शीला दीक्षित: दिल्ली की हैट्रिक मुख्यमंत्री का सफर
शीला दीक्षित: दिल्ली की हैट्रिक मुख्यमंत्री का सफर

शीला दीक्षित: दिल्ली की हैट्रिक मुख्यमंत्री का सफर  

आभा बंसल
व्यूस : 3550 | फ़रवरी 2020

विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की राजधानी की मुख्यमंत्री बनना बहुत बड़े गौरव की बात है। यह गौरव जिसे एक नहीं बल्कि तीन बार प्राप्त हुआ, उस शख्सियत का नाम शीला दीक्षित है। इसके साथ ही इन्हें कांग्रेस पार्टी की वरिष्ठ नेता बनने का सम्मान भी प्राप्त था। अपने तीन बार के मुख्यमंत्री के कार्यकाल में शीला दीक्षित को राजधानी को एक नया रुप-रंग देने के लिए विशेष रुप से याद किया जाता है। शीला दीक्षित दार्शनिक एवं कुशल राजनीतिज्ञ रहीं। सौम्य, सहज और सुलझा हुआ व्यक्तित्व उनकी विशेषता थी। दिल्ली वालों के दिलों में शीला दीक्षित ने अपनी जो खास जगह बनाई, उसकी वजह उनका 90 के दशक में इस शहर को एक नई पहचान देना, एक नया चेहरा देना रहा। दिल्ली को अनेकानेक फ्लाईओवर देकर घंटों के जाम से इस शहर को मुक्ति देने के लिए यहां के लोग शीला को वर्षों याद करेंगे। इनके द्वारा कराए गए निर्माण कार्यों ने ही दिल्ली की जिंदगी को एक नई रफ्तार दी और काॅमनवेल्थ गेम्स के समय दिल्ली की फीकी पड़ती चमक को फिर से निखारा था।

दिल्ली को गला घोंटू प्रदूषण से राहत देने के लिए सीएनजी बस और मेट्रो की सौगात देने का शुभ कार्य शीला दीक्षित ने किया। शीला दीक्षित ने अपने लम्बे कार्यकाल में अनेक कार्य किए जिनकी सूची बहुत लम्बी है। स्कूल, अस्पताल, बिजली, साफ-सुथरी चैड़ी सड़कें और कचरे के लिए कूड़ेदानों की व्यवस्था आदि का श्रेय शीला जी को जाता है।

शीला दीक्षित का जन्म 31 मार्च 1938 को पंजाब के कपूरथला जिले में हुआ। दिल्ली के जीसस एंड मेरी कॉन्वेंट स्कूल से इनकी शिक्षा पूर्ण हुई और मिरांडा हाउस कॉलेज से इन्होंने मास्टर स्तर की शिक्षा ग्रहण की। 81 वर्ष की आयु में दिल्ली के लोगों के दिलों पर राज करने वाली शीला दीक्षित से चलिए आज रुबरु होते हैं-


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एक 15 साल की बच्ची रेडियो पर आ रहे प्रधानमंत्री के भाषण से इतनी प्रभावित हुई कि वो उनसे मिलने के लिए घरवालों को बिना बताए पैदल ही तीनमूर्तिभवन पहुंच गई। वो प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू और वो बालिका शीला दीक्षित थी। इस बालिका को पढ़ने-लिखने का शौक तो था ही साथ ही वो दिलीप कुमार और शाहरुख खान की फिल्मों की शौकीन भी थी। उसे जब भी मौका मिलता फिल्म देखने के लिए थियेटर पहुंच जाती। मनपसंद फिल्में देखती और संगीत सुनती। आगे जाकर इसी बालिका का विवाह एक आई.ए.एस अधिकारी विनोद दीक्षित से हुआ। विनोद जी और शीला दीक्षित दोनों विवाह से पूर्व एक-दूसरे को जानते थे, दोनों के आपसी स्नेह की शुरुआत अपने कुछ मित्रों का झगड़ा सुलझाते हुए हुई थी।

