मकर संक्रांति का दिनं खिचड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है। शास्त्रीय मतभेद के चलते भारतीय पंचांगों ने हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी मकर संक्रांति की खूब खिचड़ी पकाई है। निर्णयसागर चण्डमात्र्तण्ड पंचांग दिनांक 14 जनवरी 2011 शुक्रवार को सायंकाल 18/42 घंटा मिनट पर मकर संक्रांति बता रहा है तथा मुंबई का दाते पंचांग भी एक नट के अंतर से 17:43 अर्थात् शाम 6 बजकर 43 मिनट पर सूर्य का मकर राशि में संक्रमण बता रहा है। जबकि कालान्तर व ग्वालियर पंचांगों ने 14 जनवरी की रात्रि 12:25 पर मकर संक्रांति अंकित की है।
इस प्रकार भारत के विविध पंचांगों के मध्य सूर्य की मकर संक्रांति काल में लगभग 6 घंटे का अंतर विराजमान है। हद तो उस समय हो जाती है जबकि दाते पंचांग मकर संक्रांति पुण्यकाल दूसरे दिन 15 जनवरी के सूर्योदय से सूर्यास्त तक लिख देता है। यह धर्मशास्त्र व मुहूर्त ग्रंथों के सिद्धांतों के विरूद्ध है। निर्णय सागर 14 जनवरी को मध्याह्नकाल से 15 जनवरी को सूर्योदय तक मकर संक्रांति पुण्य लिखा है। संक्रांति पुण्यकाल कब? मकर संक्रांति के पुण्यकाल का विशेष महत्व होता है।
संक्रांति पुण्यकाल में भी पवित्र नदियों में स्नान, अभीष्ट मंत्रों का जाप, तिल का लोक-तर्पण और तिल-गुण-अन्न व स्वर्ण आदि का दान किया जाता है। मकर संक्रांति का पुण्यकाल कब होना चाहिए, इस संदर्भ में विभिन्न शास्त्रीय वचनों की भरमार है।
त्रिंशत्कर्कटके नाड्यः मकरे तु दशाधिकाः। भविष्यत्याग में पुण्यं अतीते चोत्तरायणे।। आचार्य हेमाद्रि के अनुसार, ‘‘यदि संक्रांति आधीरात से पहले लगे तो दिन में दोपहर बाद पुण्यकाल होता है तथा आधी रात के बाद होने पर अगले दिन पुण्यकाल होता है। मकर संक्रांति यदि सायंकाल के तीन घटी के अंदर या पहले हो तो पहले दिन (अर्थात् उसी दिन) तथा तीन घटी के बाद होने पर अगले दिन (दूसरे दिन) पुण्यकाल होता है।’’
संध्या त्रिनाड़ी प्रमितार्क बिंबाद-द्र्धोदितास्तादध उध्र्वमत्र। चेद्याम्यासौम्ये अयने क्रमात्स्तः पुण्यौ तदानीं पर पूर्वघस्त्रौ।। -मुहूर्त चिंतामणि (03/07) अर्द्ध उदित एवं अर्धास्त सूर्य बिंब से पूर्व की 3 एवं पश्चात् की 3 घटी (1 घंटा 12 मिनट) की क्रमशः प्रातः एवं सायं संध्या होती है। सायं संध्या से पूर्व यदि मकर की संक्रांति हो तो उसी दिन पुण्यकाल होता है। यदि सायं संध्या के उपरांत मकर संक्रांति हो तो दूसरे दिन पुण्यकाल होता है।
’पश्चिम भारत में मकर संक्रांति पर्व इस बार 14 जनवरी को है। सूर्यास्त के बाद किंतु सायं संध्या से पूर्व मकर संक्रांति हो रही है। इसलिये संक्रांति पुण्यकाल उसी दिन 14 जनवरी को दोपहर 12 बजे के बाद से सूर्यास्त तक माना जाएगा क्योंकि मकर संक्रांति (सायं 6:43) के समय भाारत के सभी शहरों में सायं संध्या रहेगी। मुंबई में भारतीय मानक समय 6:19 का सूर्यास्त है। तथा 14 जनवरी को मुंबई का स्थानीय सूर्यास्त 5:40 बजे का है।
इस सूर्यास्त में 3 घटी जोड़ देने पर (5:40+1:12 = 6:52) 6 बजकर 52 मितक की सायं संध्या होती है। अतः मुंबई में सायं संध्या से 09 मिनट पूर्व ही मकर संक्रांति हो जाएगी। इस प्रकार आप भी अपने शहर के स्थानीय सूर्यास्त में 1 घंटा 12 मिनट जोड़कर अपने शहर की सायं संध्या ज्ञात कर लें। यदि आपके शहर को सायं संध्या 6:43 के बाद तक हो रही है तो आपके शहर में मकर संक्रांति का पुण्यकाल 14 जनवरी को दोपहर 12 बजे से सूर्यास्त तक रहेगा। इस समय आप स्नान दान आदि पुण्य कर्मों के सहित मकर संक्रांति पर्व हर्षोल्लास के साथ मना सकते हैं।
