होरा शास्त्र में राहु केतु की युति जातक के जीवन में जिस प्रकार अनेक विकट स्थितियों को पैदा करती है उसी प्रकार मेदिनी संहिता के अनुसार इसकी परिधि में आने वाले देश भी ज्योतिषीय तथ्यों के आधार पर उद्घोष कर रहे हैं कि सूर्य से इन दोनों छाया ग्रहों का दृष्टि या युति संबंध रेडियेशन फैलाता है। जो राशि परिवर्तन के साथ शांत भी होने लगता है।
11 मार्च 2011 को जापान में भारी तीव्रता वाला भूकंप आया, ज्वालामुखी फटा और प्रशांत माहासागर से उठकर सुनामी की लहरों ने जापान में जलजले का ताण्डव मचा दिया। यह प्राकृतिक प्रकोप हजारों जापानियों को लील गया। भूकंप व ज्वालामुखी की गर्मी से फुकुशिमा न्यूक्लियर पावर प्लांट के रिएक्टर में विस्फोट हो गया। फिर 15-16 मार्च को भी परमाणु रिएक्टरों में विस्फोट हुआ और आग लग गई। इससे परमाणु ऊर्जा लीक हुई तथा वातावरण में जहर घोलने वाला न्यूक्लियर रेडिएशन फैल गया। आइए, जापान के इस घटनाक्रम के ज्योतिषीय पहलुओं की जांच करते हैं।
शनि-मंगल के षडाष्टक योग का परिणाम : मेदिनी संहिता के अनुसार, जब-जब भी शनि-मंगल का षडाष्टक, समसप्तक योग या दोनों का युति संबंध होता है तथा ऐसे अशुभ योग में शनि या मंगल वक्री हो तो पृथ्वी पर भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट व समुद्री तूफान आदि प्राकृतिक प्रकोपों से जन धन की हानि होती है। कन्या राशि में भ्रमणशील वक्री शनि का कुंभ राशि में गोचरीय मंगल से षडाष्टक योग बना, यह अशुभ योग ही जापान के भूकंप, ज्वालामुखी आदि का मुख्य कारण है।
1. यह घटना जापान में इसलिए घटी क्योंकि जापान की नाम राशि ‘मकर’ से द्वितीय भाव में मंगल और द्वादश भाव में राहु के संचार से जापान की राशि पापकर्तरी में थी।
2. जापान के अष्टमेश सूर्य की मंगल से मारक भाव में शत्रुराशि में युति थी। मारक भाव में बैठकर मंगल (जापान के राशि स्वामी) शनि पर अपनी क्रूर दृष्टि डाल रहा था।
3. राहु की चंद्र पर दृष्टि जापान की सुनामी का तथा आगजनी का कारण सूर्य-मंगल पर केतु की कुदृष्टि है।
केतु फैला रहा है रेडिएशन: जापान में परमाणु विद्युत संयंत्रों के ध्वस्त होने से परमाणु विकिरण (रेडिएशन) फैल रहा है। यह रेडिएशन जापान के अलावा रुस और उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्से तक जा पहुंचा है। मंगल विद्युत का कारक है तथा राहु-केतु परमाणु ऊर्जा और जहरीली गैसों व धुऐं के कारक है।
वर्तमान में केतु अपनी नीच राशि में भ्रमण करता हुआ अपनी पूर्ण अशुभ दृष्टि से मंगल को देख रहा है। यही न्यूक्लियर रेडिएशन के संक्रमण का मुख्य कारण हैं। सन् 1986 में चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना के समय मेष राशि में संचार करता राहु धनु राशि के गोचरीय मंगल को देख रहा था एवं वृश्चिक राशि में वक्रगत्या शनि का मंगल से द्विद्र्वादश संबंध था।
इस विवेचन से एक बात अवश्य ही सिद्ध होती है कि शनि के वक्री अवस्था (काल) में, पापग्रहों (शनि, मंगल, राहु, केतु) का यदि कोई अशुभ संबंध हो तो पृथ्वी पर भूकंप, ज्वालामुखी, बाढ़, युद्ध या महामारी से जनता त्रस्त होती है और जन-धन की हानि होती है।
ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों में परमाणु ऊर्जा या उसके विकिरण का कोई उल्लेख नहीं है, क्योंकि यह मानव विनाश की नई खोजे हैं। किंतु चेर्नोबिल और परमाणु हादसे फुकुशिमा के ज्योतिषीय तथ्यों के आधार पर हम कह सकते हैं कि जब मंगल का राहु या केतु से दृष्टि आदि संबंध बनता है तो इस प्रकार के परमाणु हादसे होते हैं और रेडिएशन फैल जाता है तथा यह रेडिएशन प्रकृति व मनुष्य के लिए घातक सिद्ध होता है।
सूर्य से राहु या केतु की युति या दृष्टि संबंध हो तब भी रेडिएशन फैल सकता है। रेडिएशन के प्रभाव की शांति: 4 मई से राहु वृश्चिक में और केतु वृषभ राशि में प्रवेश करेगा। अतः राहु-केतु के परिवर्तन के साथ ही परमाणु रेडिएशन का दुष्प्रभव शांत हो जाएगा। दिनांक 13 जून से शनि मार्गी होगा, जिससे ‘शनि वक्रेषु जनेषु पीड़ा’ शांत हो जाएगी। किंतु प्राकृतिक प्रकोप से हुई तबाही के बाद जापान का पुनर्निर्माण व विकास की प्रक्रिया तो 15 नवंबर 2011 के पश्चात प्रारंभ होगी।
क्योंकि तुला राशि का शनि जापान के राज्य व कर्म भाव में भ्रमण करेगा। इसके साथ ही 13 जून तक जापान के नागरिक महामारी और भुखमरी से निजात पाएंगे। तुला के शनि में होगी लोकतंत्र की जीत: लीबिया की तानाशाही और लोकतंत्र समर्थकों के बीच चल रहे गृहयुद्ध ने 20 मार्च, होली पड़वा से नया रूप ले लिया है।
इस दिन से अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस की एलाइड आर्मी ने कर्नल गद्दाफी के सैन्य ठिकानों पर बमबारी शुरू कर दी है। इस युद्ध का कारण भी शनि मंगल का षडाष्टक योग ही है। 13 जून तक तो लीबिया की जनता युद्ध की विभीषिका में धधकती रहेगी और लीबिया सहित मध्य-पूर्व के देशों में लोकतंत्र की बहाली तो 15 नवंबर के बाद उच्च राशि के शनि में ही हो पाएगी।
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