हस्तरेखा द्वारा विवाह निर्णय प्रश्नः हस्त रेखा के आधार पर विवाह का संभावित समय कैसे निकाल सकते हैं। इस पद्धति द्वारा वैवाहिक जीवन के बारे में भविष्य कथन के नियम व विधि का विस्तारपूर्वक वर्णन करें। इस विषय पर भी चर्चा करें कि क्या वर-वधु का मिलान हस्त रेखा से संभव है? हस्तरेखा के आधार पर विवाह का संभावित समय देशकाल की परंपराओं के अनुसार जातक के विवाह की उम्र का अनुमान किया जाना चाहिये। सामान्य नियम यह है कि हृदय रेखा से कनिष्ठिका मूल तक के बीच की दूरी को पचास वर्ष की अवधि मानकर उसका विभाजन करके समय की गणना करनी चाहिये। इस संपूर्ण क्षेत्र को बीच से विभाजित करने पर पच्चीस वर्ष की आयु प्राप्त होती है। यदि इस क्षेत्र को चार बराबर भागों में विभाजित करने के लिये इसके बीच में तीन आड़ी रेखाएं खीच दी जायें तो हृदय रेखा के निकट की पहली रेखा वाले भाग से बचपन में विवाह (लगभग 14 से 18 वर्ष की अवस्था में) होता है। दूसरी रेखा वाले भाग से युवावस्था में विवाह (लगभग 21 से 28 वर्ष की अवस्था में) होता है। तीसरी रेखा वाले भाग से विवाह लगभग 28 से 35 वर्ष की अवस्था में होता है, जबकि चौथे भाग अर्थात् तीसरी रेखा व कनिष्ठिका मूल के बीच वाले भाग से प्रौढ़ावस्था में अर्थात् 35 वर्ष की आयु के बाद विवाह समझना चाहिए। विवाह की उम्र का यथार्थ बोध और समय का अनुमान जीवन रेखा, भाग्य रेखा, सूर्य रेखा व उनकी अन्य प्रभाव रेखाओं के द्वारा अधिक यथार्थ और विश्वसनीय ढंग से होता है। हस्तरेखा के आधार पर वैवाहिक जीवन के बारे में भविष्य कथन के नियम व विधि : विवाह रेखा को अनुराग रेखा, प्रेम संबंध रेखा, ललना रेखा, जीवन साथी रेखा, आसक्ति रेखा, स्पदम वि उंततपंहमए स्पदम वि स्वअमए स्पदम वि नदपवद आदि नामों से जाना जाता है। विवाह रेखा के स्थान के बारे में प्राचीन विचारक एकमत नहीं थे।
कुछ विचारकों ने शुक्र क्षेत्र की रेखाओं को, तो कुछ ने चंद्र क्षेत्र की रेखाओं को विवाह रेखा के रूप में स्वीकार किया है। किंतु अधिकांश प्राचीन ग्रंथों विवेक विलास, शैव सामुद्रिक, हस्त संजीवन, प्रयोग पारिजात, करलक्खन आदि में हृदय रेखा के ऊपर बुध क्षेत्र में स्थित आड़ी रेशाओं को ही विवाह रेखा माना गया है। विवाह रेखा का आरंभ : जो रेखाएं बुध क्षेत्र के भीतर आड़ी रेखाओं की तरह हों, वे विवाह की सूचक नहीं, बल्कि बुध क्षेत्र के गुणों में विपरीत या दूषित प्रभाव उत्पन्न करती हैं। करतल के बाहर से आकर बुध क्षेत्र में प्रवेश करने वाली सीधी, स्पष्ट और सुंदर रेखाएं ही सुखद वैवाहिक जीवन का संकेत देती है। यदि विवाह रेखा का आरंभ हृदय रेखा के भीतर से हो या उच्च मंगल क्षेत्र से निकलकर बुध क्षेत्र में चाप खंड की तरह प्रवेश करे तो ऐसे जातक का विवाह अबोध अवस्था में हो जाता है। ऐसे विवाह प्रायः बेमेल होते हैं जो आगे चलकर अस्थिरता या दुख का कारण बनते हैं। यदि इस योग के साथ जातक के हाथ में मध्य बुध क्षेत्र में दूसरी स्पष्ट विवाह रेखा मौजूद हो तो दूसरे विवाह की संभावना अधिक रहती है। यदि विवाह रेखा कनिष्ठिका के मूल से निकलकर चाप खंड की तरह बुध क्षेत्र में प्रवेश करें तो जातक को वृद्धावस्था में परिस्थितियों के दबाव में विवाह करना पड़ता है। यदि विवाह रेखा का आरंभ द्वीप चिह्न से हो, तो जातक के विवाह के पीछे कोई गोपनीय रहस्य छिपा होता है।
