आजीविका और कैरियर के विषय में दशम भाव को सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके अतिरिक्त कैरियर के लिए हम द्वितीय तथा षष्ठ भाव को भी महत्वपूर्ण दर्जा देते हैं जिसमें दशम भाव हमारा कर्म क्षेत्र है हम जो भी कार्य करते हैं उसका निर्धारण दशम भाव तथा दशमेश करता है। इसके अतिरिक्त जीवन का सबसे महत्वपूर्ण भाव द्वितीय भाव या धन स्थान है इसी भाव से व्यक्ति की प्रतिष्ठा तथा धन का भी आकलन किया जाता है। फिर षष्ठ स्थान की विवेचना भी जरूरी है जो कि सेवा तथा नौकरी का है। षष्ठ भाव हमारा शत्रु स्थान भी है और इसी से व्यापारियों को ग्राहक भी मिलता है। यदि जन्म कुंडली, सूर्य कुंडली या चंद्र कुंडली में षष्ठ भाव की स्थिति ठीक नहीं है तो हमें नौकरी या व्यवसाय में सफलता नहीं मिलती है।
अतः कैरियर के लिए 2, 6, 10 भाव का आपस में अगर संबंध ठीक नहीं है तो हमें जीवन में सफलता नहीं मिलती इससे शत्रु भावना अगर अधिक है तो हम ना नौकरी में सफल हो सकते हैं और ना ही व्यापार में। इसके अतिरिक्त कुछ और भी ज्योतिषी सिद्धांत है जिससे बड़ी आसानी से हम अपने कैरियर और व्यवसाय का निर्धारण कर सकते हैं। जैमिनी पद्धति की मानें तो आत्मकारक और अमात्य कारक ग्रह ही हमारे कैरियर का निर्धारण करता है। उसी प्रकार यदि अष्टक वर्ग में सबसे अधिक अंक दशम भाव में है तो व्यक्ति का कैरियर स्वतः चुना जाता है। बस जरूरी है तो ज्योतिष का आकलन। कैरियर निर्धारण में ज्योतिषी सिद्धांत
1. कैरियर निर्धारण के लिए जन्म कुंडली, चंद्र कुंडली, सूर्य कुंडली में जो अधिक बली हो उसी का चुनाव करें।
2. दशम भाव दशमेश तथा दशमांश की क्या स्थिति है।
3. दशमेश और नवमांश की क्या स्थिति है।
4. दशम भाव के स्वामी के द्वारा, दशम भाव में बैठे ग्रहों के द्वारा तथा दशमेश जिस ग्रह के नवमांश में हो उस ग्रह के अनुसार आजीविका का विचार किया जाता है।
ज्योतिष की दृष्टि से किसी भी व्यक्ति की कुंडली में दशमांश शुभ स्थान पर मजबूत स्थिति में होता है तो आजीविका के क्षेत्र में उत्तम संभावनाएं देता है और यदि दशमांश अगर षष्ठ, अष्टम, द्वादश भाव में हो या कमजोर हो तो रोजगार, व्यवसाय में हानि होती है। दशम भाव दशमेश का संबंध यदि द्वितीय भाव दशम तथा षष्ठ और एकादश भाव से संबंध हो तो नौकरी में अधिक सफलता मिलती है और यदि द्वितीय भाव सप्तम, पंचम, एकादश भाव से संबंध हो तो व्यापार में सफलता मिलती है। सप्तम भाव की स्थिति मजबूत हो तो व्यापार बहुत सफल होता है। अष्टकवर्ग द्वारा कैरियर की विवेचना अष्टकवर्ग किसी भी पद्धति में सबसे महत्वपूर्ण है। इसका वर्णन बृहतपराशर होराशास्त्र में महर्षि पराशर के द्वारा हुआ है। अष्टक वर्ग सात ग्रहों तथा लग्न से बना है इसमें सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि और लग्न की गणना की जती है। ये सातों ग्रह हर समय गतिमान रहकर स्थितियां बदलते रहते हैं। ये स्थिति अगर शुभ है तो शुभ फल मिलता है अशुभ हो तो अशुभ फल मिलता है।
