वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों पर एक नजर
वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों पर एक नजर

वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों पर एक नजर  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 7783 | मई 2016

सार्वजनिक रूप से प्रचलित चिकित्सा पद्धतियों में एलोपैथिक, होम्योपैथिक आदि सर्वाधिक रूप से अपनाई जाती है। इनके अलावा भी अनेक प्रभावी चिकित्सा पद्धतियां हैं जिनके माध्यम से रोगों में शत-प्रतिशत लाभ की संभावना रही है और सबसे बड़ी बात यह है कि उनके कोई पाश्र्व प्रभाव भी नहीं होते। एलोपैथिक पद्धति में दवाइयों के सर्वाधिक पाश्र्व प्रभाव होते हैं और कई बार तो शल्य चिकित्सा के बाद रोगी को संभालना अत्यंत कठिन हो जाता है। ऐसे में वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति ज्यादा कारगर होती है। यज्ञ चिकित्सा पद्धति भारतीय मनीषियों ने अपने अनुभवों से व रिसर्च करके निकाला कि हवन में डाली गयी सामग्री नष्ट नहीं होती बल्कि पूरे वायुमंडल में सूक्ष्म रूप से मिल जाती है। यज्ञ में आहुति से वायु शुद्ध होती है। ऐलियास बापूराव पारखे ने कहा है कि यज्ञ की आहुति से वायु शुद्धि ही नहीं बल्कि अग्नि, विद्युत, जल-चिकित्सा आदि सब एक-साथ हो जाती है। प्रतिदिन अग्निहोम करने से लोगों के त्वचा व सिरदर्द के रोग तो कम होते ही हैं साथ ही जिनके यहां ये रोग हों, उनको भी स्वास्थ्य लाभ मिलता है। आयुर्वेद में आया है कि गुग्गुल का हवन राज-यक्ष्मा के कीटाणुओं को नष्ट कर डालता है। इस अग्नि-होत्र के द्वारा और भी अनेक चिकित्सायें संभव हैं।

रेकी रेकी वह चिकित्सा पद्धति है जो प्राणिमात्र में विद्यमान ब्रह्मांडीय ऊर्जा को जाग्रत करके अनेक साध्य एवं असाध्य रोगों के उपचार मंे सहायक होती है। रेकी का अर्थ रे = ब्रह्मांड और की = ऊर्जा है। रेकी जापानी पद्धति है। रेकी चिकित्सक पांच स्तरों में स्पर्श द्वारा उपचार करते हैं। इस पद्धति में बिना किसी दवा के रक्तस्राव, अस्थि चिकित्सा, शरीर के सभी टूटे हुये अंगों की शल्य चिकित्सा, जुकाम, खांसी, मधुमेह, ज्वर, दमा, दस्त, मानसिक चिकित्सा, माइग्रेन, प्रजनन दोष, घावों और कृमि रोग आदि की चिकित्सा संभव हो जाती है। मनो व्याधि विज्ञान द्वारा चिकित्सा हमारे वैदिक गं्रथ व चरक संहिता के अनुसार उचित खान-पान, योगासन, सरल जीवन शैली एवं सकारात्मक चिंतन से तनाव, हिस्टीरिया, अपस्मार, दुःस्वप्न, क्रोध, ईष्र्या, मोह आदि मानसिक रोगों का उपचार होता है। इस भारतीय पद्धति से मानसिक रोगी के अंदर आत्मबल, मानसिक संतुलन, मानसिक स्थिरता आदि के गुण आते हैं। व्यवहार उपचार पद्धति इस पद्धति मंे व्यवहारों के लिये उत्तरदायी चिंतन के मापदंड को परिवर्तित किया जाता है। चिकित्सक रोगी की गलत मान्यताओं को चुनौती देते हुये रचनात्मक विचारों के लिये प्रोत्साहित करता है।

