संवत्सर का ''क्रोध ''जूनतक सहना पडेग़ा पं. सुनील जोशी जुन्नरकर क्रोधी नामक संवत्सर में केन्द्र तथा अनेक राज्यों में आतंकवादी हिंसा, राजनीतिक उथल-पुथल , स्वार्थ के कारण देशों के बीच शांति समझौतों और संधियों का उल्लंघन, देश में खाद्य पदार्थों व खाद्यानों की उपलब्धता में कमी होगी। महिलाओं के विकास की योजनाएं बनेंगी। कश्मीर समस्या का हल तथा सुरक्षा परिषद की सदस्यता प्राप्त होगी।
चीन और पाक अपने नापाक इरादों में सफल न होंगे। अक्तूबर में अश्वनी नक्षत्र में गुरु भ्रमण से लोग स्वस्थ व प्रसन्न होंगे। सन् 2011 में दिनांक 03 अप्रैल को शोभन नामक संवत्सर की समाप्ति और विक्रम संवत् 2068 का प्रारंभ रविवार की रात्रि में 08.02 बजे से तुला लग्न में होगा। उदयकालीन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 04 अप्रैल सोमवार को होने से इस दिन नव वर्षारंभ माना जाएगा। क्रोधी संवत्सर का फल : विषमस्थं जगत् सर्व व्याकुलं दारुणाद रणात्। देशे ज्ञातौ कुटुम्बे च क्रोधी क्रोधपरः परम्॥ अर्थात् मेदनीय संहिता की वर्षफल श्रुति के अनुसार ''इस वर्ष पूरा संसार युद्धादि हिंसा से दुखित और व्याकुल रहेगा। परिवार में देश के अंदर परस्पर तथा दो देशों के मध्य क्रोध, विवाद और विद्रोह का संचार अपनी चरम सीमा पर होगा।''
केंद्र तथा देश के अनेक राज्यों में राजनीतिक उथल-पुथल होगी। कश्मीर व मुंबई आदि में आतंकवादी हिंसा, छत्तीसगढ़, उड़ीसा व पश्चिम बंगाल आदि में नकसलवादी गतिविधियों में तीव्रता आयेगी। चीन तथा पाकिस्तान की ओर से भारत की भूमि को हड़पने के कूटनीतिक प्रयास होंगे तथा दुश्मन देश हिंसा बल का सहारा लेने से परहेज नहीं करेगा। निजी स्वार्थ और अभिमान के कारण शांति समझौतों/संधियों का उल्लंघन होगा। वर्ष लग्न फल : वर्ष लग्न तुला उदित हुआ है, जिसका स्वामी शुक्र है।
सौम्य ग्रह लग्नेश शुक्र का पंचम भाव में बैठना ज्ञान-विज्ञान, व्यापार-व्यवसाय व सौंदर्य विकास की दृष्टि से अच्छा है। भारत विश्व मंच पर अपना ग्लैमर दिखाने के लिए धन का व्यय करेगा। गुरु-शनि के समसप्तक योग का फल- वर्ष कुंडली में सौम्य ग्रह गुरु और क्रूर ग्रह शनि एक-दूसरे से सप्तम स्थान में स्थित होने के कारण एक-दूसरे को पूर्ण दृष्टि से देख रहे हैं। संहिता शस्त्रा में इस योग का फल अनावृष्टि (बरसात का न होना) कहा गया है।
जिसके फलस्वरूप उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में खाद्यान्न के कमी की समस्या उत्पन्न होगी। खाद्य पदार्थों के महंगे होने से वे गरीब जनता की पहुंच से दूर हो जाएंगे। अतः गरीब जनता के लिए अकाल, दुर्भिक्ष और भूखे मरने की स्थिति निर्मित होगी। इससे प्रजा का विनाश और लोकपीड़ा होगी। पांच ग्रहों की युति का फल : वर्ष लग्न कुंडली के षष्ठ भाव-मीन राशि में गुरु, बुध, सूर्य, चंद्र, मंगल पांच ग्रहों की युति है।
एक राशौयदा यांति चत्वार पंच खेचराः। प्लावयंतिमहीं सर्वांरुधिरेण जलेन वा॥ अर्थात् एक ही राशि में पांच ग्रहों के गोचर से पृथ्वी रक्त और पानी से भर जाती है। इसके फलस्वरूप देश के अनेक हिस्सों में आंधी, तूफान ओला वृष्टि व अतिवृष्टि से जनधन की हानि होगी। आतंक, द्वंद, अग्निकांड, भूक्रंदन आदि से प्रजा का विनाश होगा। मई-जून में भयंकर गर्मी पड़ेगी, जिससे पृथ्वी के तापमान में अप्रत्याशित वृद्धि होगी। वर्षेश राजा चंद्र फलम् : सवंत् 2068 में राजा का पद सूर्य को प्राप्त हुआ है।
