नए ग्रहों एवं राशियों की खोज का ज्योतिष पर प्रभाव
नए ग्रहों एवं राशियों की खोज का ज्योतिष पर प्रभाव

नए ग्रहों एवं राशियों की खोज का ज्योतिष पर प्रभाव  

आभा बंसल
व्यूस : 3747 | अकतूबर 2005

हाल ही में प्लूटो के आगे 10वें ग्रह की खोज की गई है। खगोलज्ञों ने कैलिफोर्निया की पालोमर वेधशाला में सेडना नामक 10वें ग्रह का पता लगाया है। यह ग्रह पृथ्वी से 13 अरब कि.मी. दूर है। इसका व्यास लगभग 1200 कि.मी. है। इसका रंग मंगल से भी अधिक लाल है। प्लूटो की तुलना में सूर्य से इसकी दूरी तीन गुना अधिक है और आकार में लगभग उससे आधा है। दशम ग्रह की खोज ने एक बार फिर ज्योतिषियों को झकझोड़ डाला है और उन्हें इस पर पुनर्विचार करने को बाध्य कर दिया है कि सत्य क्या है। बुद्धिजीवियों का मानना है कि इस प्रकार की खोजों से ज्योतिष को नई परिभाषा देनी पड़ेगी और जो आज तक की ज्योतिषीय गणना है वह सब गलत है।

इसी प्रकार खगोलविद बताते हैं कि भचक्र में केवल 12 राशियां नहीं अपितु 13 राशियां हैं। तेरहवीं राशि वृश्चिक और धनु के बीच है जो ओफियूकस के नाम से जानी जाती है और राॅयल एस्ट्राॅनाॅमिकल सोसाइटी भी सन् 1995 में इसके अस्तित्व की पुष्टि कर चुकी है। सत्य क्या है? ज्योतिष की इस बारे में क्या मान्यताएं हैं? क्या ज्योतिष के नियमों को दोबारा लिखने की आवश्यकता है? सत्य यह है कि 10वां ग्रह हो या 13वीं राशि, यह केवल खोज है, नए ग्रह एवं राशियां उत्पन्न नहीं हुए हैं जो ज्योतिष को बदल दें। आसमान में अरबों तारे हैं जबकि ज्योतिष में केवल 9 ग्रहों की गणना के आधार पर ही भविष्यकथन किया जाता है और ये 9 ग्रह भी वे ग्रह नहीं हंै जो सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं।

ज्योतिष में चंद्रमा, जो पृथ्वी का उपग्रह है, को भी अन्य ग्रहों से अधिक मान्यता दी गई है। इसी प्रकार से ज्योतिष में सूर्य को भी एक ग्रह के रूप में ही मान्यता मिली है एवं छाया ग्रह राहु और केतु को भी ग्रहों की श्रेणी में ही रखा गया है। ज्योतिष में ग्रह का अर्थ है वह बिंदु जिसका मनुष्य के जीवन पर प्रभाव पड़ता है जबकि खगोल में ग्रह वह आकाशीय पिंड हंै जो सूर्य के चारों ओर घूमते हंै। वैदिक ज्योतिष में केवल 9 ग्रहों को ही मान्यता दी गई है जिनमें यूरेनस, नेप्च्यून और प्लूटो शामिल नहीं हंै। आधुनिक ज्योतिष में इनको सम्मिलित किया गया है लेकिन इनका प्रभाव काफी कम देखने में आया है।


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इसका कारण एक तो उनकी पृथ्वी से दूरी एवं दूसरा उनका छोटा आकार है। मुख्यतः किसी ग्रह का असर उसके गुरुत्वाकर्षण के कारण होता है जो द्रव्यमान के सीधे अनुपाती एवं दूरी के वर्ग के विलोमानुपाती होता है (Gravitational force is directly proportional to mass and indirectly proportional to square of the distance)। इस कारणवश यूरेनस का प्रभाव शनि से केवल 4 प्रतिशत ही होता है और नेप्च्यून और प्लूटो का और भी कम हो जाता है। प्लूटो का प्रभाव तो शनि के मुकाबले हजारवां हिस्सा ही होता है।

अब यदि सेडना की गणना करें तो उसका प्रभाव प्लूटो से भी 10 गुना कम होगा। अन्य पिंडों का प्रभाव सेडना से और भी बहुत कम होता है। यही कारण है कि इनके प्रभाव को हम ज्योतिष में अधिक महत्व नहीं देते हैं। दूसरा कारण है पिंडों की सूर्य से दूरी जिसके कारण उनकी सूर्य की परिक्रमा की अवधि बहुत अधिक हो जाती है। जैसे यूरेनस की 88 वर्ष, नेप्च्यून की 160 वर्ष एवं प्लूटो की 248 वर्ष। ज्योतिष में हम ग्रह के उसी राशि एवं अंश पर आने के प्रभाव का अध्ययन करते हैं। मनुष्य के जीवन में यूरेनस, नेप्च्यून और प्लूटो पुनः उसी राशि एवं अंश पर नहीं आ पाते। इसी कारण उन्हें पूर्ण महत्व नहीं दिया जाता।ज्योतिष में भचक्र को 12 बराबर भागों में बांटकर राशियां बनाई गई हैं। भचक्र सर्वदा 360 अंशों का ही रहेगा चाहे उसमें 12 भाग किए जाएं या अन्य कुछ और।

राशि के इन अंशों के पीछे जो भी तारा समूह दिखाई दिया उसका एक नाम दे दिया गया। लेकिन यह आवश्यक नहीं कि यह तारा समूह पूरे अंशों में फैला हो या अपनी सीमा से बाहर न जा रहा हो। राशि केवल एक गणितीय गणना है और उसे व्यावहारिक रूप देने के लिए तारा समूह को नाम एवं आकार दिया गया है। अतः हम इन 360 अंशों के मध्य कोई नया समूह खोज लें या उसके और अधिक भाग कर दंे इससे ज्योतिषीय भविष्यकथन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। भारतीय ज्योतिष में इस भचक्र को न केवल 12 भागों में बांटा गया है अपितु 27 नक्षत्रों में भी बांटा गया है जो चंद्रमा की प्रतिदिन की गति को दर्शाते हैं। चंद्रमा लगभग 27 दिनों में भचक्र का पूरा चक्कर लगा लेता है एवं प्रतिदिन एक नक्षत्र आगे बढ़ जाता है। इसी तरह सूर्य भी 365 दिनों में 12 राशि आगे चलता है एवं एक माह में एक राशि पार कर लेता है।


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हमारे ऋषियों को इन सभी पिंडों के बारे में पूर्व जानकारी थी लेकिन उन्होंने ज्योतिष को एक यथार्थ रूप देने के लिए केवल उन ग्रहों एवं राशियों का चयन किया जिनका मनुष्य के ऊपर गंभीर प्रभाव देखा या आंका जा सकता था। उन पिंडों को छोड़ दिया जिनका असर बहुत सूक्ष्म पाया गया। यह ठीक उसी प्रकार से है जैसे दिल्ली से बंबई की दूरी का माप हम केवल किलोमीटरों में करते हैं न कि मीटरों या मिलीमीटरों में। खगोलविद् कितनी भी खोज करते रहें एवं कितने ही नए ग्रहों का पता लगा लें या नई राशियों का नामकरण कर लें, ज्योतिष जो पहले था वही आज भी है और आगे



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