वैजयंती माला
वैजयंती माला

वैजयंती माला  

शरद त्रिपाठी
व्यूस : 9949 | मई 2011

ग्रहों की कहानी ग्रहों की जुबानी फिल्म अभिनेत्री व नृत्यांगना वैजयंती माला पं. द्यारद त्रिपाठी चर समाचार के पिछले अंकों में आप कई विशिष्ट व्यक्तियों के जीवन काल का ज्योतिषीय विश्लेषण पढ़ चुके हैं इस अंक में प्रस्तुत है प्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री, नृत्यांगना व सांसद रह चुकी श्रीमती वैजयंती माला बाली का जीवन चक्र। उन्होंने तमाम उतार-चढ़ाव देखे परंतु विचलित हुए बिना अपना कार्य पूरी तन्मयता से करती रहीं और जिस क्षेत्र में उन्होंने दखल दिया उसमें सफलता और प्रसिद्धि प्राप्त की। आशा है, इस विश्लेषण से ज्योतिष जिज्ञासुओं और ज्योतिष की शिक्षा ग्रहण कर रहे छात्रों को लाभ मिलेगा। एक लड़की अपने मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुई और सोने के पालने में पली बढ़ी। वह एक फिल्म स्टार के घर पैदा हुई थी। उसे आज अपनी मां और पिता में से एक को चुनना था। अदालत में सन्नाटा पसरा हुआ था। सभी की निगाह उस बच्ची पर थी। उसकी जुबान से निकला एक शब्द उसका भविष्य निर्धारित करने वाला था और जब वह बोली तो हंगामा हो गया। उसके शब्द थे कि ''मैं अपने पिता के साथ रहना चाहती हूं क्योंकि मैं उन्हें दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार करती हूं''। यही लड़की थी वैजयंती माला। इनका जन्म 13 अगस्त 1936 को पूर्वाह्न 11 बजकर 30 मिनट पर मैसूर के रूढ़िवादी और परंपराओं का कठोरता से पालन करने वाले एक आयंगर परिवार में हुआ। जब इनका जन्म हुआ, तब इनकी मां की उम्र 16 वर्ष थी।

मां बेटी दोनों बहनों की तरह बड़ी हुईं। इनका लालन-पालन इनकी नानी (यगम्मा) की देख रेख में हुआ। इनके पिता बहुत ही नम्र और मृदुभाषी थे। बालिका वैजयंती ने उन्हें कभी गुस्सा करते नहीं देखा। वैसे तो यह बच्ची भी सामान्य बच्चों की तरह थी पर उसमें एक खास बात थी जो उसे औरों से अलग करती थी और वह थी उसकी चाल। उसके शरीर में ताल था। वह अपने पैरों पर थिरकने वाली लड़की थी। वह हमेशा से डांसर बनना चाहती थी। शायद नृत्य उसके अंदर था इसलिए वैजयंती का ज्यादातर समय तरह-तरह के करतबों और नृत्य की विभिन्न कलाओं को सीखने में गुजरता था। छः साल की उम्र में बालिका वैजयंती को यूरोप जाने का अवसर मिला। मैसूर के महाराज के सांस्कृतिक दल में वैजयंती की मां, पिता तथा नानी (यगम्मा) भी साथ गईं। यह सन् 1942 की घटना है इस दल में सत्तर-पचहत्तर कलाकार व संगीतकार शामिल थे। इस तरह वैजयंती को अपने पहले नृत्य प्रदर्शन का मौका मिला। इस दल ने वेटिकन में पोप के सामने भी प्रदर्शन किया। उस समय तक वैजयंती ने नृत्य कला का कोई प्रशिक्षण नहीं लिया था। नकल उतारना और थोड़े हाथ पैर हिलाना ही उसे आता था। फिर भी उसने पोप के सामने प्रदर्शन किया और जब कार्यक्रम समाप्त हुआ तो पोप ने उसे एक बॉक्स में चांदी का मेडल प्रदान किया। आइए इस घटना काल को ज्योतिषीय दृष्टि से देखते हैं कृ प्रस्तुत कुंडली तुला लग्न की है और लग्नेश शुक्र 11वें भाव में भाग्येश बुध के साथ स्थित है जो जातका की सफलता को दर्शाता है। दशम भाव में सूर्य और मंगल का स्थित होना इसमें और चार चांद लगा रहा है ग्रहों की इस स्थिति के आधार पर यह जानने का प्रयास करें कि इनकी मां और पिता के बीच संबंध कैसा रहा और नानी द्वारा लालन-पालन क्यों हुआ ? चतुर्थ भाव से मां का और नवम से पिता का विचार किया जाता है। नवम भाव व्यक्ति के धर्म और पिता का भाव होता है।