इस विद्या में सर्वाष्टकवर्ग एक ऐसा वर्ग या कुंडली है जिसकी सहायता से फलकथन सटीक होता है और बहुत ही आसान हो जाता है। सर्वाष्टकवर्ग में जिस भाव में अधिक बिंदू हो उस भाव का फल जरूर मिलता है और जिसमें कम बिंदू हो उसमें फल अच्छा नहीं मिलता है। कई बार कुंडली में कोई ग्रह उच्च का होकर भी फल नहीं दे पाता। इस स्थिति में अगर अष्टकवर्ग से गणना की जाये तो पता चलता है कि शायद शुभ बिंदू कम है इसलिए फल नहीं मिल रहा है। इसमें उच्च ग्रह या नीच ग्रहों का महत्व नहीं होता है। सर्वाष्टकवर्ग में यदि नवम, दशम, एकादश, व लग्न भाव में 28 या इससे अधिक बिंदू हो तथा दशम भाव में कम बिंदू हो और एकादश भाव में अधिक बिंदू हो तथा व्यय भाव के बिंदूओं की संख्या कम हो तो जातक धनी, समृद्धशील होता है और व्यय भाव में अधिक अंक तथा लाभ भाव में कम बिंदू हो तो जातक दरिद्र होता है।
कैरियर और व्यवसाय में अष्टकवर्ग की भूमिका सर्वाष्टकवर्ग में दशम स्थान में यदि 28 से अधिक बिंदू हो तो जातक स्वतः अपना व्यवसाय करता है और षष्ठ भाव में दशम भाव से कम बिंदू हो तो जातक नौकरी करता है। षष्ठ स्थान में अधिक बिंदू होने पर जातक नौकरी या किसी के अधीन कार्य करता है। शनि से दशम में अधिक बिंदू हो तो नौकरी ऊंचे दर्जे की होती है और अगर कम बिंदू हो तो व्यापार में या नौकरी में स्थिति सामान्य होती है। दशम से अधिक बिंदू एकादश भाव में हो तो जातक को कम मेहनत के साथ अधिक फल मिलता है। इसी के साथ-साथ ग्रहों के गोचर तथा दशा अंतर्दशा में ग्रहों की अपने भाव तथा बिंदूओं की स्थिति के हिसाब से जान कर हम नौकरी या व्यवसाय में लाभ हानि जान सकते हैं। इस कुंडली में कर्क लग्न है और दशम भाव में 29 बिंदू है और एकादश भाव में 40 बिंदू तथा व्यय भाव में 29 बिंदू जातक का स्वयं का व्यापार है और अति धनवान है।
इस कुंडली में षष्ठ स्थान में 33 बिंदू है लेकिन सप्तम भाव में 21 बिंदू से जातक नौकरी में सफल नहीं हो सका और व्यापार में बहुत लाभ हो रहा है। इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि दशम से अधिक अंक एकादश भाव में है दशम भाव कर्म का है जातक स्वयं का व्यापार कर अधिक लाभ ले रहा है और नौकरी में अधिक लाभ नहीं हो सकता क्योंकि आप सीमित होती है व्यापार अधिक सफल रहा। इसी प्रकार दशम भाव और एकादश भाव में बिंदूओं की स्थिति विपरीत हो जैसे दशम भाव में 40 बिंदू और एकादश भाव में 29 बिंदू हो तो जातक को नौकरी में सफलता मिलती है। इस स्थिति में अधिक लाभ नहीं हो सकता है। अलग-2 ग्रहों के अपने अलग-2 प्रभाव होते हैं कारकांश कुंडली को देखा जाए तो आत्मकारक सबसे अधिक डिग्री का ग्रह हमारे कार्य व्यवसाय का निर्धारण करता है। विभिन्न ग्रहों के कारकत्व निम्न प्रकार है।
