लाल किताब के ज्योतिषीय सूत्र व उपाय
लाल किताब के ज्योतिषीय सूत्र व उपाय

लाल किताब के ज्योतिषीय सूत्र व उपाय  

सुल्तान फैज ‘टिपू’
व्यूस : 36105 | मार्च 2011

वैदिक ज्योतिष में विश्लेषण के जो सिद्धांत हैं उनसे एकदम भिन्न सूत्र, उपाय एवं सिद्धांत लाल किताब में हैं। उसमें ग्रह दोष निवारण के लिए सच्चरित्रता एवं सद्व्यवहारिकता को बहुत प्रमुखता दी गयी है। इस पद्धति में सकारात्मक और मनचाहे फल की प्राप्ति के लिए भाव परिवर्तन की विधि का भी प्रावधान है जिससे शुभ फल की प्राप्ति की जा सकती है।

सर्वप्रथम अठारहवीं शताब्दी में पंजाब प्रांत के लाहौर शहर में चल रही जमीन की खुदाई के उपरांत तांबें के पात्र में रखी एक किताब को उस समय अंग्रेजी सरकार में कार्यरत कर्मचारी तथा ज्योतिष व कर्मकाण्डी पंडित गिरधारी शर्मा जी ने प्राप्त किया जिसे बाद में 1939 ई. में लाहौर के एक प्रेस से पंडित रूप चन्द्र जी ने लाल किताब का नामांकन देकर प्रकाशित किया। जिस के बाद 1952 ई0 तक लाल किताब फरमान, लाल किताब अरमान, लाल किताब गुटका, लाल किताब लग्न कुण्डली व लाल किताब वर्ष फल नामों से कई किताबें छप गई, परंतु अनेकों संस्करण में प्रकाद्गिात होने के फलस्वरूप भी इस किताब की उत्पत्ति तथा वास्तविकता के संदर्भ में तरह-तरह की भ्रांतिया पैदा होती रहीं। किसी ने इस की तुलना भृगु संहिता, अर्जुन संहिता, ध्रुव नाड़ी आदि ग्रंथों से की तो किसी ने इसे अरब व फारस की सभ्यता व संस्कृति की देन माना तथा कुछ ने इसे जिन अथवा आकाद्गावाणी किताब की संज्ञा दी। फिर भी तमाम अवधारणाओं की गुत्थी में प्रद्गन चिन्ह बने रहने के बावजूद भी इस किताब के विधिवत सूत्र अर्थात ज्योतिषीय दृष्टिकोण, चमत्कारी उपाय व टोटके जनमानस की व्यवहारिकता की कसौटी पर दिन प्रतिदिन खरे उतरते चले गए तथा इस की लोकप्रियता बढ़ती रही।


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ज्योतिषीय स्वरूपः-इस किताब के ज्योतिषीय स्वरूप में कुण्डली के भावों को ख़ााना अर्थात घर की संज्ञा दी गई है तथा जातकों के जन्म कुण्डली में लग्न को स्थाई रूप से मेष राद्गिा के रूप में बरकरार रखते हुए लग्न एक से लेकर बारह भावों की राद्गिायों क्रमद्गाः मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृद्गिचक, मकर, कुंभ व मीन के स्थानों को यथावत रखा गया है। जिसमें सूर्य को पहले व पांचवें, चन्द्र को चौथे, मंगल को तीसरे व आठवें, बुध को छठे व सातवें, गुरू को दूसरे, नौवें व बारहवें, शुक्र को सातवें तथा शनि को आठवें, दसवें व ग्यारहवें भाव का कारक ग्रह माना गया है। रातु-केतु को कोई भाव नही दिया गया परन्तु छठे भाव में इनकी उपस्थिति को शुभ फल दायक कहा गया है। इस ग्रंथ के व्यवहारिक सिद्धांतों में राहु-सूर्य, राहु-चन्द्र, केतु-सूर्य, केतु-चन्द्र,शनि-राहू, शनि-केतु, शनि-चन्द्र तथा शनि-सूर्य की युतियों को शुभ फलदायक नही माना गया है। ग्रह-दोष निवारण में सच्चरित्र व सद्व्यवहारिकता को अधिक प्रमुखता दी गई है। ग्रहों से संबधित वस्तुओं के दान के अतिरिक्त ग्रहों को मनचाहे ख़ााने में पहुंचाने व निर्बल तथा पाप ग्रहों के अनेकों प्रावधानों का उल्लेख है।

ग्रहों का भाव (खाना) परिवर्तन : लाल किताब के ज्योतिषीय विधान में कुण्डली के अकारक व निर्बल भाव में स्थित किसी ग्रह के सकारात्मक व मन चाहे फल की प्राप्ति हेतु भाव परिर्वतन की विधि का भी प्रावधान है जिस के द्वारा किसी भी ग्रह को किसी भी भाव में स्थापित करके शुभफल की प्राप्ति की जा सकती है।

