पितृदोष संबंधी अशुभ योग एवं उनके निवारण के उपाय
पितृदोष संबंधी अशुभ योग एवं उनके निवारण के उपाय

पितृदोष संबंधी अशुभ योग एवं उनके निवारण के उपाय  

अमित कुमार राम
व्यूस : 8335 | सितम्बर 2014

पितृदोष से तात्पर्य पितरों की असंतुष्टि से है। जब किसी परिजन के द्वारा अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध इत्यादि कर्म नहीं किया जाए अथवा इन कर्मों को पितरों के द्वारा नकार दिया जाए, तो पितर असंतुष्ट होकर जो हानि पहुंचाते हैं, उसे ही पितृदोष कहते हैं। पितृदोष होने पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति, गोचर और दशाएं होने पर भी शुभ फल नहीं मिल पाते। पितृदोष अदृश्य बाधा के रूप में जातक को परेशान करता है और उसके जीवन में सभी क्षेत्रों में उन्नति को बाधित कर देता है। परिजनों के मध्य वैचारिक मतभेद रहते हैं अथवा प्रयासों से कोई शुभ फल प्राप्ति का योग बने तो वह भी अकारण समाप्त हो जाता है। जन्मकुंडली में लग्न, पंचम, अष्टम और द्वादश भाव पितृदोष में विचारणीय होते हैं। सूर्य, चंद्रमा, गुरु, शनि और राहु-केतु की स्थितियां भी विचारणीय होती हैं। इनकी राशियां कर्क, सिंह, धनु, मकर, कुंभ और मीन से संबंधित भी विचार करते हैं। उपर्युक्त राशि ग्रह तथा भावों की विशेष स्थितियों में पितृदोष संबंधी अशुभ योगों का निर्माण होता है।

परिवार में मुखिया अथवा बड़े पुत्र की जन्मपत्रिका में यह दोष होने पर अन्य परिजनों की जन्मपत्रिका में भी इससे मिलते-जुलते दोष देखे जा सकते हैं। किस व्यक्ति के पितृयोनि में जाकर असंतुष्ट होने के कारण यह दोष उत्पन्न हो रहा है? इसका विचार भी इन अशुभ योगों से किया जा सकता है। यदि गुरु पितृदोष संबंधी अशुभ योग निर्मित कर रहा है, तो कोई पुरुष पितर रूप मंे पीड़ित कर रहा है जबकि चंद्रमा के द्वारा पितृ दोष निर्मित होने पर किसी स्त्री के द्वारा पितृदोष मानना चाहिए। इसी प्रकार सूर्य से पिता अथवा पितामह, मंगल से भाई अथवा बहन और शुक्र से पत्नी का विचार करना चाहिए। प्रस्तुत लेख में पितृदोष से संबंधित अशुभ योगों का वर्णन किया जा रहा है। जिनकी जन्मपत्रिका में ऐसे योग निर्मित होते हैं, उन्हें पितृदोष के कारण बाधा होती है।

1. जन्मपत्रिका में गुरु निर्बल होकर राहु से युति करता हुआ लग्न, पंचम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में स्थित हो तो किसी पुरूष पितर के कारण पितृ दोष होता है।

2. पंचम भाव में सूर्य तुला राशि में कुंभ नवांश में हो और यह भाव पापकर्तरी योग से पीड़ित हो तो पिता अथवा पितामह से संबंधित पितृदोष होता है।

3. अष्टमेश पंचम में हो, सप्तम भाव में शुक्र और शनि की युति बनती हो तथा लग्न में गुरु राहु से युत होकर स्थित हो तो जीवनसाथी से संबंधित पितृदोष होता है।

4. सूर्य अथवा सिंह राशि पापकर्तरी योग से पीड़ित होकर लग्न, पंचम अथवा नवम भाव में स्थित हो और शनि-राहु से भी उनका संबंध हो तो पिता, पितामह अथवा पितामह के कारण पितृ दोष का निर्माण होता है।

5. राहु और चंद्रमा युत होकर पंचम भाव में हो, लग्न और लग्नेश पाप ग्रहों से पीड़ित हों और पंचम भाव में राहु चंद्रमा की स्थिति वृषभ अथवा तुला राशि में हो तो जीवनसाथी से संबंधित पितृदोष होता है।

6. चंद्रमा पाप कर्तरी योग से पीड़ित होकर अष्टम भाव में हो और अष्टम भाव पर पाप ग्रहों का प्रभाव भी हो तो किसी स्त्री से संबंधित पितृदोष होता है।

7. गुरु सिंह राशि में स्थित होकर पंचमेश तथा सूर्य से युति करता हो, लग्न और पंचम भाव में पाप ग्रह हो तो किसी पुरूष पितर के कारण पितृदोष होता है।

8. अष्टम अथवा द्वादश भाव में राहु-गुरु की युति हो तथा सूर्य मंगल और शनि से उनका संबंध हो एवं लग्न तथा पंचम का भी पाप ग्रहों से संबंध हो, तो पुरूष संबंधी पितृ दोष होता है।

9. सूर्य अष्टम भाव में स्थित हो, पंचमेश राहु के साथ स्थित हो और शनि पंचम भाव में हो तो किसी पुरूष के कारण पितृ दोष होता है।