इस पद्धति में भाव, चिंतन व असामान्य व्यवहार को परिवर्तित करने का कार्य किया जाता है। इसी को व्यवहार उपचार पद्धति कहते हैं। विद्युत आघात चिकित्सा इस चिकित्सा पद्धति में बिजली की सहायता से रोगियों में आक्षेपी दौरों को कृत्रिम ढंग से उत्पन्न करके उपचार किया जाता है। इस चिकित्सा में विद्युत-आघात रोगी को मृत्यु के नजदीक ले जाते हंै जिससे उसमें जैविक रक्षा यांत्रिकी क्रियाशील हो जाती है। इस पद्धति से चिकित्सा करने से पहले, ई. सी. जी. इत्यादि से परीक्षण करके तथा निकट संबंधियों की लिखित अनुमति लेकर उपचार किया जाता है। हस्तमुद्रा से चिकित्सा इसमें ज्ञान मुद्रा, ध्यान मुद्रा, मृत संजीवनी मुद्रा, शांत मुद्रा आदि चैबीस मुद्राओं से तथा हाथों की अंगुलियों से चिकित्सा की जाती है, जिनका प्रयोग मुख्यतः हताश, निराश व मानसिक रोगी के उपचारार्थ होता है। एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति एक्यूप्रेशर का शाब्दिक अर्थ है दबाव। इस चिकित्सा पद्धति के भी बहुत अच्छे परिणाम सामने आये हैं। यह पद्धति साईटिका, सर्वाइकल स्पोंडिलाइटिस आदि मेरूदंड के संपूर्ण रोगों, कंधों की जकड़न, घुटनांे के दर्द, बिस्तर मंे मूत्र त्याग, सिरदर्द, कब्ज, पेचिश, आंतों के घाव, गैस, गले की सूजन, टांसिल्स एवं लकवा आदि में उपयोगी है।

रोगों के निदान हेतु एक्यूप्रेशर चिकित्सक शरीर के कुछ विशिष्ट बिंदुओं पर दबाव डालता है। दबाव डालते समय जब किसी बिंदु पर असहनीय दर्द होता है तो चिकित्सक समझ जाता है कि उससे संबंधित अंग में परेशानी है। उसी अंग-बिंदु का निदान किया जाता है। आस्था जन्य चिकित्सा इस चिकित्सा पद्धति का प्रचलन सारे विश्व में है। अपने इष्ट, परमात्मा, गुरुदेव आदि के प्रति आस्था रखने से सकारात्मक परिणाम सामने आते हैं। यदि रोगी को आराम की चाहत हो तो वह हरिनाम संकीर्तन आदि से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकता है परंतु उसके लिए दृढ़ आस्था व विश्वास की आवश्यकता है। प्राकृतिक चिकित्सा वैज्ञानिकों ने शोध किया है कि मानव प्रकृति के जितना करीब रहता है उतना ही स्वस्थ, सुंदर व बुद्धिमान होता है। उपचार हेतु प्राकृतिक घटकों की शरण लेकर निरोग रहा जा सकता है। प्राणायाम शास्त्र में कहा गया है कि मनुष्य की आयु श्वांस पर आधारित होती है और श्वांस संख्या जीव को उसके कर्म के अनुसार मिलती है। श्वांस का संबंध सीधा प्राणायाम से है। प्राणायाम मस्तिष्क की क्षमता बढ़ाकर स्मरण शक्ति ठीक करता है, चिंता, भय, क्रोध, निराशा व मनोविकारों का समाधान हो जाता है और रक्त शुद्धि स्वतः हो जाती है, अतः प्राणायाम से व्यक्ति निरोग रहता है।

ज्योतिषीय चिकित्सा डाॅक्टर तो रोग हो जाने पर चिकित्सा करते हैं। परंतु ज्योतिष में ग्रहों के पूर्वानुमान से भावी रोग का पहले से पता लगाकर उससे बचने के ज्योतिषीय उपाय किये जाते हैं। इसे ज्योतिषीय चिकित्सा कहते हैं। आभूषण चिकित्सा हमारी मातायें-बहनें पहले मांग में टीका आदि धारण करती थीं जिससे कुछ ग्रंथियों पर दबाव पड़ता था जिसके कारण सिरदर्द आदि नहीं होता था। पुरुष अपने माथे पर चंदन लगाते तथा पगड़ी आदि धारण करते थे जिससे सिर-दर्द के रोगों से बच जाते थे। इस तरह आभूषण चिकित्सा होती थी। संगीत चिकित्सा संगीत शास्त्र में 7 स्वर होते हैं। इन्हीं सात स्वरों के सम्मिश्रण से समस्त राग रागिनियां निकलती हैं। संगीत में स्वर साधना व नाद से शरीर व मन प्रसन्न व स्वस्थ रहता है। पिरामिड द्वारा चिकित्सा पिरामिड ऊर्जा का अनंत स्रोत होता है। इसके माध्यम से साधारण जल को ऊर्जावान बनाकर विभिन्न रोगों पर प्रयोग किया जाता है। यह जल कब्ज, निर्बलता, खुजली, पेट के रोग, वात रोग, सिर दर्द, मधुमेह, लकवा, मोटापा, अनिद्रा आदि कार्यों में अत्यंत ही लाभदायक हैं। पिरामिड जैसी संरचना के नीचे बैठने से ब्रह्माण्डीय ऊर्जा के संकेन्द्रण का लाभ मिलने से स्वास्थ्य अच्छा होता है।

