सन् 2010 मेष, कर्क, तुला और वृश्चिक के नाम
सन् 2010 मेष, कर्क, तुला और वृश्चिक के नाम

सन् 2010 मेष, कर्क, तुला और वृश्चिक के नाम  

सुनील जोशी जुन्नकर
व्यूस : 3262 | जनवरी 2010

नव वर्ष को लेकर लोगों की उत्सुकता और चिंता स्वाभाविक है। हर व्यक्ति जानना चाहता है कि नए वर्ष में उसका भविष्य कैसा होगा। यहां इसी बात को ध्यान में रखते हुए विभिन्न राशियों के वर्ष 2010 के भविष्य तथा विभिन्न ग्रहों के फल का ज्योतिषीय विश्लेषण प्रस्तुत है। यह वर्ष चंद्र ग्रहण के सूतक से प्रारंभ हो रहा है। 01 जनवरी 2010 के सूर्योदय से पूर्व पड़ने वाला यह चंद्र ग्रहण मिथुन राशि के जातक/जातकाओं के लिए अशुभ है।

दूसरी तरफ, 15 जनवरी को पड़ने वाला खंडग्रास सूर्यग्रहण मकर राशि के लोगों के स्वास्थ्य के प्रतिकूल होगा और उन्हें विवाद में फंसाएगा। ग्रहण का कुप्रभाव शासकों और अधिकारियों पर अधिक देखा गया है, इसलिए मिथुन, कर्क, वृश्चिक, मीन, तुला, मकर और कुंभ राशि के राजनीतिज्ञों और अधिकारीगण का जनवरी माह में विशेष सावधानी बरतना श्रेयस्कर होगा। मंथर गति का ग्रह शनि, राहु या गुरु नव वर्ष में वृष, सिंह, कन्या, धनु तथा मीन राशि के लोगों के लिए शुभ नहीं है। 

इन पांच राशियों के जातकों को कोई भी कदम सोच समझकर और सावधानीपूर्वक उठाना चाहिए। मेष राशि के लिए छठा शनि शत्रुओं पर विजय दिलाने वाला और गुरु का ग्यारहवें स्थान में गोचर लाभदायक सिद्ध होगा। मिथुन राशि के लिए नवमस्थ गुरु भाग्योदय कारक है। कर्क राशि के लिए षष्ठ भाव में राहु का भ्रमण सभी विघ्न बाधाओं को दूर करेगा। तुला राशि वालों को तृतीय स्थान का राहु पराक्रम और पांचवें में स्थित गुरु विद्या (शिक्षा), प्रेम और संतान का सुख प्रदान करेगा।


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नव वर्ष में वृश्चिक राशि के जातकों को एक मात्र शनि लाभ स्थान में बैठकर सफलता प्रदान करेगा। मकर राशि में द्वितीय भाव में गुरु का भ्रमण धनलाभ कराएगा। कुंभ राशि के जातकों को लाभ स्थान का राहु सन् 2010 में सुख और चहुंमुखी सफलता प्रदान करेगा। मेष, कर्क, तुला और वृश्चिक राशि के लोगों के लिए यह वर्ष खुशियों का पैगाम लेकर आएगा, सफलता उनके कदम चूमेगी। ग्रहों के अशुभ प्रभाव से मुक्ति हेतु क्या करें? सन् 2010 में जन्मस्थ राशि से अशुभ फलदायक स्थानों में विभिन्न ग्रहों की शांति हेतु उनके मंत्रों का जप, उनके देवताओं की पूजा और अनिष्ट गोचरीय ग्रहों से संबंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए।

शनि पूरे वर्ष कन्या राशि में और राहु धनु में गोचर करेगा। गुरु 2 मई 2010 तक कुंभ राशि में गोचर करेगा। शनि, राहु तथा गुरु की इस नैसर्गिक गोचरीय गति के आधार पर विभिन्न राशियों के जातकों के लिए पूजनीय ग्रहों का विवरण नीचे की तालिका में प्रस्तुत है। गुरु 2 मई, 2010 से 23 जुलाई 2010 तक मीन राशि में रहेगा। इस कालावधि में वह मेष, सिंह तथा तुला राशि के लोगों के लिए अनिष्टप्रद रहेगा।

अतः इस दौरान मेष, सिंह और तुला राशि वालों को गुरु की शांति के उपाय करने चाहिए। किंतु मीन राशि का गुरु मई, जून और जुलाई में कर्क, वृश्चिक तथा कुंभ राशि के जातकों के लिए शुभ फलदायक होगा। वे इस स्वर्णिम अवसर का भरपूर लाभ उठा सकते हैं। सन 2010 मेष, कर्क और तुला राशि के लोगों के लिए शुभ है। इस वर्ष मेष को विजय और धन, कर्क को सम्मान और ऐश्वर्य तथा तुला को धन और सुख की प्राप्ति होगी।

वृश्चिक को लाभ और हानि समान रूप से प्राप्त होगी। यह वर्ष अच्छी वर्षा, अच्छी फसल और सुख का संदेश लेकर आया है। नव संवत्सर विक्रम संवत् 2067 का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तदनुसार दिनांक 15 मार्च 2010 की उत्तर रात्रि को 26ः33 बजे से हो रहा है। इस समय सोमवार होने के कारण वर्ष का राजा चंद्र है। किंतु गुड़ी पड़वा और नव रात्रि घट स्थापना हेतु 16 मार्च, मंगलवार की चैत्र शुक्ल प्रतिपदा सूर्योदय कालीन होने के कारण ग्राह्य है।