ज्योतिष जिज्ञासु अक्सर प्रश्न करते हैं कि नवम भाव पिता का भाव है तो तृतीय भाव मां का क्यों नहीं जबकि नवम भाव से सप्तम तृतीय भाव होता है। इसका उत्तर है कि इस वेदांग ज्योतिष में कई अर्थ बहुत गहरे छुपे होते हैं। व्यक्ति के जीवन में दो मांएं हो सकती हैं - एक जो जन्म दे और दूसरी जो पालन करे। हमारी भारतीय संस्कृति में प्रायः हमारे संस्कारों के कारण जन्म देने वाली मां ही पालन भी करती है। तृतीय भाव व्यक्ति की जन्म देने वाली हो सकती है लेकिन जन्म के बाद जो शिक्षा, संस्कार दे, पालन-पोषण करे उसका विचार चतुर्थ भाव से किया जाता है। वैजयंती माला की जन्म देने वाली मां के भाव अर्थात तृतीय भाव में राहु बैठा है और तृतीय का स्वामी गुरु अपने से बारहवें अर्थात द्वितीय भाव में स्थित है। अतः यह योग जन्म देने वाली मां से अलगाव की बात बताता है। वहीं पालन करने वाली मां के भाव अर्थात चतुर्थ भाव का स्वामी शनि अपने से द्वितीय अर्थात पंचम में स्थित है। यह पालन-पोषण करने वाली इनकी मां अर्थात नानी द्वारा अच्छा लालन पालन दर्शाता है। शुक्र की शुभ स्थिति ने इन्हें खूबसूरती दी और अभिनय तथा नृत्यकला में पारंगत बनाया। वहीं दशम भाव में स्थित शक्ति के कारक सूर्य और मंगल ने इन्हें विशेष ऊर्जा से ओतप्रोत किया और देश विदेश में खयाति दिलाई। लग्नेश शुक्र सिंह राशि में 90.41श् का है अर्थात केतु के नक्षत्र में है और यही केतु नवम भाव में स्थित है। यह योग जातका के पिता के प्रति प्रगाढ़ स्नेह को दर्शाता है। 1 जनवरी 1942 से 20 जनवरी 1943 के दौरान राहु/केतु का अंतर चल रहा था। केतु भाग्य भाव में स्थित है। इसी ने इन्हें प्रथम बार यूरोप जाने का अवसर दिलाया और पोप से इनकी भेंट कराई और यहीं से इनके नृत्य जीवन की शुरुआत हुई। वैजयंती की प्रतिभा को देखकर उनकी संगीत और नृत्य की शिक्षा के लिए सर्वश्रेष्ठ गुरुओं की सेवा ली गई। कर्नाटक संगीत की शिक्षा उन्होंने मनक्कल शिवराजा अय्यर से ली।

