श्री लक्ष्मी नारायण व्रत
श्री लक्ष्मी नारायण व्रत

श्री लक्ष्मी नारायण व्रत  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 12420 | दिसम्बर 2006

श्री लक्ष्मी नारायण व्रत पं. ब्रज किशोर ब्रजवासीलक्ष्मी नारायण व ्र त मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से प्रारंभ होने वाला है जो वर्ष की प्रत्येक पूर्णिमा को मनाया जाएगा और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को समाप्त होगा।

यह सब पापों को दूर करने वाला, पुण्यदायी तथा सभी दुखों का नाशक है। यह ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र सभी वर्णों के स्त्री पुरुषों की समस्त मनोवांछित कामनाओं को पूरा करने वाला तथा संपूर्ण व्रतों का फल देने वाला है। इस व्रत से बुरे-बुरे स्वप्नों का नाश हो जाता है। यह धर्मानुकूल व्रत दुष्ट ग्रहों की बाधा का निवारण करने वाला है, इसका नाम है पूर्णिमा व्रत। यह परम उत्तम तथा संपूर्ण जगत में विख्यात है। इसके पालन से पापों की करोड़ों राशियां नष्ट हो जाती हैं।

इस व्रत का श्रीसनक जी ने देवर्षि नारद जी को उपदेश किया है। श्री विधि का उल्लेख करते हुए श्री सनक जी नारद से कहते हैं- ‘मुनि श्रेष्ठ ! मार्ग शीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पूणर्् िामा तिथि को संयम नियम पूर्वक पवित्र हो शास्त्रीय विधि के अनुसार दंतधावन पूर्वक स्नान करे। फिर श्वेत वस्त्र धारण करके शुद्ध और मौन होकर घर आए।

वहां हाथ-पैर धोकर आचमन करके भगवान नारायण का स्मरण करे और संध्या-वंदन, देवपूजा आदि नित्यकर्म करके संकल्पपूर्वक भक्ति भाव से भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा करे। व्रती पुरुष ¬ नमो नारायण् ााय मंत्र एवं विभिन्न उपचारों (ध्यान, आवाहन, आसन, पाद्य, अघ्र्य, आ.चमन, स्नान, दुग्ध स्नान, दधि स्नान, घृत स्नान, मधु स्नान, शर्करा स्नान, पंचामृत स्नान, गन्धोदक स्नान, शुद्ध ोदक स्नान, वस्त्र, उपवस्त्र, यज्ञोपवीत, गंध, अक्षत, पुष्प, तुलसीपत्र, दूर्वा, आभूषण शृंगार सामग्री, सुगंधित तैल, धूप, दीप, नैवेद्य, अखंड ऋतुफल, ताम्बूल, दक्षिणा, आरती, स्तुति प्रा¬र्थना, शंखजल, पुष्पांजलि, प्रदक्षिणा, क्षमाप्रार्थना आदि) से पूजन पूर्ण करे। गृहाणाध्र्यं मया दत्तं रोहिणीनायक प्रभो। ‘भगवान रोहिणीपते !

आपका जन्म अत्रि कुल में हुआ और आप क्षीरसागर से प्रकट हुए हैं। मेरे दिए हुए इस अघ्र्य को स्वीकार कीजिए।’ इस प्रकार चंद्रदेव को अघ्र्य देकर पूर्वाभिमुख खड़ा हो चंद्रमा की ओर देखते हुए हाथ जोड़कर प्रार्थना करे। भगवान आप श्वेत किरणों से सुशोभित हैं, आपको नमस्कार है। आप द्विजों के राजा हैं, आपको नमस्कार है। आप रोहिणी के पति हैं, आपको नमस्कार है। आप लक्ष्मीजी के भाई हैं, आपको नमस्कार है।’’ तदनंतर पुराण श्रवण आदि के द्व ारा इंद्रियों पर नियंत्रण रखते हुए शुद्ध भाव से रातभर जागरण करे। पाख्ंाडियों की दृष्टि से दूर रहे। फिर प्रातः काल जागकर अपने नित्य नियम का विधिपूर्वक पालन करे। उसके बाद पूर्वानुसार या अपने वैभव के अनुसार पुनः भगवान की पूजा करे।

तत्पश्चात यथाशक्ति ब्राह्मणों को भोजन कराए और स्वयं भी शुद्ध चित्त हो। अपने भाई बंधुओं तथा भृत्य के साथ भोजन करे, भोजन के समय मौन रहे। इसी प्रकार पौष, माघ फाल्गुन, चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन महीनों में भी पूणर्् िामा को उपवास करके भक्तिपूर्वक रोग-शोक से रहित हो भगवान नारायण की पूजा अर्चना करे। इस तरह एक वर्ष पूरा करके कार्तिक मास की पूर्णिमा को उद्यापन करे।

उद्यापन विधि: श्री सनक जी कहते हैं, ‘देवर्षि नारद ! व्रती पुरुष एक परम सुं¬दर चैकोर मंगलमय मंडप बनवाए, जो पुष्प लताओं से सुशोभित तथा चंदोवा और ध्वजा-पताका से सुसज्जित हो। मंडप अनेक दीपकों के प्रकाश से दीप्तमान होना चाहिए।

उसकी शोभा बढ़ाने के लिए छोटी-छोटी घंटिकाओं से सुशोभित झालर लगा देनी चाहिए। उसमें किनारे-किनारे बड़े-बड़े शीशे और चंवर लगा देने चाहिए। मंडप कलशों से घिरा रहे। मंडप के मध्य भाग में पांच रंगों से सुशोभित सर्वतोभद्र मंडल बनाए। नारद जी ! उस मंडल पर जल से भरा हुआ एक कलश स्थापित करे। फिर सुंदर एवं महीन वस्त्र से उस कलश को ढक दे। उसके ऊपर सोने, चांदी अथवा तांबे से भगवान लक्ष्मीनारायण की परम सुंदर प्रतिमा बनाकर स्थापित करे। भगवान के हृदय में ही लक्ष्मीजी का ध्यान करे। तदनंतर जितेन्द्रिय पुरुष भक्तिभाव से भगवान की पूर्व में वर्णित उपचारों से पूर्ण विधि-विधान के साथ पूजा करे। रात्रि में जागरण करे।

दूसरे दिन प्रातः काल पूर्ववत् भगवान विष्णु की विधिपूर्वक अर्चना करे। फिर दक्षिणा सहित प्रतिमा आचार्य को दान कर दे। धन-वैभव के अनुसार ब्राह्मणों को यथाशक्ति भोजन अवश्य कराए तथा द्रव्य दक्षिणा, वस्त्राभूषणादि से संतुष्ट करे। उसके बाद एकाग्र चित्त हो व्रती यथाशक्ति तिल दान करे। और तिल का ही विधिपूर्वक अग्नि में हवन करे। तदुपरांत बंधु-बांधवों, भृत्यों के साथ स्वयं प्रसाद ग्रहण करे।

जो मनुष्य इस प्रकार भली भांति लक्ष्मीनारायण का व्रत करता है, वह इस लोक में पुत्र-पौत्रों के साथ महान भोग भोगकर सब पापों से मुक्त हो अपनी बहुत सी पीढ़ियों के साथ भगवान के वैकुंठ धाम में जाता है, जो योगियों के लिए भी दुर्लभ है।

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