कालसर्पयोग एक अध्ययन
कालसर्पयोग एक अध्ययन

कालसर्पयोग एक अध्ययन  

आर. के. शर्मा
व्यूस : 4537 | मई 2011

कालसर्प योग : एक अध्ययन पं. आर के. शर्मा राहु-केतु की दशा और कालसर्प योग रोग, परेशानियां तथा असफलता तो देता है लेकिन लग्न या लग्नेश से शुभ ग्रह का संबंध कालसर्प योग को भंग कर देता है। लग्न से गणना करने पर यदि केतु पहले आये तो इसे काल-अमृत योग जानना चाहिए। ऐसे लोग उन्नति के शिखर को छू लेते हैं। लेख में दी गयी उदाहरण कुंडलियों का विश्लेषण इस बात को समझने में विशेष रूप से सहायक होगा।

काल सर्प योग की शुभता-अशुभता के सूत्र : फलकथन में 'कालसर्प योग' से उत्पन्न दोषों के साथ-साथ अन्य योगायोग से उत्पन्न प्रभावों को भी ध्यान रखें। अन्य योगायोग से उत्पन्न शुभताओं से कालसर्प के दुष्परिणामों के प्रभाव क्षीण हो जाते हैं। यदि योगायोग अशुभ या बलहीन हों तो 'काल सर्प योग' की अशुभता और अधिक बढ़ जाती है। एकादश से पंचम तथा दशम से चतुर्थ भावों के मध्य 'काल सर्प योग' निर्मित होने से भयानक फल प्राप्त होते हैं। अर्थात् जितने शुभ भाव 'काल सर्पयोग के मध्य होंगे, तो उनके दुष्परिणाम उतने ही अधिक होंगे। यदि राहु-केतु के साथ लग्नेश, चंद्र, सूर्य एवं शनि की युति होगी, तो दुष्परिणाम अधिक होंगे।

कालसर्प योग में व्यक्ति को 18 से 30 वर्ष की आयु तक निर्बल ग्रह, यदि राहु अथवा केतु की दशा में प्रभावी होते हैं, तो जीवन में उपर्युक्त फल ज्यादा घटित होते हैं। 'कालसर्प योग' आंशिक है- इस कथन का कोई अर्थ नहीं होता, या तो फल पूर्ण होगा या बिल्कुल नहीं होता है। विभिन्न विद्वानों के अनुभव : कालसर्प योग वाला व्यक्ति जीवन में बहुत ज्यादा उन्नति, अवनति देखता है। अनेकों बार किये गये सतत प्रयास भी निष्फल होते देखे गये हैं।

राहु या केतु की दशा या गोचर में लग्न पर से गुजरना भी रोग, परेशानियां और असफलताएं देता है। लग्न या लग्नेश से शुभ ग्रह का संबंध ''काल सर्प योग' को भंग करता है। विशाखा का राहु भी इस योग को भंग करता है। लग्न से गणना करने पर यदि केतु पहले आये तो इसे 'काल-अमृत' या 'शुभ योग' जानना चाहिए। जातक को उस समय विशेष रूप से अनिष्टों का सामना करना पड़ता है, जब गोचर में राहु जन्म के राहु के भोग्यांश पर संचार करे। कुछ विद्वानों ने 'काल सर्प योग' को भौतिक सुख की लालसा का कारक माना है। ऐसे व्यक्ति को अपने लिये भौतिक-सुख भोगने के लिए अनैतिक कार्य भी करने पड़ते हैं। परंतु भेद खुलने पर अपमान, अपयश तथा परेशानी उठानी पड़ती है।


For Immediate Problem Solving and Queries, Talk to Astrologer Now


स्मरण रखें, केतु लग्न से प्रथम छः भावों में हो अथवा राहु या केतु के साथ कोई शुभ ग्रह हो तो यह 'कालसर्प योग' भंग हो जाता है। (साथ में 'चलित कुंडली' भी देख लें) कुंडली में सभी ग्रहों (सातों) का एक और झुकाव (काल सर्प योग में) व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को असंतुलित कर, उसे पूर्वाग्रही या दुराग्रही बनाता है। ऐसा व्यक्ति अतिवादी या एकांगी विचारधारा वाला होता है। इस योग वाले व्यक्ति भी महान बन जाते हैं।

