लाल किताब खुद इंसान की पेश न जाए, हुक्म विधाता होता है, सुख दौलत और सांस आखिरी, उम्र का फैसला होता है। बीमारी का इलाज है, मगर मौत का इलाज नहीं, दुनियाबी हिसाब-किताब है, कोई दावा-ए-खुदाई नहीं। अर्थात् भाग्य पर मनुष्य की पेश नहीं जाती, यह ईश्वर के अधीन है। ईश्वर ही मनुष्य को मिलने वाले सुख, धन व आयु का फैसला करता है। ज्योतिष द्वारा भविष्य को जाना जा सकता है और कट सकने वाले कष्टों को दूर किया जा सकता है लेकिन मृत्यु तुल्य कष्टों का कोई इलाज नहीं होता, उन्हें भोगना ही पड़ता है।
ाविष्य का फलादेश करने की अनेकानेक पद्धतियां हैं जैसे ज्योतिष, हस्तरेखा, अंकशास्त्र, हस्ताक्षर, मुखाकृति ज्ञान, ललाट ज्ञान, पद चिह्न, टैरो कार्ड, रमल शास्त्र आदि। इनमें ज्योतिष शास्त्र सबसे अग्रगण्य हैं। लेकिन ज्योतिष शास्त्र में भी अनेकानेक पद्धतियां प्रचलित हैं जैसे पराशर पद्धति, जैमिनी सूत्र, कृष्णामूर्ति पद्धति, लाल किताब, भृगु संहिता, रावण संहिता, नाड़ी शास्त्र, आदि।
इन सभी पद्धतियों में पाराशर पद्धति सबसे अधिक प्रचलित व पूर्ण है लेकिन अन्य पद्धतियों में भी कोई न कोई विशेषता रहती है। ऐसे ही है लाल किताब एक है जो कि पाराशर पद्धति की ही देन है। इसकी सरलता व आम व्यक्ति के लिए उपयोगिता ने इसे अत्यधिक महत्वपूर्ण बना दिया है। इसमें विशेष गणनाओं को हटाकर फलित में आवश्यक मूल सिद्धांतों को अपनाया गया है जिससे ज्योतिषी एक तो गणना में नहीं भटकता और दूसरे फलित में मुखय उद्देश्य एवं सूत्र का उपयोग कर पाता है।
इसके अतिरिक्त इस पद्धति में दिए गये उपाय बहुत ही सरल हैं जो आम व्यक्ति आराम से करके अपने कष्टों से छुटकारा प्राप्त कर सकता है। यही है लाल किताब के महत्वपूर्ण होने का राज। लाल किताब की रचना जालंधर के गांव फरवाला में रहने पं. रूपचंद जोशी जी ने सर्व प्रथम 1939 में ''सामुद्रिक की लाल किताब को फरमान'' के शीर्षक में छापकर की थी। यह पुस्तक उस समय प्रचलित उर्दू-फारसी भाषा में रचित थी। इस पुस्तक का दूसरा संस्करण ''सामुद्रिक की लाल किताब के अरमान'' के नाम से 1940 में छपा। इसमें लिखा था कि ''फरमान और