यदि किसी महिला के हाथ में इस प्रकार का योग हो, तो उसको फंसाकर या धोखा देकर, मजबूरी में शादी की जाती है, ऐसे में आरंभिक वैवाहिक जीवन कष्टकर होता है। यदि बाद में रेखा शुभ हो, तो परिस्थितियां सामान्य हो जाती हैं। यदि विवाह रेखा के आरंभ की एक शाखा कनिष्ठिका मूल की ओर जाये और दूसरी शाखा हृदय रेखा की ओर झुक जाये तो पति-पत्नी को आरंभिक वैवाहिक जीवन में एक दूसरे से दूर रहना पड़ता है। यदि आगे जाकर ये दोनों शाखाएं मिल गयी हों तो पति-पत्नी का संबंध पुनः जुड़ जाता है। विवाह रेखा का समापन : यदि विवाह रेखा सूर्य क्षेत्र में समाप्त हो, तो जातक को विवाह के कारण प्रतिष्ठा और धन-लाभ होता है। यदि विवाह रेखा ऊपर की ओर मुड़कर सूर्य रेखा से मिल जाये, तो जातक का जीवनसाथी उच्चकुल का तथा प्रतिभा से संपन्न होता है। ऐसा विवाह जातक के लिये शुभ होता है, किंतु आजीवन जीवन साथी के प्रभाव में रहना पड़ता हैं यदि सूर्य क्षेत्र तक जाने वाली विवाह रेखा नीचे मुड़कर सूर्य रेखा को काट दे, तो जातक का वैवाहिक संबंध उससे निम्न कोटि के व्यक्ति के साथ होता है और इस विवाह के कारण उसकी प्रतिष्ठा को हानि पहुंचती है व दुख उठाना पड़ता है। यदि विवाह रेखा शनि क्षेत्र तक चली जाये, तो यह एक बहुत अशुभ योग माना जाता है। ऐसी स्थिति में जातक अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिये जीवन-साथी को घायल करता है या उसे मार डालता है।
यदि इस योग में शनि क्षेत्र पर भाग्य रेखा के अंत में क्रास का चिह्न हो, तो जातक को अपने जीवन-साथी की हत्या के आरोप में मृत्युदंड दिया जाता है। यदि विवाह रेखा नीचे की ओर मुड़कर हृदय रेखा की ओर झुक जाये, तो इस बात की सूचक है कि जातक के जीवन-साथी की मृत्यु उससे पहले होगी। यदि ऐसी रेखा धीरे-धीरे एक ढलान के साथ नीचे की ओर मुड़ जाये तो, ऐसा समझना चाहिये कि जीवन-साथी की मृत्यु का कारण कोई लंबी बीमारी होगी। ऐसी रेखा के ढलान में यदि क्रॉस चिह्न हो या आड़ी रेखा हो तो मृत्यु अचानक किसी रोग या दुर्घटना के कारण होती है। द्वीप चिह्न होने से शारीरिक निर्बलता या बीमारी के कारण मृत्यु होती है। यदि विवाह रेखा शुक्र क्षेत्र में जाकर समाप्त हो, और यह योग सिर्फ बायें हाथ में ही हो, तो वैवाहिक संबंध विच्छेद करने की इच्छा ही व्यक्त करता है। दोनों हाथों में यही योग हो तो निश्चित ही संबंध विच्छेद होता है। यदि विवाह रेखा बुध-क्षेत्र में ऊपर की ओर मुड़ जाये और कनिष्ठका मूल को स्पर्श करने लगे, तो जातक आजीवन अविवाहित रहता है। यदि विवाह रेखा का समापन उच्च मंगल के मैदान में हो तो जीवन साथी के व्यवहार के कारण वैवाहिक जीवन दुखी रहता है।
