सोनिया आज बहुत ही तन्हा महसूस कर रही थी। भरा-पुरा घर होते हुए भी उसका कोई अपना नहीं था वैसे तो सब उसके अपने थे पर उसे शायद कोई अपना नहीं मानता था। उसका अपना पति विवेक जो उस पर जान छिड़कता था आज उसकी ओर देखता भी नहीं। वह अपने कमरे में उपेक्षित सी पड़ी रहती है। सोचते-सोचते उसे अश्रु बरबस आंखों से बहने लगे और उसका पूरा जीवन उसकी आंखों में तैरने लगा।
बचपन से उसे पढ़ाई का शौक था। माता-पिता ने अच्छे स्कूल में पढ़ाया और फिर 12वीं कक्षा के बाद इंजीनियरिंग में एडमिशन ले लिया। काॅलेज में ही उसकी मुलाकात विवेक से भी हुई। वह भी पढ़ने में बहुत होशियार था। मन ही मन दोनों एक दूसरे को पसन्द करने लगे।
काॅलेज खत्म होते-होते दोनों की अच्छी नौकरी लग गई और दोनों ही अपनी नौकरी में व्यस्त हो गये।
एक दिन अचानक सोनिया ने विवेक की मां को अपने पिता के पास आया देखा तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। विवेक की माता उसका हाथ मांगने उसके पिता के पास आई थी और उसके पिता ने भी खुशी-खुशी हामी भर दी और धूम-धाम से 2005 में दोनों का विवाह हो गया।
विवाह के पश्चात सोनिया और विवेक बहुत खुश थे और एक दूसरे को बेहद चाहते थे लेकिन कहते हैं कि अधिक खुशी भी अधिक दिन कायम नहीं रहती। नजर लग ही जाती है शायद ऐसा ही सोनिया के साथ हुआ। अगस्त 2007 में जब सोनिया अपनी कार से कार्यालय से घर आ रही थी तो उसका अचानक ऐक्सीडेंट हो गया और उसे काफी चोटंे आईं। उसका हाॅस्पिटल में काफी इलाज चला। वह शारीरिक रूप से तो ठीक हो गई लेकिन यह एक्सीडेंट कभी भी मां न बन सकने का नासूर दे गया। विवेक उसे लेकर बहुत बड़े डाॅक्टरों के पास गया पर कहीं से कोई सफलता नहीं मिली।
सोनिया अब बहुत उदास रहने लगी उसे रह-रह कर यही दुख सताता कि कैसे वह विवेक की वंश वृद्धि करे। विवेक उसे बहुत समझाता और बच्चा गोद लेने की बात करता पर उसका दिल नहीं मानता था और फिर उसने 2008 में विवेक के बहुत मना करने पर भी उसको दूसरे विवाह के लिए लड़की तलाश करना शुरू कर दिया और 2009 में उसने उषा से उसका विवाह भी करा दिया।
सोनिया को लगता था कि उसका विवेक के वंश के लिए किया गया बलिदान शायद विवेक हमेशा याद रखेगा और उनका प्यार कभी कम नहीं होगा। लेकिन कोई भी व्यक्ति दो नावों में पैर रखकर नहीं चल सकता।
शुरू-शुरू में तो विवेक ने अपनी दोनों पत्नियों के बीच काफी संतुलन बनाया पर धीरे-धीरे वह उषा की ओर खिंचने लगा और 2010 में जब उषा ने उसे एक खूबसूरत पुत्र भी दे दिया तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। अब आॅफिस से आने के बाद उसका पूरा समय उषा और बच्चे के साथ बीतता।
सोनिया चाहकर भी उनके बीच शामिल नहीं हो पाती थी। उसने अपने आप को अपने में समेट लिया। उषा उसे बुलाती थी पर जब उसने कमरे से बाहर आना बंद कर दिया तो उषा का ध्यान भी अपने परिवार मेें लग गया। सोनिया ने जब विवेक से बात करनी चाही और उसे याद दिलाया कि वही उषा को इस घर में लाई थी तो विवेक ने उसे बहुत खरी खोटी सुनाई और अपनी शक्ल न दिखाने की बात कह कर कमरे से चला गया।
