प्रेम विवाह कैसे, कहां और किससे ?
प्रेम विवाह कैसे, कहां और किससे ?

प्रेम विवाह कैसे, कहां और किससे ?  

अमित कुमार राम
व्यूस : 13698 | जुलाई 2015

मानव हृदय में इस प्रेम का सूत्रपात क्यांे, कब और किन कारणों से होता है? ऐसा क्या है, इस ज्वार में जो मनुष्य को अन्तर्मन तक झिंझोड़ देता है। प्रेम के लिए उत्तरदायी ग्रह: ज्योतिषीय दृष्टि से प्रेम को उद्दाम तरंगों पर पहुंचाने में चन्द्र, शुक्र, मंगल, पंचमेश, सप्तमेश ग्रहों का पूर्ण योगदान रहता है। शास्त्रों में ‘चन्द्रमा मनसो जातः’ के आधार पर चन्द्रमा को मन का कारक स्वीकार किया गया है। यही ग्रह प्रेम, हृदयों में कोमल भावनाओं से ओत-प्रोत आकर्षक एवं मनस चांचल्य को उत्पन्न करता है। चन्द्रमा का मन पर पूर्ण अधिकार होने के कारण इसे उससे सम्बन्धित मानसिक भावनाओं, प्रसन्नताओं एवं उदासीनता का कारक भी स्वीकार किया जाता है।


Consult our expert astrologers to learn more about Navratri Poojas and ceremonies


ग्रहों में चन्द्रमा की गति सर्वाधिक होती है। इसी कारण मन की गति को भी सर्वाधिक माना गया है। चूँकि कालपुरुष की कर्क राशि चतुर्थ भाव पर पड़ती है और कर्क राशि चन्द्रमा के अधिपत्य में आती है। चतुर्थ भाव हृदय का भाव भी कहा जाता है। अतः हृदय में उद्वेलित समस्त भावनात्मक तरंगों का सूत्रधार चन्द्रमा को ही माना गया है। शुक्र को प्रेम का सम्पूर्ण कारक माना गया है। पाश्चात्य जगत में शुक्र को ‘वीनस’ कहा जाता है।

‘वीनस’ अर्थात् प्रेम की देवी। आकाशमण्डलस्थ शुक्र पर यदि दृष्टिपात किया जाए तो यह ग्रह शुभ एवं उज्ज्वल दिखाई देता है, जो कि अन्य ग्रहों से सर्वाधिक सुन्दर एवं स्वच्छ प्रतीत होता है। यही कारण है कि मानव हृदय में सुन्दरता, माधुर्य एवं उत्कृष्ट कलात्मक भावनाओं का नेतृत्व यही ग्रह करता है, इसीलिए कलात्मक रुचियों तथा संगीत, चित्रकला, अभिनय आदि में शुक्र का प्रतिनिधित्व निर्विवाद है। सौन्दर्य का प्रमुख उद्देश्य होता है, किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करना, अतः जिन व्यक्तियों की कुण्डलियों में शुक्र अत्यधिक बलवान होता है उसमें दूसरों को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रमुख गुण होगा और यही आकर्षण कालान्तर में प्रेम के रूप में परिवर्तित हो जाता है।

इसी क्रम में मंगल को भी सम्मिलित किया जाता है क्योंकि जब तक मन में स्थापित प्रेम को व्यक्त नहीं किया जाएगा वह प्रेम निष्फल ही कहा जाएगा। दो विपरीत प्रेमी हृदयों में प्रेम का सुमन तो अंकुरित हो गया है, परन्तु यदि वह दोनों ही उसे अभिव्यक्त न कर पाने के कारण पुष्पित एवं पल्लवित नहीं हो तो प्रेम की महक नहीं फैल पाएगी। इसके लिए एक दूसरे से इजहार करने का साहस भी होना अत्यन्त आवश्यक है और यह साहस मंगल प्रदान करता है। अतः प्रेम की प्राप्ति में मंगल का बली होना भी अत्यन्त आवश्यक है।

