अलबेला अल्बर्ट पं. शरद त्रिपाठी प्रतिभा और मेधा के पर्याय कहे जाने वाले आइंस्टीन के बारे में यह प्रसिद्ध है कि उनका दिमाग न्यूजर्सी (अमेरिका) के प्रिंसटन अस्पताल में आज भी सुरक्षित है। उन्हें दफनाये जाने से पूर्व डॉक्टर पायस स्टाज हार्वे ने उनके मस्तिष्क का ग्रे मेटर निकालकर रख लिया था ताकि यह अध्ययन किया जा सके कि उनके इतने मेधावी होने का रहस्य क्या है। वैज्ञानिक तो अपनी शोध में लगे ही हुये हैं, लेकिन, आइये, एक ज्योतिषीय विश्लेषण के द्वारा भी यह देखने की कोशिश की जाये कि अल्बर्ट के इतनी विलक्षण प्रतिभा से संपन्न होने के कौन-कौन से ज्योतिषीय योग है। अल्बर्ट का जन्म 14 मार्च 1879 को 11:30 बजे दक्षिण जर्मनी के अल्म शहर में हुआ था। परिवार में लगभग आर्थिक विपन्नता थी। पिता हरमन फेरी लगाकर बिजली का छोटा-मोटा सामान बेचते थे। उनके जन्म के समय मां पाउलीन भी पढ़ाने का काम करती थी। शिशु अल्बर्ट का शारीरिक गठन बेडौल व सिर काफी बड़ा था, हाथ पैर अपेक्षाकृत छोटे थे और जन्म के समय वह रोया भी नहीं था। इन सबके कारण मां-बाप ने समझा कि शिशु में जीवनी शक्ति का अभाव है।
इन्हीं चिंताओं को मन में पाले हुए उनके मां-बाप अप्रैल का महीना खत्म होते-होते म्यूनिख आ गये। दिन-रात की व्यस्तता में वे अल्बर्ट का ठीक से ध्यान नहीं रख पाते थे। कार्य की व्यस्तता में अल्बर्ट के माता-पिता अक्सर बाहर ही रहते थे और अकेला अल्बर्ट बिस्तर पर पड़ा रहता था। अल्बर्ट से दो वर्ष छोटी बहन माल्या का भी जन्म हो चुका था और वह सामान्य रूप से विकसित होने लगी थी। परंतु अल्बर्ट का शारीरिक विकास सामान्य नहीं था। अल्बर्ट के विषय में माता-पिता को बड़ी चिंता होती, परंतु वे फिर से कारोबार के बारे में सोचने लगते। शायद बहन के साथ का असर था कि अल्बर्ट साढ़े चार साल की उम्र का होते-होते ठीक होने लगा। पांच वर्ष का होने पर अल्बर्ट को स्कूल में भर्ती कराने की भागदौड़ शुरु हुई, परंतु हरमन आइंस्टीन का परिवार यहूदी था और म्यूनिख के जिस इलाके में वे रहते थे वहां दूर-दूर तक यहूदी स्कूल नहीं था। जर्मनी में तब यहूदियों के लिए नफरत बढ़ने लगी। इसी नफरत के चलते अल्बर्ट को किसी कैथोलिक या प्रोटेस्टेंट स्कूल में दाखिला नहीं मिला, बमुश्किल करीब दो किलोमीटर दूर एक कैथोलिक चर्च द्वारा चलाए जा रहे स्कूल में भर्ती कराया जा सका। वहां भी यह शर्त थी कि अल्बर्ट को ग्रीक या लैटिन कक्षाओं में नहीं बैठने दिया जायेगा, गणित और जर्मन की पढ़ाई ही करनी होगी। पिता को लगा कि शारीरिक स्थिति के अनुरूप मानसिक स्थिति कमजोर होने का भी डर था, परंतु भाई फ्रेडरिक ने शाम को दो-ढाई घंटे अपने निराले अंदाज में गणित सिखाना प्रारंभ किया, सवालों को कहानियों की तरह बताकर और उसी तरह हलकर के बताने की इस शैली ने अल्बर्ट को गणित में कविता जैसा रस लेना सिखा दिया।