योगासन चिकित्सा जिस स्थिति में सुगमता पूर्वक योगाभ्यास हो सके, उसमें योगासन का अभ्यास करना चाहिये। योगाचार्यों ने अनेक आसन बताये हैं। उनमें से जो हमारे अनुकूल हो, वही आसन करना चाहिये। आसन ऐसा हो जिसमें बैठने पर हमें कष्ट न हो। योगासनांे को नियमित करने से गृहस्थ, भोगी, विषयी आदि सभी स्त्री-पुरुष स्वस्थ, सुंदर और निरोग रहते हैं। आसनों के द्वारा असाध्य रोग मधुमेह आदि भी ठीक हो जाते हैं। वर्तमान में इस पद्धति का विशेष प्रचार-प्रसार हुआ है रुद्राक्ष चिकित्सा रुद्राक्ष को साक्षात शिव स्वरूप माना जाता है। यह शरीर के विविध विकारों को दूर करके व्यक्ति को अध्यात्म से जोड़ता है। सिर-दर्द की शिकायत नहीं रहती, अकाल मृत्यु से बचाता है। इसको धारण करने मात्र से मन एकाग्र व शांत हो जाता है और अनेक रोग दूर हो जाते हैं। रुद्राक्ष को जल में डुबाकर उस जल को ग्रहण करने से गैस, कब्जियत जैसी बीमारियां समूल दूर हो जाती हैं। रुद्राक्ष का पाउडर सेवन करने से बहुत से दोष दूर हो जाते हैं। एरोमा थैरेपी एरोमा थैरेपी का अर्थ है सुंगध चिकित्सा। शरीर और दिमाग को रोग-मुक्त रखने के लिए यह एक सुरक्षित और चमत्कारिक चिकित्सा-पद्धति है क्योंकि इसमें विभिन्न प्रकार के पौधौं तथा जड़ी-बूटियों से निकाले गए अर्क के द्वारा इलाज किया जाता है।

स्व-मूत्र चिकित्सा स्वमूत्र चिकित्सा में अपने ही मूत्र का प्रातःकाल सूर्योदय के पूर्व उठकर पान किया जाता है। यह असाध्य रोगों को ठीक कर देती है, स्वास्थ्य अच्छा रहता है, इससे सभी रोग दूर हो जाते हैं। परंतु अधिकतर व्यक्ति इसे अपनाने के लिए आसानी से तैयार नहीं होते। सूर्य चिकित्सा सूर्य को आरोग्यता का देवता माना जाता है। सूर्य किरणों से सीधे विटामिन डी. तो मिलता ही है इसके अतिरिक्त सूर्य की आराधना करने से व्यक्ति स्वस्थ, निरोग, प्रसन्न रहने के साथ-साथ दीर्घायु प्राप्त करता है। चाक्षसी विद्या नामक सूर्य उपासना से असाध्य नेत्र रोगों का उपचार संभव है। मंत्र-चिकित्सा मंत्र नाद एक विशेष प्रकार की ऊर्जा होती है। इस ऊर्जा का प्रभाव मानवों ही नहीं वरन् जीव जंतु, पेड़, पौधे, पशु, पक्षी सभी पर पड़ता है। जब व्यक्ति वंशानुगत रोग या संक्रामक रोग से पीड़ित होता है तो उसे बहुत कष्ट होता है तथा ऋतुओं के परिवर्तन से कभी स्वस्थ तो कभी अस्वस्थ रहता है। इन रोगों से बचने में मंत्र बहुत सहायक होते हैं। चुंबकीय चिकित्सा पद्धति चुंबकीय पद्धति से इलाज करने पर चुंबक के प्रभाव से बीमारी के दौरान शरीर के तंतुओं के गुण-धर्म बाधित न होकर सामान्य हो जाते हैं। शरीर में रक्त प्रवाह सुचारू हो जाता है, शिराओं एवं धमनियों में से अतिरिक्त कोलेस्ट्राल कैल्शियम, गंदगी आदि को बाहर निकालकर स्वस्थ कर देती है। निष्कर्ष इन वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों से व्यक्ति असाध्य रोगों से भी निजात पा सकता है लेकिन कोई भी पद्धति अपनाने में चिकित्सक की सलाह जरूर लें तथा उपचार के समय सावधानी भी रखें।



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