अरियाकुडी रामानुज आयंगर और रामयापिल्लई से उन्होंने नृत्य की शिक्षा प्राप्त की। इनकी नृत्य कक्षाएं मात्र आठ वर्ष की उम्र से शुरु हो गई थीं और तेरह वर्ष की उम्र तक पहुंचते - पहुंचते वह नृत्य कला में प्रवीण हो गईं। आखिर वह दिन भी आया जब वैजयंती के प्रथम नृत्य कार्यक्रम का आयोजन होना था। इस कार्यक्रम के लिए रमन स्ट्रीट पर एक बड़ा सा घर लिया गया। पहले बड़े हाल आदि नहीं होते थे। कार्यक्रम की शुरुआत 13 अप्रैल 1949 को तमिल नववर्ष के दिन की जानी थी। अंक 13 का वैजयंती माला के जीवन में विशेष महत्व रहा है। इनका जन्म 13 अगस्त का है। कार्यक्रम की सभी तैयारी पूरी हो चुकी थी तभी एक घटना घटी। स्टेज का निरीक्षण करते समय वैजयंती माला का पैर वहां पड़े बिजली के नंगे तार पर पड़ गया और वह काफी झुलस गईं पर अपने दर्द को प्रदर्शन के समय उन्होंने प्रकट नहीं होने दिया। अगले दिन के समाचार पत्रों में वैजयंती की तस्वीरों एवं समाचारों की भरमार थी। एक अखबार ने लिखा- वरूगिरल वैजयंती (यही है वैजयंती) धीरे-धीरे वैजयंती के और कार्यक्रम आयोजित होने लगे और वैजयंती एक नृत्यांगना के रूप में प्रसिद्धि पाने लगीं। इन्हीं दिनों वैजयंती के कार्यक्रम का आयोजन चेन्नई के मशहूर गोखले हाल में किया गया जहां 'ए वी एम' प्रोडक्शन के मालिक श्री ए वी ययप्पा चेटियार और एम.वी. रमन भी उपस्थित थे। कार्यक्रम के उपरांत ययप्पा चेटियार ने उन्हें अपनी तमिल फिल्म 'वजकई' में काम करने का आमंत्रण दिया। रमन चूंकि पारिवारिक मित्र थे अतः फिल्म में काम करने की अनुमति मिल गई। फिल्म ने तहलका मचा दिया और इसे तेलगू में 'जिवीथम' तथा हिंदी में बहार नाम से बनाया गया।

मीडिया ने इस नृत्यांगना को 'वैजयंती द डांसिंग स्टार' नाम दिया। इसके बाद कुछ और क्षेत्रीय फिल्में बनीं पर सफल न हो सकीं। इस दौरान वह डांस शो करती रहीं। तभी समय पलटा और उन्हें 'नागिन' फिल्म का प्रस्ताव मिला और वैजयंती शूटिंग के लिए मुंबई आ गईं। उन्हें इस फिल्म में जीवित सर्पों के साथ काम करना पड़ा। परंतु फिल्म पहले दिन ही ढेर हो गई। फिल्म की स्थिति देखकर जानकार उन्हें 'वन फिल्म वंडर' पुकारने लगे। पर भाग्य को कुछ और ही मंजूर था धीरे-धीरे नागिन को दर्शक मिलने लगे और हॉलों में भीड़ बढ़ने लगी। फिल्म में लता मांगेशकर द्वारा गाया 'तन डोले मेरा मन डोले' गीत सबकी जुबान पर चढ़ गया। फिर तो वैजयंती का सितारा उत्तर से दक्षिण तक चमकने लगा। उसके बाद उन्होंने कई सुपरहिट फिल्मों में काम किया और सभी ओर उन्हीं की चर्चा होने लगी। उस समय, सुरैया, मधुबाला, नरगिस, मीना कुमारी आदि अभिनेत्रियों का जोर था पर वैजयंती ने इन सबके बीच अपनी एक अलग पहचान कायम की। वैजयंती और दिलीप कुमार की जोड़ी ने कमाल करना शुरू किया। तभी 'संगम' फिल्म में काम करने और दिलीप कुमार की फिल्म 'लीडर' में देर से पहुंचने से दोनों में अनबन रहने लगी और यह जोड़ी, जो 'नया दौर' से शुरू हुई थी, टूट गई। फिल्म 'राम और श्याम' से उन्हें निकाल दिया गया। इसके बाद आम्रपाली, ज्वैलथीफ, संगम आदि ने सफलता के सारे रिकार्ड तोड़ दिए। कैरियर की चोटी पर पहुंच उन्होंने सबको चौंकाते हुए अपने विवाह की घोषणा कर दी। आइए अब इस सबको ज्योतिषीय दृष्टि से देखते हैं। 1949 में इनकी बृहस्पति की महादशा प्रारंभ हुई। बृहस्पति द्वितीय भाव में वृश्चिक राशि में 210.36श् का है अर्थात बुध के नक्षत्र में स्थित है।

