत्त तीसरी उंगली के ऊपरी छोर से प्रारंभ होता है और बड़ी आंत का तर्जनी के ऊपरी भाग से।

प्रयोग: जब कभी अधिक काम से हृदय पर बोझ पड़े या कोई कष्ट हो तो दोनों हाथों की छोटी उंगलियों पर दबाव डालना चाहिए। इसके लिए उन्हें अंगूठों में पकड़कर दबाना और घुमाना चाहिए। यदि दिल का दौरा पड़ रहा हो तो छोटी उंगलियों पर इस प्रकार दबाव डालने से रोगी की जान बचा सकते हैं। उसी प्रकार पैरों के तलवे पर भी स्नायुओं के छोर होते हैं जो सभी स्नायुओं से जुड़े होते हैं। पैर में छः ध्रुव वृत्त हैं। पैर के नीचे, अर्थात तलवे में, इनमें से तीन हैं। एक का संबंध मूत्राशय से है, दूसरे का गुर्दे से और तीसरे का तिल्ली से। पैर के ऊपर तीन और ध्रुव वृत्त हैं। एक का संबंध जिगर से है, दूसरे का आमाशय से और तीसरे का मूत्राशय से।

तिल्ली का धु्रव वृत्त पैर के अंगूठे से शुरू होता है और गुर्दे का भी पैर से ही शुरू होता है। स्वास्थ्य बनाये रखने में इन ध्रुव वृत्तों का बड़ा महत्व है। पैर की उंगलियों में जो नाड़ियां हैं उनका सीधा संबंध सिर, गर्दन, कानों, आंखों, हृदय, जिगर, फेफड़ों और पैनक्रियास ग्रंथि से है। एड़ी और पैर के अगले हिस्से के बीच की जो त्वचा है उस पर भी कुछ महत्वपूर्ण बिंदु हैं, जिनका संबंध पेट, आमाशय और गुर्दे से है। एड़ी में कुछ ऐसे बिंदु हैं जिनका संबंध शरीर की विभिन्न ग्रंथियों और कर्मेन्द्रियों से है। अतः हाथों और पैरों से होकर जो ध्रुव वृत्त गुजरते हैं उनका संबंध शरीर के सभी महत्वपूर्ण अंगों से है। इसी कारण से चुंबकत्व द्वारा अंगों की पीड़ा दूर कर क्रियाओं को स्वस्थ बनाते हैं।



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