वास्तु में पूजा वास्तु प्राप्ति के लिए अनुष्ठान, भूमि पूजन, नींव खनन, कुआं खनन, शिलान्यास, द्वार स्थापन व गृह प्रवेश आदि अवसरों पर वास्तु देव पूजा का विधान है। किसी शुभ दिन या रवि पुष्य योग को वास्तु पूजन कराना चाहिए।
पूजन सामग्री - रोली, मोली, पान के पŸो, लोंग, इलाइची, साबुत सुपारी, जौ, कपूर, चावल, आटा, काले तिल, पीली सरसों, धूप, हवन सामग्री, पंचमेवा (काजू, बादाम, पिस्ता, किशमिश, अखरोट), शुद्ध घी, तांबे का लोटा, नारियल, सफेद वस्त्र, लाल वस्त्र, 2 पटरे लकड़ी के, फूल, फूलमाला, रूई, दीपक, आम के पŸो, आम की लकड़ी, पंचामृत (गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद, शक्कर), माचिस, स्वर्ण शलाखा।
नींव स्थापन सामग्री: तांबे का लोटा, चावल, हल्दी, सरसों, चांदी का नाग-नागिन का जोड़ा, अष्टधातु कश्यप, 5 कौड़ियां, 5 सुपारी, सिंदूर, नारियल, लाल वस्त्र, घास, रेजगारी, बताशे, पंच रत्न, पांच नई ईंटें।
पूजन वाले दिन प्रातःकाल उठकर प्लाॅट/घर की सफाई करके साफ व शुद्ध कर लेना चाहिए। जातक को पूर्व मुखी बैठकर अपने बायें तरफ धर्म पत्नी को बैठाना चाहिए। मंत्रोच्चारण द्वारा शरीर शुद्धि, स्थान शुद्धि व आसन शुद्धि की जाती है। सर्वप्रथम गणेश जी की आराधना करनी चाहिए।
तत्पश्चात नवग्रह पूजन करना चाहिए। वास्तु पूजन के लिए गृह वास्तु में 81 पद के वास्तु चक्र का निर्माण किया जाता है। 81 पदों में 45 देवताओं का निवास होता है। ब्रह्माजी को मध्य में 9 पद दिये गये हैं। चारों दिशाओं में 3 देवता व मध्य में 13 देवता स्थापित होते हैं।
इनके नाम व मंत्र ऊपर दी गई तालिका में अंकित हैं- इन 45 मंत्रों के साथ आहुतियां देने के पश्चात् आठों दिशाओं, पृथ्वी व आकाश की पूजा की जाती है। हवन सामग्री मे तिल, जौ, चावल, घी, बताशे मिलाकर वास्तु देव को निम्न मंत्र पढ़ते हुए 108 आहुतियां दें।
नमो नारायण वास्तुरूपाय।
भूर्भूवस्य पतये भूपतित्व मे देहि ददापय स्वाहा।।
तत्पश्चात्- आरती करके श्रद्धानुसार ब्राह्मणों को भोजन करावें।
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