पहली ही मुलाकात में विनोद शीला के व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके थे, किसी न किसी बहाने शीला जी के साथ समय बिताने और उनसे मिलने के लिए उनके घर जाया करते थे। इस तरह दोनों का स्नेह प्रगाढ़ हुआ और दोनों एक-दूसरे को समझने लगे। शीला जी के सामने अपने विवाह का प्रस्ताव रखते हुए विनोद जी ने संकोच भरे शब्दों में कहा कि उन्होंने विवाह के लिए एक लड़की पसंद कर ली है, और यह बात वो अपनी मां को बताने जा रहे हैं, यह सुन शीला जी ने कहा कि क्या आपने उस लड़की से यह बात कही है, इस पर विनोद जी ने कहा कि वो मेरे पास बैठी है, उससे अभी पूछ लेता हूं। इस प्रकार विनोद जी ने शीला जी के समक्ष अपना स्नेह प्रकट किया। परन्तु दोनों का विवाह होना इतना सरल नहीं था, जाति की दीवार दोनों के रिश्ते के मध्य लम्बे समय तक अड़चन बनी रही। पर अंत में सब मान गए और शीला और विनोद जी विवाह सूत्र में बंध गए। अपने एक इंटरव्यू में शीला जी ने बताया था कि एक बार वो विनोद जी की ट्रेन छूटने पर खुद ड्राईव कर उन्हें कानपुर छोड़ने गईं, और वापसी में खुद ही रास्ता भटक गई थीं। यह वाकया उनके चेहरे पर बीते दिनों की एक मधुर मुस्कान लेकर आया था। विवाह के साथ ही शीला ने एक राजनैतिक घराने में कदम रखा, और यहीं से इनकी राजनैतिक शिक्षा शुरु हुई।

कहते हैं कि विवाह होना एक नए जीवन की शुरुआत होता है, शीला जी के लिए यह विवाह गृहस्थ जीवन और राजनैतिक जीवन दोनों में प्रवेश होने से इनके जीवन और करियर को एक नई दिशा मिली। शीला दीक्षित होनहार छात्रों में से थीं, इसलिए जल्द ही इन्होंने अपने ससुर के सान्निध्य में राजनीति के गुर सीख लिए। शीला जी के ससुर उमाशंकर दीक्षित जी जाने-माने राजनेता रहे हैं। कर्नाटक और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल का पद भी इन्होंने बखूबी संभाला और इंदिरा जी के समय में इन्होंने गृह मंत्री पद के दायित्वों को भी बखूबी निभाया। अपने ससुर के अनुभव, ज्ञान और मार्गदर्शन में रहते हुए शीला राजनीति के क्षेत्र की कुशल खिलाड़ी बन गईं। अपने ससुर के दिशा-निर्देश में शीला जी ने 1984 में कन्नौज की लोकसभा सीट का सांसद पद संभाला और 1986 में केंद्रीय मंत्री भी रहीं। बढ़ती लोकप्रियता के चलते 1998 में चुनाव जीत कर दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं। लगातार तीन बार मुख्यमंत्री बन इन्होंने हैट्रिक लगाई। अपने कार्यकाल के दौरान इन्होंने महिलाओं के उत्थान, विकास और अधिकारों को बेहतर करने के लिए अनेक योजनाएं, अनेक संगठन और अनेक नीतियां बनाईं। काम करने वाली महिलाओं की समस्याओं को समझते हुए कई हॉस्टल बनवाए।

दिल्ली को गला घोंटू प्रदूषण से राहत देने के लिए सीएनजी बस और मेट्रो की सौगात देने का शुभ कार्य शीला दीक्षित ने किया। शीला दीक्षित ने अपने लम्बे कार्यकाल में अनेक कार्य किए जिनकी सूची बहुत लम्बी है। स्कूल, अस्पताल, बिजली, साफ-सुथरी चैड़ी सड़के और कचरे के लिए कूड़ेदानों की व्यवस्था आदि का श्रेय शीला जी को जाता है। सुषमा स्वराज 52 दिन के लिए दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री रहीं, परन्तु 15 साल इतने महत्वपूर्ण पद को संभालने वाली शीला दीक्षित एकमात्र महिला मुख्यमंत्री रही हैं। अगर हम इतिहास के आंकड़ों पर नजर डालें तो दिल्ली के मुख्यमंत्री पद 4 साल से अधिक अवधि के लिए संभालने वालों में भी शीला दीक्षित अग्रणी रही हंै।


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शीला दीक्षित के यादगार दिनों में से कुछ दिन ऐसे भी हैं जब शीला दीक्षित ने महिलाओं को उनका अधिकार दिलाने के लिए 23 दिन जेल में गुजारे थे। यह वाकया 1990 का है जब शीला जी समाज में महिलाओं पर बढ़ते अत्याचारों के खिलाफ खड़ी हुई थीं और जिसके लिए उन्हें अपने अनेक साथियों के साथ जेल में रहना पड़ा था। महिलाओं के हक के लिए शीला जी कई बार सामने आई थीं। दिल्ली की महिलाओं के लिए वो एक आदर्श आईकन थीं, उन्होंने महिलाओं को समाज में एक मुकम्मल मुकाम दिलाया। शीला दीक्षित के 20 जुलाई 2019 को जाने के बाद यूं तो सारे भारत में शोक की लहर है, परन्तु सबसे अधिक दुखी वही महिलाएं हैं जिनके लिए शीला दीक्षित वर्षों तक लड़ती रहीं। 20 जुलाई 2019 महापौर, सांसद, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री और राज्यपाल जैसे पदों को सुशोभित करती हुई, शीला दीक्षित सभी की आंखों में आंसू छोड़ते हुए इस दुनिया से चली गईं। उन्हें जीवन में जो मुकाम हासिल हुआ वह किस वजह से हुआ? ऐसे ही कुछ सवालों का जवाब हम आज उनकी कुंडली से जानने का प्रयास करेंगे-

