टॉनॅनसिलाइटिसः खान-पान में सावधानी का अभाव आचार्य अविनाश सिंह टॉनसिलाइटिस एक बाल रोग है, जो बच्चों को बचपन में ही अपने शिकंजे में जकड़ लेता है। इस का मुखय कारण गलत खान-पान होता है। अगर बड़े होने पर भी खान-पान गलत रहें, तो बड़े हो कर भी यह रोग हो सकता है। जो बालक बचपन में अपने खान-पान का ध्यान न रखते हुए खट्टी, तली और मसालेदार चीजों का उपयोग करते हैं, उन्हें टॉनसिलाइटिस रोग हो जाता है।
हर व्यक्ति के गले में दो नरम मांस के लिज़लिजे टुकड़े होते हैं, जो श्लेष्मल झिल्ली से जुड़े होते हैं। इनके द्वारा लसिका का भ्रमण होता है, जो रक्तधारा से जीवाणुओं और गंदगी को दूर करने में मदद करता है। गले का टॉनसिल वाला भाग जब जीवाणु, या विषाणु के कारण दूषित हो जाता है, तो उसे टॉनसिलाइटिस कहते हैं। इसमें ग्रसनी लसिका के ढांचे में सूजन आ जाती है। साथ ही लसिका ग्रंथि और उसके आसपास का क्षेत्र भी सूज कर लाल हो जाता है। टॉनसिल एक तरह का पहरेदार है, जो मुंह और नाक द्वारा शरीर के अंदर जाने वाले नुकसानदायक पदार्थों से बचाता है। जब शरीर के अंदर कोई गलत चीज जाती है, तो यह पहरेदार सारा नुकसान अपने ऊपर ले लेता है; अर्थात् टॉनसिल सूज जाता है। टॉनसिल की इस सूजी अवस्था को टॉनसिलाइटिस कहते हैं। टॉनसिलाइटिस हो जाने पर अक्सर डॉक्टर शल्य क्रिया द्वारा टॉनसिल बाहर निकाल देते हैं, जो गलत है।
आधुनिक अनुसंधानों से मालूम हुआ है कि टॉनसिल को निकाल देने से व्यक्ति के शरीर में रोगनिरोधक शक्ति समाप्त हो जाती है। अनचाही वस्तु शरीर में प्रवेश कर शरीर को नुकसान पहुंचा कर बाद में कई प्रकार की समस्याएं खड़ी कर सकती हैं, जैसे संदूषण हमारे शरीर में घुस जाता है तथा आराम से हृदय, जोड़ों, या गुर्दे, गॉलब्लैडर में बैठ जाता है, तथा शरीर के उन भागों को धीरे-धीरे कमजोर कर देता है, ठीक वैसे ही जैसे जंग लोहे को खा जाता है। टॉनसिल एक अंतःस्रावी ग्रंथि है, जो अवतु ग्रंथि की विरोधी है। अतः जब टॉनसिल को निकाल दिया जाता है, तो थायराइड बहुत बढ़ जाता है। क्योंकि थायराइड पियूष ग्रंथि का विरोधी हैं, इसलिए पियूष ग्रंथि का कार्य बिगड़ जाता है। अतः कई बार बढ़ते बच्चों की याददाश्त बिगड़ जाती है।
टॉनसिल के किसी भी मरीज को ठीक करने का अर्थ है, उसके शरीर में इस प्रकार की प्रतिरोध क्षमता उत्पन्न करना, जिससे वह शरीर के हानिकारक सूक्ष्म जीवों से लड़ सके। जब शरीर की प्रतिरक्षा पद्धति भंग होती है, तब जीवाणु हमारे शरीर के अंदर प्रविष्ट होते हैं, जो पहले टॉनसिल और बाद में पूरे शरीर को हानि पहुंचाते हैं।
घरेलू उपचार : हल्दी, सेंधा नमक, वायडिंग तीनों वस्तुओं का छह छह ग्राम लें और 300 ग्राम पानी में पांच मिनट धोलें। फिर कपड़े में छान कर गर्म पानी से नित्य दो बार गरारे करें। रात में सोते समय अवश्य करें। एक सप्ताह में ही रोग जाता रहता है। गाजर का रस प्रतिदिन तीन-चार बजे दिन में एक छोटा गिलास लगातार दो-तीन माह तक पीएं। गरम पानी में नमक डाल कर गरारे करने से आराम आ जाता है।
दिन में दो-तीन बार नमक के गरारे करें। आंवले का चूर्ण गाय के दूध के साथ पीएं। फूली फिटकरी दो ग्राम गर्म पानी में डाल कर दिन में दो-तीन बार गरारे करें। बच, अजवायन, मालकांगनी, कुलंजन, हरड़ की गिरी, सेंधा नमक, इन सबका चूर्ण बना कर, सुबह-शाम शहद में मिला कर, सेवन करें। सोंठ, काली मिर्च, पीपल, हरड़, बहेड़ा, आंवला और जवारवाट, इन सबका चूर्ण बनाकर थोड़ा-थोड़ा मुंह में डालते रहें। अकरकरा, कुलंजन और मुलेठी के टुकड़े सुपारी की तरह मुंह में रखने से टॉनसिल में आराम मिलता है। अडूसे के पत्तों का काढ़ा शहद के साथ पीएं। गोरखमुंडी की जड़ पान में रख कर खाएं।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण : ज्योतिषीय दृष्टिकोण से जन्मकुंडली में तृतीय भाव से गले का विचार किया जाता है। तृतीय भाव का कारक ग्रह मंगल है। मंगल को ग्रह मंत्रिमंडल में सेनापति माना गया है और सेनापति का कार्य सुरक्षा करना है। टॉनसिल भी एक तरह का सुरक्षा प्रहरी है, जो हमें नुकसान पहुंचाने वाले विषाणुओं से बचाता है।
