मंगल करेगा अमंगल (जनवरी 2011 के सूर्य ग्रहण का प्रभाव) जनवरी 2011 में खंडग्रास सूर्य ग्रहण के समय की ग्रह स्थिति विस्फोटक एवं प्राकृतिक आपदाओं की कारक बन कर सतर्कता का संदेश देगी। संबंधित ग्रह स्थिति का प्रत्येक राशि के लिए पारिणामिक विश्लेषण कर रहे हैं पं. शरद त्रिपाठी जी। इस बार 4 जनवरी 2011 मंगलवार को खंडग्रास सूर्य ग्रहण पड़ रहा है। यह सूर्य ग्रहण पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र एवम् धनु राशि में पड़ेगा। सूर्य ग्रहण अमावस्या वाले दिन पड़ता है और उस दिन की ग्रह स्थिति के मुताबिक सूर्य, चंद्र व राहु एक ही राशि में होते हैं।
परंतु इस बार 4 जनवरी 2011 के ग्रहण में धनु राशि में इन तीन ग्रहों सूर्य, चंदु और राहु के अलावा दो अन्य ग्रह मंगल व प्लूटो भी इसी राशि में ग्रसित हो रहे इसलिए इस ग्रहण का परिणाम कुछ विशेष अशुभ होगा। अगर भारत की कुंडली के परिपेक्ष्य में देखें तो भारत की कुंडली में मंगल सप्तमेश एवं द्वाददेश है तथा द्वितीयस्थ होकर अष्टम भाव में दृष्टि दे रहा है। जो की गोचर में भारत के वृष लग्न से अष्टम भाव में ग्रहण योग से ग्रसित होकर अत्यंत पीड़ित है। पाश्चात्य ज्योतिष के अनुसार काल पुरुष की अष्टम् राशि वृश्चिक का स्वामित्व प्लूटो को दिया गया है।
यह भी सूर्य, चंद्र, मंगल व राहु के साथ इस ग्रहण योग में अष्टमस्थ है। मंगल दुर्घटना, अग्निकांड, हिंसा, युद्ध, आतंकवाद आदि का विशेष कारक है। राहु से संबंध होने के कारण रेल व हवाई दुर्घटना तथा प्लूटो की चंद्रमा से युति होने के कारण समुद्री तूफान, भूकंप होने की संभावना है। इस ग्रह योग में मंगल के अष्टम भाव में अधिक पीड़ित होने के कारण भारी जान माल की हानि के अतिरिक्त, विस्फोट,व देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरा तथा शस्त्र भंडारण, तेल व गैस संग्रह, भंडारण तथा सैनिक प्रशिक्षण क्षेत्रों में कुछ चिंताओं के प्रबल संकेत हैं
तथा देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लग सकता है। क्योंकि यह ग्रहण खंडग्रास के रूप में है अतः यह परिणाम ग्रहण पड़ने की तारीख यानी 4 जनवरी से लगभग 1 से 1.5 महीने तक अपना प्रभाव देगा। भारत सरकार को इन सभी मामलों में विशेष रूप से सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क रहने की आवश्यकता है।