भारतीय ज्योतिष पर इस्लामी विद्वानों का प्रभाव भार त ी य ज् य ा े ित ष् ा एक महासागर है। इसके इतिहास पर यदि दृष्टि डालें तो हम पाएंगे कि इसमें अन्य धर्मों के विद्वानों ने भी अपना भरपूर योगदान देकर इसे समृद्ध किया है। इनमें इस्लाम ध् ार्म के विद्वानों का योगदान मुख्य रहा जिन्हें यवन विद्वानों की श्रेणी में रखा गया। पूर्व मध्यकाल (सन् 501 ई. से 1 हजार ई. तक) में सबसे पहले सन् 753 से 774 के बीच जब सिंध पर बगदाद के खलीफा का शासन था तब उसने एक दूत के साथ भारत के अनेक ज्योतिषियों और वैद्यों को बगदाद भेजा। बाद में खलीफा हारुन रशीद ने सन् 786 से 806 ई. के बीच अनेक ज्योतिष और वैद्यक ग्रंथों का विद्वानों के सहयोग से अरबी में अनुवाद कराया। इससे प्रेरणा पाकर अन्य भारतीय ज्येातिष और तंत्र की पुस्तकें भी अरबी, फारसी और उर्दू में लिखी गईं। इनके प्रमुख यवन लेखक थे- अलफजारी, याकवबिन तारिक और अबू अल हसन आदि। भारतीय ज्योतिष के फलित पक्ष को समृद्ध करने में कुछ यवन आचार्यों का नाम वराहमिहिर ने अपनी ‘वृहत्संहिता’ और ‘वृहज्जातक’ में बड़े सम्मान के साथ लिया है। इन यवन विद्वानों को अरबी एवं फारसी भाषाओं के साथ संस्कृत का भी अच्छा ज्ञान था।
इन यवन विद्वानों ने ‘वृहद्यवन जातक’ और ‘लघु यवन जातक’ ग्रंथों की रचना की। इनके ज्योतिष ज्ञान के कारण इन्हें ऋषि तुल्य सम्मान मिला। उस समय के भारतीय ज्योतिषियों में भट्टोत्पल, कल्याण वर्मा, वैद्यनाथ, ब्रह्मगुप्त, मंुजाल, महावीराचार्य, चंद¬्रसेन, श्रीपति, श्रीधर और भट्टवोसरि ने इन यवन विद्वानों के प्रति कृतज्ञता प्रकट की। सन् 1016 में अलबरूनी और इज़्वा 1031 के बीच मोहम्मद गजनवी के साथ भारत आए और सन् 1031 तक यहां रहकर भारतीय ज्योतिष का गहन अध्ययन किया। अलबरूनी ने ज्योतिष के गणित पक्ष के ज्योतिष सिद्धांत और उस समय के प्रमुख भारतीय ज्योतिषियों का विस्तार से उल्लेख किया। यह उसका योगदान था। मध्यकाल में भी अनेक मुस्लिम ज्योतिर्विद हुए जिन्होंने अरबी, फारसी और संस्कृत भाषाओं में ज्योतिष ग्रंथों की रचना की। इनमें कुछ हस्तलिखित साहित्य तो आज भी हैं संग्रहालयों में उपलब्ध हैं।
इनमें मुख्य हैं अबुल¬हसन, शेख पीरू और जमालशाह के जातक, तांत्रिक और प्रश्न ज्योतिष संबंधी गं्रथ। अरबी ज्येातिषियों में सैयद ओलीशाहबुखारी, मोईददीन मगरवी ‘अंदेशा’, अबुवकार बिनबहशी की लिखी ज्योतिष पुस्तकें क्रमशः असीर-उल-आलम, मुनाती-उल- मुस्तफीक, सीर-ए-मरुनन प्रमुख हैं। मुस्लिम ज्योतिषियों ने भारतीय ज्योतिष में कुंडली बनाने की ताजिक पद्धति में 16 योगों का अन्वेषण करके महत्वपूर्ण योगदान दिया। कुछ योगों के नाम हैं- इकबाल, इंदबार, मुसरिफ, इत्यशाल आदि। भारत में सर्वप्रथम हिल्लाज नामक यवन ज्योतिषी ने इन्हें प्रचलित किया। बादशाह शाहजहां के समकालिक ज्योतिषी पंडित बलभद्र ने इन्हें ‘हिल्लातंत्र’ में ग्रहण किया। बाद में पंडित नीलकंठ ने ‘ताजिकनी कंठी’ में इनका वर्णन विस्तार से किया। यवन विद्वानों में सबसे प्रमुख नाम अब्दुल रहीम खानखाना का है। यह एक अच्छे कवि भी थे।
इन्होंने हिंदी और ब्रजभाषाओं में अपनी रचनाएं कीं। इनके दो ज्योतिषीय ग्रंथ ‘खेट का¬ैतुकम’ और क्षत्रिशद्यागावली’ फलित ज्योतिष में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। खेट कौतुकम में प्रत्येक ग्रह, उसके स्थान और फलों का बहुत ही सटीक और सुंदर वर्णन किया गया है। यह गं्रथ संस्कृत और फारसी का संगम है। एक अन्य कवि ज्योतिषी शेख नवी ने भी सरल हिंदी और उर्दू में द्व ादश भाव फल पर एक काव्य लिखा। इसमें उन्होंने सरल व सीधे छंद और सीधी बातें फलित रूप में बडे सुंदर ढंग से लिखीं जैसे लग्न में सूर्य का फल आदि जिसे जातक ग्रंथों में भी इसी प्रकार लिखा गया। साथ ही शेख नवी ने इनमें अपने अनुभव भी जोड़ दिए। उनके यह अनुभव प्राचीन ग्रंथों में भी नहीं मिलते। उनका मुख्य आधार गं्रथ संस्कृत का ‘चमत्कार चिंतामणि’ था। इस प्रकार हम देखते हैं कि भ¬ारतीय ज्योतिष शास्त्र के विकास और उन्नति में केवल हिन्दू ज्योतिषयों एवं ऋषि-मुनियों का ही योगदान नहीं, वरन मुस्लिम विद्वानों का भी भरपूर योगदान है। इसी प्रकार ‘स्वप्न ज्योतिष’ को भी मुस्लिम ज्योतिषियों ने ‘रव्वाबनामा तामीर’ नाम से समृद्ध किया।