  • किसी ग्रह को पहले भाव अर्थात लग्न स्थान में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को गले में धारण करना।
  • दूसरे भाव में किसी ग्रह को पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को किसी धार्मिक स्थान पर रखना।
  • किसी ग्रह को तीसरे भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित रत्न व धातु को हाथ या उंगुली में धारण करना।
  • किसी ग्रह को चौथे भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को दरिया की बहती जल धारा में प्रवाहित करना।
  • किसी ग्रह को पांचवे भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को पाठशाला में दान करना।
  • किसी ग्रह को छठे भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को कुऐं में डालना।
  • यदि किसी ग्रह को सातवें भाव में पहुंचाना हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को जमीन की सतह के अन्दर दबाना।
  • आठवें भाव में यदि किसी ग्रह को पहुंचाना हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को शमशान की सतह में जाकर दबाना।
  • किसी ग्रह को नौवे भाव में पहुंचाना हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को धारण करना।
  • किसी ग्रह को दसवें भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित कोई खाने की वस्तु अपने पिता को खिलाना या किसी समीप के सरकारी कार्यालय की जमीन की सतह पर गाड़ देना।
  • ग्यारहवें भाव में कोई भी ग्रह उच्च या नीच का नही होता इस कारण इस स्थिति में किसी भी प्रकार के उपाय की आवद्गयकता नही पड़ती।
  • किसी ग्रह को बारहवें भाव में पहुंचाने हेतु उस ग्रह से संबंधित वस्तु को घर की छत पर रखना।

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प्रबल व बलवान ग्रहों के हेतु निर्देश-कुण्डली में यदि कोई ग्रह प्रबल व बलवान हो तो उस ग्रह से संबंधित वस्तु को दान में देना लाल किताब में हानिकारक बताया गया है। ऐसा करने से ग्रहों के सकारात्मक प्रभावों को हानि पहुंचती है। उदाहरणार्थ-यदि कुण्डली में सूर्य बलवान हो तो इस ग्रह से संबंधित वस्तु गुड़, गेहूं, लाल वस्त्र, तांबा, सोना, माणिक्य रत्न का दान करना वर्जित कहा गया है।

ग्रह-दोषों का उपायः-कुण्डली व गोचर में किसी भी ग्रह की अनिष्टता के कारण उत्पन्न समस्या व उसके निवारण हेतु लाल किताब में अनेकों उपायों का उल्लेख है। प्रत्येक उपाय को कम से कम 7 दिन व अधिक से अधिक 43 दिनों तक लगातार करने का निर्देद्गा है। यदि प्रक्रिया का क्रम बीच में खंडित हो जाए तो पुनः विधिवत् इन प्रयोगों को फिर से पूर्ण करना चाहिए। सभी नौ ग्रहों की शांति के हेतु सूखे नारियल के अंदर धी व खांड भरकर सुनसान जगह में स्थित चीटियों के बिल के अन्दर गाड़ने के प्रयोग को सर्वोत्तम उपाय की संज्ञा दी गई है। इस के अतिरिक्त सभी नौ ग्रहों के दोषों के अलग-अलग विधिवत् उपायों के भी सूत्र बताए गए हैं।

सूर्यः-यदि कुण्डली में सूर्य छठे, सातवें व दसवें भाव में स्थित हो अथवा गोचर में निर्बल व अद्गाुभ अवस्था में हो तो यह राजद्गााही समस्या, दुर्धटना में हड्डी टूटने, रक्त-चाप, दाई नेत्र में कष्ट, उदर व अग्नि-तत्व से संबंधित रोग व पीड़ा का कारक माना गया है।

उपायः

  • राजा, पिता व सरकारी पदाधिकारी का सम्मान करें।
  • उदित सूर्य के समय में संभोग न करें।
  • सूर्य से संबंधित कोई वस्तु बाजार से मुफ्त में न लें।
  • पीतल के बर्तनों का सर्वदा प्रयोग करें।
  • रविवार के दिन दरिया की बहती जलधारा में गुड़ व तांबा प्रवाहित करें।

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चंद्रः- गोचर में चन्द्र निर्बल व पाप ग्रस्त हो तथा कुण्डली में छठे, आठवें, दसवें व बारहवें भाव में स्थित हो तो इस कारण मानसिक पीड़ा, जल तत्व से जुड़ा रोग व पशु हानि की समस्यांए उत्पन्न हो जाती है।

उपायः-

  • रात को दूध का सेवन न करें।
  • जल व दूध को ग्रहण करते समय चाँदी के पात्र का प्रयोग करें।
  • सोमवार के दिन दरिया की बहती जलधारा में मिश्री व चावल को सफेद कपड़े में बांधकर प्रवाहित करें।
  • सोमवार के दिन अपने दाहिने हाथ से चावल व चाँदी का दान करें।

