गणेश कृपा पाएं नव वर्ष में रश्मि चौधरी हिंदू धर्मानुसार कोई भी कार्य प्रारंभ करने से पूर्व भगवान गणेश जी की आराधना करने का प्रचलन है। गणेशोपासना का माहात्म्य सार्वभौमिक व सार्वलौकिक है। श्री गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी 'श्रीरामचरित मानस' जैसे महान एवं पवित्र ग्रंथ की रचना करने से पूर्व गणेश जी की आराधना की थी। आप भी नये वर्ष में गणेशोपासना के द्वारा गणेश जी की कृपा प्राप्त कर लें जिससे आपके सभी कार्य निर्विघ्न एवं सफलता पूर्वक संपन्न होते रहें। गणेश-पूजा का महत्व : कामना भेद से अलग-अलग वस्तुओं से गणपति की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। स्वयं मूर्ति न बना सकें तो बाजार में उपलब्ध मूर्ति के सामने बैठकर भी पूजा कर सकते हैं। गणेश गायत्री ऊँ महाकर्णाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्॥ अन्य मंत्र : प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रम विनायकम्। भक्तावासं स्मरेज्जित्यं सर्व कामार्थ सिद्धये॥ गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बूंफल चारु भक्षणम्, उमासुतं शोक विनाश-कारकम्, नमामि विघ्नेश्वरपाद पंकजम॥ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः।
निविघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा॥ ऊँ गं गणपतये नमः मंत्र का जप करने से भी कार्यों में अभीष्ट सिद्धि प्राप्त होती है। चतुर्थी तिथि का महत्व : वैसे तो गणेश जी की पूजा के लिए किसी विशेष तिथि की आवश्यकता नहीं है फिर भी गणेश पूजा में चतुर्थी तिथि का अलग ही महत्व है। उसमें भी विशेषकर शुक्ल-पक्ष की चतुर्थी तिथि को उपवास कर जो भगवान गणेश का पूजन करता है, उसके सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं और सभी अनिष्ट दूर हो जाते हैं। शिवा, शान्ता तथा सुखा-तीन प्रकार की चतुर्थी का फल और उनका व्रत विधान- ''भविष्य पुराण'' में 'सुमन्त' मुनि ने तीन प्रकार की चतुर्थी का वर्णन किया है- शिवा, शान्ता और सुखा। इनका विस्तृत वर्णन इस प्रकार है- भाद्रपद मास की शुक्ला चतुर्थी का नाम 'शिवा' है। इस दिन जो स्नान, दान, उपवास, जप आदि सत्कर्म किया जाता है, वह गणपति के प्रसाद से सौ गुना हो जाता है।
इस चतुर्थी को गुड़, लवण और घृत का दान करना चाहिए। यह शुभ माना गया है। गुड़ के माल पूआ से ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए तथा उनकी पूजा करनी चाहिए। इस दिन जो स्त्री अपने सास-ससुर को गुड़ के पूए तथा नमकीन पूए खिलाती है वह गणपति के अनुग्रह से सौभाग्यवती होती है। पति की कामना करने वाली कन्या विशेष से इस चतुर्थी का व्रत करके गणेश जी का पूजन करें तो उसे मनोवांछित वर की प्राप्ति होती है। यह शिवा चतुर्थी का विधान है। शांता चतुर्थी : माघ मास की शुक्ला चतुर्थी को 'शान्ता' कहते हैं। यह शान्ता तिथि नित्य शक्ति प्रदान करने के कारण 'शान्ता' कही गई है। इस दिन किये गए स्नान दानादि सत्कर्म गणेश जी की कृपा से हजार गुना फलदायक हो जाते हैं। इस 'शान्ता' नामक चतुर्थी तिथि को गणेश जी का पूजन हवन करें तथा लवण, गुड़, शाक एवं गुड़ के पूए ब्राह्मण को दान दें। यदि उपवास कर सकें तो पूजन और भी फलप्रद रहता है। विशेषरूप से सौभाग्यवती विवाहित स्त्रियां अपने ससुर आदि पूज्यजनों का पूजन करें एवं उन्हें भोजन कराएं। इस व्रत के करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। समस्त विघ्न दूर होते हैं एवं गणेश जी की कृपा प्राप्त होती है। किसी भी महीने के भौमवार युक्त शुक्ला चतुर्थी को 'सुखा' कहते हैं। यह व्रत स्त्रियों को सौभाग्य, उत्तम रूप और सुख देने वाला है। भगवान शंकर एंव माता पार्वती के संयुक्त तेज से भूमि द्वारा रक्तवर्ण के मंगल की उत्पत्ति हुई।