बृहस्पति तीसरे व छठे भावों का स्वामी भी है और बुध के नक्षत्र में बुध लाभ भाव में है। छठा भाव दशम भाव से नवम पड़ता है। इसी बृहस्पति की 16 वर्ष की महादशा ने इन्हें अपने कैरियर में नित नई ऊंचाई तक पहुंचाया। तमाम फिल्मी नायकों को छोड़कर इस नायिका ने अपना नायक चुना डॉ. चमन लाल बाली को। डॉ. बाली राजकपूर के फैमिली डॉक्टर थे। तमिल फिल्म 'नीलाबू' की शूटिंग करते वक्त वैजयंती डल झील में डूबते डूबते बचीं और उन्हें डॉ. बाली के पास लाया गया। डॉ. बाली की चिकित्सा व देख रेख में वैजयंती एक माह रहीं और स्वस्थ होने लगीं। डॉ. बाली की देखभाल व सेवा भाव से वैजयंती बहुत प्रभावित हुईं और उनसे प्रेम करने लगीं पर समस्या परिवार की रजामंदी की थी क्योंकि डॉ. बाली रावलपिंडी के थे और वैजयंती शुद्ध दक्षिण भारतीय आयंगर परिवार से थीं। पर यगम्मा (नानी) के हस्तक्षेप से दोनों का मिलन हुआ। 10 मार्च 1968 को दोनों का विवाह आयंगर विवाह पद्धति से संपन्न हुआ। खास लोगों के साथ ही तमिलनाडु के राज्यपाल उज्ज्वल सिंह ने वर-वधू को आशीर्वाद दिया। जिंदगी अपने वेग से चलती रही और एक दिन शुचीन्द्र के रूप में वैजयंती ने सुंदर पुत्र को जन्म दिया। वह अब एक सुपर स्टार मां बन चुकी थीं। 'संगम' फिल्म में काम करने और फिल्म 'लीडर' में देर से पहुंचने से दिलीप कुमार से इनकी अनबन रहने लगी और यह जोड़ी, जो 'नया दौर' से शुरू हुई थी, टूट गई। फिल्म 'राम और श्याम' से उन्हें निकाल दिया गया। इसके बाद आम्रपाली, ज्वैलथीफ, संगम आदि ने सफलता के सारे रिकार्ड तोड़ दिए। आइए इसे अब ज्योतिषीय दृष्टि से देखते हैं। प्रेम विवाह के लिए लग्नेश, सप्तमेश, पंचमेश, तथा ग्रहों में मंगल और शुक्र को देखा जाता है।

प्रस्तुत कुंडली में पंचमेश शनि पंचम में है तथा लग्नेश शुक्र से उसका दृष्टि संबंध भी है। पंचमेश शनि तीसरी दृष्टि से सप्तम भाव को भी देख रहा है। सप्तमेश मंगल अपनी आठवीं दृष्टि से पंचम में बैठे शनि को देख रहा है। 3 जुलाई 1965 से 3 जुलाई 1984 तक वैजयंती पर शनि की महादशा चली। 10 मार्च 1968 को शनि/शनि/गुरु का अंतर चल रहा था। गोचर में उन दिनों शनि मीन राशि में था और गुरु सिंह राशि में विचरण कर रहा था। सप्तमेश मंगल भी शनि के साथ मीन राशि में था। अब कुंडली के हिसाब से देखते हैं तो पंचम में बैठा शनि तीसरी दृष्टि से सप्तम को देख रहा है तथा द्वितीय भाव में बैठा बृहस्पति पांचवीं दृष्टि से मीन राशि को देख रहा है। ऊपर वर्णित गोचर और जन्मपत्री के अनुसार जन्मकालीन बृहस्पति (विवाह का कारक)। पांचवीं दृष्टि से गोचर के शनि को देख रहा था तथा गोचर में सिंह राशि का बृहस्पति अपनी नवीं दृष्टि से सप्तम भाव को देख रहा था। सप्तमेश मंगल भी गोचर में शनि के साथ युति में था। इन्हीं सब कारणों से उनका विवाह संपन्न हुआ और आगे चलकर इसी पंचमेश शनि ने उनको एक सुंदर पुत्र की मां बनाया। जिंदगी मजे से चल रही थी कि अचानक एक तूफान आया और पूरा परिवार बिखर गया। डॉ. बाली का स्वास्थ्य ठीक नहीं था। एक बार वे सर्जरी से गुजर चुके थे। एक रात उनकी तबीयत ज्यादा बिगड़ी और फिर कभी ठीक न हो सकी। इससे वैजयंती टूट गईं और आत्महत्या का मन बना लिया। तभी एक घटना हुई। डॉ. बाली के परिवार ने वैजयंती और उनके पुत्र को जायदाद से बेदखल कर दिया। वैजयंती फिर उठ खड़ी हुईं। उन्हें जायदाद की नहीं अपितु सम्मान की चिंता हुई।