किशोरावस्था तक उन्हें गणित में इतना रस आने लगा कि वह खाना-पीना तक भूल जाते थे। उस समय स्कूलों में धर्म की शिक्षा अनिवार्य थी। बारह वर्ष की उम्र तक अल्बर्ट आइंस्टीन ने भी बाइबिल और ईसाई धर्म की तमाम जानकारियां हासिल की। इसके बावजूद धार्मिक संस्कार आइंस्टीन को छू नहीं पाये। संभवतया यह गणित का ही असर था कि उन्होंने अपने सभी पाठों को उसी तर्क सारिणी से परखा और यह माना कि ढकोसला वाला अंश निकाल दें तो धर्म लोगों को उदार, सहिष्णु और कर्तव्यनिष्ठ बनाने में सहायक सिद्ध हो सकता है। प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद अल्बर्ट को पास ही के जिम्नेजियम स्कूल में भर्ती कराना पड़ा। वहां किसी विषय पर खुलकर बात करने, पूछने और तर्क करने की छूट नहीं थी। इसलिए जिज्ञासु स्वभाव के अल्बर्ट को यह स्कूल रास नहीं आया और बार-बार प्रश्न पूछने के कारण वे सजा भुगतते रहते थे। उसी समय जर्मनी में हिटलर और उसकी नाजी पार्टी का उदय होने लगा था। यहूदियों के प्रति नफरत के आधार पर नाजीपार्टी अपने पांव जमाती जा रही थी। इस नई धारा ने कामकाज को और कठिन बना दिया, लोग उन्हें खुलकर सहयोग देने से कतराने लगे। इसका असर अल्बर्ट की पढ़ाई पर भी हुआ। घर में मुफलिसी और मन में सपने संजोए अल्बर्ट ने पढ़ाई जारी रखी। अल्बर्ट ने इस बीच हाईस्कूल की परीक्षा पास कर ली और एक बार फिर ज्यूरिख का रास्ता पकड़ा और पॉलिटेक्निक की परीक्षा पास कर पढ़ाई प्रारंभ की। वहां पर मिलेवा मेरिक के साथ पढ़ते हुये उससे प्रेम हो गया और दोनों साथ रहने लगे। दोनों ने उसी कॉलेज से साथ-साथ ग्रेजुएशन किया और कामकाज तलाशने लगे। पढ़ाई के दिनों में उन्होंने भौतिकी के क्षेत्र में गहरी रुचि ली और अपनी प्रतिभा को निखारा। अल्बर्ट की प्रतिभा से प्रभावित होकर ज्यूरिख के कुछ प्रभावशाली लोगों ने प्रयत्न किया और उन्हें स्विस नागरिकता मिल गई। स्विस नागरिकता मिलने के बाद वे कुछ स्कूलों में अध्यापक के तौर पर भी काम करने लगे। मिलेवा ने एक बच्ची को जन्म दिया परंतु कुछ हफ्ते बाद ही वह बच्ची मर गई। दुखी दंपति ने अपने आपको काम में रमा लिया। महीनों संघर्ष के बाद आइंस्टीन को बर्न के पेटेंट ऑफिस में काम मिला।
पेटेंट ऑफिस में आइंस्टीन के जिम्मे विभिन्न उत्पादों को परखने और उन्हें प्रमाणित करने का काम था। यहां नौकरी मिलने के बाद मिलेवा और आइंस्टीन ने विवाह कर लिया। पेटेंट ऑफिस में नौकरी करते हुये आइंस्टीन ने सापेक्षता के सिद्धांत की स्थापना की, जिसने भौतिक शास्त्र के पिछले दो सौ साल पुराने नियमों पर सवालिया निशान लगा दिया। सन् 1905 में जब आइंस्टीन की शोध के निष्कर्ष प्रकाशित हुये तो विज्ञान जगत में खुसर-फुसर हुई और कुछ ही वर्षों में वह तूफान के रूप में बदल गई और ज्यूरिख विश्वविद्यालय से एसोसिएट प्रोफेसर पद का प्रस्ताव आया और वहां ज्वाइन करने के बाद उन्होंने मुड़कर नहीं देखा। सापेक्षता के सिद्धांत ने भौतिकी की दुनियां ही बदल दी। सापेक्षता के इन्हीं सिद्धांतों की बदौलत ही इक्कीसवीं सदी का मनुष्य अणुशक्ति और संचार की विलक्षण उपलब्धियों वाले इस युग में जी रहा है। 