नकसीर नाक का रक्तस्राव
नकसीर नाक का रक्तस्राव

नकसीर नाक का रक्तस्राव  

अविनाश सिंह
व्यूस : 15922 | जनवरी 2011

नकसीर : नाक का रक्तस्राव जब नाक से खून बहने लगता है, तो इसी अवस्था को नकसीर कहते हैं। नकसीर विशेष कर गर्मियों के मौसम में होती है। गर्मियों के दिनों में गर्मी के कारण धमनियों पर अधिक दबाव पड़ने से नाक से खून बहने लगता है। कई बार बहने वाले रक्त की मात्रा से आम आदमी घबरा जाता है और सोचता है कि ऐसे में क्या करें? नकसीर फूटने के कई कारण हैं, जिनमें प्रमुख है बहुत से लोगों की नाक के भीतर अंगुली से कुरेदने की आदत। वे नाक में जमे स्राव को अंगुली घुमा कर निकालना चाहते हैं। ऐसे में नाखून से नाक की भीतरी कोमल परत पर चोट लग कर खून बहने लगता है।

उच्च रक्तचाप के रोगियों में भी नकसीर फूटने का भय होता है। नाक के भीतर संक्रमण हो जाने की दशा में ज्वर, नाक से पानी बहना और मुंह से बदबू आने के साथ-साथ खून भी निकल सकता है। नाक की त्वचा में किसी प्रकार की एलर्जी हो जाए, तो उसका स्राव सूख जाता है और वहां पपड़ी जम जाती है, जो अलग होते समय रक्तस्राव कर सकती है। नाक में किसी प्रकार का ट्यूमर, या गांठ भी रक्तस्राव कर सकते हैं। ऐसे में सांस लेने में तकलीफ, नाक से पानी आना और नाक दर्द जैसे लक्षण प्रायः रहते हैं। नाक में किसी तरह की चोट लग जाए, तो भी रक्तस्राव हो सकता है। समुद्री सतह से बहुत ऊंचाई वाले स्थान पर जाने से भी नकसीर फूट सकती है। ऐसा धमनियों पर अधिक दबाव पड़ने से होता है। रियूमैटिक फीवर, जिसमें बुखार के साथ-साथ जोड़ों में दर्द और शरीर पर लाल दाने उभर आते हैं, उसमें भी नाक से रक्तस्राव हो सकता है।

कुछ व्यक्तियों में रक्त कोशिका विकृत होने पर खून जमने की क्रिया देरी से होती है, या बिल्कुल नहीं होती। उन्हें भी कई बार, इस बीमारी से दो-चार होना पड़ सकता है। विटामिन की कमी, मासिक धर्म की अनियमितता, अत्यधिक शारीरिक श्रम, धूप में ज्यादा देर रहना जैसे काराण भी रक्तस्राव को जन्म दे सकते हैं।

उपचार : जबभी नकसीर फूटे, चाहे अल्प मात्रा में ही क्यों न हो, अवहेलना न करें और तुरंत उचित परामर्श लें। रक्तस्राव का कारण जान कर उसके अनुसार उपचार करें। यदि अचानक नकसीर फूटे, तो घबराएं नहीं। रोगी को शांत और ठंडे स्थान पर ले जा कर धीरज बंधाएं, ताकि उसका रक्तचाप और बढ़ कर रक्तस्राव न बन जाए। नाक को अंगूठे और तर्जनी से जोर से लगातार दबाए रखें। मरीज को मुंह से सांस लेने दें और गले तक खून रिस रहा हो, तो थूकने को कहें। रोगी की नाक और उसके माथे पर बर्फ के पानी की पटि्टयां दें और सीधा बैठाएं। इस पर भी खून बहना न रुके, तो एक रूई का गोला बना कर किसी भी क्रीम, या ग्लिसरीन में डुबो कर, नाक के भीतर अच्छी तरह ठूंस दें; या फिर अंगुली पर क्रीम, या वैसलीन लगा कर नथुनों में डाल नाक के बीच की हड्डी को जोर से दबा कर रखें। ऐसे पांच मिनट तक रखें। यदि खून बहना बंद हो जाता है, तो मरीज को लिटा दें और उसे ठंडा पेय पीने को दें। उसे मुंह से सांस लेने के लिए प्रेरित करें और ध्यान रखें कि वह नाक में अंगुली न डालने पाए, या नाक से बार-बार सांस ले। वह खंखारे भी नहीं, वरना रक्तस्राव पुनः शुरू हो सकता है। यदि उपर्युक्त सभी तरीके अपनाने के बाद भी रक्तस्राव बंद न हो, तो रोगी को तुरंत विशेषज्ञ के पास ले जाएं, क्योंकि ऐसी स्थिति में खून देने की जरूरत भी पड़ सकती है।