इसलिए टॉनसिल का कारक ग्रह मंगल है। कुंडली में तृतीय भाव, मंगल, तृतीयेश और लग्नेश जब दूषित प्रभावों में रहते हैं, तो टॉनसिल रोग, या गले से संबंधित रोग होता है।
विभिन्न लग्नों में टॉनसिल रोग :
मेष लग्न : बुध तृतीय भाव में, शनि षष्ठ भाव में, या लग्न में हो और राहु की दृष्टि लग्न, या तृतीय भाव पर हो और लग्नेश मंगल षष्ठ भाव में हो, तो टॉनसिल रोग होता है।
वृष लग्न : तृतीयेश चंद्र षष्ठ भाव में हो, लग्नेश शुक्र धनु, या मीन राशि में रहे, गुरु तृतीय भाव में हो, या तृतीय भाव को देखता हो और मंगल राहु से दृष्ट या युक्त हो, तो टॉनसिल रोग होता है।
मिथुन लग्न : मंगल तृतीय भाव में हो, तृतीयेश षष्ठ भाव में लग्नेश से युक्त हो, लग्नेश अस्त हो और तृतीय भाव को देखता हो और मंगल राहु से दृष्ट, या युक्त हो, तो टॉनसिल रोग होता है।
कर्क लग्न : तृतीयेश बुध षष्ठ भाव में, मंगल-शनि से युक्त, केंद्र में हो, लग्नेश चंद्र अपनी नीच राशि में राहु, या केतु से दृष्ट हो, तृतीय भाव पर षष्ठेश की दृष्टि हो, तो टॉनसिल से बच्चों को समस्या रहती है।
सिंह लग्न : मंगल अष्टम भाव में, तृतीयेश षष्ठ भाव में शनि से युक्त हो और बुध तृतीय भाव में राहु से युक्त, या दृष्ट हो, तो गले संबंधी रोग होता है।
कन्या लग्न : मंगल अष्टम भाव में और राहु तृतीय भाव में हों, तृतीय भाव पर गुरु की दृष्टि हो, लग्नेश बुध त्रिक भावों में अस्त हो, तो टॉनसिल जैसे गले से संबंधित रोग होते हैं।
तुला लग्न : गुरु अष्टम भाव, या दशम भाव में हो, चंद्र गुरु से त्रिक स्थानों में हो, बुध तृतीय भाव में मंगल से युक्त हो और लग्नेश शुक्र अस्त हो और राहु-केतु से दृष्ट हो, तो ऐसे रोग होते हैं।
वृश्चिक लग्न : बुध तृतीय भाव में हो और लग्नेश मंगल षष्ठ, या अष्टम भाव में राहु या केतु से दृष्ट हो, चंद्र शनि से युक्त, या दृष्ट हो, तो टॉनसिल जैसे रोगों का जन्म होता है।
धनु लग्न : शुक्र लग्न में हो और शनि से युक्त हो, मंगल तृतीय भाव में बुध से युक्त हो और राहु, या केतु से दृष्ट हो, लग्नेश षष्ठ भाव में हो, तो टॉनसिल रोग होता है।
मकर लग्न : गुरु लग्न में हो, मंगल राहु, या केतु से दृष्ट, या युक्त हो और अष्टम भाव में स्थित हो, तृतीयेश पर लग्नेश की दृष्टि हो, तो टॉनसिलाइटिस रोग होता है।
कुंभ लग्न : गुरु तृतीय भाव में, मंगल द्वादश भाव में राहु या केतु से युक्त, या दृष्ट हो, तृतीय भाव पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो, तो टॉनसिल जैसे रोग की उत्पत्ति होती है।
मीन लग्न : शुक्र षष्ठ भाव और गुरु अष्टम भाव में, बुध तृतीय भाव में, मंगल चतुर्थ, या सप्तम में हो, लेकिन सूर्य से अस्त हो, तो टॉनसिल होने की संभावना होती है। उपर्युक्त सभी योग चलित कुंडली पर आधारित हैं। रोग की उत्पत्ति संबंधित ग्रह दशा-अंतर्दशा और गोचर ग्रह के प्रतिकूल रहने से होता है। जब तक दशा-अंतर्दशा प्रतिकूल रहेंगे, शरीर में रोग रहेगा।
उसके बाद ठीक हो जाएगा। लेकिन ठीक अवस्था में भी पाचन संस्थान में कुछ व्याधि रहेगी। वृष लग्न में तृतीयेश चंद्र षष्ठ भाव में हो, लग्नेश शुक्र धनु, या मीन राशि में रहे, गुरु तृतीय भाव में हो, या तृतीय भाव को देखता हो और मंगल राहु से दृष्ट या युक्त हो, तो टॉनसिल रोग होता है।