रोग निवारण के लिए उपासना का वर्णन प्राचीन शास्त्रों में भी दिया गया है। आयुर्वेद शास्त्र के आचार्यों ने पृथ्वी, जल, आकाश, वायु और अग्नि इन पांच तत्वों में किसी भी एक के कुपित हो जाने पर अनेक प्रकार के रोगों की उत्पत्ति का विवरण दिया है। इन तत्वों के कोप से उत्पन्न होने वाले विकारों का उल्लेख “चरक” तथा “सुश्रुत” ने बहुत ही विस्तार से किया है। साथ ही आचार्यों ने औषधि रूप लौकिक उपायों के अतिरिक्त रोगों के निवारण् ाार्थ देवताओं की उपासना का भी मुख्य रूप से निर्देश दिया है कि किस रोग की निवृत्ति के लिए किस देवता की उपासना की जाए? पुराणों में ऐसे हजारों उदाहरण भी प्राप्त होते हैं कि किस रोग की निवृत्ति के लिए किस मंत्र उपासना का सहारा लिया जाए? आकाशस्याधियो विष्णु रम्नेश्चैव महेश्वरी वायोः सूर्यः क्षितेरीशो जीवनस्य गणाधिपः अर्थात आकाश तत्व के स्वामी विष्णु हैं, अग्नि तत्व की स्वामिनी भगवती दुर्गा हैं, वायु तत्व के स्वामी सूर्य हैं, पृथ्वी तत्व के अधिपति शिव हैं तथा जल तत्व के स्वामी गणपति हैं। इसी आधार पर पांचों तत्वों के कोप से उत्पन्न रोगों की शान्ति के लिए मंत्र प्रयोग का आदेश है। वेदों से आरम्भ कर आधुनिक साहित्य तक के विशाल सागर में विभिन्न रोगों से मुक्ति पाने के लिए कई विद्याएं मंत्र, यंत्र, तंत्र, औषधि एवं तप आदि के विधान दिये हंै।
इन सब में मंत्र का महत्व ही सर्वोपरि है। मंत्र जाप से मानसिक और शारीरिक दोनों प्रकार के रोगों की चिकित्सा हो जाती है। मानसिक रोगों में काम, क्रोध, मोह, मद, ईष्र्या, द्वेष, राग, अनुराग, कपट, संकीर्णता, प्रमाद और आलस्य आदि आते हैं। आयुर्वेद के प्रमुख ग्रंथ वाग्मट संहिता में लिखा है कि - रजस्तमश्च मनसो द्वौ च दोषा वुदाहतौ धी धैर्यात्मादिविज्ञानं मनोदोषौषधं परम अर्थात रजोगुण और तमोगुण ये दो मन के दोष हैं। बुद्धि, धैर्य तथा आत्मज्ञान ये तीन मन के रोगों की सर्वोत्तम दवा हैं। जिस प्रकार शारीरिक रोगों की निवृत्ति के लिए मंत्र उपासना आवश्यक है उसी प्रकार मानसिक रोगों को मिटाने के लिए भी मंत्र उपासना परम उपयोगी समझकर मंत्र जाप करना चाहिए। शाबर मंत्र तथा अन्य मंत्र इन सब रोगों से छुटकारा दिलाने में पूर्ण उपयोगी एवं सिद्ध मंत्र हैं। इन मंत्रों की उपासना से न केवल मृत्यु पर विजय प्राप्त होती है अपितु सांसारिक प्राणियों को सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति भी प्राप्त होती है। दीर्घायु लाभ के लिए शं नोभव आ पीत इन्द्रोपितेव सूनव सुशेवः सखेन सख्य उरुशंस धीरः प्रण आयुर्जीव से सोम तारीः प्रयोग विधि- इस मंत्र का जाप भोजन करते हुए अथवा हाथ से हृदय का स्पर्श करते हुए करने पर मनुष्य व्याधिग्रस्त न होकर दीर्घायुलाभ प्राप्त करता है।
चिंरजीवी मंत्र अश्वत्थामा वर्तिव्यासो, हनुमान्श्च विभीषणः कृपा परशुरामश्च सप्तैते चिरजीवनः प्रयोग विधि- इस मंत्र का जाप प्रातः ११ बार करें। रोग मुक्ति शाबर मंत्र ।। जै जै गुणवंती वीर हनुमान रोग मिटें और रिबले रिबलाब कारज पूरण करे पवन सुत जो न करे तो माँ अंजनी की दुहाई। शब्द सांचा पिण्ड काचा फुरो मंत्र फुरो मंत्र इश्वरोवाचा ।। प्रयोग विधि - इस मंत्र की सिद्धि के लिये केवल 3 मंगलवार को हनुमान जी के मन्दिर में जाकर 1 या 3 माला इस मंत्र का जाप करने से ही सिद्ध हो जायेगा। फिर किसी मंगलवार के दिन एक तांबे के गिलास में साफ और