गोलीय दृष्टिकोण: उपग्रह वे आकाशीय पिंड हैं जो ग्रहों के इर्द-गिर्द चक्कर लगाते हैं। चंद्र पृथ्वी के इर्द-गिर्द चक्कर लगाता है, इसलिए इसे उपग्रह माना गया है। लेकिन सूर्य के बाद चंद्र का महत्वपूर्ण स्थान है। चंद्र भी सूर्य की भांति रोशनी फैलाता है किंतु वास्तव में यह सूर्य की रोशनी से ही चमकता है। अन्य ग्रहों की भांति चंद्र की दैनिक गति भी पूर्व से पश्चिम है। ऐसा पृथ्वी के अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमने के कारण ही होता है।
अन्य ग्रहों की भांति चंद्र भी पश्चिम से पूर्व की ओर गमन करता है। एक पूर्ण चक्र लगाने में चंद्र को लगभग 27 दिन 7 घंटे और 43 मिनट लगते है। चंद्र के एक पूर्ण चक्र का यह समय, जिसका औसत परिमाण 27.3127 सौर दिन हैं, एक नक्षत्र मास कहलाता है। एक अमावस से दूसरे अमावस तक के समय को एक संयुति मास कहते हैं, जो 29.5305887 औसत सौर दिन के बराबर होता है।
यह नक्षत्र मास से अधिक है क्योंकि जब तक चंद्र पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी करता है, सूर्य भी लगभग एक राशि आगे चला जाता है और चंद्र को फिर से सूर्य के सामने आने में कुछ समय और लग जाता है। चंद्र की पृथ्वी से औसत दूरी 2,39,000 मील है। यह दूरी भूमि नीच पर 2,21,460 मील से भूमि उच्च पर 2,52,700 मील के बीच घटती-बढ़ती रहती है। चंद्र की कक्षा के आकार में भी परिवर्तन होता रहता है
क्योंकि चंद्र पर पृथ्वी की आकर्षण शक्ति के प्रभाव के अतिरिक्त अन्य ग्रहों एवं सूर्य की आकर्षण शक्ति का प्रभाव भी पड़ता है। इसीलिए चंद्र के भूमि-नीच बिंदु की दिशा भी बदलती रहती है। चंद्र के पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाने में एक भूमि नीच बिंदु से दूसरी बार भूमि नीच बिंदु तक आने में जो समय लगता हैं उसे परिमास या कोणिकांतर मास कहते हैं, जो 27.5546 औसत सौर दिन के बराबर होता है। चंद्र को एक चढ़ते पात से दूसरे चढ़ते पात तक की स्थिति में आने में जो समय लगता है उसे एक पात मास कहते हैं, जो 27. 2122 औसत सौर दिन के बराबर होता है।
चंद्र पृथ्वी के चारों ओर जो कक्षा बनाता है, वह क्रांति वृत्त से 5015’ तक उŸारी और दक्षिणी अक्षांश पर रहता है। चंद्र का हमेशा एक ही भाग पृथ्वी के सामने होता है क्योंकि यह अपनी धुरी पर उतने ही समय में एक बार घूमता है जितने समय में यह पृथ्वी का एक पूरा चक्कर लगाता है। हम चंद्र के केवल 59 प्रतिशत भाग को देख पाते हैं।
पौराणिक दृष्टिकोण: चंद्र देव का वर्ण गौर है। इनके वस्त्र, अश्व और रथ तीनों श्वेत वर्ण के हैं। ये संुदर रथ पर कमल के आसन पर विराजमान हैं। इनके सिर पर सुंदर स्वर्ण मुकुट तथा गले में मोतियों की माला है। इनके एक हाथ में गदा है और दूसरा हाथ वरदान की मुद्रा में है। श्री मद्भागवत के अनुसार चंद्रदेव महर्षि अत्रि और अनसूया के पुत्र हैं। इन्हें सर्वमय कहा गया है। ये सोलह कलाओं से युक्त हैं।
इन्हें ख 60 Û फ्यूचर समाचार Û मार्च 2008 खगोल ज्योतिष । अन्न्ामय, मनोमय, अमृतमय, पुरुष स्वरूप भगवान कहा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने इन्हीं के वंश में अवतार लिया था, इसीलिए वे चंद्र की सोलह कलाओं से युक्त थे। हरिवंश पुराण के अनुसार ब्रह्मा ने चंद्र देव को बीज, औषधि, जल तथा ब्राह्मणों का राजा बना दिया। इनका विवाह अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी आदि दक्ष भी सŸााईस कन्याओं से हुआ, जो सŸााईस नक्षत्रों के रूप में भी जानी जाती हैं।