यदि विवाह रेखा का अंत उच्च मंगल के क्षेत्र में हो और समापन स्थान पर क्रॉस चिह्न हो, तो जातक के जीवन-साथी के जीवन में अनियंत्रित ईर्ष्या व द्वेष के कारण कोई प्राण घातक दुर्घटना घटित होती है। यदि विवाह रेखा का अंत त्रिशूल चिह्न से हो, तो जातक पहले अपने प्रेम की अति कर देता है और बाद में संबंधों के प्रति उदासीन हो जाता है। विवाह रेखा की शाखाएं एवं प्रभाव रेखाएं : विवाह रेखा से हृदय रेखा की ओर गिरती हुई छोटी-छोटी शाखाएं जीवन साथी की अस्वस्थता को बताती हैं। दो शाखाओं वाली विवाह रेखा की एक शाखा मंगल के मैदान तक पहुंचे तो आपस में तलाक हो जाता है। यदि विवाह रेखा की एक शाखा हृदय रेखा को स्पर्श करे तो यह समझना चाहिए कि जातक के क्रूर व्यवहार और हृदयहीनता के चलते वैवाहिक संबंध समाप्त हो जाएगा। विवाह रेखा के आरंभ और अंत में द्विशाखाएं हों, तो कहीं दूर यात्रा में चले जाने से एक दूसरे से वियोग पीड़ा सहते हैं किंतु वैधानिक तौर पर अलग नहीं होते। यदि विवाह रेखा दो शाखाओं में विभक्त हो जाये और एक अलग रेखा सूर्य रेखा में बने हुए द्वीप तक जाए तो जातक के पद और प्रतिष्ठा की हानि होती है और वैवाहिक संबंध कलंकपूर्ण परिस्थितियों में समाप्त होता है। यदि विवाह रेखा की एक शाखा मस्तिष्क रेखा से मिल जाये तो मतांतर के कारण जीवन साथी से तलाक होता है। जब रेखा द्वीप चिह्नों से भरी हो और अंत में दो शाखाओं में विभक्त हो जाए तो वैवाहिक जीवन अत्यंत दुखद होता है।
सूर्य रेखा को स्पर्श करने वाली विवाह रेखा की शाखा प्रतिष्ठा देती है। यदि विवाह रेखा की शाखा सूर्य रेखा को काटे तो विवाह के कारण पद-प्रतिष्ठा की हानि होती है। यदि विवाह रेखा दो शाखाओं में विभक्त हो और मंगल के मैदान में से निकलने वाली प्रभाव रेखा जो भाग्य रेखा, मस्तिष्क रेखा, हृदय रेखा को काटती हुई ऊपर उठे तथा विवाह रेखा को भी काट दे, तो वैवाहिक संबंध विच्छेद हो जाता है। यदि ऐसी प्रभाव रेखा द्वीप चिह्नयुक्त हो, तो विवाह विच्छेद होने का कारण अनुचित च छलकपट की भावना होती है। यदि कोई प्रभाव रेखा शुक्र क्षेत्र से आकर विवाह रेखा को काट दे ता परिवार वालों के हस्तक्षेप से वैवाहिक जीवन में बाधा आती है। यदि शुक्र क्षेत्र से उठने वाली प्रभाव रेखा जीवन रेखा की ऊर्घ्वगामी शाखा को काटती हुई बुध क्षेत्र में जाकर विवाह रेखा को काट दे, तो कानूनी ढंग से तलाक मंजूर हो जाता है, किंतु इसके पहले अदालती कार्रवाई चलती है। इस तलाक का कारण भी परिवार का हस्तक्षेप होता है। यदि कनिष्ठिका के मूल स्थान से कोई लंबवत रेखा आकर विवाह रेखा को काट दे, तो जातक के विवाह में अन्य लोगों के विरोध के कारण बाधा आती है। यदि कोई बहुत पतली रेखा, विवाह रेखा को लगभग स्पर्श करती हुई, उसके समानान्तर चलती हो, तो