सफल शिक्षक बनने के ग्रह योग
सफल शिक्षक बनने के ग्रह योग

सफल शिक्षक बनने के ग्रह योग  

भावेश जोशी
व्यूस : 16988 | मई 2016

शिक्षक का हमारे समाज में महत्वपूर्ण स्थान होता है। किसी भी छात्र को योग्य बनाने व उसको शारीरिक व मानसिक तौर पर सक्षम बनाने में शिक्षक की अहम भूमिका होती है। जैसा कि हमारे शास्त्रों में विदित है माता-पिता के पश्चात वह गुरु ही है जो छात्र का मार्गदर्शन करके उसको भविष्य के लिए तैयार करता है जिससे वह भविष्य में आने वाली चुनौतियों का सामना कर सके व उसे सफलता प्राप्त हो सके। अतः गुरु का स्थान देवता से पूर्व कहा गया है। ज्योतिष शास्त्र में अध्यापन क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिये कुंडली में गुरु तथा बुध का बली होना आवश्यक है।

गुरु ज्ञान के कारक माने जाते हैं तथा बुध बुद्धि के कारक होते हैं। कुंडली में इन दोनों ग्रहों की शुभ स्थिति तथा इनका लग्न, धन, विद्या, रोग व सेवा, कर्म, लाभ स्थान से किसी भी प्रकार युति, दृष्टि संबंध स्थापित होने पर व्यक्ति को अध्यापन क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। यदि इस योग में ‘गुरु’ विशेष रूप से बली हैं तो व्यक्ति समाज में विशेष स्थान प्राप्त करता है। यदि लग्न कुंडली के अतिरिक्त नवमांश, दशमांश, चतुर्विंशांश कुंडली में भी गुरु तथा बुध का युति व दृष्टि संबंध बने तो व्यक्ति अध्यापन क्षेत्र में समृद्धि, संपत्ति अर्जित करता है। धन स्थान, सेवा स्थान, कर्म स्थान को अर्थ स्थान की संज्ञा दी गयी है। इन स्थानों व इनके स्वामियों का संबंध गुरु से बनने पर व्यक्ति अध्यापन क्षेत्र द्वारा धन अर्जित करता है। यदि इस योग में गुरु का संबंध सूर्य से बने तो व्यक्ति सरकारी सेवा से लाभ अर्जित करता है।

अध्यापन में सफलता प्रप्त करने के योग - यदि कुंडली में हंस योग, भद्र योग उपस्थित हो तो व्यक्ति अध्यापन क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है।

- गुरु तथा बुध के मध्य स्थान परिवर्तन योग बनने पर सफलता प्राप्त होती है। यह योग धन, पंचम, दशम व लाभ भाव के मध्य बनने पर अच्छी सफलता प्राप्त होती है और व्यक्ति संपत्ति व समृद्धि अर्जित करता है।

- गुरु व बुध की केंद्र में स्थिति, दोनों का एक दूसरे से युति व दृष्टि संबंध इस क्षेत्र में सफलता प्रदान करता है।

- लग्न तथा चंद्र कुंडली से लग्नेश, पंचमेश, दशमेश का संबंध गुरु तथा बुध से बनने पर अध्यापन क्षेत्र द्वारा जीविका अर्जन होती है।

- फलदीपिका के अनुसार यदि दशमेश के नवमांश का अधिपति गुरु हो तो व्यक्ति गुरु के क्षेत्र (शिक्षा क्षेत्र) द्वारा जीविका प्राप्त करता है।

- यदि कुंडली में गजकेसरी योग उपस्थित हो तथा उसका संबंध धन, पंचम, दशम स्थान से बन रहा हो।

- लग्न कुंडली, नवमांश कुंडली, दशमांश कुंडली में गुरु व बुध का दृष्टि व युति संबंध बनने पर अध्यापन क्षेत्र में अच्छी सफलता मिलती है।

- सूर्य का धन स्थान, पंचम, सेवा, कर्म में गुरु व बुध से संबंध सरकारी सेवा प्राप्त करने में सफलता प्रदान करता है।

विभिन्न प्रकार के ज्योतिषीय योग द्वारा कुंडली विश्लेषण उदाहरण 1 प्रस्तुत लग्न कुंडली में भाग्येश गुरु विद्या स्थान में स्थित होकर लग्न में स्थित केतु, भाग्य में स्थित बुध व शुक्र तथा लाभ में स्थित सप्तमेश शनि को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है। लग्नेश चंद्रमा और भाग्येश गुरु के मध्य शुभ गजकेसरी योग निर्मित हो रहा है जिसके फलस्वरूप जातिका अपनी वाणी व विद्या के माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र द्वारा यश, लाभ व कीर्ति अर्जित कर रही है। लग्न कुंडली से दशमेश मंगल जातक की नवमांश कुंडली में मीन राशि में स्थित है। अतः जातिका गुरु के क्षेत्र द्वारा लाभ अर्जित कर रही है। लग्न, नवमांश, दशमांश कुंडली में शनि का प्रभाव लग्न, वाणी, विद्या स्थान, कर्म स्थान, सप्तम स्थान पर है। अतः जातिका विदेशी भाषा (अंग्रेजी) की शिक्षा देकर अपनी जीविका अर्जित कर रही है। जातिका विद्यालय में अंग्रेजी विषय में दक्ष शिक्षिका हैं तथा कई वर्षों से अध्यापन व्यवसाय से लाभ अर्जित कर रही हैं।

