हस्तरेखा विज्ञान और मनोविज्ञान में गहरा संबंध है। हथेली की रेखाएं हमारे दिमाग में बनने वाली विद्युत तरंगों की नलियां हैं। हथेली के अलग अलग स्थानों के उभार, जिन्हें हस्तरेखा विज्ञान की भाषा में पर्वत कहा जाता है, चुंबकीय केंद्र हैं। इन चुंबकीय केंद्रों का संबंध मस्तिष्क के उन केंद्रों से है, जो हमारी भावनाओं और संवेदनाओं पर नियंत्रण रखते हैं। दूसरे शब्दांे में हम कह सकते हैं कि जिस प्रकार हृदय की क्रियाशीलता का ग्राफ इ. सी. जी. की रील पर बनता है, उसी प्रकार हमारे मस्तिष्क की क्रियाशीलता का ग्राफ हमारी हथेली पर बनता है।
इस ग्राफ का अर्थ समझने की विद्या को पामिस्ट्री अर्थात हस्तरेखा विज्ञान कहते हैं। हाथ में रेखाएं मुख्यतः तीन होती हैं - जीवन रेखा, मस्तिष्क रेखा और हृदय रेखा। उनमें जीवन रेखा सभी हाथों में होती है। हृदय रेखा लगभग दो प्रतिशत हाथों में और मस्तिष्क रेखा लगभग एक प्रतिशत हाथों में नहीं होती। लेकिन ऐसा हाथ विरले ही होता है, जिसमें हृदय और मस्तिष्क, रेखाएं एक साथ गायब हों। माध्यमिक रेखाएं वे हैं, जो मस्तिष्क के अलग-अलग केंद्रों में तैयार होने वाली विद्युत तरंगों को उंगलियों के माध्यम से वातावरण में बिखेरने का कारण बनती हैं। इन रेखाओं की दिशा कलाई से उंगलियों की ओर होती है।
इनमें सबसे प्रसिद्ध रेखा शनि रेखा है। अन्य प्रसिद्ध माध्यमिक रेखाएं हैं, सूर्य रेखा और बुध रेखा। माध्यमिक रेखाएं चेतन मन की क्रियाशीलता से बनती हैं। हथेली पर कई अन्य छोटी-छोटी रेखाएं भी होती हैं, जो समय-समय पर प्रकट होती रहती हैं और मिटती रहती हैं। ये रेखाएं अर्ध चेतन मन की सक्रियता को प्रकट करती हैं। इन्हें प्रभाव रेखाएं कहा जाता है।
मस्तिष्क का जो केंद्र व्यक्ति के अहं भाव की मात्रा बढ़ाता है, हथेली में उस भाग का प्रतिनिधित्व वह स्थान करता है, जिसे गुरु पर्वत कहते हैं। मस्तिष्क का जो केंद्र व्यक्ति की सौम्यता तथा उसके अंतर्मुखी होने की मात्रा बताता है, उस केंद्र का संबंध हथेली के उस भाग से होता है, जिसे शनि पर्वत कहते हैं। मस्तिष्क का जो केंद्र व्यक्ति के बहिर्मुखी स्वभाव पर नियंत्रण रखता है, उससे संबंधित हथेली के भाग को सूर्य पर्वत कहते हैं। इसी प्रकार बुध, शुक्र, चंद्र, मंगल आदि पर्वतों का संबंध मस्तिष्क के अलग-अलग केंद्रों से है। मस्तिष्क के उन केंद्रों की पहचान करके मस्तिष्क संबंधी नयी-नयी खोजें की जा सकती हैं।