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चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को जिस ग्रह का वार हो, वही ग्रह वर्ष का राजा होता है। वह ग्रह आकाशीय मंत्रिपरिषद में अधिनायक की हैसियत रखता है तथा वर्ष में सभी प्रकार के शुभाशुभ मेदिनीय भविष्य को प्रभावित करता है। यदि क्रूर ग्रह राजा हो तो ठगी, बेईमानी, कर वृद्धि, दुर्घटनाएं आदि अधिक होती हैं। इसके विपरीत शुभ ग्रह के राजा होने पर शुभ फलों की अधिकता होती है।

वर्ष के राजा चंद्र का फल सोए नृपे शोभन मंगलानि प्रभूतवारि प्रचुरंच धान्यम्। प्रशाम्यति व्याधि तरोनराणां सुखं प्रजाना मुदयो नृपाणाम्।। अर्थात चंद्र के राजा होने के कारण यह वर्ष अति शुभ है। गेहूं, चावल आदि की पर्याप्त उपज होगी। जनता और शासक प्रसन्न रहेंगे। महिलाओं के विकास संबंधी कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन होगा। श्री शोभन नामक संवत्सर का फल बृहस्पति के गोचरीय राशिमान से यह संवत् शोभन नामक संवत्सर है।

मेदिनीय ग्रंथो में लिखा है- शोभने वत्सरे धात्री प्रजानां रोग शेकहा। तथापि सुखिनो लोका बहुसस्यार्धवृष्टयः ।ं अर्थात इस शोभन संवत्सर में जनता में रोग-शोक की वृद्धि होगी, फिर भी अच्छी वर्षा होने के कारण जनता सुखी रहेगी तथा संपूर्ण देश में सरकार द्वारा जनता की भलाई के सार्थक प्रयास किए जाएंगे। अधिनायक मंगल का फल अग्नि, चोरांे व रोगों से जनता भयभीत और पीड़ित होगी। सत्ता में विरोध के स्वर मुखर होंगे।

मंत्री बुध का फल: फसलों की पैदावार अच्छी होगी। जौ, धान, मसूर और चने के ऊंचे दाम मिलने से किसानों और व्यापारियों को लाभ होगा। पूर्व अन्नाधिपति शुक्र का फल: फसलें रोगमुक्त होंगी। गेहूं, चावल, गन्ना, धन की पैदावार अच्छी होगी और पुष्प जमकर खिलेंगे। इस वर्ष अन्न स्तंभ 54 प्रतिशत है। अतः अन्न का उत्पादन सामान्य से कुछ अधिक होगा।


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धान्येष गुरु का फल: वर्षा अच्छी होगी जिससे जनजीवन सुखमय होगा। ब्राह्ममण समाज की धर्म-कर्म में रुचि बढ़ेगी। मेघेश मंगल का फल: देश में वर्षा कहीं अधिक और कहीं कम होगी। कहीं अनावृष्टि के कारण सूखे की स्थिति उत्पनन होगी। रसेश सूर्य का फल: तिल और अरंड की पैदावार अच्छी होगी, किंतु दूध, घी आदि के उत्पादन में कमी आएगी।

नीरसेश सूर्य का फल: कपूर, अगर, मोती और कपड़े महंगे नहीें होंगे। लोगों का भोग विलास के प्रति आकर्षण बढ़ेगा। फलेश चंद्र का फल: फल-फूल की पैदावार अच्छी होगी। ब्राह्मणों को उत्तम भोजन की प्राप्ति होगी। नेतागण के लिए यात्रा का योग बनेगा। धनेश गुरु का फल: इस वर्ष का धान्येश गुरु है। फलतः व्यापारी वर्ग को अत्यधिक लाभ होगा। दुर्गेश चंद्र का फल: देश के प्रधानमंत्री सुख शांति से रहेंगे, उनका शासन सुचारु रूप से चलेगा।

किंतु किसी राज्य में जाति, वर्ग, धर्म, क्षेत्र को लेकर या दलगत विरोध के कारण विद्रोह का वातावरण बनेगा। वर्ष लग्न प्रवेश फल: वर्ष प्रवेश के समय धनु लग्न होने के कारण उत्तर-पूर्व के राज्यों का जनजीवन सुखमय रहेगा। किंतु लग्नेश की तृतीय भाव में तथा राहु की लग्न में स्थिति वर्ष कुंडली को अशुभता प्रदान कर रही है। मध्य प्रदेश में प्रबल वर्षा से रोग उत्पन्न होंगे। पश्चिम में घृत व धान्यादि सस्ते होंगे। दक्षिण भारत में लोगों का जीवन सुखमय रहेगा, किंतु पशु रोगग्रस्त होंगे। उत्तराखंड, आसाम, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, आंध्रपदेश, केरल तथा तमिलनाडु में लोक कल्याण के कार्य होंगे।

राजस्थान पंजाब में भी जनता सुखी रहेगी। किंतु मध्यप्रदेश, झारखंड, बिहार, उ. प्र. आंध्रप्रदेश व उड़ीसा में आंधी-तूफान व महामारी प्राकृतिक आपदाओं से जनता पीड़ित होगी। गुजरात, महाराष्ट्र व कश्मीर में आंतरिक कलह के कारण अशांति का वातावरण उत्पन्न होगा।



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