जातक विवाह के पश्चात् अपने जीवनसाथी को बहुत प्यार करता है। यदि बुध क्षेत्र पर विवाह रेखा पुष्टता से अंकित हो और कोई प्रभाव रेखा चंद्र क्षेत्र से आकर भाग्य रेखा से मिले, तो जातक विवाह के बाद धनवान हो जाता है। परंतु जब प्रभाव रेखा चंद्र क्षेत्र पर पहले सीधी चढ़ जाये और फिर मुड़कर भाग्य रेखा से मिले, तो विवाह संबंध में सच्चे प्रेम की भावना नहीं होती बल्कि दिखावा मात्र होता है।
यदि प्रभाव रेखा भाग्य रेखा से अधिक बलवती हो तो जातक का व्यक्तित्व अपने प्रेमी के व्यक्तित्व की अपेक्षा कमजोर होता है, जिससे वह दब्बू बना रहता है। दोहरी विवाह रेखायें : व्यवहार में यह देखा गया है कि अधिकांश व्यक्तियों के हाथों में एक से अधिक विवाह रेखाएं मौजूद रहती हैं, फिर भी सामान्यतः उनकी एक ही शादी होती है। इसलिये एक या एक से अधिक विवाह रेखाओं की उपस्थिति को, अन्य प्रभाव रेखाओं के परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकित करना चाहिये, विवाह रेखाओं के होने मात्र से विवाह होना संभव नहीं है, किंतु आकर्षण या प्रेम अवश्य रहता है। इसीलिये कई लोगों से प्रेम संबंध रखने वाले व्यक्तियों के हाथों में कई विवाह रेखाएं होती हैं, किंतु व्यवहार में उनकी शादी नहीं होती या मात्र एक ही होती है। इसके विपरीत जो लोग वैवाहिक संबंधों के प्रति उदासीन रहते हैं, उनके हाथों में विवाह हो जाने के बावजूद विवाह रेखा नहीं होती है। इसलिये एक से अधिक विवाह रेखा होने पर वैवाहिक संबंधों की संखया का निर्णय शुक्र क्षेत्र, चंद्र क्षेत्र व जीवन रेखा से निकलने वाली अन्य प्रभाव रेखाओं के आधार पर करना चाहिये। यदि सहायक लक्षण न हों, तो विवाह रेखाओं को आकर्षण या प्रेम रेखा मानना चाहिये। यदि बुध क्षेत्र में दो विवाह रेखाएं मौजूद हों और भाग्य रेखा से निकलकर उसकी एक शाखा हृदय रेखा में मिल जाये, तो जातक की दूसरी शादी होती है। विवाह रेखाओं के दोष : यदि विवाह रेखा अचानक खंडित हो जाये तो वैवाहिक संबंध अचानक टूट जाता है। यदि विवाह रेखा से छोटी-छोटी शाखायें ऊपर की ओर उठ रही हों, तो जिस व्यक्ति के हाथ में ऐसी रेखाएं होंगी, उसके जीवन साथी के प्रेम संबंध जातक तक ही सीमित न रहकर और अन्य लोगों के बीच विभाजित होगा।
जिस महिला के हाथ में ऐसी रेखायें होती हैं, उसकी अनेक सौतें होती है। यदि विवाह रेखा से ऐसी शाखाएं हृदय रेखा की ओर गिर रही हों, तो जीवन साथी का स्वास्थ्य हमेशा खराब रहता है। विवाह रेखा को काटने वाली आड़ी रेखाएं आपसी संबंधों के टूटने, अवरूद्ध होने या जीवनसाथी के अस्वस्थ होने अथवा उसकी दुर्घटना का संकेत देती है, जिनकी वजह से वैवाहिक जीवन में अनावश्यक दिक्कतें उत्पन्न होती हैं। यदि विवाह रेखा बुध क्षेत्र तक जाये और वहां पर अंकुश की तरह नीचे की ओर झुक जाये तो ऐसा व्यक्ति जिसे प्रेम करता है, वह किसी दूसरे से प्रेम करता है। विवाह रेखा में विभिन्न चिह्न : द्वीप