10. षष्ठेश पंचम भाव में हो, दशमेश षष्ठ भाव में हो और राहु-गुरु की युति हो तो पुरूष संबंधी पितृ दोष होता है।

11. लग्न में राहु हो, पंचम भाव में शनि हो और अष्टम भाव में गुरु हो तो पुरुष संबंधी पितृ दोष होता है।

12. चतुर्थ भाव में राहु, पंचम भाव में नीच राशिगत चंद्रमा और एकादश भाव में शनि स्थित हो तो किसी स्त्री पितर से संबंधित पितृदोष होता है।

13. षष्ठेश तथा अष्टमेश लग्न भाव में स्थित हो, पंचम भाव में गुरु-चंद्रमा की युति पाप ग्रहों से युक्त हो तो, किसी स्त्री पितर के कारण पितृ दोष होता है।

14. लग्न पापकर्तरी योग से पीड़ित हो, सप्तम भाव में क्षीण चंद्रमा हो राहु शनि पंचम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में स्थित हो तो किसी स्त्री पितर से संबंधित पितृ दोष होता है।

15. कर्क लग्न में शनि एवं चंद्रमा पंचम भाव में स्थित हों, मंगल और राहु की युति करते हुए लग्न, अष्टम या द्वादश भाव में स्थित हो तो किसी स्त्री पितर के कारण पितृ दोष होता है।

16. तृतीयेश पंचम भाव में राहु और मंगल से युति करे तथा पंचमेश अष्टम भाव में स्थित हो तो पितरों में शामिल भाइयों से संबंधित पितृदोष होता है।

17. पंचम भाव में शनि, अष्टम भाव में चंद्रमा तथा मंगल की युति हो और तृतीय भाव नीच राशिगत होकर निर्बल हो, तो पितरों में शामिल भाइयों के कारण पितृदोष होता है।

18. पंचम भाव में मिथुन अथवा कन्या राशि हो और उसमें शनि राहु स्थित हो, द्वादश भाव में मंगल एवं बुध की युति हो तो पितरों में शामिल भाइयों से संबंधित पितृदोष होता है।

19. सप्तमेश अष्टम भाव में हो, शुक्र पंचम भाव में हो तथा गुरु पाप ग्रहों से युत हो तो जीवनसाथी से संबंधित पितृदोष होता है।

उक्त पितृदोष निर्मित होने पर व्यक्ति को इनकी शांति के निमित्त उपाय इत्यादि करने से लाभ होता है। जो ग्रह पितृदोष का कारक बना हुआ है, उसकी दशा-अंतर्दशा में इनके फल अधिक मिलते हैं। पितृ दोष निवारण के उपाय पितृ दोष निवृत्ति के लिए किए गए उपायों से ही इनका निवारण हो पाता है। पितृदोष निवारण के उपाय इस प्रकार हैं:

1. यदि आप पितृदोष से पीड़ित हैं तो प्रत्येक अमावस्या को पितरों के निमित्त श्राद्धकर्म करना चाहिए और एक ब्राह्मण को भोजन तथा यथाशक्ति दक्षिणा भी अर्पित करनी चाहिए।

2. अमावस्या को श्राद्ध के साथ ही गुग्गुल मिश्रित धूप अपने पितरों को दिखाकर पूरे घर में घुमानी चाहिए।

3. घर में पितृदोष होने पर शुभ मुहूर्त से प्रारंभ करते हुए प्रतिदिन श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ करना चाहिए।

4. घर में भोजन बनने के बाद सर्वप्रथम गो ग्रास (गाय की रोटी) निकालकर गाय को खिलाना चाहिए।

5. पितृदोष कई प्रकार का होता है, यदि किसी परिजन की मृत्यु के एक वर्ष बाद भी उसे मुक्ति नहीं मिल पायी हो और इस कारण पितृदोष जैसी स्थिति बन गई हो तो उसके निमित्त गया तीर्थ में जाकर श्राद्धकर्म करना चाहिए।

6. अन्त्येष्टिकर्म में हुई त्रुटि के कारण भी पितृदोष हो जाता है। इसका निवारण भी गया तीर्थ में श्राद्ध करने से किया जा सकता है।

7. घर में जहां पीने का जल रखा जाता है, उस स्थान पर विशेष पवित्र्रता रखें। यह स्थान पितरों का माना जाता है।

8. कई बार परिजनों के द्वारा मांस भक्षण, शराब सेवन अथवा कोई अन्य अनैतिक कार्य करने पर भी पितृदोष उत्पन्न हो जाता है। ऐसी स्थिति में शीघ्र ऐसे अनैतिक कार्यों को त्याग देना चाहिए और पितरों से क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए, तभी पितृदोष दूर होगा।

9. पितृदोष निवारण के लिए श्राद्धपक्ष में सभी परिजनों के निमित्त श्राद्धादि कर्म अवश्य करना चाहिए और आश्विन अमावस्या को सर्वपितृश्राद्ध में अपने सभी पूर्वजों सहित अन्य मृतक परिजनों का भी श्राद्ध करना चाहिए।

10. मृतक परिजन की पुण्यतिथि पर उनके निमित्त श्राद्धकर्म अवश्य करना चाहिए।



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