उदाहरण 2 जातक की कुंडली में धनेश, पंचमेश गुरु सेवा स्थान में, चतुर्थेश शनि के साथ विराजमान हैं तथा धन स्थान में स्थित भाग्येश चंद्र, कर्मेश सूर्य, लाभेश बुध को पूर्ण दृष्टि से देख रहे हैं। यह योग जातक को अध्यापन क्षेत्र द्वारा धन अर्जित कराता है। दशमेश सूर्य की धन स्थान में स्थिति तथा धनेश व पंचमेश गुरु की सूर्य पर दृष्टि के परिणामस्वरूप जातक सरकारी सेवा द्वारा लाभ अर्जित कर रहा है। केतु का पंचम, लग्न, नवम पर प्रभाव के परिणामस्वरूप जातक गणित विषय में विशेषज्ञ अध्यापक है। नवमांश कुंडली तथा दशमांश कुंडली में भी गुरु तथा बुध का संबंध लग्न, धन, पंचम, सेवा, कर्म, लाभ भाव व इनके स्वामियों से बन रहा है जो जातक को इस क्षेत्र में सफलता दिलाता है। नवमांश कुंडली में लग्नेश मंगल की दशमेश सूर्य व पंचमेश गुरु के साथ लाभ स्थान में युति के परिणामस्वरूप जातक ने विवाह के उपरांत अपना स्वतंत्र व्यवसाय शिक्षा के क्षेत्र में आरंभ किया जो काफी सफल रहा तथा वर्तमान में काफी विस्तृत स्वरूप ले चुका है।

उदाहरण 3: प्रस्तुत कुंडली में तृतीयेश, षष्ठेश गुरु, दशमेश चंद्र के साथ पराक्रम स्थान में स्थित है तथा अपनी पूर्ण दृष्टि लग्नेश शुक्र, भाग्येश बुध, भाग्य स्थान तथा लाभ स्थान को देख रहा है जिसके फलस्वरूप जातिका उच्चशिक्षित होने के पश्चात अध्यापन के क्षेत्र में कार्यरत है तथा जातिका का भाग्य पूर्णतया इस क्षेत्र के अनुकूल है जिससे जातिका लाभ भी अर्जित कर रही है। चंद्र कुंडली से निर्मित पंचमहापुरुष योग में से हंस योग तथा गजकेसरी योग जातिका को इस क्षेत्र में अच्छी सफलता प्रदान करता है तथा अनेक सुनहरे अवसर प्रदान करता है। पंचमेश शनि तथा सप्तमेश मंगल की लग्न में युति तथा कर्म स्थान, धन स्थान, विद्या स्थान पर उनके प्रभाव के कारण जातिका मैकेनिकल इंजीनियरिंग में शिक्षित है परंतु नवमांश, दशमांश कुंडली में गुरु तथा बुध के दशम, दशमेश, पंचम, लग्न, लाभ, धन स्थान पर प्रभाव के कारण जातिका उच्चशिक्षित होकर अध्यापन क्षेत्र में कार्यरत है तथा महाविद्यालय में शिक्षा देकर समृद्धि व संपत्ति अर्जित कर रही है।

उदाहरण 4: प्रस्तुत लग्न कुंडली में लग्नेश बुध माता स्थान में उच्चस्थ है तथा पूर्ण दृष्टि से कर्म स्थान को देख रहा है। इस प्रकार बुध पंचमहापुरूष योग में से एक भद्र योग का निर्माण कर रहा है। दशमेश व सप्तमेश गुरु षष्ठेश मंगल के साथ विराजमान होकर दशम, व्यय व धन स्थान को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है जो जातक को अध्यापन क्षेत्र के प्रति आकर्षित करता है तथा इस क्षेत्र से समुचित लाभ भी अर्जित करवाता है। पंचमेश व नवमेश की अच्छी स्थिति के कारण जातक उच्चशिक्षित है। नवमांश व दशमांश कुंडली में गुरु व बुध के लग्न, पंचम, दशम पर ्रभाव के कारण जातक अध्यापन क्षेत्र में कार्यरत है। बुध की उच्चता के परिणामस्वरूप जातक ने जीव विज्ञान विषय में विशेषज्ञता प्राप्त की है।



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