कोर्ट में जय-पराजय के ग्रह योग डॉ. अशोक शर्मा जिन ग्रहों से परिस्थितियां उत्पन्न हुई है उन ग्रहों की नक्षत्र में स्थिति का गहराई के साथ अध्ययन करके, ग्रह नक्षत्रों का संयुक्त उपाय विधिवत् विशेष काल समय में करने से विजय प्राप्ति संभव है। महत्वकांक्षाएं ही व्यक्ति से नैतिक-अनैतिक, वैधानिक-अवैधानिक, सामाजिक-असामाजिक, वाद-विवाद का कारण बनाती हैं। सामाजिक, गुनाहों, संपत्ति-विरासत, जमीन जायदाद के कोर्ट-कचहरी के मामलों का सटीक ज्योतिषीय आकलन- सामान्यतः कोर्ट-कचहरी, शत्रु प्रतिद्वंदी आदि का विचार छठे भाव से किया जाता है। सजा का विचार अष्टम व द्वादश भाव से किया जाता है।
इसके साथ ही दसवें भाव से यश, पद, प्रतिष्ठा, कीर्ति आदि का विचार किया जाता है साथ ही सप्तम भाव विरोधियों का भी माना जाता है। इन भावों में स्थित ग्रह, इन भावों के स्वामियों की स्थिति से ही कोर्ट केस की स्थिति बनती है। केस होगा या नहीं। केस की जय/पराजयता आदि का निर्णय भी इन्हीं भावों से संबंधित ग्रहों से होता है। कुछ महत्वपूर्ण योग जो कोर्ट केस/विवाद/पुलिस केस आदि से संबंधित है,ं इस प्रकार ह-ैं छठे स्थान में पाप ग्रह का होना, छठे का स्वामी पाप ग्रह का होना शत्रु योग कहलाता है।
सूर्य : छठे स्थान में सूर्य होने से शासकीय/राजकीय प्रकरण होता है। चंद्र : छठे स्थान में चंद्र मामा/माता के पक्ष से मिल्कीयत विषयक केस होता है। मंगल : पुलिस या सेना से बुध : व्यापारियों अथवा बैंक से गुरु : ब्राह्मण/शिक्षक/धार्मिक गुरु/न्यायाधीश/धार्मिक संस्था से। शुक्र : स्त्री/होटल मालिक/ कलाकार से। शनि : नीच प्रकृति के पुरुष द्वारा/कुटिल व्यक्ति/राज्य/ शासन से संरक्षित व्यक्ति से। राहु तथा केतु : दुष्ट, अनैतिक, आचरणकर्ता, अनुसूचित जाति, जनजाति, या अल्प संखयक जातियों के कारण केस की स्थिति बनती है। षष्ठेश किस स्थिति में है यह भी विचारणीय है क्योंकि केस किस प्रकार का होगा, क्या फल मिलेगा, इसका निर्धारण षष्ठेश ही करता है।
जिन ग्रहों से परिस्थितियां उत्पन्न हुई है उन ग्रहों की नक्षत्र में स्थिति का गहराई के साथ अध्ययन किया जाना चाहिए तथा ग्रह नक्षत्रों का संयुक्त उपाय विधिवत् विशेष काल समय में करने से विजय प्राप्ति संभव है।