फेंगशुई के उपाय
फेंगशुई के उपाय

फेंगशुई के उपाय  

जयप्रकाश शर्मा (लाल धागे वाले)
व्यूस : 9046 | जनवरी 2011

फेंगशुई के उपाय पं. जयप्रकाद्गा शर्मा (लाल धागे वाले) फेंग शुई चीन की वास्तुकला है, जिसका शाब्दिक अर्थ है हवा और पानी। हवा और पानी का सही संतुलन ही फेंग शुई है। हवा से सुख की अनुभूति होती है और पानी से तृप्ति।

जिस प्रकार भारतीय वास्तु शास्त्र में प्रकृति के पांच तत्वों-अग्नि, पृथ्वी, वायु, जल और आकाश को महत्व दिया गया है, उसी प्रकार फेंग शुई में पांच तत्वों-अग्नि, पृथ्वी, धातु, जल और लकड़ी को महत्व दिया गया है। लेकिन दोनों में मूलभूत अंतर यह है कि फेंगशुई में भारतीय वास्तु शास्त्र के वायु और आकाश की जगह लकड़ी और धातु को लिया गया है। फेंग शुई का जो शाब्दिक अर्थ है- हवा और पानी, इनमें से हवा का तो कहीं जिक्र ही नहीं है। भारतीय वास्तुशास्त्र में हवा (वायु) को बहुत महत्व देते हैं।

यहां पर हम फेंग शुई का संक्षिप्त परिचय देते हुए, फेंग शुई के उन्हीं उपायों का जिक्र करेंगे, जिन्हें भारतीय परिवेश में अपनाया जा सकता है। चीनी वास्तु शास्त्र के अनुसार फेंग शुई के पांच तत्वों को एक-दूसरे से दो तरीके से संबंध किया गया है। पहला है उत्पादक चक्र व दूसरा है विनाशक चक्र।

फेंग शुई के महत्वपूर्ण उपकरण : बागुआ : फेंग शुई के अनुसार प्रत्येक वस्तु एक प्रकार की ऊर्जा उत्पन्न करती है, वह ऊर्जा नकारात्मक भी हो सकती है और सकारात्मक भी। यिन अर्थात नकारात्मक ऊर्जा और यांग अर्थात सकारात्मक ऊर्जा। यिन और यांग एक दूसरे के पूरक हैं जैसे रात और दिन, स्त्री और पुरुष, मृत्यु और जीवन। काला रंग यिन का प्रतीक है और सफेद रंग यांग का। ये दोनों चिह्न बागुआ के मध्य में होते हैं और आठों दिशाओं में आठ डाईग्राम होते हैं।

फेंग शुई के अनुसार प्रत्येक वस्तु एक प्रकार की ऊर्जा उत्पन्न करती है, वह ऊर्जा नकारात्मक भी हो सकती है और सकारात्मक भी। यिन अर्थात नकारात्मक ऊर्जा और यांग अर्थात सकारात्मक ऊर्जा। यिन और यांग एक दूसरे के पूरक हैं जैसे रात और दिन, स्त्री और पुरुष, मृत्यु और जीवन। काला रंग यिन का प्रतीक है और सफेद रंग यांग का। ये दोनों चिह्न बागुआ के मध्य में होते हैं और आठों दिशाओं में आठ डाईग्राम होते हैं। यह बागुआ की तरह का होता है लेकिन इसके बीच में यिन-यांग के स्थान पर उभरा हुआ शीशा लगा होता है।

मुखय द्वार के सामने किसी भी प्रकार का द्वार वेध या अशुभ स्थान होने पर इसे द्वार से ऊपर बाहर लगाया जाता है। यह द्वार के सामने पेड़, खंभा, टूटा-फूटा मकान, कूड़ा घर व मंदिर आदि होने पर लगाया जाता है जिससे नकारात्मक ऊर्जा अंदर नहीं आती। क्रिस्टल बॉल : क्रिस्टल ऊर्जा वर्धक होते हैं। यह सकारात्मक किरणों के प्रभाव को बढ़ा देते हैं। यदि इसे पूर्व दिशा में इस प्रकार लगाया जाए कि प्रातः सूर्य की किरणें इस पर पड़ें तो यह सारे घर को जगमगा देता है। पूर्व दिशा में लगाने से स्वास्थ्य लाभ होता है। उत्तर-पश्चिम दिशा में लगाने से परिवार में आपस का प्रेम बढ़ता है और आपके मित्रों व सहायकों की संखया में वृद्धि करता है।

पश्चिम में लगाने से संतान सुख व दक्षिण पश्चिम में लगाने से दाम्पत्य संबंधों में सुधार होता है। विंड चाइम : विंड चाइम अर्थात हवा से जिसमें झंकार हो, ऐसी पवन घंटी घर व व्यापार के वातावरण को मधुर बनाती है। वास्तु और फेंग शुई के पांच तत्वों को दर्शाने वाली पांच रॉड की विंड चाइम शुभ मानी जाती है। ब्रह्म स्थान पर लगाने से स्वास्थ्य लाभ व उत्तर पश्चिम में लगाने से जीवन में नये सुअवसर प्राप्त होते हैं। इसकी आवाज मधुर व दिलकश होनी चाहिए। इसे मुखय द्वार के पास भी लगाया जा सकता है, जिससे द्वार आने वाली हवा से इसमें झंकार हा लाफिंग बुद्धा : हंसते हुए बुद्धा की मूर्ति धन दौलत के देवताओं में से एक मानी जाती है। इससे घर में संपन्नता, सफलता और समृद्धि आती है।

इसे घर में या व्यापारिक स्थल में इस प्रकार लगाना चाहिए, जिससे यह लगे कि यह धन लेकर घर के अंदर की तरफ आ रहे हैं। यह मूर्ति शयन कक्ष तथा भोजन कक्ष में नहीं रखनी चाहिए। ड्रॉइंगरुम में रख सकते हैं। पीठ पर धन की पोटली लेकर अंदर आते हुए लाफिंग बुद्धा सबसे उत्तम माने गये हैं।

तीन टांग का मेंढक : मुंह में सिक्का लिए तीन टांग का मेंढक भी इस प्रकार ही लगाना चाहिए जिससे यह लगे कि यह धन लेकर घर के अंदर आ रहा है। इसे रसोई या शौचालय में कभी नहीं रखना चाहिए। यदि व्यापारिक स्थल पर लगाना हो तो भी इस प्रकार लगाएं कि ग्राहक से धन लेकर आपके पास आ रहा है। इसे छिपा कर भी रख जा सकता है।

धातु का कुछआ : धातु का कछुआ दो प्रकार का होता है। एक तो कूर्म पृष्ठीय मेरु यंत्र है। इसको पूजा स्थान या घर के उत्तर दिशा में रखा जाता है। इसे एक प्लेट में पानी भरकर उसमें रख दिया जाता है। दूसरा कछुआ इस प्रकार का होता है कि उसकी पीठ पर ढक्कननुमा कटोरा बना होता है। इसमें चावल भरकर उत्तर दिशा में रखा जाता है इन दोनों ही प्रकार के कछुओं में यह ध्यान रखें कि इसका मुंह पूर्व की ओर हो अर्थात यह चलकर पूर्व दिशा की ओर जा रहा हो। यह आयु को बढ़ाने वाला व धन-समृद्धि को देने वाला है। इसे भगवान विष्णु का कच्छप अवतार माना गया है।

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