चिह्न : यदि विवाह रेखा के अंत और अंगूठे के मूल में द्वीप चिह्न हो, तो जातक का विवाह किसी नजदीकी रिश्तेदार से होता है। विवाह रेखा के मध्य में द्वीप चिह्न वैवाहिक जीवन में आने वाली दिक्कतों का संकेत देते हैं। क्रास चिह्न : क्रास चिह्न संबंध विच्छेद या मृत्यु का संकेत देते हैं। यदि विवाह रेखा नीचे की ओर मुड़ गई हो और उसके अंत में क्रास चिह्न हो तो जीवन-साथी की मृत्यु हो जाती है। विवाह रेखा को स्पर्श करता हुआ ऊपर की ओर स्थित क्रॉस चिह्न गर्भपात का संकेत है।
बिंदू चिह्न : विवाह रेखा पर काले रंग का बिंदु चिह्न हो तो जातक के जीवन साथी की मृत्यु हो जाती है। नक्षत्र चिह्न : सूर्य क्षेत्र तक जाने वाली विवाह रेखा के अंत में नक्षत्र चिह्न उच्च कुल में विवाह कराता है। यदि विवाह रेखा में नक्षत्र चिह्न हो तो जीवन साथी की मृत्यु हो जाती है और अत्यंत आत्मिक कष्ट होता है। यदि विवाह रेखा कनिष्ठिका मूल की ओर मुड़ी हुई हो और उसके अंत में नक्षत्र चिह्न हो तो जातक अपने प्रेमी की कलुषित भावनाओं को सत्य के रूप में जान लेता है और उसका मोह भंग हो जाता है। वर्ग चिह्न : विवाह रेखा के ऊपर बना हुआ वर्ग चिह्न विवाह में होने वाली परेशानियों के दुष्प्रभाव को कम करता है। हस्त रेखा के आधार पर वर-वधू का मिलान हस्त रेखा के आधार पर वर-वधू के दांपत्य सुख का अंदाजा लगाया जा सकता है। इसके लिये वर तथा वधू के हाथों का प्रिंट ले लेना चाहिये। सुखी वैवाहिक जीवन के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिये। मंगल रेखा जीवन रेखा के समानांतर किंतु तनिक दूर हो और पतली तथा निर्दोष हो। यदि वर तथा वधू के हाथों में विवाह रेखा निर्दोष हो, जीवन रेखा पतली तथा गोलाकार हो, भाग्य रेखा पतली और निर्दोष हो और जीवन रेखा से दूर हो, हृदय और मस्तिष्क रेखा समानांतर किंतु दूर-दूर हों, और उनकी शाखाएं एक-दूसरे में प्रवेश न करें, ऊंगलियां सीधी हों, अंगूठा बड़ा हो, तर्जनी बड़ी हो, तो वैवाहिक जीवन सुखी होता है। यदि दोनों के ही हाथों में हृदय रेखा की शाखाएं गुरु पर्वत की ओर हों तो धन, सौभाग्य की दृष्टि से सुखी विवाहित जीवन होता है। यदि दोनों के ही हाथों में भाग्य रेखा पतली और गहरी हो, दोनों के अंगूठों के मध्य की विभाजक रेखा में स्पष्ट यव हों तो वर-वधु का सुख लंबा होता है। यदि दोनों के ही हाथों में विवाह रेखा सीधी हो तो वैवाहिक जीवन सुखी होता है। यदि विवाह रेखा का रूख हल्का सा ऊंगलियों की ओर हो, तो जीवन साथी लंबी उम्र पाता है।
