मेष लग्न: विभिन्न भावों में शुक्र की दशा का फल
मेष लग्न: विभिन्न भावों में शुक्र की दशा का फल

मेष लग्न: विभिन्न भावों में शुक्र की दशा का फल  

अमित कुमार राम
व्यूस : 35083 | जून 2013

शुक्र की महादशा मेष लग्न में शुक्र धन भाव का स्वामी होता है और जन्म कुंडली में किस भाव में स्थित है उसका भी विशेष महत्व है। जब भी शुक्र की दशा आयेगी धन योग का फल मिलेगा लेकिन दशा के अनुसार ही शुभ-अशुभ फल प्राप्त होगा। लग्न में शुक्र मेष लग्न में शुक्र लग्न में ही हो तो इस महादशा में धन और सुख का नाश होता है। वह सदा भ्रमणकारी होता है, व्यसनी और चंचल स्वभाव का होता है।

द्वितीय भाव में शुक्र द्वितीय भाव में होने पर शुक्र की महादशा में कृषि करने वाला, सत्यवादी और ज्ञानी होता है। उसके सुख की वृद्धि और शास्त्रों की ओर विलक्षण रूचि होती है। उसे कन्या संतान होती है। तृतीय भाव में शुक्र इस भाव में होने पर शुक्र की महादशा में काव्य-कला का जानने वाला, हास्य विलास प्रिय, कथा इत्यादि में रूचि रखने वाला होता है।


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चतुर्थ भाव में शुक्र चतुर्थ भाव में होने पर शुक्र की दशा में जातक अपने कार्य में दक्ष, उद्यमी और अपनी स्त्री के लिए उत्सुक व कृतज्ञ होता है। पंचम भाव में शुक्र पंचम भाव में होने पर शुक्र की दशा में स्त्रियों से धन प्राप्त करने वाला, पराये धन से जीवन व्यतीत करने वाला पुत्र और चैपाये जीवों से कुछ सुखी तथा पुराने मकान में वास करने वाला होता है। स्त्री का नाश, भ्रातृ-वियोग, स्वजनों से विरोध और कलह होता है। छठे भाव में शुक्र षष्ठ भाव में होने पर शुक्र की महादशा में सुख का नाश, धन की कमी, मन में चंचलता, मनोरथ का नाश और अपने स्थान से विचलन होता है। सप्तम भाव में शुक्र जन्म कुंडली के योग जीवन में हर समय ही फल नहीं देते रहते हैं।

जब उनकी दशा या अंतर्दशा आती है, तब वे विशेष फल प्रदान करते हैं। विंशोत्तरी दशा से फल जानने के लिये आठ सूत्र होते हैं, जिन्हें पहले समझते हैं:

1. जिस ग्रह की महादशा है, वह किस भाव का स्वामी है और उसकी अंतर्दशा में शुभ और अशुभ ग्रहों की अंतर्दशा का क्या फल होता है।

2. दशानाथ की भिन्न-भिन्न भावों में स्थिति के अनुसार अंतर्दशा फल।

3. अन्तर्दशा स्वामी जिस भाव में बैठा है उसके अनुसार फल।

4. दशानाथ से अन्तर्दशा किस स्थान में है यानि दशानाथ से अन्तर्दशा द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ आदि स्थान में है, और उस स्थान में रहने के कारण क्या फल होता है?

5. अन्तर्दशा की अवस्था आदि का विचार एवं अन्तर्दशा की शुभ, अशुभ दृष्टि आदि के फल का निर्णय।

6. प्रत्येक ग्रह की दशा में अन्यान्य ग्रहों की अंतर्दशा का स्वाभाविक फल।

7. कुछ छोटे-छोटे योगों द्वारा दशा-अंतर्दशा के फल।


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8. ग्रह गण किन-किन कारणों से कब-कब फल देने में समर्थ होते हैं? एवं वर्ष, ऋतु, मास, नक्षत्र, तिथि, करण, वार और योग आदि काल किस समय में विकास दिखलाता है। सप्तम भाव में होने पर शुक्र की महादशा में जातक खेती करने वाला, धन वाहनों से युक्त और अपनी जाति में मान एवं प्रतिष्ठा पाने वाला होता है। अष्टम भाव में शुक्र अष्टम भाव में होने पर शुक्र की महादशा में परोपकार-निरत प्रतापी एवं विदेशवासी होता है। परंतु ़णग्रस्त और कलहकारी होता है। नवम भाव में शुक्र नवम भाव में होने पर शुक्र की महादशा में राज द्वार से यथेष्ट सम्मान एवं प्रतिष्ठा पाने वाला और शिल्पविद्या में निपुण होता है परंतु उसके शत्रुओं की वृद्धि होती है और वह दुखी रहता है। दशम भाव में शुक्र दशम भाव में होने पर शुक्र की महादशा में शत्रुओं की विजय करने वाला, सहनशील, कुटंुबीजन से चिंतित और कफ, वात-रोग से निर्बल होता है। एकादश भाव में शुक्र एकादश भाव में होने पर शुक्र की दशा में व्यसनों से व्याकुल, रोगी, श्रेष्ठ कर्मों से रहित और मिथ्यावादी होता है। द्वादश भाव में शुक्र द्वादश भाव में होने पर शुक्र की दशा में राज्य का प्रधान, धनी, कृषि से लाभ करने वाला और अनेक सुखों से युक्त होता है।



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