चार साल तक मुकदमा लड़ने के बाद उनकी विजय हुई। उन पर सांसद होने के नाते दबाव डालने के आरोप भी लगे परंतु जीत सत्य की ही हुई। जब सब कुछ हो गया तो वैजयंती अपने लिए नई भूमिका की तलाश में जुट गईं। यह 1989 के चुनाव के समय की बात है। राजीव गांधी ने वैजयंती माला बाली को अपनी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने को आमंत्रित किया। उन्होंने काफी सोच विचार के बाद प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। वह परिणाम से पूर्व बहुत घबराई हुई थीं और जब परिणाम आया तो वे 1.5 लाख वोटों से जीत गईं। चुनाव के दौरान पैसों की राजनीति से वह दुःखी हो गईं और आगे चुनाव न लड़ने का फैसला कर लिया। इसके बाद वह दो बार राज्य सभा से सांसद रहीं। 1995 में अन्नामलाई विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टर की उपाधि से सम्मानित किया। 1996 में फिल्म जगत में उनके योगदान के लिए उन्हें फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट से सम्मानित किया गया। अब इसे ज्योतिषीय दृष्टि से देखें तो 3 जुलाई 1984 से 29 नवंबर 1986 तक बुध में बुध चल रहा था। बुध भाग्येश होने के साथ साथ व्ययेश भी है तथा सप्तम भाव से तृतीय और छठे का स्वामी भी होता है। अर्थात तुला लग्न की जन्मपत्री में बुध अकारक होता है। 1990 में जैसे ही बुध में सूर्य का अंतर चला वैसे ही सूर्य ने लाभेश और दशम में दिग्बली होने के कारण मुकदमे में विजय दिलाई और साथ ही पति का विछोह भी कराया। 1989 में बुध में शुक्र का अंतर चल रहा था। शुक्र अष्टमेश और लग्नेश होकर लाभ भाव में स्थित है। इसी समय में राजनीति में उनका पदार्पण हुआ और वह चुनाव में विजयी रहीं। शुक्र इस कुंडली में लग्नेश और अष्टमेश भी है तथा एकादश में द्वादशेश बुध के साथ सिंह राशि में स्थित है सूर्य कर्क राशि में 270.18श् का है अर्थात बुध के नक्षत्र में है। अतः जुलाई 2008 से नवंबर 2011 तक चलने वाला शुक्र में शुक्र के अंतर का समय इनके लिए कई उपलब्धियां व सम्मान दिलाने वाला होगा। परंतु सन 2012 में शुक्र/सूर्य का जो समय चल रहा होगा वह इनके जीवन के लिए अच्छा नहीं होगा। वैजयंती अपने आप को अभिनेत्री से ज्यादा नृत्यांगना मानती हैं। वह नाट्यालय अकादमी की आजीवन अध्यक्ष है और चेन्नई में नृत्य साधना करते हुए उस आदमी की याद में जीवन व्यतीत कर रही हैं जिसकी खुशबू से आज भी उनकी सांसें महकती हैं।



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