चंद्र देव के पुत्र का नाम बुध है, जो तारा से उत्पन्न्ा हुए हैं। चंद्र के अधिदेवता अप् और प्रत्यधि देवता उमादेवी हैं। नौ ग्रहों मे इनका स्थान दूसरा है। महाभारत के वन पर्व के अनुसार चंद्र देव की पत्नियां शील और सौंदर्य सम्पन्न्ा हैं तथा पतिव्रत-धर्म का पालन करने वाली हैं। इस तरह नक्षत्रों के साथ चंद्र देव परिक्रमा करते हुए सभी प्राणियों के पोषण के साथ-साथ पर्व, संधियों एवं विभिन्न मासों का विभाग किया करते हैं।
पूर्णिमा को चंद्रोदय के समय तांबे के बर्तन में मधु मिश्रित पकवान यदि चंद्र देव को अर्पित किया जाए, तो इनकी तृप्ति होती है। इनकी तृप्ति से आदित्य, विश्वदेव, मरुद्ग्ण और वायुदेव तृप्त होते हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार चंद्रदेव का वाहन रथ है। इस रथ में तीन चक्र होते हैं और दस बलवान घोड़े जुते रहते हैं। सभी घोड़े दिव्य, अनुपम और मन के समान वेगवान हैं। घोड़ों के नेत्र और कान भी श्वेत हैं। वे शंख के समान उज्ज्वल हैं। ज्योतिषीय दृष्टिकोण: ज्योतिष में चंद्र को ग्रह माना गया है।
इसके पृथ्वी के सर्वाधिक निकट होने के कारण पृथ्वीवासियों पर इसका प्रभाव सब से अधिक पड़ता है। इसी कारण कुंडली में चंद्र जिस राशि में होता है वही जातक की राशि मानी जाती है। अन्य ग्रहों के गोचर को चंद्र के संदर्भ में ही देखा जाता है। महादशा की गणना भी चंद्र की स्थिति पर ही निर्भर करती है। ज्योतिष में मुहूर्त आदि की गणना भी चंद्र की स्थिति के आधार पर ही की जाती है। संवत् और मासों की गणना भी चंद्र पर निर्भर करती है। मल-मास और अधिक मास भी चंद्र की स्थिति पर ही निर्भर करते हैं। तिथि, नक्षत्र, करण, योग आदि की गणना भी चंद्र की स्थिति के आधार पर की जाती है।
चंद्र अपनी क्रांति वृत्त में 24 घंटे में औसतन 13020श् आगे बढ़ता है। चंद्र से प्रभावित जातक स्थूल शरीर, श्वेत वर्ण और सुंदर आकर्षक आंखों वाला होता है। उसके बाल घुंघराले होते हैं। चंद्र मन, प्रतिभा, मनभावों, दिल, माता, सुंदरता, युवतियों, प्रसिद्ध व्यक्तियों, सैर के शौकीनों, मृदु वाणी आकर्षक शक्ति, इत्र, रस, अस्थिर मन, व्यसन और रक्त के प्रवाह का शासक है। चंद्र जलीय तत्वों, झीलों, समुद्रों, नदियों, वर्षा, दूध, शहद, गन्न्ो, मोती, मीठी वस्तुओं, चावल, जौ, गेहूं और कृषि का प्रतीक है। शरीर के अंगों में यह धमनियों, नसों, मस्तिष्क, मोटापे, पेट, गर्भाशय, ब्लैडर, छाती, अंडाशय और प्रजनन अंगों का प्रतीक है।
चंद्र के कुण्डली मंे कमजोर होने पर यौन रोग, पीलिया, श्वसन रोग (दमा), त्वचा रोग, अपच आदि होते हंै। कफ और वायु विकार भी चंद्र के कारण ही होते हैं। ज्योतिष में चंद्र को स्त्रीलिंग माना गया है। नौ ग्रहों में चंद्र को रानी की उपाधि दी गई है। चंद्र उŸार-पश्चिम दिशा का स्वामी है। चंद्र की प्रतिकूलता से व्यक्ति मानसिक कष्ट और श्वसन रोगों से पीड़ित होता है।
चंद्र की शांति के लिए सोमवार का व्रत तथा शिव की उपासना करनी चाहिए। चावल, कपूर, सफेद वस्त्र, चांदी, शंख, सफेद चंदन, श्वेत पुष्प, चीनी, दही, मोती आदि ब्राह्मण को दान करने चाहिए। चंद्र का बीज मंत्र ‘‘¬ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः’’ तथा सामान्य मंत्र ‘‘¬ सों सोमाय नमः’’ है। इनमें से किसी का भी श्रद्धापूर्वक नित्य एक निश्चित संख्या में जप करना चाहिए।