तेरह दिन का पक्ष: कब, क्यों और कैसे
तेरह दिन का पक्ष: कब, क्यों और कैसे

तेरह दिन का पक्ष: कब, क्यों और कैसे  

आभा बंसल
व्यूस : 9937 | दिसम्बर 2005

भागवत पुराण में उल्ल्रेख है कि महाभारत से पहले 13 दिन के अंदर चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण पड़े थे, और फिर इतना जन संहार हुआ कि केवल गिनती के लोग ही बचे। इस वर्ष भी अक्तूबर माह में दो ग्रहण पड़े और अब कार्तिक माह का शुक्ल पक्ष केवल 13 दिन का है - 3 नवंबर से 15 नवंबर तक। इस पक्ष में प्रतिपदा व पूर्णिमा दोनों का क्षय हो रहा है। अवश्य ही कुछ संहार होने की आशंका है। ज्योतिष में माना गया है कि तेरह दिन का पक्ष संहारक होता है। यह राजा एवं प्रजा दोनों के लिए ही कष्टदायक होता है।

खगोल शास्त्र के अनुसार ऐसा कब, क्यों और कैसे होता है, आइए देखें:

प्रत्येक अमावस्या के बीच औसत मान 29 दिन 14 घंटे 44 मिनट 3 सेकंड होता है जो कि 6 घंटे कम या अधिक तक हो सकता है। इस प्रकार औसतन एक पक्ष 14 दिन 21 घंटे 22 मिनट का होता है लेकिन इसकी अवधि में एक दिन तक का अंतर आ जाता है। अर्थात एक पक्ष कम से कम 13 दिन 23 घंटे से लेकर अधिक से अधिक 15 दिन 22 घंटे तक का होता है। अतः जब भी पक्ष 14 दिन से कम का होता है तो सूर्योदय कालीन तिथि की गणना के कारण पक्ष के 13 दिन के होने की संभावना बन जाती है। यदि अमावस्या सूर्योदय के कुछ मिनटों बाद समाप्त हो रही हो तो वह पक्ष 13 दिन का हो जाता है।

उदाहरणार्थ कार्तिक शुक्ल पक्ष में दिल्ली में अमावस्या 2 नवंबर, 2005 को प्रातः 6ः56 पर समाप्त हुई जबकि सूर्योदय 6ः35 पर हो चुका था। अतः 2 नवंबर को अमावस्या ही मानी गयी। प्रतिपदा 3 नवंबर को 6ः26 पर समाप्त होकर क्षय हो गई, इस प्रकार 3 नवंबर को द्वितीया से पक्ष प्रारंभ हुआ। पक्ष की समाप्ति के दिन 15 नवंबर को चतुर्दशी प्रातः 7ः28 पर समाप्त हुई और पूर्णिमा भी 16 नवंबर को सूर्योदय से पहले 6ः29 पर समाप्त हो गई। इस प्रकार पूण्र्िा मा का भी क्षय हुआ। यदि कार्तिक पूर्णिमा के समाप्ति काल से कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा का प्रारंभ काल घटाएं अर्थात 16 नवंबर 6ः29 घंटे से 2 नवंबर 6ः56 घंटे घटाएं तो पक्ष की अवधि 13 दिन 23 घंटे 33 मिनट आती है जो 14 दिन से केवल 27 मिनट ही कम है; लेकिन क्योंकि सूर्योदय के तुरंत बाद ही अमावस्या समाप्त हुई, इसलिए पक्ष केवल 13 दिन का रह गया।


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एक बात ध्यान देने की है कि पक्ष की अवधि 14 दिन से केवल 27 मिनट ही कम है जबकि भारत का रेखांश पूर्व से पश्चिम तक लगभग 980 पू. से 680 पू. तक फैला हुआ है अर्थात सूर्योदय में 2 घंटे तक का अंतर आ जाता है। अतः 13 दिन का पक्ष पूरे भारत में नहीं फैला हुआ है। यह केवल 800 पू. से लेकर 700 पू. तक के रेखांशों के मध्य ही है। यदि हम कोलकाता की ओर जाते हैं तो सूर्योदय पहले हो जाता है।

पूर्णिमा का क्षय नहीं होता है अर्थात पक्ष 3 नवंबर से 16 नवंबर तक 14 दिन का हो जाता है। इसी प्रकार पश्चिम में द्वारिका की ओर जाने से सूर्योदय देर से होता है। इस कारण अमावस्या सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो जाती है और 2 नवंबर को ही पक्ष का प्रारंभ मानें तो यह 15 नवंबर तक 14 दिन का हो जाता है।

इस प्रकार तेरह दिन का पक्ष होना पूरे भूमंडल के लिए सत्य नहीं है अपितु एक क्षेत्र विशेष के लिए ही ऐसा होता है। भारत में यह क्षेत्र दिल्ली व मुंबई को मध्य में रखते हुए लगभग आधे भारत को आच्छादित करता है। साथ ही पक्ष की अवधि कम से कम 13 दिन 23 घंटे की होती है इसीलिए यह क्षेत्र भी पृथ्वी के 1/24 भाग से अधिक नहीं होता। एक और तथ्य यह है कि पक्ष का मान 14 दिन से कम हो, ऐसा वर्ष में 3-4 बार आमतौर पर हो जाता है। वर्ष 2005 में देखंे तो यह स्थिति 3 बार आई। मार्च में 25 तारीख से 26ः28 से लेकर अप्रैल 8 को 26ः02 तक चैत्र कृष्ण पक्ष 13 दिन 23 घंटे 34 मिनट का पक्ष रहा। पुनः 24 अप्रैल 15ः36 से 8 मई 14ः15 तक 13 दिन 22 घंटे 39 मिनट का वैशाख कृष्ण पक्ष और अंत में नवंबर में कार्तिक शुक्ल पक्ष 13 दिन 23 घंटे 33 मिनट का रहा।


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पक्ष जब भी 14 दिन से कम का होता है तो विश्व में कहीं न कहीं 13 दिन का हो जाता है- केवल अमावस्या या पूण्र्िा मा सूर्योदय के समय समाप्त होनी चाहिए। यदि अमावस्या /पूर्णिमा समाप्ति काल भारत में सूर्योदय के बाद होता है तो भारत से पश्चिम में 13 दिन का पक्ष होता है। यदि यह सूर्योदय के पूर्व हो तो भारत से पूर्व में 13 दिन का पक्ष देखा जा सकता है। इसका कारण यह है कि पश्चिम में सूर्योदय बाद में होता है। उपर्युक्त गणना में भी ऐसा ही देखने को मिलता है। मार्च में जापान में, अप्रैल में न्यू यार्क में एवं नवंबर में भारत में यह स्थिति देखने को मिलती है। पहले दो अवसर समाचार में नहीं आए, क्योंकि ये स्थितियां भारत में नहीं घटीं एवं अन्य देशों में तिथि आदि की प्रथा नहीं है।

अतः कहा जा सकता है कि 13 दिन का पक्ष विश्व में कहीं न कहीं प्रति वर्ष होता है। औसतन 20-30 वर्ष बाद यह स्थिति दोबारा आती है और जिस क्षेत्र में पक्ष 13 दिन का होता है उस क्षेत्र में उस पक्ष में या निकट भविष्य में उल्कापात हो सकता है। अतः भारत के लिए 13 दिन का पक्ष कोई अच्छी सूचना लेकर नहीं आया है। दिल्ली में भारत सरकार के लिए यह समय एक चुनौती का समय हो सकता है।



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