वास्तु के विविध आयाम
वास्तु के विविध आयाम

वास्तु के विविध आयाम  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 6194 | दिसम्बर 2006

वास्तु के विविध आयाम आचार्य अविनाश सिंह वास्तु शास्त्र क्या है? तथा इसकी मानव जीवन में क्या उपयोगिता है, मकान बनाते समय वास्तु के नियम क्यों अपनाये जाते हैं। वास्तुसम्मत मकान में रहने से व्यक्ति के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है। इसकी विस्तृत जानकारी प्रश्नोत्तरों के माध्यम से इस आलेख में दी जा रही है...

प्रश्न: वास्तु क्या है?

उत्तर: वास्तु शब्द ‘वास’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है ‘रहना’ अर्थात जिस स्थान पर जीव वास करता है उसी स्थान को वास्तु कहते हैं। घर, भवन, इमारतें आदि सभी वास्तु कहलाते हैं।

प्रश्न: वास्तुशास्त्र क्या है?

उत्तर: वास्तुशास्त्र वेदांग है। यह वेदों का अभिन्न अंग है। वास्तुशास्त्र अथर्व.वेद के उपवेद स्थापत्य वेद का अंग है जिस में भवन निर्माण कला का वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त कई अन्य प्राचीन ग्रंथों में भी वास्तुशास्त्र का उल्लेख मिलता है।

प्रश्न: जन-जीवन में वास्तु का क्या महत्व एवं उपयोगिता है?

उत्तर: वास्तु का महत्व जन-जीवन में इसकी उपयोगिता के कारण है। वास्तुशास्त्र की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह पंच महाभूतों से निर्मित प्राणी के जीवन में इन महाभूतों से निर्मित वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने को प्राथमिकता देता है और मानव मात्र की शारीरिक एवं मानसिक क्षमताओं को उन्नत करता है। इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर अपने नियमों एवं सिद्धांतों का प्रतिपादन एवं विवेचन करता है। इसका महत्व एवं इसकी हमारे जीवन में उपयोगिता स्पष्ट हो जाती है।

प्रश्न: ये पंचमहाभूत क्या हैं?

उत्तर: पृथ्वी के इर्द-गिर्द के वातावरण और प्रत्येक जीव में एक विशेष समानता यह है कि इनकी रचना पंचमहाभूतों के मिश्रण से हुई है। ये पंचमहाभूत हैं- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश। प्राणी मात्र में ये एक निश्चित मात्रा एवं अनुपात में रहते हैं, और उसका तन, मन एवं जीवन इनके संतुलन से स्वतः स्फूर्त और असंतुलन से निष्क्रिय हो जाता है। इन पंचमहाभूतों के संतुलन से मानव शरीर शारीरिक एवं मानसिक क्षमताएं उन्नत होती हैं।

प्रश्न: वास्तु का मूल आधार क्या है?

उत्तर: प्राणी के जीवन में इन महाभूतों से निर्मित वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने को प्राथमिकता देता है और मानव मात्र की शारीरिक एवं मानसिक क्षमताओं को उन्नत करता है। इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर अपने नियमों एवं सिद्धांतों का प्रतिपादन एवं विवेचन करता है। इसका महत्व एवं इसकी हमारे जीवन में उपयोगिता स्पष्ट हो जाती है।

प्रश्न: ये पंचमहाभूत क्या हैं?

उत्तर: पृथ्वी के इर्द-गिर्द के वातावरण और प्रत्येक जीव में एक विशेष समानता यह है कि इनकी रचना पंचमहाभूतों के मिश्रण से हुई है। ये पंचमहाभूत हैं- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश। प्राणी मात्र में ये एक निश्चित मात्रा एवं अनुपात में रहते हैं, और उसका तन, मन एवं जीवन इनके संतुलन से स्वतः स्फूर्त और असंतुलन से निष्क्रिय हो जाता है। इन पंचमहाभूतों के संतुलन से मानव शरीर शारीरिक एवं मानसिक क्षमताएं उन्नत होती हैं।

प्रश्न: वास्तु का मूल आधार क्या है?

