घर वास्तुसम्मत न हो तो क्या हो उपाय
घर वास्तुसम्मत न हो तो क्या हो उपाय

घर वास्तुसम्मत न हो तो क्या हो उपाय  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 7427 | दिसम्बर 2006

घर वास्तुसम्मत न हो तो क्या हों उपाय? पं. गोपाल शर्मा गृह निर्माण कार्य एक अति महत्वपूर्ण कार्य है। निर्माण के पश्चात भवन में यदि वास्तु दोष निकले और फिर उसे दूर करने के लिए तोड़-फोड़ करनी पड़े तो यह गृह स्वामी के लिए अति कष्टकारक स्थिति होती है। सावधानी के बाद भी यदि घर में वास्तु दोष रह जाए तो उपायों द्वारा उसका शमन कैसे किया जा सकता है, जानने के लिए पढ़िए यह आलेख...

अग्निकोण में पानी की टंकी: यह स्थान अग्नि देव का है और इसका ग्रह शुक्र है। इस स्थान पर जल का होना उचित नहीं माना गया है क्योंकि दोनों तत्व विरोधी गुण वाले व एक दूसरे के शत्रु हैं। इस स्थान पर पानी रखने से अग्नि भय, गृह कलह, धनक्षय, महिलाओं को कष्ट अथवा उनके कारण पीड़ा, क्लेश आदि होने की संभावना रहती है।

उपाय: टंकी की ऊंचाई भवन के र्नैत्य कोण के भाग की ऊंचाई से कम रखें। टंकी गोल न बनाएं, न ही संगमरमर की बनाएं। टंकी से पानी का निकास उस अग्निकोण के भाग में ईशान दिशा से होना चाहिए। हरे रंग के पिरामिड लगाएं। पानी छलक कर बाहर न निकले।

उत्तर-पूर्व दिशा में बायलर: यह स्थान देव गुरु बृहस्पति का है। यह जल का स्थान है। इस स्थान पर बायलर (अग्नि) रखने से वह जल को वाष्प बनाकर उड़ा देता है। दोनों तत्व एक दूसरे के शत्रु हैं। यदि इस स्थान पर बायलर हो, तो मान-सम्मान की हानि होती है, वंशवृद्धि नहीं होती और युवा पीढ़ी की कामयाबी में बाधाएं आती हैं। साथ ही भारी खर्च, मानसिक अशांति आदि की संभावना भी रहती है।

उपाय: इस स्थान पर क्रिस्टल, फव्वारे, बहते झरनों के फोटो आदि लगाएं। फिश एक्वेरियम भी लगा सकते हैं। उत्तर पूर्व में सीढ़ियां यह जल देव तथा अन्य ईशान देवताओं का स्थान है इस स्थान पर सीढ़ियां बनाना पृथ्वी तत्व को बढ़ाना है। सीढ़ियां इस स्थान को भारी बना देती हैं। सीढ़ियों में जूते-चप्पल व कूड़े की बाल्टियां आदि रखना सामान्य बात है। आने जाने वालों के जूतों से यह स्थान गंदा रहता है। इस प्रकार यह स्थान भारी व गंदगी वाला बन जाता है। इस स्थान पर सीढ़ियां हों, तो संतान होने में बाधा, वैभव के नाश आदि की संभावना रहती है। अतः यहां सीढ़ियां नहीं होनी चाहिए।

उपाय: सीढ़ियां क्लाॅकवाइज होनी चाहिए। सीढ़ियों की संख्या विषम होनी चाहिए। इन्हें साफ सुथरी रखें, टूटने पर यथाशीघ्र मरम्मत कराएं। सीढ़ियों के नीचे तथा ऊपर दोनों तरफ द्वार बनाएं। सीढ़ियों की छत बनाई जाए तो उसकी ऊंचाई किसी भी स्थिति में र्नैत्य कोण से अधिक नहीं होनी चाहिए। साथ ही वह ईशान, पूर्व या उत्तर में झुका रहे। ब्रह्मस्थल का भरा होना या भारी होना भवन में ब्रह्मस्थल वास्तु पुरुष का नाभि स्थल होता है।

इस स्थान का भारी होने से उसमें निवास करने वालों को पेट की बीमारी होती है। इस स्थल पर वजन नहीं रखना चाहिए यदि रखना ही हो, तो उसे चारों तरफ से शीशे लगाकर ढक दें अथवा इस पर इस प्रकार की फिल्म या शीट लगा दें जो आईने का आभास दे।