उत्तर-पूर्वी व पूर्वी भारत में संक्रांति पर्व-पुण्यकाल 15 जनवरी को जिन शहरों में स्थानीय सूर्यास्त 5:30 बजे या इससे पूर्व हो रहा है, उन शहरों में सायं संध्या 6:42 के पूर्व समाप्त होने तथा इसके उपरांत मकर संक्रांति होने के कारण मकर संक्रांति पुण्यकाल दूसरे दिन 15 जनवरी को सूर्योदय से सूर्यास्त तक रहेगा तथा दोपहर लगभग 12 बजे तक अत्यंत पुण्यप्रद पर्वकाल रहेगा। हरिद्वार-ऋषिकेश, काशी-वाराणसी आदि उत्तर पूर्वी भारत एवं समस्त पूर्वी भारत तथा ग्वालियर सहित मध्य प्रदेश के कुछ शहरों में 5:30 बजे से पूर्व ही सूर्यास्त हो जाएगी।
उसके 3 घटी (1 घंटा 12 मिनट) बाद सूर्य की मकर संक्रांति होने के कारण संक्रांति पर्व का स्नानदान आदि पुण्यकर्म करने का पुण्यकाल उक्त शहरों में 15 जनवरी को है। वहां संक्रांति की खिचड़ी 15 को सूर्योदय के बाद पकाकर उसमें गुड़ और सफेद तिल मिलाकर भगवान सूर्यनारायण को नैवेद्य के रूप में अर्पित करें तथा प्रसाद स्वरूप उसे बांट दे।
मध्य प्रदेश के अनेक शहरों में संक्रांति पर्व 14 जनवरी को उपरोक्त सिद्धांतों के आधार पर पश्चिम भारत की भांति मध्यप्रदेश के भोपाल, इन्दौर, उज्जैन, जबलपुर आदि पश्चिमी स्थानों पर भी मकर संक्रांति पुण्यकाल 14 जनवरी का होने से मकर संक्रांति पर्व 14 जनवरी को मध्याहन 12 बजे से सायं सूर्यास्त तक मनाना शास्त्र सम्मत है।
संक्रांति फल - अश्विनी, भरणी, कृतिका को यात्रा प्रदायक। रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, आश्लेषा, आद्र्रा, पुनर्वसु को सुख भोग की प्राप्ति। मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी को दुख। हस्त, चित्रा स्वाती, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा को वस्त्र। मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा को हानि। श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती नक्षत्र में जन्में जातक को धन लाभ होगा।
जनवरी मास के प्रमुख व्रत त्योहार मकर संक्रांति ( 14 जनवरी): यह पर्व दक्षिायायन के समाप्त होने और उत्तरायण के प्रारंभ होने पर मनाया जाता है। दक्षिणायन देवताओं की रात्रि तथा उत्तरायण दिन माना जाता है। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के कारण इस संक्रांति को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। यह पर्व बड़ा पुनीत पर्व है।
इस दिन पवित्र नदियों एवं तीर्थों में स्नान, दान, देव कार्य एवं मंगल कार्य करने से विशेष पुण्यफल की प्राप्ति होती है। पुत्रदा एकादशी (16 जनवरी): शास्त्रों के अनुसार यह एकादशी तिथि पुत्रदा एकादशी के नाम से विख्यात है। इस दिन विधिपूर्वक व्रत करने से भगवान नारायण की कृपा से पुत्र की प्राप्ति होती है। ब्राह्मण भोजन कराना और यथाशक्ति अन्न और वस्त्र का दान करना पुण्यवर्द्धक होता है।
साथ ही नित्य ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करने से फल शीघ्र प्राप्त होता है। संकट चैथ (22 जनवरी) यह व्रत माघ कृष्ण पक्ष की चतुर्थ तिथि को किया जाता है। श्री गणेश जी के निमित्त यह व्रत पूरे दिन नियम संयम के साथ करना चाहिए। रात्रि में गणेश जी का तिल के लड्डुओं के साथ पूजन करके चंद्रोदय हो जाने पर चंद्रमा को ऊँ सोम् सोमाय नमः मंत्र से अघ्र्य देना चाहिए। यह व्रत करने से शारीरिक तथा मानसिक बल में वृद्धि होती है एवं मनोवांछित कार्यों में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।
षटतिला एकादशी (29 जनवरी): माघ कृष्ण एकादशी को षट्तिला एकादशी कहते हैं, प्रातः काल में स्नान करके श्री कृष्ण मंत्र का 108 बार जप करें। तिलों के जल से स्नान करें, पिसे हुए तिलों का उबटन करें, तिलों का हवन करें, तिल मिश्रित जल पीएं, तिलों से बने लड्डू, बर्फी आदि का भोजन करें। इस प्रकार व्रत करने से हर पापों का नाश होता है एवं इससे लौकिक और पारलौकिक सुखों की प्राप्ति होती है।