कैंसर रोग होने के ज्योतिषीय कारण
कैंसर रोग होने के ज्योतिषीय कारण

कैंसर रोग होने के ज्योतिषीय कारण  

रवि जैन
व्यूस : 9825 | मार्च 2013

नेता हो या अभिनेता, खिलाड़ी हो या आम जनता, रोग किसी को नहीं जानता। वह तो केवल रोगी की काया को जानता है और अपना कार्य करता रहता है जिसमें उसे कभी हार तो कभी जीत मिलती है। लेकिन रोग के कारण हार तो केवल इन्सान की ही होती है। हम बात करते हैं ऐसे असाध्य और गंभीर रोग कैंसर की जिसका नाम सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते हंै। कैंसर रोग से पीड़ित व्यक्ति अपने जीवन जीने की उम्र का शीघ्र अंत मान कर जीते जी ही मरने का दुःस्वप्न देखने लगता है जिसके चलते रोगी की मानसिक, !ाारीरिक तथार् आिर्थक स्तर में निरन्तर गिरावट आना प्रांरभ हो जाता है। यदि कैंसर रोग का पता शुरू में नहीं चल पाता है तो कैंसर रोग शरीर में एक विषवृक्ष की तरह शीघ्र फैलता जाता है। तिष में कैंसर जैसे भयानक रोग की उत्पत्ति में कौन-कौन से ग्रहां का प्रभाव रहता है इसे जाना जा सकता है।

ज्योतिष सृष्टि संचरण की घड़ी है एवं व्यक्ति की जन्म कुण्डली सोनोग्राफी है जिसके विष्लेषण से कैंसर रोग होने की संभावना का पता लगाया जा सकता है। यदि समय रहते प्रतिकूल ग्रहों को मंत्रों एवं अन्य उपाय से ठीक किया जाय तो कैंसर जैसे भयंकर रोग से काफी हद तक बचा जा सकता है। कैंसर रोग क्या है ? जीव विज्ञान के अनुसार मानव शरीर के अंगांे की रचना कोषिकाओं से होती है। शरीर में कोषिकाओं का बनना तथा टूटना एक स्वाभाविक प्रक्रिया के तहत चलता रहता है। इन कोषिकाओं के निर्माण में जल एवं रक्त का ही महत्व होता है। एक स्वस्थ्य मानव शरीर में 70से 75 प्रतिषत जल की मात्रा रहती है। किसी कारणवंष जल एवं रक्त के प्रवाह में रूकावट आ जाती है तो इसका प्रभाव कोषिकाओं पर पड़ता है। जिस मात्रा में कोषिकाएं बनती हैं उतनी मात्रा में टूटती नहीं हैं जिसके कारण कोषिकाएं असामान्य व अनियंत्रित गति से विभाजित होने लगती है, साथ ही कोषिकाएं रक्त प्रवाह ओैर लासिका तंत्र के जरिए शरीर के अन्य भागों में पहुंच कर एक स्थान पर कोषिकाओं का निर्माण अपने ढ़ंग से करने लगती हैं।

कोषिकाओं के बढ़ने की गति अत्यंत तीव्र हो जाती है तथा काफी कम समय में कई गुणा बढ़ जाती है जिसके कारण उस स्थान पर कोषिकाओं का घनत्व बढ़ जाता है तथा शरीर में हेमोग्लोबिन का स्तर कम होने लगता है जिससे मानव की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। प्रतिरोधक क्षमता कम होने से अन्य रोग की चपेट में शरीर आ जाता है और जीवन का अंत हो जाता है। कैंसर रोग में ग्रहों की भूमिका मानव शरीर में कैंसर रोग के लिए कोषिकाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कोषिकाओं में श्वेत रक्त कण एवं लाल रक्त कण होता है। ज्योतिष में श्वेत रक्त कण के लिये कर्क राषि का स्वामी चन्द्र ग्रह तथा लाल रक्त कण के लिये मंगल ग्रह सूचक हैं। कर्क राषि का अंग्रेजी नाम कैंसर है तथा कर्क राषि का चिह्न केकड़ा है। केकड़े की प्रकृति होती है कि वह जिस स्थान को अपने पंजों से जकड़ लेता है उसे वह अपने साथ लेकर ही छोड़ता है। इसी प्रकार कोषिकाएं मानव शरीर के जिस अंग को अपना स्थान बना लेती है उस भाग को शरीर से अलग करके ही कोषिकाओं को हटाया जाता है। इसलिए ज्योतिष में कैंसर जैसे भयानक रोग के लिए कर्क राषि का स्वामी चन्द्र का महत्व माना गया है। इसी प्रकार रक्त में लाल कण की कमी होने पर प्रतिरोधक क्षमता में कमी आ जाती है। ज्योतिष में मंगल ग्रह को बलषाली, साहसी तथा गर्म प्रकृति के साथ ही रक्त का कारक ग्रह माना गया है ।

