जब वर या कन्या की कुंडली में मंगल लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में हो, तो मंगल दोष होता है। मंगल दोष लग्न से अधिक प्रबल माना जाता है, लेकिन चंद्रमा से इसका दोष लग्न की अपेक्षा कम होता है। यदि शास्त्रानुसार वर एवं कन्या का मंगल दोष भंग हो जाता है तो उनका दाम्पत्य जीवन प्रसन्नतापूर्वक व्यतीत होता है।
इसके विपरीत बिना दोष भंग हुए मंगली दम्पतियों को जीवन में कई प्रकार की अनावश्यक समस्याओं तथा व्यवधानों का सामना करना पड़ता है। मंगल दोष परिहार के अनेक सूत्र बताए गए हैं। जैसे:
अजे लग्ने व्यये चापे पाताले वृश्चिके स्थिते। वृषे जाये घटे रन्ध्रे भौम दोषो न विद्यते।।
लग्न में मेष द्वादश में धनु, चतुर्थ में वृश्चिक, सप्तम में वृष तथा अष्टम में कुंभ राशि में मंगल स्थित हो, तो मंगल दोष नहीं होता है। भौमेः वक्रिणि नीचगृहे वाऽर्कस्थे वा न कुजदोषः।
यदि मंगल वक्री, नीच या अस्त का हो तो मंगल दोष नहीं होता। सप्तमो यदा भौमः गुरुणां च निरीक्षता। तदास्तु सर्वसौख्यं व मंगली दोषनाशकृत।।
सप्तमस्थ मंगल पर यदि गुरु की दृष्टि हो तो मंगल दोष समाप्त हो जाता है।
उपरोक्त सूत्र हजारों वर्ष पूर्व ज्योतिष शास्त्र में लिखे गए थे। आज भी हम उसी प्रकार से उनका प्रयोग करते हैं। लेकिन क्या ये सूत्र पूर्ण रूपेण सत्य हैं? व्यवहार में ऐसा देखने में नहीं आता। जिस मेलापक में कोई दोष नहीं होता उसका भी दाम्पत्य जीवन विफल पाया जाता है और इसके विपरीत मेलापक दोषयुक्त होने पर भी दाम्पत्य जीवन सुखमय देखा जा सकता है। मेलापक एवं मंगली मिलान को कसौटी पर उतारने के लिए अखिल भारतीय ज्योतिष संस्था संघ की एक छात्रा अपर्णा शर्मा ने लगभग 200 दम्पतियों की कुंडलियां एकत्र कीं जिनमें लगभग एक तिहाई का दांपत्य जीवन सुखमय है, एक तिहाई का टकरावपूर्ण एवं एक तिहाई का संबंध विच्छेद हो गया है या होने वाला है। इस अध्ययन से जो तथ्य सामने आए वे प्रचलित सूत्रों से बहुत ही भिन्न हैं। उदाहरणार्थ कुछ योग जो हमें प्राप्त हुए वे इस प्रकार हैं।
- पुरुषों में मंगल प्रथम व अष्टम भावों में नेष्ट है एवं तृतीय भाव में शुभ है जबकि स्त्रियों में यह प्रथम एवं तृतीय भावों में नेष्ट व नवम एवं एकादश में शुभ है और 4,7,12 में लगभग सम है।
- पुरुषों में नीच, उच्च व स्वगृही मंगल नेष्ट फल देता है व शुक्र एवं बुध के घर में फल सबसे शुभ रहते हंै। गुरु के घर में भी फल नेष्ट ही हैं। स्त्रियों में मंगल सूर्य एवं चंद्र के घर में उत्तम फलदायक है। लेकिन उच्च, स्वगृही व गुरु के घर में मंगल नेष्ट फलदायी ही है।
विस्तृत फल निम्न ग्राफ द्वारा देखे जा सकते हैं -
- मंगल, शनि व केतु 11वें भाव में शुभ फलदायक हैं, लेकिन राहु इसी भाव में अशुभ फलदायक है।
- सभी ग्रह कहीं शुभ फलदायक हैं और कहीं नेष्ट। केवल मंगल ही अशुभ फलदायक नहीं होता। उदाहरणार्थ सूर्य तीसरे भाव में, चंद्र 1 और 12 में, मंगल मुख्यतः प्रथम में, बुध दूसरे भाव में, गुरु छठे में, राहु 11वें में एवं केतु 5वें में सबसे नेष्ट पाए गए हैं।
- इसी प्रकार सूर्य 8वें और 12वें भावों में, चंद्र 10वें में, मंगल 9वें और 11वें में, बुध 8वें और 12वें में, गुरु 8वें में, शुक्र 1,7,11वें में, शनि 11वें में, राहु 6 और 7 में एवं केतु लग्न और 12वें में सभी दाम्पत्य जीवन के दोषों का शमन करते हुए पाए गए हंै।
- मंगल दोष के अतिरिक्त गुण दोष मेलापक में भी तीनों वर्र्गों में मेलापक के औसत अंकों में कुछ अंतर नहीं पाया गया। इससे स्पष्ट है कि गुण मेलापक, जो देखने में अति वैज्ञानिक और गणनात्मक प्रतीत होता है, वास्तव में पूर्ण रूपेण नवीनीकरण चाहता है।
इस प्रकार के शोध ज्योतिष को शीघ्र ही नए आयाम-प्रदान करेंगे। पुनः ज्योतिष की प्रामाणिकता और विश्वसनीयता सुदृढ़ करेंगे और इसे वही रूप देने में समर्थ होंगे जैसा कि यह हजारों वर्ष पूर्व था।