रूचिका और रवीश की सुंदर जोड़ी हर पार्टी की जान होती थी। जहां सभी उनकी एक ओर प्रशंसा करते नहीं थकते थे वहीं मन ही मन ईष्र्या भी करते थे कि कैसे ये दोनों आपस में इतना तालमेल रख पाते हैं और सोसायटी के हर फंक्शन में अपनी धाक जमा लेते हैं। लेकिन कहते हैं न कि नजर तो पत्थर को भी फोड़ देता है और शायद इस जोड़ी को भी जमाने की नजर लग गई और आज दोनों अलग-अलग रह रहे हैं।
रुचिका बहुत ही सुंदर और बचपन से अति बुद्धिमान थी। दिल्ली के अति उच्चस्तरीय महाविद्यालय से उसने स्नातकोत्तर की। रवीश एक बहुत ही साधारण परिवार से था लेकिन पढ़ने में बहुत ही तेज था। उसे जिंदगी में कुछ करने की लगन थी। उसने भी उच्चस्तरीय महाविद्यालय से इंजीनियरिंग और एमबीए किया।
अपनी पढ़ाई के दौरान ही उसकी मुलाकात रूचिका से हुई। दोनों ही अपनी कक्षा में प्रतिभाशाली छात्रों में गिने जाते थे और यहीं से शुरू हुआ मुलाकातों का दौर जो धीरे-धीरे भविष्य में एक साथ जीवन बिताने के सपने दिखाने लगा। दोनों को ही बहुत अच्छी नौकरी मिली और शीघ्र ही दोनों के परिवारों ने मिल कर उन्हें विवाह के बंधन में बांध दिया।
रूचिका अपनी आने वाली जिंदगी के सपने संजोये ससुराल पहुंची तो उसे वहां का रहन-सहन, बोलचाल काफी भिन्न लगा। लेकिन धीरे-धीरे वह अपने आप को उस वातावरण में ढालने की कोशिश करने लगी। लेकिन वहां की बहुत सी दकियानूसी बातें और रूढ़िवादी विचार उसे बहुत कष्ट देते। उसकी और रवीश की माता जी के विचारों में जमीन आसमान का फर्क था। रूचिका ने काफी कोशिश भी की कि वह उनसे तालमेल बिठा सके। लेकिन उनके क्रोध व गर्व की अग्नि में अब उसे झुलसने का डर लगने लगा तो उसने उनसे अलग होना ही बेहतर समझा।
अब रवीश के आगे एक ही रास्ता था कि या तो वह रूचिका से अलग हो जाए या फिर उसके साथ अलग रहे। रवीश भी रोज-रोज के झगड़ों से तंग आ गया था और उसने अलग घर ले लिया।
इसी बीच उसने अपने आपको पढ़ाई में झोंक दिया था ताकि वह इस क्लेश से बच सके और उसने अपनी लगन से आई. पी. एस. की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली और उसे एक अच्छी पोस्टिंग भी मिल गई। लेकिन अभी तो उसे चक्की के दो पाटांे में पिसना था। जहां घर में रूचिका उसे ताने सुनाती वहीं मां के पास जाने पर मां उसे अपनी मेहनत की दुहाई देती, अपने दूध का वास्ता देती। बेचारा रवीश दोनों की जली-कटी सुन-सुन कर पगला गया था। ऐसे में उसे ज्यादा से ज्यादा वक्त आॅफिस में बिताना अच्छा लगता। वहां तो उसे दिल का सुकून मिलता और नये-नये लोगों से मुलाकात होती। इसी बीच उसकी मुलाकात नेहा से हुई। वह भी किसी समस्या के चलते थाने आई थी और वहीं उसकी मुलाकात रवीश से हुई। उसकी परेशानी दूर करते-करते रवीश उसकी तरफ खिंचने लगा और अपना ज्यादा समय उसके साथ बिताने लगा।
उधर रूचिका को भी उसके ऊपर शक होने लगा और अब तो वह अपने आने वाले बच्चे की खुशी मना रही थी। उसे इस बात ने बुरी तरह झकझोर दिया और वह शान्ति से रवीश को छोड़ कर अपने मम्मी पापा के घर चली गई। अब रवीश उसे मनाने में जुटा है कि रूचिका वापिस अपने घर आ जाए और रूचिका के मां-बाप चाहते हैं कि वह तलाक लेकर दोबारा अपनी जिंदगी शुरू करे। रूचिका इसी पेशोपेश में है कि वह क्या करे। क्या रवीश उसे व उसके बच्चे को खुश रखेगा, क्या उसे एक और मौका देना चाहिए या फिर अपना जीवन नये सिरे से शुरू करना चाहिए।
ज्योतिषीय विश्लेषण
रूचिका की कुंडली में मकर लग्न में शुक्र स्थित है व चतुर्थ भाव में स्वगृही मंगल की स्थिति से रूचक योग के निर्मित होने से ये सुंदर व अत्यंत आकर्षक व्यक्तित्व की महिला होने के साथ-साथ सोसाइटी में अपनी व्यवहारकुशलता व योग्यता तथा वाक्पटुता के चलते विशेष लोकप्रिय हैं।
लग्नस्थ शुक्र के प्रभाव से वह प्रेम के संबंध में विशेष रूचि रखने वाली तथा जीवनसाथी के बाहरी व भीतरी गुणों की पारखी तथा अच्छा जीवनसाथी मिलने के मामले में पूर्ण सौभाग्यशाली हैं तथा जीवनसाथी की गतिविधियों पर भी पैनी नजर रखने वाली हैं।