शीला दीक्षित की कुंडली का विश्लेषण

शीला दीक्षित जी की कुंडली कर्क लग्न और मीन राशि की है। शीला जी की कुंडली में सभी ग्रह पंचम भाव से लेकर एकादश भाव के मध्य स्थित हैं। ग्रहों की इस स्थिति को कालसर्प योग का नाम भी दिया जाता है। इस योग का नाम पद्म कालसर्प योग है। जन्मपत्री में चंद्र उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में है। इस नक्षत्र ने इन्हें आकर्षक और चुंबकीय व्यक्तित्व दिया, इन्हें बुद्धिमान, ज्ञानवान और समझदार बनाया। सभी के साथ सम व्यवहार करने की योग्यता दी, निर्दोष व्यक्तियों को कष्ट देने से बचने का स्वभाव दिया, क्षणिक गुस्से वाला बनाया, मन से स्वच्छ और निर्मल बनाया। जिनसे स्नेह किया उनके लिए हर समय मौजूद रहीं। वाणी में माधुर्य दिया, शत्रुओं पर विजय पाने का साहस दिया और इसी साहस ने इन्हें ऊंचा पद दिया, अच्छी शिक्षा दी एवं अनेक विषयों का ज्ञाता बनाया। 20 जुलाई 2019 को मृत्यु के समय इनकी राहु महादशा में शनि की अंतर्दशा प्रभावी थी। महादशानाथ राहु इनके पंचम भाव में स्थित हैं, और गोचर में इस समय इनके द्वादश भाव पर गोचर कर रहे हैं, अंतर्दशानाथ शनि सप्तमेश और अष्टमेश होकर भाग्य भाव में द्वितीयेश एवं लग्नेश के साथ युति संबंध में है।

अंतर्दशानाथ शनि का अष्टमेश होना और वर्तमान में गोचर में छठे भाव पर होकर अष्टम भाव (आयु भाव) को प्रभावित करना इनके लिए शुभ फलदायक नहीं रहा है। जन्मपत्री में गुरु नीचस्थ होकर सप्तम भाव में स्थित है, दशम भाव में बुध, शुक्र और मंगल स्वराशि में स्थित है। केतु एकादश भाव में स्थित है। इनकी कुंडली की खास बात यह है कि चतुर्थ भाव पर चतुर्थेश शुक्र का पूर्ण दृष्टि प्रभाव है, इस प्रभाव से चतुर्थ भाव बली हो गया है, कर्मेश मंगल स्वराशि का होकर दशम में है, यह इन्हें साहसी लीडर, उत्साही और दूसरों को साथ लेकर चलने का गुण दे रहा है। मंगल यहां पंचमेश और दशमेश होने के कारण योगकारक ग्रह है और मंगल का प्रभाव दशम और पंचम दोनों पर है अतः दशम भाव और पंचम भाव दोनों ही अपने स्वामी का प्रभाव प्राप्त करने के कारण बली हो गए हैं। इसके अतिरिक्त सप्तमेश शनि और नवमेश गुरु में राशि परिवर्तन योग बन रहा है, केंद्र व त्रिकोण के स्वामियों का आपस में राशि परिवर्तन होना कुंडली के शुभ योगों में वृद्धि कर रहा है।

ग्रह योगों, राजयोगों और अन्य शुभ योगों ने कुंडली को बहुत बल प्रदान किया है। 1998 में जब शीला दीक्षित जी मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुईं, उस समय इनकी कुंडली में शनि साढ़ेसाती का द्वितीय चरण चल रहा था, उस समय शनि इनकी जन्मराशि और जन्मशनि पर गोचर कर रहा था। शनि साढ़ेसाती और शनि गोचर ने इन्हें भारत वर्ष की राजधानी दिल्ली की मुख्यमंत्री बनने के अवसर प्रदान किए। 15 वर्ष तक मुख्यमंत्री रहने की अवधि में इन्हें सूर्य, चंद्र और मंगल की महादशाएं प्राप्त हुईं। मंगल महादशा समाप्त होने के साथ ही इन्हें मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा। राहु महादशा में शनि की अंतर्दशा इनके जीवन की अंतिम दशा साबित हुई। इस प्रकार दिल्ली में सीएनजी लाने वाली एक पवित्र आत्मा सी. एन. जी युक्त दाहसंस्कार के साथ पंचतत्व में विलीन हो गई।



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