मंगली योग : वर या कन्या के हाथ में यदि विवाह रेखा हृदय रेखा को छूकर जाये, अथवा बुध की ओर जाये तो विधवा या विधुर योग बनता है- इसे मंगली योग की संज्ञा दी गई है। (पुरुष का बायां और स्त्री का दायां हाथ देखना चाहिए) यदि विवाह रेखा नीचे की ओर हृदय रेखा को स्पर्श करे तो विवाह के कुछ दिन बाद जातक या जातिका की मृत्यु हो जाती है। - इसे मंगली योग की संज्ञा दी गई है। यदि जातक या जातिका की विवाह रेखा पर नक्षत्र चिह्न हो तो विवाह के बाद मृत्यु हो जाती हैं इसे मंगली की संज्ञा दी गई है। यदि इस नक्षत्र को कोई रेखा काट दे तो मंगली योग भंग हो जाता है। यदि किसी स्त्री की नासिका के अग भाग में काला तिल या मस्सा हो - तो स्त्री विधवा हो जाती है। इसे भी मंगली की संज्ञा दी गई है। किसी पुरुष या स्त्री के विवाह रेखा के मध्य में तिल हो उसे मंगली की संज्ञा दी गई है। जिस स्त्री या पुरुष के हाथ में मंगल रेखा पर क्रॉस (गद्ध और तिल हो, उसे भी मंगली कहते हैं। यदि विवाह रेखा सर्पाकार हो, हृदय रेखा को छूती हो, तो विवाह के बाद उसके जीवन साथी की मृत्यु हो जाती है। विवाह रेखा सूर्य रेखा को स्पर्श करे तो जीवन साथी से खट-पट होती है। यदि विवाह रेखा टूटी हो (-- ) आगे वाली रेखा हृदय रेखा पर जाये तो जीवन साथी की मृत्यु होती है। पीछे वाली टूटी रेखा हृदय पर आये तो जीवन साथी से खट-पट का योग बना रहता है। ये सभी मंगली योग है।
यदि विवाह रेखा हृदय रेखा पर मिलकर त्रिभुज की आकृति बनाये तो उसके जीवन साथी की मृत्यु हो जाती है। इसे मंगली योग की संज्ञा दी गई है। यदि विवाह रेखा द्विजिह्वाकार हो और एक सूर्य पर, दूसरा हृदय पर जाये तो जातक या जातिका अविवाहित रहता है। यदि कोई रेखा मंगल पर्वत से आकर विवाह रेखा को काटे तो जीवन साथी का वियोग होता है, यह मंगली योग है। यदि विवाह रेखा पर द्वीप का चिह्न हो तो विवाह विच्छेद हो जाता है। यदि यह द्वीप हृदय रेखा से जा मिले तो जातक का जीवन साथी रोग ग्रस्त रहते हैं तथा अंत में मर जाते हैं- मंगली योग। ऐसा चिह्न पुरुष के हाथ में हो तो पत्नी प्रसव काल में मर जाती है। यदि गोपुच्छाकृत विवाह रेखा हो तो स्त्री, परपुरुष गामिनी और पुरुष परस्त्री गामी होते हैं। यदि विवाह रेखा बुध क्षेत्र पर आकर हृदय को काटते हुए, मध्य हाथ में आये तो विवाह के बाद जीवन साथी की मृत्यु हो जाती है। इसे मंगली योग कहते हैं। विवाह में अड़चन : यदि रेखा कई भाग में कटी हो (---) और चंद्र पर्वत पर आड़ी तिरछी रेखायें हों। अनमेल विवाह -यदि विवाह रेखा सूर्य रेखा को काटे अथवा शुक्र पर्वत विकसित रहे तो अनमेल विवाह होता है। सुखहीन विवाह : यदि भाग्य रेखा पर क्रॉस हो, विवाह रेखा पर द्वीप हो, शुक्र पर्वत कम उभरा हुआ हो तो विवाह सुखहीन रहता है। तलाक होने का योग : विवाह रेखा के अंत में गुच्छा हो, मंगल पर्वत से कोई रेखा विवाह रेखा को काटे, विवाह रेखा से शाखा निकल कर मस्तिष्क रेखा से मिलती हो या शुक्र पर्वत से प्रभाव रेखा जीवन रेखा को काटती हुई विवाह रेखा से मिलती हो, अथवा विवाह रेखा को काटती हो तो तलाक होता है। विवाह की दिशा : जातक के मणिबंध रेखा के बीच में ∇हो तो उत्तर दिशा, किसी अंगुली के जड़ में ∇हो तो दक्षिण दिक्षा, हाथ के मध्य में ∇हो तो पूर्व दिशा और अंगुष्ठ के मूल में ∇हो तो, पश्चिम दिशा में विवाह होता है।