पिरामिड ऊर्जा शक्ति डाॅ. चंद्रकांत मोहनलाल पाठक? शरीर को स्फूर्तिवान बनाने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता होती है। पिरा¬मिड अपनी विशिष्ट आकृति के कारण उपयोगी ऊर्जा का प्रसार करते हैं। इनसे प्राप्त ऊर्जा का उपयोग अनेकानेक रोगों एवं मानसिक तनाव को दूर करने के लिए किया जा सकता है। मानव जीवन के लिए ये किस प्रकार उपयोगी होते हैं,
आइए जानें... जकल लोगों में पिरा¬मिड शक्ति के प्रति जिज्ञासा काफी बढ़ रही है। मिस्र के पिरामिड विश्व के सात आश्चर्यों में एक हैं। पिरामिड के विशिष्ट ज्यामितीय आ¬कार के फलस्वरूप उसके पांचों कोनों (चार बाजुओं के और एक शिखर का) में एक विशिष्ट प्रकार की सूक्ष्म किरण् ाों का उद्भव होता है। यह ऊर्जा पिरामिड की एक तिहाई ऊंचाई पर स्थित किं ग्स चैम्बर विस्तार म े ंघनीभू तहोती है। जिस बिंदु पर यह ऊर्जा केंद्रित होती है उस बिंदु को फोकल पाॅइंट कहते हैं।
फोकल पाॅइंट पर स्थित अणु इस ऊर्जा को अवशोषित करते हैं, जिसके फलस्वरूप अणु के अंतर्गत छिपे परमाणु स्पंदित होते हैं और परमाणु के भ्रमणकक्ष में स्थित इलेक्ट्रोन के उनके वर्तुलाकार भ्रमण् ाकक्ष को छोड़कर बाहर जाने से प्र¬चंड आणविक ऊर्जा उत्पन्न होती है। इस ऊर्जा से पिरामिड के आसपास का वातावरण आवेष्टित हो जाता है। पिरामिड ऊर्जा का उपयोग मानव जाति के लाभार्थ किया जा सकता है। पिरामिड के कोने शांति, बुद्धिमŸाा, सच्चाई, आध्यात्मिकता के प्रतीक हैं।
पिरामिड का दक्षिणी हिस्सा ठंडक का, उŸारी गर्मी का, पश्चिमी अंधकार का और पूर्वी सूर्य के प्रकाश का प्रतीक है। संक्षेप में पिरामिडों की चमत्कारिक शक्ति का कारण उसकी ज्यामितीय आकृति और उसकी संरचना है। पिरा¬मिड से बौद्धिक ऊर्जा शक्ति (काॅस्मिक एनर्जी) प्राप्त होती है। पिरामिड जीवनी शक्ति को बढ़ाने, शरीर को सक्रिय और जीवन को सुखमय बनाने में सहायक होता है। घर में बुरे प्रभाव-नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर वास्तुदोष निवारण करने से सुख, समृद्धि, शांति, स्वास्थ्य प्राप्त होते हैं।
थका हुआ आदमी कुछ मिनटों के लिए पिरामिड में बैठे तो उसकी थकान दूर हो जाती है और शरीर में नई शक्ति का संचार होता है। पिरामिड के अंदर एक विचित्र प्रकार का कंपन (वाइव्रेशन) पैदा होता है जो मन और शरीर को परम शांति प्रदान करता है। पिरामिड कैप के प्रयोग से एकाग्रता में वृद्धि होती है।
पिरामिड शास्त्र का यही महत्व है कि देव मंदिर, चर्च, गुरुद्वारा, मस्जिद इत्यादि में जाकर मनुष्य मानसिक शांति पा सकता है। एक इंच की ऊंचाई वाले छोटे पिरामिड का प्रभाव आठ-दस इंच की ऊंचाई तक रहता है। पिरामिड के अंदर (भीतरी भाग) में तो शक्ति होती ही है, उसके आस-पास और ऊपर-नीचे वाले हिस्सों में भी पर्याप्त शक्ति होती है। फ्रांसीसी वैज्ञानिक मेंतिझर बोविस ने पिरामिड ऊर्जा पर कई शोध किए हैं। ‘साइकिक डिस्कवरीज’ नामक पुस्तक के लेखक ड्रेबेल ने इसकी उपयोगिता का उल्लेख किया है।