प्रेम के कारक भाव: ग्रहों के बाद हमें कुण्डली के अन्तर्गत प्रेम सम्बन्ध को प्रदर्शित एवं वर्धित करने वाले भावों पर दृष्टिपात करना चाहिए। वैसे तो जन्मांग के अन्दर द्वादश भावों में किसी न किसी रूप में आपसी सम्बन्ध अवश्य होता है, परन्तु किसी भी प्रश्न पर दृष्टिपात करने से पूर्व उस प्रश्न से सम्बन्धित भावों पर विशेष दृष्टिपात किया जाता है। इसी प्रकार प्रेम को प्रदर्शित एवं वर्धित करने में लग्न, पंचम एवं सप्तम भावों का विशेष योगदान है। लग्न जन्मांग के अन्तर्गत शरीर को प्रदर्शित करता है चंूकि सभी क्रियाएं शरीर एवं मस्तिष्क से सम्बन्धित होती हैं।

साथ ही लग्न व्यक्ति की मानसिकता को भी प्रदर्शित करता है, इसलिए लग्न का बली होना अत्यन्त आवश्यक है। यदि लग्न निर्बल होगा, तो व्यक्ति की भावनाओं एवं उनसे जुड़ी मानसिकता में सुदृढ़ता नहीं आ पाएगी जिसकी वजह से प्रेमी हृदय को अनेक विघ्न बाधाओं का सामना भी करना पड़ सकता है। चतुर्थ भाव हृदय का माना गया है। चूंकि हृदय से ही हमारे मन की समस्त भावनाएं जुड़ी होती हैं, अतः हृदय की उन समस्त भावनाओं की प्राप्ति चतुर्थ से द्वितीय अर्थात् पंचम भाव को माना गया है। पंचम भाव को मैत्री का भाव भी स्वीकार किया गया है। दो दिलों में प्रेमालाप के लिए सर्वप्रथम मैत्री का होना अत्यन्त आवश्यक है। यही मैत्री जातक को प्रेम नौका पर चढ़ने में सहायता प्रदान करती है।

यदि पंचम भाव शुभ प्रभाव में है तो व्यक्ति के आन्तरिक मन में उन प्रेमात्मक भावनाओं का प्रसारण सहज ही हो जाएगा। सप्तम भाव कलत्र अथवा विपरीत लिंग का सूचक है। विपरीत पक्ष के प्रति प्रेम की उद्दाम लहरों को यही अपने अन्दर अन्तर्निहित करता है, अतः सप्तम भाव पंचम भाव के प्रतिकूल के रूप में स्वयं को प्रदर्शित करता है। कतिपय विद्वानों के मत में तृतीय भाव, नवम भाव, एकादश भाव को सम्मिलित किया जाता है।

मतानुसार तृतीय भाव पराक्रम का है और प्रेम का इजहार करने में विचारों एवं इच्छाशक्ति की सुदृढ़ता की आवश्यकता होती है और इन विचारों को प्रदर्शित एवं अभिव्यक्त करने के लिए साहस की आवश्यकता होती है। यदि यह भाव बली नहीं होगा तो व्यक्ति प्रेम का इजहार नहीं कर पायेगा और उसका प्रेम मन ही मन अपना दम तोड़ देगा। अतः प्रेम को अभिव्यक्ति का रूप देने में पराक्रम भाव, पराक्रमेश एवं पराक्रम कारक ग्रह का विशेष योगदान है। इसी प्रकार एकादश भाव इच्छाशक्ति का होता है। प्रेम होगा अथवा नहीं: प्रेमी हृदय के मन में सर्वप्रथम यही प्रश्न समुपस्थित होता है कि उसका किसी से प्रेम सम्बन्ध स्थापित होगा अथवा नहीं। निम्नलिखित कतिपय सिद्धान्तों के द्वारा हम यह कह सकते हैं कि:

1. यदि पंचमेश एवं सप्तमेश में परस्पर दृष्टि सम्बन्ध, युति सम्बन्ध एवं स्थान परिवर्तन सम्बन्ध हो तो प्रेम सम्बन्ध अवश्य होगा।

2. यदि चतुर्थ भाव में शुक्र स्थित हो तो जातक विपरीत लिंग की तरफ अत्यध् िाक आकर्षित होगा।

3. यदि लग्न भाव में शुक्र स्थित हो तो जातक का प्रेम सम्बन्ध स्थापित होगा।

4. यदि सर्वाष्टकवर्ग में पंचम भाव और शुक्र से युत राशि को 30 से अधिक रेखाएं प्राप्त हो तो जातक के प्रेम सम्बन्ध होने की सम्भावना अधिक होती है।