शुद्ध पानी भर लें। फिर उसमें 3 दाने गुंजा को लेकर उसे ताम्बे के गिलास में डाल दें और फिर इस मंत्र का 108 बार जाप करें और फिर उन तीनों गुंजा के दानों को निकाल कर रोगी के ऊपर से 7, 11 या 21 बार उतार कर दक्षिण दिशा में फेंक दंे और शेष पानी रोगी को आराम से पिला दें। व्याधिनाश के लिए उतदेवा अवहितं देवउन्नयथा पुनः उतागश्चकुवं। देवा देवा जीवयथा पुनः।। प्रयोग विधि- व्रतपूर्वक इसका जाप करने से रोगनाश होते हैं एवं व्याधियों से मुक्ति मिलती है। सभी व्याधियों से मुक्ति हेतु ऊँ भूर्भवः स्व तत्सुवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।।
प्रयोग विधि- गायत्री मंत्र अकेले ही सभी व्याधियों से मुक्ति दिलाने वाला मंत्र है। उपवास करके, एक दिन में ही गायत्री मंत्र का दस सहस्त्र जाप करने पर समस्त पापों का नाश होता है। गायत्री का एक लाख जप करने पर और हवन करने पर प्राणि मात्र मोक्ष का अधिकारी बन जाता है। सर्वरोग हर मंत्र ऊँ अच्युताय नमः प्रयोग विधि- इस मंत्र को भी शुभयोग में १०८ बार पढ़कर भगवान विष्णु का पंचोपचार से पूजन करें। फिर प्रतिदिन प्रातः कुल्ला करके लोटा या गिलास में रखी हुई जल ११ बार अभिमंत्रित कर पीयें, सभी रोग दूर होंगे। सभी रोगों के लिए शाबर मंत्र काली काली महा काली जो बैठी पीपल की डाली दोनों हाथ बजाए ताली हाथ में लेकर मद की प्याली आप पीएं वीरों को पिलाएं तेरा वचन न जाए खाली लगो मंत्र परिभाषा मेरे गुरु का मंत्र सांचा दुहाई गुरु गोरखनाथ की प्रयोग विधि- इस मंत्र को २१००० की संख्या में जपकर सिद्ध कर लेना चाहिए। यह प्रयोग रविवार के दिन करना प्रभावी होती है। रोग निवारण शाबर मंत्र ऊँ नमो कोतकी ज्वालामुखी काली दो वर रोग पीड़ा दूर कर सात समुन्दर पारकर, आदेश कामरु देश कामख्या माई हाडि दासी चंडी की दुहाई प्रयोग विधि- कई बार अत्यधिक थकावट अथवा बीमारी की वजह से सारा शरीर दर्दमय हो जाता है।
ऐसे में उपरोक्त मंत्र पहले से सिद्ध करके दर्द के समय ११ बार झाड़ने से बहुत फायदा होता है। समस्त रोग नाशक मंत्र - वन में बैठी वानरी, अन्जनी जायो हनुमन्त, बाल डमरु ब्याही बिलाई आंख की पीड़ा, मस्तक पीड़ा, चैरासी, वाई बलि बलि भस्म हो जाय, पके न फूटे’, पीड़ा करे, तो गोरख जाति रक्षा करे मेरी भक्ति गुरु की शक्ति, फुरे मंत्र ईश्वरो वाचा प्रयोग विधि- सर्वप्रथम किसी शुभ योग में इस मंत्र को सिद्ध कर लें। फिर इस मंत्र को १०८ बार जपते हुए रोगी का झाड़ा करें तो उसके समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं। शारीरिक असाध्यता निवारण शाबर मंत्र सुगो हि वो अर्यमन मित्र पन्था अन्रक्षरो वरुण साधुरस्ति। तेनादित्या अधिवोचता नो यच्छता नो दुष्परिहन्तु शर्म।। इस मंत्र का नित्य १०८ बार जप करने से ह्रदय रोग, दुर्बलता, धड़कन, हृदयशूल, हृदय का घाव, हृदय छिद्र तथा अनेक रोग दूर हो जाते हैं। कैंसर रोग -सूर्य गायत्री मंत्र - ऊँ भास्कराय विद्महे दिवाकराय। धीमहि तन्नो सूर्यः प्रचोदयात्।। प्रयोग विधि- कैंसर के रोगी को ऊपर दिये गए सूर्य गायत्री मंत्र का प्रतिदिन कम से कम पांच माला और अधिक से अधिक आठ माला जप, नियम पूर्वक एवं पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करना चाहिये। इसके अतिरिक्त दूध में तुलसी की पत्ती का रस मिलाकर पीना चाहिए।