1905 में आइंस्टीन ने तीन महत्वपूर्ण शोध पत्र लिखे। तीनों अलग-अलग आयामों में सापेक्षता के सिद्धांतों का ही विस्तार थे। ज्यूरिख विश्वविद्यालय में 6 वर्ष तक प्रोफेसरी फिर प्रागके जर्मन विश्वविद्यालय, फिर ज्यूरिख और अंत में बर्लिन के कैंसर विल्हेम इंस्टीट्यूट में आइंस्टीन 1933 तक रहे। इस अवधि में उन्होंने विज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में युंगातरकारी धारणाएं दी। सफलता की बुलंदियों पर पहुंचते ही आइंस्टीन ने अपने आपको साबित कर दिया लेकिन उनके निजी जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहे। उनकी पत्नी मिलेवा, उनके गणित और विज्ञान के प्रति समर्पण से सबसे ज्यादा परेशान चल रही थी और तलाक देने पर अड़ गयी थी। उससे तलाक के बाद सन् 1917 में वे बीमार पड़े और उन्होंने एलसा से विवाह कर लिया। 1921 में आइंस्टीन को नोबेल पुरस्कार मिला।
1933 में आइंस्टीन को एक भयानक त्रासदी झेलनी पड़ी क्योंकि आइंस्टीन यहूदी थे और हिटलर व उसकी नाजी पार्टी का आधार ही यहूदियों के प्रति नफरत था इसलिए उन्हें प्रोफेसर पद से हटा दिया गया तथा उनकी संपत्ति जब्त कर ली गई व जर्मन नागरिकता भी छिन गई परंतु अमेरिका ने उनकी प्रतिभा का आदर करते हुए उन्हें इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज का निदेशक बना दिया। 1939 में एक पत्र के द्वारा उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति को ऐसे अणुबम के बारे में बताया जो एक बड़े इलाके का सफाया सेकेंड में ही कर सकता था। 1945 में हिरोशिमा-नागसाकी पर गिराये गये बम उस अभियान का परिणत रूप था। आइंस्टीन को यहूदियों के नये राज्य का स्वप्नदृष्टा कहा गया। दूसरे महायुद्ध की समाप्ति के बाद इजरायल की स्थापना हुई। तभी उन्होंने अविभाजित क्षेत्र का एक नया सिद्धांत स्थापित किया। गुरुत्वाकर्षण और विद्युत चुंबकीय क्षेत्र को परिभाषित करने वाले इस सिद्धांत के चमत्कार आने वाले वर्षों में देखने को मिलेंगे। 18 अप्रैल 1955 को जब यह वैज्ञानिक महासमाधि में लीन हुआ तब भी वह सृष्टि को चलाने वाले नियमों की गुत्थी को सुलझाने में लगा हुआ था। प्रस्तुत जन्मांक के अनुसार अल्बर्ट का जन्म ज्येष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण में हुआ था। ज्येष्ठा नक्षत्र मूल संज्ञक नक्षत्र होता है जिसके प्रभाव से कहीं न कहीं बाल्यावस्था में काफी दिनों तक खास-तौर से लगभग 10 वर्ष बुध की महादशा तक पिता की आर्थिक स्थिति खराब व समस्याओं से घिरा होता है।