यदि वे अध्यवसायी, परिश्रमी, साहसी व कर्त्तव्यनिष्ठ हों तो उन्नति के शिखर को छू लेते हैं। 'काल-सर्प योग' के विशिष्ट फल

1. ऐसा व्यक्ति असहनीय तनाव, कष्ट, विलंब, विपरीत परिस्थितियों के कारण जीवन में बाधा या असफलता पाता है। अत्यधिक परिश्रम से भी न्यूनतम लाभ मिलता है।

2. किसी-किसी व्यक्ति को ईमानदारी पर भी झूठा दोष मिलता है। उसके द्वारा किये कार्य का श्रेय, अन्य कोई व्यक्ति ले जाता है। अतः उस व्यक्ति को घोर निराशा, मानसिक तनाव व मानसिक कष्ट झेलने पड़ते हैं।

3. कभी-कभी कर्त्तव्य परायण, सत्यवादी, परिश्रमी, सज्जन पुरुष इस योग द्वारा अत्यधिक पीड़ित पाये जाते हैं मानो उन्हें और भी तपा-तपाकर कुंदन बनाया जा रहा हो, या उनके लिए विधाता ही वाम हो गया है।

4. अनेकों ज्योतिषाचार्य इस योग को महानता या उच्चता का कारक मानते हैं। वे महान तपस्वी पुरुष इस योग में तपकर आध्यात्मिक क्षेत्र में अग्रसर हों, शायद इसीलिए उन के जन्मांग में 'काल सर्प योग' दिखाई पड़ता है। कमजोर व साधारण व्यक्ति तो इस योग के नाम से ही टूटकर बिखर जायेंगे। उदाहरण कुुंडलियों में कालसर्प योग अन्य शुभ योगों के कारण निष्प्रभावी हो गया है।


अपनी कुंडली में सभी दोष की जानकारी पाएं कम्पलीट दोष रिपोर्ट में


फल : कुंडली नं. 1 वृष लग्न की कुंडली है। वृष लग्न पर लाभेश गुरु की दृष्टि है। लग्नेश चतुर्थ भाव म ाचंद्र से युति कर रहा है। योग कारक शनि पंचम भाव में सुखेश से युक्त होकर सप्तम भाव में स्वगृही सप्तमेश मंगल को देखता है। यह जातिका सुंदर, सुशील तथा विदुषी है।

फल : कुंडली नं. 2 में पांच ग्रहों की चतुर्थ भाव में युति ने जातक का मनोबल बढ़ाया। तथा काल सर्प को निष्प्रभावी बना दिया क्योंकि सुखेश गुरु भी स्वग्रही होकर हंस योग बना रहा है। ये बैंक मैनेजर हैं। अष्टम, दशम व व्यय भाव पर स्वगृही गुरु की सातवें, दसवें तथा ग्यारहवें भाव पर दृष्टि के साथ सूर्य, बुध की लाभ भाव पर दृष्टि (मंगल की दृष्टि का प्रभाव) ने जातक को उच्च पद व प्रतिष्ठा दी है।

फल : कुंडली नं. 3 में लग्नेश मंगल पराक्रम भाव में उच्चस्थ होकर भाग्येश चंद्र तथा धनेश और पंचमेश गुरु से युति कर रहा है। लाभेश बुध की उच्च दृष्टि लाभ भाव में है। भोगेश (द्वादशेश) शुक्र अपने द्वादश भाव को देख रहा है तथा सुखेश शनि अपने भाव को देख रहा है। स्पष्ट है जो भाव अपने स्वामी से दृष्ट या युक्त हा

फल : कुंडली नं. 4 में तृतीयेश व द्वादशेश गुरु की दृष्टि लग्न, तृतीय एवं पंचम भाव पर व स्वक्षेत्री लग्नेश शनि लग्न में है। नवमेश-सप्तमेश की लाभ भाव में युति ने महिला को सुदृढ़ आर्थिक स्थिति प्रदान की है। पंचम पर तीन ग्रहों की दृष्टि संतान सुख देती है। इस महिला ने संतान तथा पति का श्रेष्ठ सुख पाया है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.