जिसके प्रभाव से धान्य, फल-फूल, शाक-सब्जी के उत्पादन में न्यूनता रहेगी। पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होगी। लूट-पाट, भृष्टाचार व चोरी, घूसखोरी आदि अनैतिक कार्यों में वृद्धि होगी। ताप-ज्वर, अतिसार, नेत्रविकार, अस्थिरोग, हृदय रोग आदि से जनता को कष्ट होगा। अग्निकांड व शासन के आदेशों से जनता भयभीत होगी। वर्षाधिपति वर्षेश का उप पद चंद्रमा को प्राप्त हुआ है इस कारण इस वर्ष अच्छी वर्षा होगी तथा जल की समस्या बहुत सीमा तक दूर होगी।
पर्याप्त मात्रा में होगा। समुद्र तटीय क्षेत्रों में तथा निचले भागों में ओलों और वर्षा के जल व बाढ़ आदि से जनजीवन अस्त व्यस्त होगा। महिलाओं के विकास एवं सुरक्षा की अनेक योजनाएं बनेगी एवं क्रियान्वित होंगी। कश्मीर समस्या का हल, सुरक्षा परिषद् की सदस्यता प्राप्त होगी। नववर्ष में शनि कन्या राशि में वक्र गतिशील है, दिनांक 13-06-2011 तक वक्रगति का फल बंगाल, कश्मीर, कलिंग, गौड़, सौराष्ट्र के लिए अशुभप्रद बताया गया है। इन्हीं स्थानों पर अनावृष्टि, दुर्भिक्ष, महामारी, हिंसा आदि से जनता दुःखित रहेगी। राजनेताओं में परस्पर राजनीतिक युद्ध होगा तथा इस युद्ध में लोकतंत्र के समर्थकों की जीत होगी। कश्मीर में आतंकवादी हिंसा तो होगी, किंतु चीन या पाक अपने नापाक इरादों में सफल नहीं होंगे। मलेच्छ राजाओं की दिन प्रतिदिन हानि होगी। कश्मीर में वही होगा जो भारतीय संसद चाहेगी अर्थात् मानवीयता, राष्ट्रीयता व लोकतंत्र की जीत होगी। कश्मीर की वर्तमान संवैधानिक व राजनीतिक स्थित में बदलाव आएगा।
किंतु शनिदेव यह कार्य 13.06.2011 के बाद मार्गी होने पर ही कर पाएंगे। कन्या राशि से विदा होते मार्गी शनि भारत को संयुक्तराष्ट्र की सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य और वीटो का अधिकार दिला देंगे। सुरगुरुर्मेषे सुखं सर्वजनेषु : तारीख 25.12.2011 से गुरु मेष राशि में मार्गी होकर गोचर करेंगे। इससे पूर्व 13.10. 2011 से अश्विनी नक्षत्र में गुरु का भ्रमण होगा। अतः गुरु बृहस्पति 13 अक्तूबर से सुभिक्ष प्रदान करेगा जिसके फलस्वरूप सभी लोग स्वस्थ और सुखी रहेंगे। हल्दी, चंदन, गुड़ स्वर्ण, पीतल, घी आदि के मूल्य में कमी आएगी। वर्ष के प्रारंभ से मध्य तक गुरु से संबंधित वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि तथा उनके भाव अस्थिर रहेंगे। जिससे व्यापारियों को लाभ होगा।
मई-जून में छत्र भंग के योग : दिनांक 08.05.2011 से गुरु मेष राशि में अस्वभाविक गति करेगा। इसे अतिचार कहते हैं, अतिचार संज्ञक गुरु का फल अच्छा नहीं है क्योंकि इस अवस्था में गुरु अपने नैसर्गिक शुभ फलों को नहीं देता है।
उधर गुरु से षष्ठ स्थान में 13.06.2011 तक कन्या राशि में शनि वक्री रहेगी। अतः 08 मई से 13 जून तक का समय भी देश-विदेश के लिए अशुभ रहेगा। इसे दौरान प्राकृतिक आपदा, आतंकी हिंसा तथा राजनीतिक विद्रो के योग बनेंगे। नेता व मंत्रियों के लिए भी यह समय अनुकूल नहीं है। शारीरिक पीड़ा या राजनीतिक विद्वेष के कारण छत्रभंग के योग बन रहे हैं।
खग्रास चंद्र ग्रहण 15 जून के आसपास का समय भी शासक वर्ग के लिए खतरों भरा हो सकता है। मेदनीय संहिता के अनुसार सूर्य-चंद्र ग्रहण का कुप्रभाव राजो पर पड़ता है। इस प्रकार से विविध कुयोग क्रोधी नामक संवत्सर के अशुभ फल को बल प्रदान करेंगे। किंतु जून 2011 के बाद भारत में पुनः खुशियां लौटेंगी।