जन्म कुण्डली में कैंसर रोग होने के योग व्यक्ति की जन्म कुण्ड़ली में निम्न ग्रहों के योग होने से कैंसर जैसे भयानक रोग की संभावना होती है:

1. लग्न का अस्त होना ।

2. पाप ग्रहों की दशा-अन्तर्दशा में कैंसर का रोग होता है।

3. शनि, मंगल, राहु-केतु की युति षष्टम, अष्टम, बारहवें भाव में होना।

4. शनि, मंगल ग्रह की जिस भाव में युति अथवा उनकी पूर्ण दृष्टि होती है उस भाव के अंग पर कैंसर रोग का होना।

5. पाप ग्रहों की दृष्टि चन्द्र ग्रह के साथ होकर षष्टम, अष्टम अथवा बारहवें भाव पर पाप ग्रहों का दृष्टि संबध होने पर कैंसर जैसा भयंकर रोग होता है।

6. लग्न में पाप ग्रहों की युति या दृष्टि होना अथवा लग्न का स्वामी षष्टम, अष्टम अथवा बारहवें भाव में चले जाना । षष्टम, सप्तम, अष्टम अथवा बारहवें शव के स्वामी का लग्न में होना।

7. चन्द्र ग्रह पर पाप ग्रहों की युति अथवा दृष्टि संबध होना ।

8. जिस भाव पर पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तथा चन्द्र दूषित हो रहा हो तो उस भाव के अंग पर कैंसर होता है।

9. गुरु ग्रह पर पाप ग्रहों की दृष्टि अथवा युति होना तथा गुरु ग्रह का पंचम से दृष्टि संबध या गुरु पंचम भाव में होने पर, लीवर, गर्भाशय कैंसर होने की संभावना बनती है।

10. चन्द्र तथा मंगल ग्रहों पर अन्य पाप ग्रह की युति या दृष्टि संबध होने पर रक्त कैंसर होने की ज्यादा संभावना होती है।

11. चन्द्र ग्रह का त्र्रिक भाव में होकर उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ना या पाप ग्रहों की युति होना।

12. षष्टम भाव का स्वामी पाप ग्रहों के साथ होकर जिस भाव में बैंठता है उस भाव के अंग पर कैंसर होता है ।

13. षष्टम, अष्टम अथवा बारहवें भाव की राषि के स्वामी का परस्पर स्थान परिर्वतन होना तथा उसका संबंध लग्न भाव के स्वामी से होने पर कैंसर रोग का होना।

14. राषिस्वामी का शत्रु नक्षत्र में होना।

15. राषिस्वामी के नक्षत्र स्वामी का षष्टम, अष्टम अथवा बारहवें भाव में अथवा मारक स्थान में होना।

16. पाप ग्रहों की युति की निकटता ज्यादा होना।

17. लग्न निर्बल होकर पाप ग्रहां के साथ षष्टम, अष्टम अथवा बारहवें भाव में होना।

18. मारक भाव के स्वामी का पाप ग्रहां की दषा अन्तर्दशा होने अथवा दृष्टि संबध होने पर कैंसर रोग के कारण देहान्त होने के योग बनते हैं।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.