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घरेलू उपचार : माजूफल को पीस कर नाक में सुंघाने से नकसीर बंद हो जाती है। मुल्तानी मिट्टी को पानी में भिगो कर रखें और प्रातः पानी निथार कर छान लें। इस साफ पानी को पिलाने से दो-तीन दिन में ही वर्षों पुरानी नकसीर सदा के लिए ठीक हो जाती है। सुहागे को थोड़े से पानी में घोल कर दोनों नथुनों पर लेप करें। नकसीर तत्काल बंद हो जाएगी। अनार के रस की नसवीर देने से खून गिरना बंद हो जाता है। मीठे अंगूर का रस नाक से धीरे-धीरे खींचें। नकसीर ठीक हो जाएगी। अजवायन और नीम के पत्तों को बारीक पीस कर कनपटी पर लगावें। इससे नाक से खून आना बंद हो जाता है। ताजे नींबू का रस निकाल कर नाक में पिचकारी देने से नकसीर ठीक हो जाती है। बेर के पत्तों को बिना पानी के पीस कर सिर पर लगाने से नकसीर ठीक हो जाती है। सूखे आंवले को पानी में भिगो कर रख दें। प्रातः छान कर पानी पीएं। मेंहदी की ताजी पत्तियां पानी में पीस कर तलवों में लगाने से नकसीर बंद हो जाती है।

ज्योतिषीय दृष्टिकोण : ज्योतिषीय दृष्टि से काल पुरुष की कुंडली का तृतीय भाव नाक की आंतरिक प्रक्रिया का नेतृत्व करता है। नाक के आंतरिक रोगों का कारक बुध होता है। मंगल हृदय भाव और रक्त का कारक है। चंद्र रक्तचाप का कारक है। इसी लिए 'नकसीर' का संबंध तृतीय भाव, बुध, चंद्र और मंगल से हुआ। किसी भी जन्मकुंडली में लग्नेश, लग्न, तृतीयेश, तृतीय भाव, बुध, चंद्र और मंगल दुष्प्रभावों में रहें, तो नकसीर जैसा रोग होता है।

विभिन्न लग्नों में नकसीर रोग :

मेष लग्न : लग्नेश मंगल षष्ठ भाव में, षष्ठेश तृतीय भाव में चंद्र से युक्त, या दृष्ट हो और तृतीय भाव पर राह,ु या केतु की दृष्टि हो, तो जातक को नकसीर होती है।

वृष लग्न : लग्नेश त्रिक भावों में मंगल से युक्त, या दृष्ट हो, तृतीयेश चंद्र राहु, या केतु से दृष्ट हो, तृतीय भाव में गुरु अपने उच्च अंशों पर बुध से युक्त हो, तो नकसीर होती है।

मिथुन लग्न : लग्नेश और तृतीयेश षष्ठ, या अष्टम भावों में हों, मंगल तृतीय भाव में, या तृतीय भाव पर दृष्टि रखे, चंद्र तृतीय भाव में राहु से दृष्ट हो और गुरु-केतु दृष्ट, या युक्त हो कर लग्न पर दृष्टि रखें, तो नकसीर होती है।

कर्क लग्न : लग्नेश और तृतीयेश तृतीय भाव में युक्त हो कर मंगल से दृष्ट हों और मंगल राहु से दृष्ट हो, लग्न पर शनि की दृष्टि हो, तो नकसीर होती है।

सिंह लग्न : लग्नेश सूर्य षष्ठ भाव में हो और षष्ठेश शनि तृतीय भाव में हो तथा मंगल से दृष्ट, या युक्त हो, तृतीयेश बुध से युक्त हो कर राहु से दृष्ट हो, चंद्र लग्न, या चतुर्थ भाव में हो, तो नकसीर होती है।

कन्या लग्न : लग्नेश त्रिक भावों में हो, चंद्र तृतीय भाव में मंगल से युक्त, या दृष्ट हो, गुरु तृतीय भाव में हो, या तृतीयेश पर दृष्टि रखे और राहु, केतु तृतीय भाव पर, या लग्न पर दृष्टि रखे, तो नकसीर होती है।

तुला लग्न : लग्नेश अष्टम भाव में, मंगल तृतीय भाव में गुरु से युक्त, या दृष्ट हो, बुध षष्ठ में चंद्र से युक्त हो और राहु-केतु से दृष्ट हो, तो नकसीर होती है। वृश्चिक लग्न : लग्नेश और षष्ठेश मंगल-शनि से दृष्ट हो कर षष्ठ भाव में हों, तृतीय भाव में चंद्र और बुध राहु स े दष्ृ ट हां े तो नकसीर हाते ी ह।ै

धनु लग्न : शुक्र और बुध तृतीय भाव में, सूर्य द्वितीय भाव में राहु से युक्त, या दृष्ट हो, चंद्र तृतीयेश शनि से युक्त हो और लग्नेश त्रिक भावों में हो, तो नकसीर होती है।

मकर लग्न : गुरु तृतीय भाव में हो और लग्नेश त्रिक भावों में हो, तृतीय भाव पर मंगल की दृष्टि हो, चंद्र मंगल से युक्त हो, बुध सूर्य से अस्त हो, तो नकसीर होती है।

कुंभ लग्न : लग्नेश षष्ठ भाव में, या अष्टम भाव में हो, मंगल तृतीय भाव में बुध से युक्त हो और गुरु से दृष्ट हो, चंद्र राहु के दुष्प्रभाव में हो, तो नकसीर होती है। उपर्युक्त सभी योग चलित पर आधारित हैं। रोग की उत्पत्ति संबंधित ग्रह की दशांतर्दशा और गोचर के प्रतिकूल रहने से होती है। जब तक दशांतर्दशा और गोचर प्रतिकूल रहेंगे, शरीर में रोग रहेगा। उसके पश्चात रोग से भुक्ति प्राप्त होगी।


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