भूमि का पुत्र होने से वह 'भौम' कहलाया और कुज, रक्त, वीर, अंगारक आदि नामों से प्रसिद्ध हुआ। वह शरीर के अंगों की रक्षा करने वाला तथा सौभाग्य आदि देने वाला है, इसीलिए अंगारक कहलाया। जो पुरुष अथवा स्त्री भौमवारयुक्त शुक्ला चतुर्थी को उपवास करके भक्ति पूर्वक प्रथम गणेश जी का, तदंतर रक्त चंदन, रक्त पुष्प आदि से भौम का पूजन करते हैं, उन्हें सौभाग्य और उत्तम रूप सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। पूजन विधि : शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन सर्वप्रथम गंगाजल से मिश्रित जल से स्नान कर गणेश जी का स्मरण करें। तत्पश्चात् निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए दूर्वा का स्पर्श करें। दूर्वा स्पर्श करने का मंत्र : त्वं दूर्वे अमृतनामासि सर्वदेवैस्तु वंदिता। वंदिता दह तत्सर्वं दुरितं यंन्मयाकृतं तत्पश्चात् गौ माता को स्पर्श करके गौमाता के अशीर्वाद लें एवं निम्न मंत्र का उच्चारण करें- सर्वदेवमयी देवि मुनिभिस्तु सुपूजिता। तस्मात् स्पृशामि वन्दे त्वां वंदिता पापहा भव॥
श्रद्धापूर्वक पहले गौ की प्रदक्षिणा करें फिर उपर्युक्त मंत्र को पढ़कर गौ का स्पर्श करें। गौ की प्रदाक्षिणा करने से संपूर्ण पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने का फल प्राप्त होता है। इस प्रकार गौ का स्पर्श करने के उपरांत हाथ पैर धोकर आसन पर बैठकर आचमन करें। तत्पश्चात् तांबे की थाली में लाल वस्त्र तथा लाल पुष्प बिछाकर गणेश भगवान की चित्र या मूर्ति स्थापित करें। गणेश जी को सर्वोषिधि एवं सुगंधित दृव्य पदार्थों से उपलिप्त करें तथा विघ्नेश के सामने बैठकर ब्राह्मणों से स्वातिवाचन करवाएं या (स्वयं ही करें) तदंतर शिव-परिवार (भगवान शंकर, पार्वती, कार्तिकेय एवं गणेश) की पूजा करके सभी पितरों तथा ग्रहों की पूजा करें। तत्पश्चात् खैर की समिधाओं से अग्नि प्रज्वलित कर घृत, दुग्ध, यव, तिल तथा विभिन्न भक्ष्य पदार्थों से मंत्र पढ़ते हुए हवन करें। आहुति इन मंत्रों से दें। ऊँ शर्वाय स्वाहा, ऊँ शर्वपुत्राय स्वाहा, ऊँ क्षीण्युत्संर्गं भवाय स्वाहा, ऊँ कुजाय स्वाहा, ऊँ ललितागंय स्वाहा, ऊँ लोहितांगय स्वाहा।
इन प्रत्येक मंत्रों से 1, 11, 21 या 108 बार आहुति दें। हवन के पश्चात् हाथ में पुष्प, दूर्वा तथा शर्षप (सरसों) लेकर गणेश जी की माता पार्वती को तीन बार पुष्पांजलि प्रदान करनी चाहिए। मंत्र उच्चारण करते हुए इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए। रूपं देहि यशो देहि भगं भगवति देहि मे। पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान् कामाक्षं देहि मे। अचलां बुद्धि में देहि धरायां खयातिमेवच॥ प्रार्थना के पश्चात् ब्राह्मणों तथा गुरु को भोजन कराकर उन्हें वस्त्र तथा दक्षिणा समर्पित करें। इस प्रकार भगवान गणेश तथा ग्रहों की पूजा करने से सभी कर्मों का फल प्राप्त होता है और श्रेष्ठ लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।