5. यदि शुक्र-मंगल एवं चन्द्र-शुक्र की युति हो तो जातक का प्रेम सम्बन्ध स्थापित होगा। लग्न अथवा सप्तम भाव में चन्द्रमा स्थित हो, अथवा सप्तमेश से चन्द्रमा युति करते हुए पंचम, नवम अथवा एकादश भाव में स्थित हो, तो प्रेम सम्बन्ध स्थापित होगा।

कुंडली 1: उपरोक्त कुण्डली धनाढ्यवर्ग के एक व्यक्ति की है। इसका एक साथ ही पढ़ने वाली सुन्दर लड़की से प्रेम सम्बन्ध स्थापित हो गया। इसकी कुण्डली में-

1. लग्न कुण्डली में सप्तमेश गुरु चतुर्थ भाव में स्वराशि में स्थित है तथा पंचमेश शनि की भी तृतीय दृष्टि गुरु पर पड़ रही है।

2. पंचमेश भाव में मन का कारक चन्द्रमा स्थित है।

3. निरयण भाव चलित में पंचमेश शनि द्वितीय भाव में शुक्र की राशि तुला में स्थित है जो कि चतुर्थ भाव में पंचमेश गुरु से युति भी कर रहा है।

4. निरयण भाव चलित में भी पंचमेश, सप्तमेश एवं शुक्र का सम्बन्ध बन रहा है। साथ ही पंचम भाव में चन्द्र मंगल की युति ने जातक का सुन्दर कन्या के साथ प्रेम स्थापित किया।

प्रेम सम्बन्ध कब स्थापित होगा ?:

वैसे देखा जाए तो प्रेम करने की कोई उम्र नहीं होती, न ही सीमा होती है। कहा भी गया है कि प्यार किया नहीं जाता, हो जाता है तथा यह किसी भी आयुवर्ग में और किसी भी आयुवर्ग के साथ हो सकता है। ज्योतिषीय दृष्टि से निम्नलिखित परिस्थितियों में प्रेम सम्बन्ध स्थापित हो सकते हैं:

1. जन्मकालीन समय से गोचरावधि में अपने-अपने भिन्नाष्टक वर्गों में सप्तमेश एवं पंचमेश 5 या 5 से अधिक रेखाओं पर हो, तब प्रेम सम्बन्ध स्थापित होने की सम्भावना होती है।

2. शास्त्रों में कहा गया है कि सप्तमेश एवं शुक्र की दशा में जातक को विपरीत लिंग के प्रति अधिक आकर्षण उत्पन्न होता है। यदि सप्तमेश की महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा में पंचमेश अथवा मंगल की दशा चल रही हो, तो जातक के प्रेम सम्बन्ध स्थापित होने की सम्भावना हो सकती है।

3. लग्नेश की महादशा में पंचमेश अथवा सप्तमेश की अन्तर्दशा हो, तो जातक का प्रेम सम्बन्ध स्थापित हो सकता है।

4. एकादशेश की दशा-अन्तर्दशा हो, शुक्र की अन्तर्दशा हो एवं एकादशेश मित्र राशि में स्थापित हो तो जातक को प्रेम सम्बन्ध स्थापित होने की सम्भावना होती है।

कुंडली 2: जातिका ने इंटरनेट एवं फोन पर प्रेम सम्बन्ध स्थापित किया जो कि शीघ्र ही परवान चढ़ गया। श्वेता की कुण्डली में:

1. सप्तमेश शुक्र एवं लग्नेश मंगल लग्न भाव में युति कर रहे हैं।

2. चलित कुण्डली में मंगल एवं शनि के साथ पंचमेश सूर्य की भी युति हो गयी है।

3. सप्तमेश शुक्र जो कि द्वितीयेश भी है, वहां बुध जो कि संचार माध्यम का साधन है के साथ युति हो रही है। जिसके कारण जातिका का इंटरनेट एवं फोन पर प्यार हुआ।

