वास्तु में दिशाओं का महत्व
वास्तु में दिशाओं का महत्व

वास्तु में दिशाओं का महत्व  

मनोज कुमार
व्यूस : 3683 | फ़रवरी 2016

संपूर्ण विश्व पंच महाभूतों अथवा पंचतत्वों जैसे पृथ्वी, अपा, तेजस, वायु एवं आकाश से निर्मित है। आकाश तत्व जीवन के उच्चतर स्तर पर कार्य करता है जबकि चार आधरभूत तत्व जैसे पृथ्वी, अपा, तेजस एवं वायु मनुष्य के दिनानुदिन जीवन के लिए उपयोगी हैं। वह स्वयं भी पंच महाभूत का उत्पाद है।

वह घर जिसमें वह निवास करता है यदि उसमें तत्वों के तीन अवयवों की उपस्थिति रहती है तो जीवन में पीड़ा एवं चिंता बनी रहती है। हमारे दैनिक जीवन में हमें अपना भोजन बनाना होता है, खाना होता है, सोना होता है तथा अनेक दूसरी गतिविध्यिां संपादित करनी होती हैं। इन सभी गतिविध्यिों को तीन प्रकृति सात्विक, राजसिक एवं तामसिक में वर्गीकृत किया जा सकता है।

ग्रहों के कारकत्व के अनुसार घर की प्रत्येक दिशा एवं हिस्सा हमारे जीवन के विभिन्न विभागों से संबंध्ति हैं। यदि नियमों की अवहेलना की जाती है तो वहां भ्रम एवं संशय की स्थिति उत्पन्न होगी तथा उस स्थान में रहने वाले लोग स्वास्थ्य एवं ध्नागमन से संबंध्ति अनेक समस्याओं का सामना करेंगे।

घर में रहने वाले सभी सदस्यों में आपसी समझ की कमी होगी तथा विरोधभासों के कारण तनाव उत्पन्न होगा। आईये अब हम विभिन्न दिशाओं एवं उनके स्वामियों को समझने की कोशिश करें। पूर्व दिशा के स्वामी सूर्य हैं तथा पश्चिम दिशा के स्वामी शनि हैं। इसी प्रकार उत्तर दिशा के स्वामी बुध् एवं दक्षिण दिशा के स्वामी मंगल हैं। उत्तर-पूर्व दिशा के स्वामी बृहस्पति एवं दक्षिण-पूर्व दिशा के स्वामी शुक्र हैं। उत्तर-पश्चिम दिशा चंद्रमा के द्वारा शासित होता है तथा दक्षिण-पश्चिम दिशा राहु के द्वारा शासित है।

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