गतिविधि का समय एवं पक्षियों के बल
गतिविधि का समय एवं पक्षियों के बल

गतिविधि का समय एवं पक्षियों के बल  

मनोज कुमार
व्यूस : 6571 | मार्च 2015

प्रत्येक मनुष्य का जन्म या तो दिन अथवा रात्रि, कृष्ण पक्ष अथवा शुक्ल पक्ष एवं सप्ताह के किसी एक वार को होता है। पंच पक्षी पांच तात्त्विक स्पंदन के आधार पर पांच तरीके से शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष में चंद्र के बढ़ते एवं घटते कलाओं के प्रभाव के अनुरूप कार्य करते हैं। इन पांचों तत्वों का स्पंदन 5 स्तरों में एक निश्चित समयावधि के लिए क्रियाशील रहता है। पक्षियों की क्रियाविधि एवं क्रियाशीलता में पक्ष, तिथि एवं दिवस के आधार पर परिवर्तन आता रहता है। यदि इनमें से कोई एक अपनी उच्च अवस्था में होता है तो दूसरे चार अन्य भिन्न अवस्थाओं में घटते हुए क्रम में होते हैं। हममें से प्रत्येक किसी एक पक्षी के प्रभाव में रहते हैं। पहले बताया जा चुका है कि प्रत्येक पक्षी के प्रमुख गतिविधि के दौरान अन्य चार पक्षी भिन्न-भिन्न उपगतिविधियों में संलग्न रहते हैं। उपगतिविधियों का काल भिन्न-भिन्न गतिविधि के लिए दिन तथा रात्रि में अलग-अलग होते हैं। किन्तु हर हाल में सभी उपगतिविधियों का सम्मिलित काल 1 यम अर्थात् 2 घण्टे 24 मिनट ही होता है।

दिन के समय उपगतिविधियों के लिए नियत समय:

1. खाना-30 मिनट

2. घूमना-36 मिनट

3. शासन करना-48 मिनट

4.सोना-18 मिनट

5.मरना-12 मिनट

रात्रि के समय उपगतिविधियों के लिए नियत समय:

1. खाना-30 मिनट

2. शासन करना-24 मिनट

3.मरना-36 मिनट

4.घूमना-30 मिनट

5. सोना-24 मिनट

अतः स्पष्ट है कि दिन के समय महत्वपूर्ण उपगतिविधियों के लिए अधिक समय निर्धारित किए गए हैं। इससे पता चलता है कि किसी भी कार्य का शुभारम्भ एवं निष्पादन दिन के समय ही अपने पक्षी के आधार पर चयनित शुभ गतिविधियों के कार्य काल में उचित उपगतिविधि के समय में करना चाहिए। इस प्रकार के शुभ समय में किया गया कार्य निश्चित तौर पर सफल होता है। अतः किसी भी महत्वपूर्ण कार्य के लिए चाहे किसी से व्यावसायिक वार्ता हो अथवा सरकारी उच्चाधिकारियों से मिलना अथवा साक्षात्कार में शामिल होना अथवा विवाह-चर्चा अथवा कोई अन्य महत्वपूर्ण कार्य, सदैव अपने पक्षी के अनुसार शुभ समय का चयन करके ही निष्पादित करना चाहिए। पंचपक्षी शास्त्र प्राचीन तमिल संतों की ऐसी अनमोल देन है कि इससे शुभ समय निर्धारित करके दिया गया कोई भी कार्य सफल ही होता है। आवश्यकता है तो सिर्फ सही तरीके से सीखकर इसपर अमल लाने की।

पक्षियों के बल: प्राचीन तमिल संतों ने विभिन्न पक्षियों के शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष में अलग अलग बल निर्धारित किये हैं।

शुक्ल पक्ष में पक्षियों के बल इस प्रकार हैं-

1. कौआ-पूर्ण बल

2. गिद्ध-75ः बल

3. उल्लू-50ः बल

4. मुर्गा-25ः बल

5. मोर- 12.5ः बल

कृष्ण पक्ष में पक्षियों के बल इस प्रकार हैं:

1. कौआ - पूर्ण बल

2. गिद्ध - 75ः बल

3. मुर्गा - 50ः बल

4. उल्लू - 25ः बल

5. मयूर - 12.5ः बल

यदि हम शासन करने की गतिविधि को सबसे शक्तिशाली मानें तो अन्य पक्षियों की भिन्न-भिन्न गतिविधियाँ हर स्तर पर 1/5 या 20ः कम होती जायेंगी। इस प्रकार शासन करने में 100ः, खाने में 80ः, घूमने में 60ः, सोने में 40ः तथा अन्तिम सुषुप्तकाल मरने की गतिविधि में 20ः बल हर पक्षी के होते हैं। पक्षियों के ये बल अलग-अलग पक्षियों के अपने प्राकृतिक बल के आधार पर भी समानुपातिक रूप से घटते जायेंगे। कौआ सदैव हर स्तर कुछ पक्षियों के प्राकृतिक बल कृष्ण पक्ष तथा शुक्ल पक्ष में अलग-अलग हासामान्य तौर पर शासन करना में शासन करना की उपगतिविधि सर्वोत्तम समय होती है। किन्तु यह सभी पक्षियों के लिए बराबर नहीं है। कौआ को छोड़कर अन्य पक्षियों के प्राकृतिक बल क्रमशः थोड़े-थोड़े कम होते जाते हैं। उदाहरणस्वरूप गिद्ध का प्राकृतिक बल कौआ की अपेक्षा 75ः है। अतः गिद्ध के काल शासन करना में शासन करना उपगतिविधि के दौरान कार्य में सफलता तो मिलेगी किन्तु कौआ की तुलना में कम। इस तरह से पक्षियों के बल का आकलन कर इसका प्रयोग विभिन्न कार्यों में किया जाता है। यदि शुभ गतिविधि के साथ शुभ उपगतिविधि होगी तो कार्य की सफलता निश्चित है।



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