काल सर्प योग की अशुभता को बढ़ा देता है ग्रहण योग
काल सर्प योग की अशुभता को बढ़ा देता है ग्रहण योग

काल सर्प योग की अशुभता को बढ़ा देता है ग्रहण योग  

सुनील जोशी जुन्नकर
व्यूस : 10230 | मई 2011

काल सर्प योग की अशुभता को बढ़ा देता है ग्रहण योग पं. सुनील जोशी जुन्नरकर शास्त्रों के अनुसार ग्रहण नामक ज्योतिषीय योग अनेक प्रकार से बनता है। इस योग का विस्तृत फल भी प्राप्त होता है क्योंकि यह योग कालसर्प योग की अशुभता को बढ़ा देता है। परंतु किस हद तक, इसका पूर्ण विवेचन जानने के लिए पढ़िए यह लेख। सूर्य सिद्धांत के अनुसार सूर्य से 6 राशि के अंतर अर्थात 1800 अंश की दूरी पर पृथ्वी की छाया रहती है। पृथ्वी की छाया को भूच्छाया, पात या छाया ग्रह राहु, केतु भी कहते हैं। पूर्णिमा की रात्रि के अंत में जब चंद्रमा भूच्छाया में प्रवेश कर जाता है तो चंद्रमा का लोप हो जाता है। इस खगोलीय घटना को खग्रास (पूर्ण) चंद्र ग्रहण कहते हैं। चंद्र ग्रहण के समय पृथ्वी, सूर्य व चंद्रमा के मध्य में आ जाती है, इस कारण पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है जिससे चंद्रमा आच्छादित हो जाता है।

जब भूछाया से चंद्रमा का कुछ हिस्सा ही आच्छादित होता है तो इसे खंडग्रास चंद्र ग्रहण रहते हैं। पूर्णिमा तिथि के अंत में सूर्य व पात का अंतर 90 के भीतर रहने पर चंद्र ग्रहण अवश्य होता है। तथा 90 से 130 अंशों के बीच अंतर रहने पर भी कभी चंद्र ग्रहण होने की संभावना रहती है। दिनांक 15 जून 2011 को सूर्य व पात बिंदु (केतु) वृषभ राशि में 290 अंशों पर अर्थात् एक समान राशि अंशों पर रहेंगे तथा राहु 290 अंश व चंद्रमा 190 अंश पर वृश्चिक राशि में रहेंगे। अर्थात चंद्रग्रहण के समय राहु-चंद्र के मध्य सिर्फ 100 अंश का अंतर रहेगा। सूर्य ग्रहण : अमावस्या के दिन जब सूर्य की राहु या केतु से युति हो तथा सूर्य से राहु या केतु का अंतर 150 अंश से कम हो तो अवश्य ही सूर्य ग्रहण होता है। और 180 अंशों के अंतर पर कभी-कभी सूर्य ग्रहण संभावित रहता है।

इससे अधिक अंतर पर ग्रहण नहीं होता है। सूर्य ग्रहण के समय सूर्य बिंब के आच्छादित होने का तात्पर्य यह लगाया जाता है कि राहु/केतु ने सूर्य को ग्रस लिया है। पृथ्वी के जिस हिस्से में सूर्य ग्रहण दिखाई देता है, उस हिस्से पर राहु-केतु का अधिक कुप्रभाव पड़ता है। ग्रहण का शुभाशुभ प्रभाव : महर्षि वशिष्ठ के अनुसार जिनकी जन्मराशि में ग्रहण हो, उन्हें धन आदि की हानि होती है। जिनके जन्मनक्षत्र पर सूर्य या चंद्र ग्रहण हो, उन्हें विशेष रूप से भयप्रद रोग व शोक देने वाला होता है। महर्षि गर्ग के अनुसार अपनी जन्मराशि से 3, 4, 8, 11 वें स्थान में ग्रहण पड़े तो शुभ और 5, 7, 9, 12 वें स्थान में पड़े तो मध्यमफल तथा 1, 2, 6, 10 व स्थान में ग्रहण अनिष्टप्रद होता है।'' इस प्रकार जन्म राशि में ग्रहण का होना सर्वाधिक अनिष्टप्रद होता है। जन्मकुंडली में ग्रहण योग :

1. जिस जातक की जन्मकुंडली में चंद्रमा की राहु या केतु से युति हो उस जातक की कुंडली में ग्रहण योग होता है।