सूर्य-गायत्री का जप एक अभेद्य कवच का काम करता है। उदर रोग - इस साधना को करने से पेट की तमाम बीमारियों से निजात पाई जा सकती है। बदहजमी, पेट गैस, दर्द और आंव का पूर्ण इलाज हो जाता है। इसे ग्रहण काल, दीपावली और होली आदि शुभ मुहूर्तों में कभी भी सिद्ध किया जा सकता है। आप दिन या रात में कभी भी इस मंत्र का जाप कर सकते हैं। इस मंत्र को १०८ बार जप कर सिद्ध कर लें। प्रयोग के वक्त ७ बार पानी पर मंत्र पढ़ फूँक मारें और रोगी को पिला दें, जल्द ही फायदा होगा। शाबर मंत्र - ऊँ नमो अदेस गुरु को शियाम बरत शियाम गुरु पर्वत में बड़ बड़ में कुआ कुआ में तीन सुआ कोन कोन। सुआ वाई सुआ छर सुआ पीड़ सुआ भाज भाज रे झरावे यती हनुमत मार करेगा भसमंत फुरो मंत्र इश्वरो वाचा।। नेत्र रोग - आंखें मनुष्य के लिए अनमोल रत्न हैं। कई बार व्यक्ति अकारण नेत्र रोग से पीड़ित हो जाते हैं जिससे बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है। यह बहुत ही तीक्ष्ण मंत्र है, इससे तमाम नेत्र रोग से निजात पाई जा सकती है। इसे भी ग्रहण काल, होली, दीपावली आदि शुभ मुहूर्तों में १०८ बार जाप कर सिद्ध कर लें और प्रयोग के वक्त इसको ७ बार पढ़कर कुशा से झाड़ा कर दें, तमाम नेत्र दोष दूर हो जाते हैं। शाबर मंत्र -ऊँ अन्गाली बंगाली अताल पताल गर्द मर्द आदर ददार फट फट उत्कट ऊँ हुं हुं ठा ठा ।।
आधा सिर दर्द - आधा सिर दर्द और माईग्रेन एक बहुत बड़ी समस्या है। उसके लिए एक महत्वपूर्ण मंत्र है। इसे भी ग्रहण काल, दीपावली आदि पर ऊपर वाले तरीके से सिद्ध कर लें। प्रयोग के वक्त एक छोटी नमक की डली ले कर उस पर ७ बार मंत्र पढ़ें और पानी में घोल कर माथे पर लगा दें, आधे सिर का दर्द फौरन बंद हो जाएगा। मंत्र - को करता कुडू करता बाट का घाट का हांक देता पवन बंदना योगीराज अचल सचल ।। सिर पीड़ा निवारक मंत्र हजार घर घालै, एक घर खाए, आगे चले तो पीछे जाए, फुरो मंत्र ईश्वरोवाचा प्रयोग विधि- रोगी को सामने बिठाकर उसका माथा पकड़कर यह मंत्र पढ़कर फूंक मारें। यह क्रिया सुबह-शाम की जाए तो रोगी का सिर दर्द समाप्त हो जाता है। बवासीर नाशक मंत्र ऊं छुह छ्लकं छलाई हूं हुं क्लं क्लां क्लीं हुं। प्रयोग विधि - एक लोट में ताजा शुद्ध जल लेकर उस पर उक्त मंत्र को तीन बार पढ़कर रोगी को दें। रोगी उसे शौच क्रिया में प्रयोग करें। अधिकतम चालीस दिनों के नियमित इस्तेमाल से बवासीर रोग जड़ से समाप्त हो जाएगा। बुखार दूर करने हेतु मंत्र ऊं भैरव भूतनाये विकरालकाये अग्निवर्णधाये। सर्व ज्वर बन्ध मोघय त्रयम्बकेति हुं।।
प्रयोग विधि- रविवार या मंगलवार को प्रातः स्नानादि करने के बाद सहदेवी पौधे की जड़ ले आएं। रास्ते में किसी से बात न करें। घर आकर उस जड़ को मंत्र पढ़कर उस पर फूंक मारें। फिर वह जड़ किसी कपड़े में बांधकर रोगी की दाहिनी भुजा पर मंत्र पढ़ते हुए ही बांध दें। इस प्रयोग से सभी प्रकार के ज्वर ठीक हो जाते हैं। मधुमेह रोग मंत्र - ऊं ह्रांै जूं सः प्रयोग विधि - मधुमेह यानि कि शुगर की बीमारी से छुटकारा पाने के लिये नौ दिन तक रुद्राक्ष की माला से उपर्युक्त मंत्र का 5 माला जप करें। वैदिक, पौराणिक एवं तांत्रिक मंत्रों के समान ‘शाबर-मंत्र ‘ भी अनादि और अचूक हैं। सभी मंत्रों के प्रवर्तक मूल रूप से भगवान शंकर ही हैं, परंतु शाबर मंत्रों के प्रवर्तक भगवान शंकर प्रत्यक्षतया नहीं हैं। इन मंत्रों के प्रवर्तक शिव भक्त गुरु गोरखनाथ तथा गुरु मत्स्येंद्र नाथ को माना जाता है।