पिरामिड (पायरा-अग्नि, मिड-मध्य), का अर्थ है मध्य में स्थित ऊर्जा। पि¬रामिड ऊर्जा एकत्र करने का साधन है। आकाश से ऊर्जा पिरामिड में प्रवेश करती है। पिरामिड में एकत्र होती ऊर्जा में चुंबकीय शक्ति, विद्युत-चुंबकीय तरंगें, रेडियो तरंगे, कोस्मिक किरणों एवं ब्रह्म किरणों आदि का समावेश होता है। पिरामिड एवं रंग चिकित्सा
नारंगी रंग: यह गर्म एवं कार्य क्षमता बढ़ाने वाला रंग है। लीवर, किडनी और आंत की विविध व्याधियों के उपचार, रक्त संचार को सामान्य रखने तथा मानसिक एवं इच्छा शक्ति की वृद्धि के लिए नारंगी रंग की किरणें या नारंगी रंग के पानी का उपयोग किया जाना चाहिए।
हरा रंग: यह समशीतोष्ण प्रकृति वाला रंग है। हरा रंग शरीर एवं मन को शांति प्रदान करता है। हृदय एवं रक्त के विकार, कैंसर, चर्मरोग, आंख के रोग आदि के उपचार में हरा रंग सहायक होता है। हरा रंग बुध ग्रह का रंग माना जाता है।
जामुनी रंग: अग्नि और आकाश तत्वों के रंग का प्रतीक यह जामुनी रंग शरीर के किसी भी हिस्से में हुई गांठ, संधिवात, बालों के झरने, आंखों की बीमारी या दर्द, मूत्राशय की तकलीफों आदि के उपचार में सहायक होता है। इसमें ब्रह्मांड और पिंडों दोनों के रंग समाहित हैं। और लगातार उत्सर्ग रंगों को उŸोजित करते हैं।
शरीर रंग युक्त है और उसके बाहरी अंगों के भी विविध रंग हंै। शरीर के भीतरी अवयवों और शरीर की कोशिकाओं के भी रंग होते हंै। मनुष्य के कंपन में भी रंग है। शरीर और उसके अवयव रोगग्रस्त होते हैं, तभी रासायनिक संयोजन से रोगों की उत्पŸिा होती है, रंग चिकित्सा के द्वारा इन रोगों का उपचार किया जाता है। पिरामिड के माध्यम से सूर्य प्रकाश, सौर शक्ति और रंगों आदि का सही उपयो गकिया जा सकता है। अनुकूल रंग के कांच लेकर सुबह की कोमल सूर्य किरणों से रोग ग्रस्त हिस्से में 10-15 मिनट सेक करना चाहिए।
इसलिए चारों दिशा में रखकर चक्रों की कमी दूर की जा सकती है। सूर्यग्रह की ऊर्जा शक्ति अहर्निश प्राप्त होती है। सौर ऊर्जा पर प्राणी मात्र का जीवन अवलंबित है। सूर्य का सफेद प्रकाश सात रंगों का बना है। त्रिपाश्र्व के माध्यम से सूर्य की सातों किरणें देखी जा सकती हैं। इन सात रं गों से हमारे शरीर के सातों चक्रों का संबंध है।
मूलाधार चक्र लाल रंग का होता है। यह उष्ण प्रकृति और अग्नित्व का वाहक है। पांडुरोग, सर्दी, कफ जन्य व्याधि, लकवा, सफेद दाग, क्षय, कोढ़ आदि रोगों के उपचार में लाल रंग सहायक होता है। स्वाधिस्ठान चक्र का रंग पीला है। मंदाग्नि, कब्ज, वात विकार, खुजली जैसे रोगों के उपचार में पीला रंग सहायक होता है।
गहरा नीला रंग मणिपुर चक्र का रंग है। आंख, कान, नाक के रोग, ज्ञान¬तंतु के दर्द, पक्षाघात, लकवा तथा पागलपन आदि रोगों के उपचार में नीला रंग उपयोगी होता है। अनाहत चक्र का रंग फीका आसमानी होता है। यह रंग ठंडी प्रकृति का कीटाणुनाशक, एंटीसेप्टिक गुण वाला होता है।
आसमानी रंग का पिरामिड वातजन्य सूजन को मिटाता है। मुख, गला, मस्तक के ऊपर रख कर हिस्सा में रखने से प्रभावशाली होता है। आसमानी रंग उŸोजना पर नियंत्रण रखता है। यह मधुमेह के उपचार और आध्यात्मिक विकास में लाभकारी है।
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