2. सूर्य, चंद्र और राहु या केतु यह तीन ग्रह यदि एक ही राशि में स्थित हों तो भी ग्रहण योग होता है। यह योग पहले वाले योग से अधिक अशुभ है क्योंकि इसमें चंद्र व सूर्य दोनों ही दूषित हो जाते हैं।

3. ग्रहणकाल में अथवा ग्रहण के सूतक काल में जन्म लेने वाले जातकों के जन्मस्थ सूर्य व चंद्रमा को राहु-केतु हमेशा के लिए दूषित कर देते हैं।

4. राहु-केतु की भांति सूर्य या चंद्रमा से शनि की युति को भी बहुत से आचार्य ग्रहण योग मानते हैं।

प्रभावी ग्रहण योग :

1. तुला राशि को छोड़कर अन्य किसी भी राशि में यदि युवावस्था (100 से 220 अंश) का सूर्य हो तथा उसकी राहु या केतु से युति हो तो ऐसा ग्रहण योग प्रभावहीन होता है क्योंकि प्रचंड किरणों वाले सूर्य के सम्मुख छाया ग्रह (राहु-केतु) टिक ही नहीं सकते तो फिर ग्रहण क्या लगाएंगे? कृष्ण पक्ष की चतुर्दर्शी, अमावस्या और शुक्ल प्रतिपदा को ही राहु-केतु प्रभावी रहते हैं।

2. कर्क या वृषभ राशि में शुक्लपक्ष का बलवान चंद्रमा हो तथा ग्रहणकाल का जन्म न हो तो चंद्र+राहु या केतु की युति से बनने वाला ग्रहण योग अप्रभावी रहता है अर्थात अनिष्ट प्रभाव नहीं देता है।

ग्रहण योग का फल :

1. जिस व्यक्ति की जन्मकुंडली में ग्रहण योग होता है, वह व्यक्ति अपने जीवन में अनेक बाधाओं व कष्टों से दुखी रहता है। उसे शारीरिक, मानसिक या आर्थिक परेशानी बनी रहती है।

2. जिस भाव में ग्रहण योग होता है, उस भाव का शुभफल क्षीण हो जाता है। तथा ग्रहणशील सूर्य, चंद्र जिस भाव के स्वामी होते हैं, उस भाव से संबंधित वस्तुओं की हानि होती है।

3. यदि चंद्रमा राहु की युति हो तो जातक बहुत सी स्त्रियों के सेवन का इच्छुक रहता है। वृद्धा स्त्री और वैश्य से भी संभोग करने में नहीं हिचकिचाता है। ऐसा व्यक्ति चरित्रहीन, दुष्ट स्वभाव का, पुरुषार्थहीन, धनहीन व पराजित होता है।

यदि चंद्र-केतु की युति हो तो जातक आचार-विचार से हीन, कुटिल, चालाक, प्रतापी, बहादुर, माता से शत्रुता रखने वाला व रोगी होता है। ऐसा जातक चमड़ा या धातु से संबंधित कार्य करता है।

5. जिनकी जन्म कुंडली में सूर्य, चंद्र, राहु एक ही राशि में बैठे हों वह पराधीन रहने वाला, काम-वासना से युक्त, धनहीन व मूर्ख होता हैं

6. सूर्य, चंद्र, केतु की युति हो तो वह पुरुष निम्न दर्जे का इंजीनियर या मैकेनिक होता है, लज्जाहीन, पाप कर्मों में रत, दयाहीन, बहादुर व कार्यकुशल होता है। ग्रहण योग व कालसर्प दोष का अशुभ फल राहु या केतु की दशा या अंतर्दशा में प्राप्त होता है अथवा राहु-केतु से संबंधित ग्रह की दशा या अंतर्दशा में प्राप्त होता है अथवा गोचरीय राहु-केतु जिस समय जन्मस्थ राहु-केतु की राशि में संचार करते हैं, उस समय कालसर्प व ग्रहण योग का फल प्राप्त होता है। इन अशुभ योगों की शांति में महामृत्युंजय मंत्र का जाप एवं श्री रुद्राभिषेक कारगर है।

ग्रहणयोग कालसर्प दोष को भयानक बनाता है :

1. यदि जन्मकुंडली में कालसर्प दोष है तथा राहु-केतु की अधिष्ठित राशियों में सूर्य चंद्र भी बैठे हों तो इस ग्रहण योग की स्थिति में कालसर्प दोष और भी भयानक अर्थात् अनिष्टप्रद हो जाता है।

