शिवरात्रि व्रत एवं पूजन सामग्री
शिवरात्रि व्रत एवं पूजन सामग्री

शिवरात्रि व्रत एवं पूजन सामग्री  

व्यूस : 13830 | मार्च 2008
शिवरात्री व्रत एवं पूजन सामग्री आचार्य रमेश शास्त्राी शिव का शाब्दिक अर्थ कल्याणकारी होता है। इस दृष्टि से महाशिव रात्रि का अर्थ हुआ कल्याणकारी रात्रि। तिथियों में चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं। यह तिथि उनकी प्रिय तिथि है। जैसा कि निम्न श्लोक में वर्णित है। चतुर्दश्यां तु कृष्णायां फाल्गुने शिवपूजनम्। तामुपोष्य प्रयत्नेन विषयान् परिवर्जयेत।। शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपापप्रणाशनम्। -शिवरहस्य महाशिवरात्रि का व्रत फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। वैसे तो प्रत्येक मास की कृष्ण चतुर्दशी को शिव भक्त मास शिवरात्रि के रूप में व्रत करते हैं, लेकिन इस शिवरात्रि का शास्त्रों के अनुसार बहुत बड़ा माहात्म्य है। ईशान संहिता के अनुसार शिवलिंगतयोद्भूतः कोटि सूर्यसमप्रभः अर्थात फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को अर्द्धरात्रि के समय भगवान शिव परम ज्योतिर्मय लिंग स्वरूप हो गए थे इसलिए इसे महाशिवरात्रि मानते हैं। सिद्धांत शास्त्रों के अनुसार शिवरात्रि के व्रत के बारे में भिन्न-भिन्न मत हैं, परंतु सर्वसाधारण मान्यता के अनुसार जब प्रदोष काल रात्रि का आंरभ एवं निशीथ काल (अर्द्धरात्रि) के समय चतुर्दशी तिथि रहे उसी दिन शिव रात्रि का व्रत होता है। समर्थजनों को यह व्रत प्रातः काल से चतुर्दशी तिथि रहते रात्रि पर्यंत तक करना चाहिए। रात्रि के चारों प्रहरों में भगवान शंकर की पूजा अर्चना करनी चाहिए। इस विधि से किए गए व्रत से जागरण, पूजा, उपवास तीनों पुण्य कर्मों का एक साथ पालन हो जाता है और भगवान शिव की विशेष अनुकंपा प्राप्त होती है। व्यक्ति जन्मांतर के पापों से मुक्त होता है। इस लोक में सुख भोगकर व्यक्ति अंत में शिव सायुज्य को प्राप्त करता है। जीवन पर्यंत इस विधि से श्रद्धा-विश्वास पूर्वक व्रत का आचरण करने से भगवान शिव की कृपा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। जो लोग इस विधि से व्रत करने में असमर्थ हों वे रात्रि के आरंभ में तथा अर्द्धरात्रि में भगवान शिव का पूजन करके व्रत पूर्ण कर सकते हैं। यदि इस विधि से भी व्रत करने में असमर्थ हों तो पूरे दिन व्रत करके सायंकाल में भगवान शंकर की यथाशक्ति पूजा अर्चना करके व्रत पूर्ण कर सकते हैं। इस विधि से व्रत करने से भी भगवान शिव की कृपा से जीवन में सुख, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। शिवरात्रि में संपूर्ण रात्रि जागरण करने से महापुण्य फल की प्राप्ति होती है। गृहस्थ जनों के अलावा संन्यासी लोगों के लिए इस महारात्रि की साधना एवं गुरुमंत्र दीक्षा आदि के लिए विशेष सिद्धिदायक मुहूर्त होता है। अपनी गुरु परंपरा के अनुसार संन्यासी जन इस रात्रि में साधना आदि करते हैं। महाशिवरात्रि की रात्रि महा सिद्धिदायी होती है। इस समय में किए गए दान पुण्य, शिवलिंग की पूजा, स्थापना का विशेष फल प्राप्त होता है। इस सिद्ध मुहूर्त में पारद अथवा स्फटिक शिवलिंग को अपने घर में अथवा व्यवसाय स्थल या कार्यालय में स्थापित करने से घर-परिवार, व्यवसाय और नौकरी में भगवान शिव की कृपा से विशेष उन्नति एवं लाभ की प्राप्ति होती है। परमदयालु भगवान शंकर प्रसन्न होकर मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। पारद शिवलिंग: प्राचीन ऋषि-महर्षियों के अनुसार पारद स्वयं सिद्ध धातु है। इसका वर्णन चरक संहिता आदि महत्वपणर््ू ा गथ्ं्र ाा ंे म ंे मिलता है। शिवपुराण में पारद को शिव का वीर्य कहा गया है। वीर्य बीज है जो संपूर्ण जीवों की उत्पत्ति का कारक है। इसी के द्वारा भौतिक सृष्टि का विस्तार होता है। वीर्य की रक्षा करने से व्यक्ति को अमरत्व की प्राप्ति होती है तथा अपव्यय करने से व्यक्ति बारंबार जीवन-मरण के चक्कर में पड़ता है। मरणं विंदु पातेन जीवन विंदु रक्षणात् । पारद का शिव से साक्षात संबंध होने से इसका अपना अलग ही माहात्म्य है। पारद शिव लिंग के श्रद्धा पूर्वक दर्शन मात्र से ही पुण्यफल की प्राप्ति होती है। गृहस्थ व्यक्तियों के लिए अन्य धातु के लिंगों की अपेक्षा पारद अथवा स्फटिक शिवलिंग की पूजा एवं स्थापना अधिक सिद्धिदायक होती है। इसके नित्य पूजन, अभिषेक और दर्शन मात्र से मनोकामना पूर्ण होती है। जिन व्यक्तियों के पास धन की विशेष कमी न हो लेकिन स्वास्थ्य ठीक न रहता हो उन्हें अपने घर में पारद शिव लिंग की पूजा अर्चना करने से अच्छी आयु, आरोग्य की प्राप्ति होती है। स्फटिक शिवलिंग: जिनके पास धन का अभाव हो, अधिक धन, यश की इच्छा हो तो उन्हें नित्य अपने घर में स्फटिक शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। संक्षिप्त पूजन एवं स्थापना विधि ः शिवरात्रि को प्रदोष काल (रात्रि के आरंभ) में अथवा निशीथ काल (अर्द्धरात्रि) में समय शुद्धावस्था में पारद शिवलिंग अथवा स्फटिक शिवलिंग की स्थापना करनी चाहिए। सबसे पहले गंगाजल अथवा शुद्ध जल से स्नान कराएं और तब दूध, दही, घी, मधु, शक्कर से क्रम अनुसार स्नान कराकर चंदन लगाएं फिर फूल, बिल्वपत्र चढ़ाएं और धूप और दीप से पूजन करें। शीघ्र फल प्राप्ति के लिए निम्न मंत्रों में से किसी एक मंत्र का महाशिवरात्रि से जप प्रारंभ करके लिंग के सम्मुख बैठकर नित्य एक माला जप करें। मंत्र: ¬ नमः शिवाय ¬ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्। ¬ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.