मंगलः- गोचर में मंगल निर्बल व पाप ग्रस्त हो तथा कुण्डली में चौथे व आठवें भाव में अकेला विराजमान हो तो इस अकारक अवस्था के कारण रक्त विकार, क्रोध, तीव्र सिर दर्द, नेत्र रोग व संतान हानि जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।

उपायः-

  • बुआ अथवा बहन को लाल कपड़ा दान में दें।
  • मंगलवार को दरिया की बहती जलधारा में रेवड़ी व बताशा प्रवाहित करें।
  • मूंगा, खांड, मसूर व सौंफ का दान करें।
  • नीम का पेड़ लगाएं।
  • मीठी तंदूरी रोटी कुत्ते को खिलाएं।
  • रोटी पकाने से पहले गर्म तवे पर पानी की छींटे दें।

बुधः- गोचर में बुध नीच, अस्त व पाप ग्रस्त हो तथा कुण्डली में चौथे भाव में स्थित हो तो आत्म विद्गवास की कमी, नद्गो, सट्टे व जुए की लत, बेटी व बहन को कष्ट, मानसिक तथा गले से संबंधित रोगों का सामना करना पड़ सकता है।

उपायः-

  • बुधवार के दिन भीगी मूंग का दान करें।
  • मिट्टी के घड़े या पात्र में शहद रखकर किसी वीराने स्थान पर दबाएं।
  • कच्चा घड़ा दरिया में प्रवाहित करें।
  • तांबे का सिक्का गले में धारण करें।
  • सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराएं व चूड़ी दान में दें।
  • चौड़े हरे पत्ते वाले पौधे अपने घर की छत के ऊपर लगाएं।

गुरु :- गोचर में गुरु नीच, वक्री व निर्बल हो तथा कुण्डली में छठे, सातवें व दसवें भाव में स्थित हो तो मान-सम्मान में कमी, अधूरी द्गिाक्षा, गंजापन, झूठे आरोप, पीलिया आदि जैसे रोग व समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।


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उपायः-

  • माथे पर नित्य हल्दी अथवा केसर का तिलक करें।
  • पीपल का वृक्ष लगाएं तथा केसर का तिलक करें।
  • दरिया में गंधक प्रवाहित करें।
  • पुरोहित को पीले रंग की वस्तु दान में दें।

शुक्र :- गोचर में शुक्र अद्गाुभ हो तथा कुण्डली में पहले, छठे व नौवें भाव में स्थित हो तो चर्मरोग, स्वप्न दोष, धोखा, हाथ की अंगूठी आदि निष्क्रिय होने जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।

उपायः-

    43 दिनों तक किसी गंदे नाले में नीले फूल डालें।
  • स्त्री का सम्मान करें।
  • इत्र लगाएं।
  • दही का दान करें।
  • साफ सुथरे रहें तथा अपने बिस्तर की चादर को सिलवट रहित रखें।

शनिः- गोचर में शनि के अद्गाुभ तथा कुण्डली में पहले, चौथे, पांचवें व छठे भाव में स्थित होने की अवस्था को आर्थिक हानि, कानूनी समस्या, गठिया रोग, पलकों के झड़ने, कन्या के विवाह में विलंब, आग लगने, मकान गिरने, नौकर के काम छोड़ने आदि धटनाओं का कारक माना गया है।

उपायः-

  • लोहे का छल्ला अथवा कड़ा धारण करें।
  • मछलियों को आटे की गोलियां खाने को दें।
  • अपने भोजन का अंद्गा कौए को दें।
  • सुनसान जगह के सतह पर सुरमा दबाएं।

राहु :- कुण्डली में राहु अद्गाुभ व शत्रु ग्रह से युक्त हो तथा पहले, पांचवें, आठवें, नौवें व बारहवें भाव में स्थित हो तो शत्रुता, दुर्धटना, मानसिक पीड़ा, क्षयरोग, कारोबार में हानि, झूठे आरोप आदि की समस्याऐं उत्पन्न होने लगती हैं।


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उपायः-

  • मूली दान में दें।
  • जौ को दूध में धोकर दरिया में प्रवाहित करें।
  • कच्चे कोयले को दरिया में प्रवाहित करें।
  • हाथी के पांव के नीचे की मिट्टी कुऐं में डालें।

केतु :- कुण्डली व गोचर में अद्गाुभ केतु फोड़े फुंसी, मूत्राद्गाय से संबंधित रोग, रीढ़ व जोड़ों का दर्द, संतान हानि आदि जैसी समस्या का कारक माना गया है।

उपायः-

  • कुत्ते को मीठी रोटी खिलाएं।
  • मकान के नीव की सतह पर शहद दबाएं।
  • कंबल दान में दें।
  • सफेद रेद्गाम के धागे को कंगन की तरह हाथ में बांधे।

 



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