आवश्यकतानुसार 3ग3 = 9 या 5ग5 या फिर 7ग7 = 49 पिरामिडों की स्थापना करनी चाहिए। र्नैत्य (दक्षिण पश्चिम) का प्रमुख द्वार इस स्थान पर मुख्य द्वार को उचित नहीं माना गया है। एकाशिति पद विन्यासानुसार इस भाग के देवता पितृ हैं और इसे निरुति, पूतना राक्षसी आदि का स्थान माना जाता है। यहां पर राहु-केतु का प्रभाव रहता है।

यदि यहां मुख्य द्वार हो तो पति या पत्नी के विवाहेतर संबंधों की संभावना रहती है। इससे घर में क्लेश हो सकता है। यहां के निवासी देर-सवेर अपनी संस्कृति व सभ्यता छोड़ दूसरी सभ्यता अपना लेते हैं। इसके अति¬रिक्त पुत्र कष्ट, कानूनी समस्याओं, राज्य से भय, प्रेत बाधा आदि की संभावना भी रहती है।

उपाय: इस स्थान पर भारी व ऊंचा निर्माण कराएं। इसके द्वार के सामने कोई वेध न रखें। द्वार के बाहरी तरफ व द्वार के मध्य में पाकुआ दर्पण लगाना चाहिए। इस स्थान में कोणीय घुमाव वाला द्वार न बनाएं इससे र्नैत्य कोण कट जाएगा जो अत्यंत हानिकारक हो सकता है। द्वार पर या द्वार के दोनों तरफ की दीवारों पर मांगलिक चिह्न बनाएं जैसे ¬, स्वास्तिक, मंगल कलश इत्यादि। पत्थर का बना हरा पिरामिड रखें।

दक्षिण पश्चिम की दीवार पर जलरहित ऊंची चोटी के पर्वतों के चित्र लगाएं। दहलीज के नीचे चांदी की पत्ती लगाएं। चैखट पूरी रखें। विशेष: दक्षिण पश्चिमी द्वार तस्क¬रों, अस्पताल, टायर, रबड़ आदि की फैक्ट्री, दवाघरों, जुआघरों, डांस बार आदि के लिए ठीक माना जाता है, रिहायश के लिए यह द्वार अच्छा नहीं होता।

अन्य सुझाव पूर्व दिशा में दो गणेश की मूर्तियां रखें जिनमें पहली का मुख आगे तथा दूसरी की पीठ आगे, अर्थात दोनों मूर्तियों का मुख विपरीत दिशाओं में तथा पीठ बीच में मिली हुई हों। मूर्तियां सुंदर पत्थर या मिट्टी की बनी हों और स्थापना के पहले उनकी विधिपूर्वक प्राण प्रतिष्ठा की गई हो। भोजन पूर्व दिशा की ओर मुख करके करें किंतु पानी उत्तर पूर्व दिशा की ओर मुख करके पीएं। मकान में या हवेली के अंदर बबूल का वृक्ष होने से गृहस्वामी के निःसंतान रहने की संभावना रहती है।

अतः ऐसे वृक्ष को अवश्य कटवा देना चाहिए। यदि किसी कारणवश मकान का मुख्य द्वार दक्षिण दिशा से अन्य दिशा में संभव न हो, तो कम से कम उसकी दहलीज के नीचे उसकी लंबाई के बराबर चांदी का पत्तर अवश्य लगा दें और अपने ड्राइंग रूम में या मुख्य द्वार के सामने कच्ची मिट्टी से बनी हुई बं दर की मू र्ति स्थापित करे ं।कच्ची मिट्टी के बंदर से लाभ होगा। कुआं, पानी का टैंक, हैंड पंप आदि उत्तर-पूर्व क्षेत्र में सर्वोत्तम माने गए हैं।

पानी की टंकी छत या मुख्य दरवाजे के ऊपर कभी नहीं रखनी चाहिए, इससे गृहस्वामी को हृदय संबंधीत रोगों की संभावना रहती है। सीढ़ियों के नीचे शौचालय, स्न¬ानागार आदि कभी भी नहीं बनाने चाहिए, बिजली की मोटर, बिजली का मीटर इत्यादि कभी न रखें। इससे घर में कलह का वातावरण रहता है। कार गैराज दक्षिण पूर्व या उत्तर-पश्चिम में बनाएं।

जीवन में जरूरत है ज्योतिषीय मार्गदर्शन की? अभी बात करें फ्यूचर पॉइंट ज्योतिषियों से!



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.