2. कालसर्प दोष तभी मान्य होगा जब कुंडली में ग्रहण योग हो। एक ही राशि में चंद्रमा और राहु या केतु 130 अंश से कम अंतर पर बैठे हों। अथवा सूर्य की राहु या केतु से युति 18' अंश से भी कम अंतर पर हो।

3. कालसर्प दोष में यह आवश्यक है कि उस कुंडली में ग्रहणयोग भी हो। कालसर्प योग में राहु-केतु अपने साथ स्थित ग्रहों को एवं उनकी वक्र गति में आने वाले (राहु-केतु से 12 वें स्थान में स्थित) ग्रहों को दूषित कर देते हैं। यह कालसर्प योग/दोष की सीमा है।

4. यदि किसी जन्मकुंडली में आंशिक कालसर्प योग हो किंतु पूर्ण ग्रहण योग हो तो राजयोग प्रदायक सूर्य या चंद्र के दूषित होने के कारण कालसर्प योग अशुभ फल देता है।

5. यदि राहु-केतु केंद्र स्थान में हो तथा ग्रहण योग हो और कालसर्प भी हो तो कालसर्प दोष सर्वाधिक अशुभ हो जाता है क्योंकि केंद्रीय भावों में सभी पापग्रहों के होने से प्राचीन सर्पयोग होता है। सर्पयोग में उत्पन्न जातक दुखी, दरिद्री, परस्त्रीगामी, कामी, क्रोधी व अदूरदर्शी होता है।

1. वीणा योग में कालसर्प व ग्रहण योग की शुभता : जन्मकुंडली के किन्हीं सात भावों में सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि हो तो 'वीणा' नामक संखया योग होता है। राहु-केतु कहीं भी बैठे हों, इससे वीणा योग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है क्योंकि यवनाचार्यों, महर्षि पाराशर, आचार्य वराहमिहिर आदि ने वीणायोग में राहु-केतु की गणना नहीं की है। वीणायोग एक शुभ योग है, यदि इस योग में कालसर्प दोष या ग्रहणयोग हो तो भी वीणायोग की शुभता समाप्त नहीं होगी, क्योंकि वीणा योग कालसर्प व ग्रहण योग का दोष समाप्त कर देगा। वीणायोग में उत्पन्न जातक अनेक मित्रों व नौकर वाला, गीत, संगीत, नृत्य आदि ललित कलाओं में प्रवीण या शौकीन होता है। प्रसन्न चित्त, सुखी, धनवान व प्रखयात होता है।

2. अर्द्धचंद्र योग में कालसर्प व ग्रहण की शुभता : केंद्र स्थान के अतिरिक्त अन्य किसी स्थान से प्रारंभ होकर सात ग्रह लगातार सात भावों में स्थित हो अर्थात् एक भाव में एक ग्रह हो तो 'अर्द्धचंद्र' नामक आकृति योग बनता है। अर्द्धचंद्र योग में राहु-केतु शामिल नहीं है। अर्द्धचंद्र योग में राहु-केतु कहीं भी बैठे हों, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। अर्द्धचंद्र योग में यदि कालसर्प दोष या ग्रहण योग भी मौजूद हो तो इससे अर्द्धचंद्र योग की शुभता समाप्त नहीं होती है। बल्कि वह ग्रहण और कालसर्प के दोष को समाप्त कर देता है। अर्द्धचंद्र योग में उत्पन्न होने वाला व्यक्ति सुंदर, बलवान, आकर्षक व्यक्तित्व का धनी, संपन्न, सुखी, सुहृदय व राजप्रिय होता है।

3. जन्मकुंडली में कालसर्प के अतिरिक्त यदि कोई राजयोग हो तो कालसर्प योग भी शुभ फल ही प्रदान करता हैं शिव आराधना से कालसर्प व ग्रहण योग की शांति : ग्रहण योग व कालसर्प दोष का अशुभ फल राहु या केतु की दशा या अंतर्दशा में प्राप्त होता है अथवा राहु-केतु से संबंधित ग्रह की दशा या अंतर्दशा में प्राप्त होता है अथवा गोचरीय राहु-केतु जिस समय जन्मस्थ राहु-केतु की राशि में संचार करते हैं, उस समय कालसर्प व ग्रहण योग का फल प्राप्त होता है। इन अशुभ योगों की शांति में महामृत्युंजय मंत्र का जाप एवं श्री रुद्राभिषेक कारगर है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.