उत्तर: कक्ष - वायव्य एवं पश्चिम, अतिरिक्त कक्ष - वायव्य, भोजन कक्ष पश्चिम, अध्ययन कक्ष - पश्चिम एवं र्नैत्य के बीच, कोषागार - उŸार, और स्टोर- र्नैत्य।

प्रश्न: भवन में मुख्य द्वार कहां होना चाहिए?

उत्तर: यदि भूखंड को चार दिशाओं में नौ भागों में बांटा जाए तो कुल मिला कर 32 कोष्ठ बनते हैं। ये ईशान से घड़ी की चाल की दिशा से चलते आग्नेय, र्नैत्य और वायव्य से होते हुए ईशान तक 1 से संख्या 32 संख्या तक होते हैं। यदि मुख्य द्वार पूर्व दिशा में बना हो, तो कोष्ठ 3 और 4 सर्वश्रेष्ठ हैं। इसी प्रकार दक्षिण में 11 और 12, पश्चिम में 20 और 21 तथा उŸार में 27, 28 व 29 कोष्ठ सर्वश्रेष्ठ स्थान माने गए हैं।

प्रश्न: यदि भूखंड विदिशा हो, तो द्व ार का स्थान कैसे लेंगे? 

उत्तर: यदि भूखंड विदिशा हो, तो आप सर्वप्रथम दिशासूचक यंत्र से ईशान कोण ढूंढ लें। भूखंड को पूर्वोक्त विधि के अनुसार 32 कोष्ठ बना लें और ईशान कोण पर जो कोष्ठ आए उसे प्रथम कोष्ठ मान कर घड़ी की चाल से संख्या अंकित कर सर्वश्रेष्ठ स्थान, जो पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उŸार में बताए गए हैं उन्हीं पर द्वार बनाना चाहिए।

प्रश्न: वास्तु पुरुष का वास्तु में क्या महत्व है?

उत्तर: भूखंड में वास्तु पुरुष की स्थिति मात्र से ही वास्तु में विभिन्न कक्षों की स्थिति के बारे में मालूम हो जाता है कि कौन सा कक्ष कहां बनाना चाहिए और कहां नहीं। वास्तु पुरुष का सिर भूखंड में ईशान कोण पर है, भुजाएं पूर्व और उŸार में फैली हैं, टांगें दक्षिण और पश्चिम में तथा पैर र्नैत्य कोण में स्थित हैं, अर्थात वास्तु पुरुष का पूर्ण भार र्नैत्य कोण पर है, इसलिए वास्तु में भारी सामान या भारी भाग र्नैत्य कोण में ही होना चाहिए।

इसीलिए स्टोर, सीढ़ियां आदि भारी कक्ष र्नैत्य में बनाए जाते है। वास्तु पुरुष का सिर ईशान में है इसलिए ईशान कोण सबसे हल्का होना चाहिए। पूजा स्थान, खुला कक्ष आदि बनाना उŸाम होता है। वास्तु पुरुष का पेट भूखंड के मध्य में आता है, इसलिए वास्तु के बीच के भाग को खाली रखा जाता है। भवन के भारी पिलर, स्टोर आदि कक्ष के बीच में नहीं बनाए जाते, क्योंकि पेट पर भार आने से वास्तु में रहने वाले व्यक्ति रोगी हो जाते हैं और उन्नत नहीं हो पाते। इस तरह वास्तु पुरुष की कल्पना कर हमारे ऋषियों ने वास्तु निर्माण की विधि को सरलता प्रदान की। इसलिए वास्तु पुरुष वास्तु में विशेष महत्व रखता है।

जीवन में जरूरत है ज्योतिषीय मार्गदर्शन की? अभी बात करें फ्यूचर पॉइंट ज्योतिषियों से!



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.