शुक्र की इस विशेष शुभ स्थिति के कारण ही इन्हें योग्य, प्रेम करने वाला व गुणी पति प्राप्त हुआ।
रवीश की कुंडली में कन्या लग्न के स्वामी की स्थिति विशेष शुभ है। शनि उच्चराशिस्थ है तथा गुरु विशेष बली होकर हंस योग व गजकेसरी योग बना रहा है। ऐसी ग्रह स्थिति वाले लोगों का आई.ए.एस. अथवा आई.पी.एस. आदि होना मुख्य गुण होता है क्योंकि कन्या लग्न के जातक किसी भी प्रकार की प्रतियोगिता परीक्षा अथवा खेलकूद आदि में विश्वप्रसिद्धि प्राप्त करते देखे गए हैं। ऐसी कुंडली में गुरु का बली हंस योग निर्मित होकर प्रतियोगिता परीक्षा में श्रेष्ठस्तरीय सफलता का द्योतक है। इनका यह गुरु इसलिए विशेष बली माना जाएगा क्योंकि यह दो केंद्रों का स्वामी होकर तीसरे केंद्र पर दृष्टि डाल रहा है और यह योग जन्मकुंडली व चंद्र कुंडली दोनों में ही बन रहा है साथ ही गजकेसरी योग बनने के अतिरिक्त इसकी नवांश में उच्च राशि है।
इस कुंडली में सूर्य, बुध व शुक्र का शुभ योग भी शुभ भाव में बन रहा है साथ ही शनि के अतिरिक्त राहु, केतु भी उच्च राशिस्थ हैं। यही कारण है कि रवीश होनहार व विशेष योग्यता संपन्न होकर बड़े अधिकारी बने तथा इनके व्यक्तित्व का आकर्षण भी काबिले तारीफ है। इस प्रकार इन दोनों की कुंडलियों में उत्तम ग्रह योग होने के कारण इनकी जोड़ी बहुत अच्छी व लोकप्रिय है।
वाणी व कुटुंब के द्वितीय भाव में अष्टमेश मंगल की शनि के साथ युति होने से घर में कलह होने के योग तो बनते हैं परंतु तलाक का योग नहीं है। अभी वर्तमान समय में रूचिका की कुंडली में सप्तम भाव में राहु का गोचर होने के कारण इनके वैवाहिक जीवन में कुछ कटुता आ गई है परंतु इन दोनों को संयम से काम लेना चाहिए ताकि इनका संबंध अधिक खराब न हो।
वास्तव में राहु का गोचर रूचिका के वैवाहिक जीवन के लिए सितंबर 2017 से मार्च 2019 तक खराब रहने वाला है क्योंकि यह राहु चंद्रमा से भी अशुभ भाव में जा रहा है और जन्मस्थ शुक्र को भी देख रहा है। मार्च 2019 के बाद यह सप्तमेश चंद्रमा पर तो गोचर करेगा परंतु सप्तम भाव और शुक्र पर सीधा प्रभाव नहीं डालेगा। अतः तत्पश्चात् वैवाहिक जीवन में अवश्य ही सुधार आना आरंभ हो जाएगा।
अक्तूबर 2018 के बाद रूचिका की कुंडली में गोचरीय गुरु की सप्तम भाव पर दृष्टि आ जाने से वैवाहिक रिश्ते को अतिरिक्त बल की प्राप्ति होगी। दोनों की जन्मकुंडलियों में ऐसा कोई योग नहीं है जिसके कारण तलाक की संभावना भी बन सके। तलाक का योग तो बिल्कुल भी नहीं है।
रूचिका की कुंडली में लग्नस्थ शुक्र की स्थिति यह बताती है कि यह खुद निश्छल व निर्मल स्वभाव की होने के साथ-साथ तुनक मिजाज भी है। अतः इनके लिए रवीश को क्षमा करना काफी कठिन होगा। अतः रवीश को इन्हें मनाने के लिए विशेष प्रयास तो करना ही पड़ेगा क्योंकि अभी अस्थायी अलगाव का योग भी रूचिका की कुंडली में बना हुआ है। अतः अक्तूबर 2018 तक इन्हें खुद को मनाना भी मुश्किल पड़ रहा है।
आगामी सुखद भविष्य को देखते हुए यही ज्योतिषीय सलाह दी जाती है कि दोनों अपने रिश्ते में खटाई में पड़ते मधुरता को पुनर्जीवित करने के लिए अथक प्रयास करें क्योंकि अधिक देर की तो टूटे धागे को जोड़ने पर उसमें गांठ का घाव दिखने लगेगा। शीघ्रातिशीघ्र अपने संबंधों में नई ऊर्जा भरें ताकि आक्रोश के बादल बेअसर होने लगें और हल्का सा जो बुरा वक्त चल रहा है वह रिश्ते को बड़ा घाव देने में सफल न हो सके।
आगे तलाक होना नहीं है अतः लड़ाई को लंबा करना निरर्थक ही होगा। दोनों की छिद्र दशाएं चल रही हैं अर्थात् दोनों की कुंडलियों में दोनों की महादशाएं अंतिम पड़ाव पर हैं अतः घर में शांति स्थापना हेतु अपने इष्टदेव की पूजा, हवन कार्य संपन्न करवा कर अपने रिश्ते पर लगी नजर को उतारें।