सोनिया बुरी तरह से टूट चुकी थी उसे जीने का कोई सबब दिखाई नहीं दे रहा था और वह अपने को इस घर के लिए अनावश्यक मानने लगी थी और तभी उसने गुस्से में एक फैसला लिया। उसने कसम खाई कि अब मैं अपना चेहरा विवेक को नहीं दिखाउंगी और झटके से उसने नींद की गोलियों की पूरी शीशी हलक में उड़ेल ली और अपने आखिरी नोट में इतना ही लिखा।
प्रेम को समझना अत्यंत मुश्किल है। प्रेम की संजीदगी समय के साथ बदलते रहती है। किसी भी कमी को कोई दूसरा भर दे तो प्रेम वहीं दम तोड़ देता है।
मैनें अपने प्रेम के लिए और पत्नी धर्म को निभाने के लिए अपने पति के लिए दुसरी दुल्हन तक लाकर दी लेकिन मेरे इस सहयोग के लिए, वफा के बदले मुझे आज अपनी जान देनी पड़ रही है।
आइये देखे सोनिया की कुंडली में बैठे ग्रहों की चाल जिसने उसे अपनी जान लेने को मजबूर कर दिया।
सोनिया की जन्मकुंडली में लग्नेश अष्टमस्थ है, शुभ ग्रह छठे और आठवें घर में बैठे हैं। सप्तमेश चंद्रमा केमद्रुम योग व पाप ग्रहों की दृष्टि से ग्रस्त है। सप्तम भाव में पाप ग्रह राहु अधिष्ठित है तथा सप्तम का कारक भी अशुभ भाव में स्थित है।
लग्न, लग्नेश, शुभ ग्रह व मंगल इन सभी ग्रहों के निर्बल होने के कारण आत्मबल की शून्यता है।
न ही लग्न, लग्नेश, लग्न का कारक व शुभ ग्रहों में बल है और न ही सप्तम भाव, सप्तमेश व सप्तम के कारक ग्रहांे में किसी प्रकार की ताकत है।
यदि आत्मबल की कमी हो तो जीवन साथी का सहयोग जीवनीशक्ति लेकर आता है। दोनों के ही न होने की स्थिति में जातक संतान या प्रेम को सहारा मान लेता है। परंतु इसे भाग्य की विडंबना ही कहेंगे की सोनिया की कुंडली में प्रेम व संतान के पंचम भाव में अष्टमेश स्थित है जो शनि से दृष्ट है तथा साथ ही पंचमेश व पंचम का कारक ये दोनों ग्रह भी अशुभ भाव में स्थित है जिसमें पंचमेश पापकर्तरी में तथा पंचम का कारक पाप ग्रहों से युक्त है इसलिए संतान की प्राप्ति नहीं हुई व प्रेम का भी असफल अंत हुआ।
प्रेम मे असफलता की पीड़ा न सहन होने पर इन्होंने स्वयं ही अपने जीवन का अंत कर दिया।
पंचम भाव में सूर्य शनि के प्रभाव के चलते इन्होंने इंजीनियरिंग की। 2005 में सप्तम भाव में शनि व चंद्रमा से सप्तम भाव पर गुरु का गोचर होने पर इनका विवाह हुआ था।
सप्तम भाव की अत्यंत खराब स्थिति के साथ-साथ अष्टकवर्ग में सबसे कम केवल 16 बिंदु हैं जो असफल प्रेम का कारक बनने में एक अतिरिक्त कड़ी का काम कर रहे हैं।
2009 में गोचरीय गुरु नीच राशिस्थ तथा शनि जन्मकालीन शनि, मंगल व गुरु के ऊपर अष्टम भाव में बैठकर उनके पंचम भाव में स्थिति अष्टमेश सूर्य को देख रहा था और फलस्वरूप इन्होंने स्वयं ही अपने पति का दूसरा विवाह करवा कर अपने प्रेम व अपने खुशहाल जीवन की हत्या कर दी।
परंतु इनका बलिदान इनकी स्वयं की कुंडली के बलहीन होने के कारण पूर्णतः व्यर्थ सिद्ध हुआ और इनके पति इनके प्रति पूर्णतया बेपरवाह हो गए और इस पीड़ा के असाध्य हो जाने पर इन्होंने अपनी जीवनलीला ही समाप्त कर दी।