सूर्य: शासन सत्ता, अच्छा व्यापारी, उच्च अधिकारी, सरकारी ठेकेदार, नेतृत्व करना, प्रशासनिक अधिकारी, चिकित्सक, सर्जन, अनाज का कारोबार, सूर्य के मजबूत बलवान होने से होता है। चंद्र: चांदी, बर्फ, खाने की वस्तुएं, सजावट, नाविक, नेवी, मछली पालन, डेयरी, औषधि, एयर होस्टेस, शराब आदि का व्यापार या नौकरी में सफलता। मंगल: अस्त शस्त्र विभाग, पुलिस, प्रबंधन, मशीनरी विभाग, कसाई, सेना, पुलिस, अग्नि समन, इंजीनियर आदि क्षेत्र में सफलता, भूमि और मकान। बुध: क्लर्क, एकाउटेंट, हिसाब किताब, खेलकूद, संवाददाता, डाक विभाग, स्टेनोग्राफर, संदेशवाहक, दूर संचार विभाग, बीमा, दलाली, लेखन, पत्रकारिता, ज्योतिष आदि क्षेत्रों में सफलता।
गुरु: राजदूत, विज्ञान, शिक्षा, अध्यापक, वकील, प्रवक्ता, पुजारी, धार्मिक स्थलों का महंत, कैशियर, दार्शनिक, साहित्य, ट्रेवल एजेंट आदि क्षेत्रों में सफलता। शुक्र: हीरे, जवाहरात, आभूषण, विदेशी मुद्रा, नृत्य, गायन, गाना बजाना, फिल्मी कलाकार, मीडिया, संगीत आदि क्षेत्रों में सफलता। फैशन, कला, फूलों का श्रृंगार डेकोरेटर। शनि: कोयला, ईंधन, ठेकेदार, जज, दार्शनिक, कानून विशेषज्ञ, अंत्येष्टि करने वाले, आइसक्रीम बनाने वाले, हड्डी, चमड़े जूता चप्पल का कार्य नगरपालिका, जमादार आदि। अब देखना चाहिए कि कारकांश का संबंध किस ग्रह से हो रहा है उसी से हमें उस क्षेत्र का चुनाव करना चाहिए। कारकांश कुंडली में जैसे सूर्य 280 का है और सबसे अधिक मजबूत है तो जातक का संबंध सरकारी क्षेत्र से होगा या सरकारी नौकरी करेगा। यदि व्यापार करेगा तो व्यापार ऐसा होगा जिसमें कि सरकारी क्षेत्र हो जैसे रेलवे या सरकारी क्षेत्रों की ठेकेदारी आदि। इसी प्रकार का संबंध अन्य ग्रहों से भी होता है।
जैमिनी सिद्धांत के अनुसार कैरियर का निर्धारण कारकांश कुंडली में लग्न स्थान में सूर्य या शुक्र हो तो व्यक्ति का संबंध राजकीय या सरकारी क्षेत्र से होता है। कारकांश कुंडली में लग्न स्थान में चंद्र हो और शुक्र का इससे संबंध हो तो अध्यापन या फैंसी क्षेत्रों से संबंध होता है। यदि बुध से चंद्र का संबंध हो तो मेडिकल चिकित्सा तथा दवा प्रतिनिधि में कैरियर उत्तम होता है। कारकांश में मंगल की स्थिति पुलिस, सेना, भूमि, मकान, रसायन, रक्षा आदि के क्षेत्र में सफलता देता है।
कारकांश लग्न में यदि बुध हो तो व्यक्ति व्यापार, सलाहकार तथा शिक्षा के क्षेत्र तथा संचार के क्षेत्र में सफल होता है। कारकांश का संबंध यदि शनि से हो या कारकांश लग्न में शनि हो तो लोहे, चमड़े, शराब तथा दास बनाता है। शनि न्या का कारक भी है। व्यक्ति मजिस्ट्रेट, न्यायधीश बनकर आजीविका चलाता है। कारकांश लग्न से पंचम स्थान में यदि केतु की स्थिति हो तो व्यक्ति गणितज्ञ होता है और यदि लग्न से पंचम में मंगल स्थित हो तो कोर्ट कचहरी आदि में सफलता देता है।