अतः इसी के प्रभाव से आपका बचपन गरीबी में बीता। लग्नेश बुध 10:56 का होकर अष्टमेश शनि के नक्षत्र में स्थित है और दशम भाव में अष्टमेश और लग्नेश बुध और लग्नेश शनि की युति होना आपको गणित का प्रवीण बनाता है तथा इसी के साथ-साथ आप भौतिक विज्ञान के महारथी भी कहे जाते हैं। नवग्रहों में भौतिकता का सबसे प्रमुख कारक ग्रह शुक्र को माना जाता है जो आप की कुंडली में उच्च का होकर तथा लग्नेश बुध के नक्षत्र में स्थित होकर दशम भाव में बुध और शनि के साथ युति किये हुए है। राज्य का भाव दशम होता है तथा राज्य का कारक ग्रह सूर्य होता है। वह भी दशम भाव में बुध, शुक्र और शनि के साथ युति बनाये हुए है। अतः दशम भाव में बुध, शुक्र, शनि, सूर्य इन चार ग्रहों की युति ने आपको गणित और भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में महारथी बनाकर विश्व में सम्मान दिलाया। मई 1903 से लेकर मई 1906 तक इनकी शुक्र महादशा में राहू की अंतर्दशा चल रही थी। शुक्र पंचमेश है तथा राहू अष्टम भाव में स्थित है। पंचम भाव उच्च ज्ञान का होता है तथा अष्टम भाव गूढ़ ज्ञान, शोध व रिसर्च का होता है। इसी अष्टम भाव में राहू के साथ लाभेश उच्च के मंगल की युति है। अतः इसी वजह से सन् 1905 में आपका शोध पत्र विश्व में पहली बार प्रकाशित हुआ। सन् 1921 में इसी तरह सूर्य में शुक्र की अंतर्दशा चल रही थी। सूर्य और शुक्र की युति दशम भाव में है तथा सूर्य तृतीयेश होकर दशम में स्थित है। यहां पर इस बात को कुछ इस तरह समझें कि मिथुन लग्न में सूर्य अष्टम से अष्टम अर्थात तृतीय का स्वामी होकर अपने से अष्टम अर्थात दशम में स्थित है। यह योग इस कुंडली में सूर्य की गूढ़ता को बताता है।
इसी सूर्य की महादशा में सन् 1921 में उन्हें नोबेल पुरुस्कार से सम्मानित किया गया। आपको हिटलर की तानाशाही की वजह से अपने देश जर्मनी से बाहर होकर अमेरिका में बसना पड़ा और वहां भी आपको सम्मान मिला। इसका ज्योतिषीय कारण यह है कि द्वादश भाव विदेश को बताता है। तृतीय भाव (अर्थात द्वादश से चतुर्थ) विदेश में कार्य क्षेत्र के विस्तार को बताता है। नवम भाव (द्वादश से दशम) विदेश में कार्य क्षेत्र के विस्तार को बताता है। इन तीनों के ही स्वामी अर्थात शुक्र, सूर्य और शनि की युति एक साथ है तथा दशमेश बृहस्पति नवम में स्थित है। ज्योतिष के इसी योग के कारण आपको विदेश में सम्मान मिला। अष्टम भाव में राहू की उच्च के मंगल के साथ युति एक बहुत ही गंभीर योग है क्योंकि मंगल विस्फोट और अग्नि का कारक ग्रह है और राहू एक विनाशकारी और रहस्यमय ग्रह है। इन दोनों की युति अष्टम भाव में होने की वजह से आपने अणुबम के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया हालांकि सन् 1933 में इसी मंगल में राहू का अंतर चल रहा था और उस समय इन्हीं विस्फोटकारी ग्रहों की दशा-अंतर्दशा में आपको भयानक त्रासदी झेलने के बाद अपने पद से हटना पड़ा। सन् 1955 में राहू की महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा चल रही थी चंद्रमा जो कि द्वितीय भाव मारक का स्वामी होकर छठे अर्थात रोग भाव में नीच का होकर स्थित है बृहस्पति भी आपकी कुंडली में मारक प्रभाव रखता है तथा सन् 1955 में ये मिथुन राशि का होकर आपके लग्न में गोचर कर रहा था तथा राहू भी मारक भाव अर्थात सप्तम् में धनु राशि का होकर गोचर कर रहा था। इसी के फलस्वरूप आपका यह समय मृत्युदायी सिद्ध हुआ।