लाल किताब से जानें अपने गृह वास्तु को
लाल किताब से जानें अपने गृह वास्तु को

लाल किताब से जानें अपने गृह वास्तु को  

नवीन राहुजा
व्यूस : 21730 | मार्च 2011

लाल किताब के द्वारा आप अपने घर के वास्तु को भी जान सकते हैं। इस लेख में लाल किताब की कुंडली के हर भाव से घर के वास्तु पर प्रकाश डाला गया है।

पहला भाव : जन्म कुंडली के पहले भाव का संबंध ड्राइंगरूम (बैठक) से होता है। जहां पर बैठकर हम अन्य व्यक्तियों से बातचीत करते हैं। यदि पहले घर में मंदे ग्रहों का प्रभाव हो तो ऐसे व्यक्ति की बैठक में अवश्य ही वास्तु दोष होता है।

दूसरा भाव : जन्म कुंडली के दूसरे भाव से मकान के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। मकान कैसा होगा, उसका आकार-प्रकार एवं विस्तार छोटा होगा या बड़ा, इसका विचार कुंडली के दूसरे भाव से किया जाता है। दूसरे भाव में किसी भी प्रकार के ग्रह दोषों के कारण गृह वास्तु में आकार संबंधी दोष एवं कष्ट उत्पन्न होते हैं।

तीसरा भाव : जन्मकुंडली के तीसरे भाव का संबंध मकान में उपलब्ध सुख-सुविधाओं की वस्तुओं एवं साधनों से होता है। यदि तीसरे भाव में शुभ ग्रह बली स्थिति में हो, तो ऐसे व्यक्ति के पास सुख-ऐश्वर्य के साधन बहुत सुलभ होते हैं। तीसरे भाव का संबंध घर में रखे हुए हथियारों से भी है। यदि घर में टूटे हुए हथियार रखें, तो ऐसे व्यक्ति को तीसरे घर में बैठे शुभ ग्रहों का नेक फल नहीं मिलता है। उसकी सुख-सुविधा के साधनों में कमी आ जाती है। छोटे भाई-बहिनों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है।


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चौथा भाव : जन्मकुंडली के चौथे भाव से घर में नल, कुआं, जल का स्रोत, पानी रखने की जगह का विचार किया जाता है। घर में रस भरे फलदार वृक्षें का विचार भी चौथे भाव से किया जाता है। यदि चौथे भाव में पाप ग्रह अशुभ प्रभाव उत्पन्न कर रहे हों, तो ऐसे घरों में रस वाले फल के पौधे नहीं लगाने चाहिए। ऐसे व्यक्ति को पानी, दूध और कपड़े के व्यवसाय में हानि होती है।

पांचवा भाव : जन्मकुंडली में पांचवे भाव का संबंध मकान की पूर्वी दीवार से होता है। उसके साथ बुद्धि, विद्या प्राप्त करने एवं ग्रंथों का अध्ययन करने के स्थान का विचार भी पंचम भाव से किया जाताहै। पंचम भाव की अशुभ स्थिति एवं अशुभ ग्रहों से घर में अध्ययन करने के स्थान में अवश्य ही वास्तु दोष होता है, साथ ही घर में बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता है तथा विद्या के मार्ग में बाधाएं आती हैं।

छठा भाव : जन्मकुंडली में छठे भाव का संबंध मकान में बने तहखाने से होता है। छठे भाव में पाप ग्रहों का प्रभाव होने पर घर में तहखाना नहीं होना चाहिए, अन्यथा व्यक्ति निरंतर अवनति की ओर जाता है।

सातवां भाव : जन्मकुंडली में सातवां भाव उस स्थान को प्रदर्शित करता है, जहां पर व्यक्ति का जन्म होता है। जन्म स्थान के शहर या गांव के बारे में भी कुंडली का सातवां भाव बताता है। घर में गूदेदार फल वाले वृक्षों का विचार भी कुंडली के सातवें भाव से किया जाता है।

आठवां भाव : जन्मकुंडली के आठवें भाव से मकान की दक्षिणी दीवार की स्थिति का पता चलता है। मकान के आसपास का वातावरण एवं दवाईयां रखने के स्थान का पता भी इसी भाव से लगाया जाता है। मकान में अग्नि का स्थान व मकान की छत का विचार भी इसी भाव से किया जाता है। ऐसे पौधों एवं वृक्षों जिनमें न फल लगते हों, न फूल लगते हों उनका विचार आठवें भाव से किया जाता है। आठवें भाव में यदि मंदे या अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो ऐसे मकान के आसपास के वातावरण, छत आदि में अवश्य ही कोई न कोई वास्तु दोष होता है।


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नौवां भाव : जन्मकुंडली के नौवें भाव से मकान में पूजा-पाठ के स्थान यानी मकान में मंदिर के बारे में विचार किया जाता है। मकान में बुजुर्ग व्यक्तियों का कमरा कैसा होगा, इस बारे में भी नौवें भाव से ही विचार किया जाता है। नौवां भाव में किसी भी प्रकार के अशुभ ग्रहों का दोष या नौवां भाव की अशुभ स्थिति होने पर मकान कें मंदिर में अवश्य ही कोई न कोई वास्तु दोष होता है।

दशम भाव : जन्मकुंडली के दसवें भाव का संबंध मकान की पश्चिम दिशा से होता है। मकान बनाने में लगे ईंट-पत्थर एवं लकड़ी-लौहे का विचार भी इसी भाव से किया जाता है।

ग्यारहवां : जन्मकुंडली के ग्यारहवें भाव से मकान की बाहरी सजावट और सुंदरता का विचार किया जाता है। यदि ग्यारहवें भाव में शुभ ग्रह स्थित हों, तो ऐसे व्यक्ति का मकान बाहर से देखने में अच्छा लगता है।

बारहवां भाव : जन्मकुंडली के बारहवें भाव से मकान में शयनकक्ष का विचार किया जाता है। पति-पत्नी के शयनकक्ष (बैड-रूम) में संबंध कैसे रहेंगे, व्यक्ति को नींद का सुख कैसा मिलेगा, आदि का विचार बारहवें भाव से ही होता है। बारहवें भाव से आस-पड़ोस के मकानों के संदर्भ में भी विचार किया जाता है। बारहवें भाव में अशुभ ग्रहों के स्थित होने पर पति-पत्नी के बीच में अनबन रहती है तथा व्यक्ति को नींद ठीक से नहीं आती ।



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