4. श्वेता का प्रेम सम्बन्ध जून 2007 में शुरु हुआ जो कि केतु में शनि की अन्तर्दशा के दौरान हुआ।शनि पंचम भाव में राहु से युति कर रहा है तथा केतु की पंचम पर पूर्ण दृष्टि भी हो रही है। तदनन्तर केतु में शनि में बुध की प्रत्यन्तर्दशा में श्वेता का प्रेम सम्बन्ध परवान चढ़ा। शुक्र पंचमेश सूर्य के साथ सप्तमेश शुक्र की ही वृषभ राशि में युति कर रहा है। इस प्रकार पंचम में स्थित शनि ग्रह एवं पंचमेश सूर्य के साथ बुध की प्रत्यन्तर्दशा तथा बाद में शुक्र की दशा ने प्रेम को चरम सीमा पर पहुंचा दिया।

5. पंचम भाव का उपनक्षत्र भी केतु है, जिसकी महादशा चल रही थी। प्रेम कहां, किस जगह पर होगा ?: अग्रिम प्रश्न जातक के मन में रहता है कि यह प्रेम सम्बन्ध रिश्तेदारी में होगा, मित्रवर्ग में होगा अथवा शिक्षण संस्थान में होगा अथवा किसी अन्य जगह पर होगा।

इसके प्रत्युत्तर में निम्नलिखित परिस्थितियां हो सकती हैं:

1. यदि पंचमेश अथवा सप्तमेश का सम्बन्ध द्वितीय भाव से हो रहा हो तो जातक का सम्बन्ध अपने निकटस्थ कौटुम्बिक अथवा रिश्तेदारी में होता है।

2. यदि सप्तमेश एवं पंचमेश का सम्बन्ध हो अथवा सप्तमेश पंचम भाव में हो तो सहपाठी अथवा मित्र वर्ग में प्रेम सम्बन्ध स्थापित होता है।

3. यदि सप्तमेश अथवा पंचमेश का सम्बन्ध हो, बुध बली हो तथा वह भी इन भावों से सम्बन्ध बनाए, तो आधुनिक संचार के माध्यमों अर्थात् इन्टरनेट, फोन आदि से प्रेम सम्बन्ध स्थापित होता है।

4. यदि सप्तमेश एवं पंचमेश का अष्टम एवं नवम भाव से भी सम्बन्ध बने, तो यात्रा के दौरान प्रेम सम्बन्ध स्थापित होता है।

5. यदि पंचमेश एवं सप्तमेश का सम्बन्ध षष्ठ एवं दशम भाव से हो तो सहकर्मी से प्रेम सम्बन्ध स्थापित होने की सम्भावना है।

6. यदि पंचमेश एवं सप्तमेश का सम्बन्ध एकादश भाव से हो, तो जातक का प्रेम सम्बन्ध बड़े भाई अथवा बहन के माध्यम से हो सकता है।

कुंडली 3: उपरोक्त में, इस जातक ने अपनी चाची की भतीजी से प्रेम सम्बन्ध स्थापित किया जो कि विवाह सम्बन्ध में भी परिवर्तित हो गया और वर्तमान में जातक सुखमय जीवन व्यतीत कर रहा है। प्रेम सम्बन्ध जनवरी, 1997 में प्रारम्भ हुआ तथा 26 फरवरी 2000 को विवाह सूत्र में परिवर्तित हो गया।


Expert Vedic astrologers at Future Point could guide you on how to perform Navratri Poojas based on a detailed horoscope analysis


1. लग्न कुण्डली में सप्तमेश मंगल पंचम भाव में स्थित है।

2. चलित कुण्डली में भी मंगल पंचम भाव में है, साथ ही लग्नेश प्रेम का कारक शुक्र पंचमस्थ हो गया।

3. प्रेम जब शुरु हुआ, तब राहु में गुरु की अन्तर्दशा चल रही थी।

4. जातक का प्रेम सम्बन्ध अपनी चाची की भतीजी से हुआ जो कि बड़े भाई की लड़की थी। इस रिश्ते के अनुसार चाची का षष्ठ भाव हुआ तथा उनके बड़े भाई का षष्ठ से एकादश अर्थात् चतुर्थ भाव हुआ।

इनकी बेटी का पंचम भाव अर्थात् चतुर्थ से पंचम भाव अर्थात् अष्टम भाव हुआ। अष्टम भाव में गुरु की धनु राशि होने के कारण तृतीय भावस्थ गुरु की सप्तम पर दृष्टि भी है, अतः गुरु की अन्तर्दशा में जातक का प्रेम सम्बन्ध प्रारम्भ हुआ।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.