बगलामुखी माला मंत्र
बगलामुखी माला मंत्र

बगलामुखी माला मंत्र  

व्यूस : 30617 | मार्च 2008
बगलामुखी माला मंत्र एम. एल. आचार्य साधारण व्यक्तियों के लिए बगलामुखी माला मंत्र बहुत सरल और उपयोगी सिद्ध हो सकता है। साधक को इस माला मंत्र का 108 बार पठन करना होता है। यह मंत्र अधिक क्लिष्ट भाषा में भी नहीं है और साधारण व्यक्ति भी इसको पढ़ सकता है। इस गोपनीय माला मंत्र में गजब की शक्ति है। यह शत्रु भय समाप्त करने वाला देखा गया है। मुख्य रूप से यह मंत्र उन विवाहित दंपतियों के लिए अधिक लाभकारी सिद्ध हो सकता है, जिन स्त्री-पुरुषों में भारी मनमुटाव हो रहा हो, पति-पत्नी में मतभेद हो तथा तलाक की स्थिति आ रही हो। यदि इस माला मंत्र को कोई भी पत्नी, या पति, जो भी पीड़ित है, दुःखी है, विधानपूर्वक, स्नान कर, शुद्ध पीले वस्त्र धारण कर, रात्रि 9 बजे के पश्चात्, दक्षिण दिशा में बैठ कर 108 बार पाठ करे, तो निश्चित ही पारिवारिक शत्रुता, झगड़े, वैमनस्य समाप्त हो जाते हंै। यह अनुभव रहा है कि कोई पत्नी, या पति अपने जीवन साथी से दुःखी हो, या उसकी आदतों से परेशान हो, घर में नित्य झगड़े होते हों, उसके समाधान के लिए यह प्रयोग संपन्न किया जा सकता है: पूजन विधि: सर्वप्रथम पीत वस्त्र बिछा कर उसपर पीले चावल की ढेरी बनावें। सामने पीतांबरा का चित्र रख कर, या चावल की ढेरी को पीतांबरा देवी मान कर उसकी विधिवत पंचमोपचार से पूजा करें। पीले पुष्प, पीले चावल आदि का उपयोग करें। घी, या तेल का दीपक जला कर सर्वप्रथम गुरु पूजा, फिर पीतांबरा देवी की पूजा करें। इसके पश्चात् संकल्प करें कि मैं अपनी अमुक समस्या के समाधान हेतु (समस्याः पारिवारिक कष्ट, पति, या पत्नी के अत्याचार से दुःखी हों आदि) पीतांबरा मंत्र माला 108 बार जप कर रहा हूं। मुझे इससे मुक्ति दिलावें। यह अनुभव रहा है कि जिसने भी इसका पाठ किया, उसे सफलता प्राप्त हुई है। ˙ नमो भगवति, ˙ नमो वीर प्रताप विजय भगवति, बगलामुखि! मम सर्वनिन्दकानां सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय, जिह्नां कीलय, बुद्धिं विनाशय विनाशय, अपर-बुद्धिं कुरू कुरू, आत्मविरोधिनां शत्रुणां शिरो, ललाटं, मुखं, नेत्र, कर्ण, नासिकोरू, पद, अणु-अणु, दंतोष्ठ, जिह्नां, तालु, गुह्य, गुदा, कटि, जानु, सर्वांगेषु केशादिपादांतं पादादिकेशपर्यन्तं स्तंभय स्तंभय, खें खीं मारय मारय, परमंत्र, परयंत्र, परतंत्राणि छेदय छेदय, आत्ममंत्र तंत्राणि रक्ष रक्ष, ग्रहं निवारय निवारय, व्याधिं विनाशय विनाशय दुःखं हर हर, दारिद्रयं निवारय निवारय, सर्वमंत्र स्वरूपिणि दुष्टग्रह भूतग्रह पाषाणग्रह सर्व चांडालग्रह यक्ष किन्नर किंपुरूष ग्रह भूत प्रेत पिशाचानां शाकिनी डाकिनीग्रहाणां पूर्व दिशं बंधय बंधय, वार्तालि! मां रक्ष रक्ष, दक्षिण दिशं बंधय बंधय, स्वप्नवार्तालि मां रक्ष रक्ष, पश्चिमदिशं बंधय बंधय उग्रकालि मां रक्ष रक्ष, पाताल दिशं बंधय बंधय बगला परमेश्वरि मां रक्ष रक्ष, सकल रोगान् विनाशय विनाशय, शत्रु पलायनम् पंचयोजनमध्ये राजजनस्वपचं कुरू कुरू, शत्रुन् दह दह, पच पच, स्तंभय मोहय मोहय, आकर्षण-आकर्षय, मम शत्रुन् उच्चाटय उच्चाटय, ींीं फट्स्वाहा! बगला स्तुति मध्ये सुधब्धि-मणि-मंडप-रत्नवेदी सिंहासनोपरिगतां परिपीतवर्णाम्। पीतांबराभरण-माल्य-विभूषिताग्ीं देवीं स्मरामि धृत-मुद्गर-वैरिजिनाम्।। चलत्कनक-कुंडलोल्लसित-चारूगंडस्थलां लसत्कनक-चंपक-द्युतिमदिंदु-बिंबाननाम्। गदाहत-विपक्षकां कलित-लोलजिनां चलां स्मरामि बगलामुखीं बिमुख-वाड्.-मनः स्तभिंनीम् ।। जिनाग्रमादाय करेण देवीं वामेन शत्रून परिपीडयंतीम्। गदाभिघातेन च दक्षिणेन पीतांबराढ्यां द्विभुजां नमामि।। प्रभातकाले प्रथतो मनुष्यः पठेत् सुभक्त्या परिचिंत्य पीताम्। द्रुतं भवेत् तस्य समस्त-वृद्धिविनाशमायति च तस्य शत्रुः।। बगलामुखी स्तोत्रम् चलत्-कनक-कुंडलोल्लसित-चारु- गण्ड- स्थलीम्, लसत्-कनक-चंपक-द्युतिमदिंदु-बिंबाननाम्। गदा-हत-विपक्षकां कलित-लोल-जिह्नांचलाम्, स्मरामि बगलामुखीं विमुख-वाड़् मनस्-स्तम्भिनीम्।। पीयूषोदधि-मध्य-चारु-विलसदू-रत्नोज्जवले मंडपे, तत्-सिंहासन-मूल-पतित-रिपुं प्रतासनाध्यसिनींम्। स्वर्णाभां कर-पीड़ितारि-रसनां भ्रांयद् गदां विभ्रतीम्, यस्त्वां ध्यायति यांति तस्य विलयं सद्योऽथ सर्वापदः।। देवि! त्वच्चरणांबुजार्चन-कृते यः पीत-पुष्पाजलिम्, भक्त्या वाम-करे निधाय च मनुं मंत्री मनोज्ञाक्षरम्। पीठ-ध्यान-परोऽथ कुंभक-वशाद् बीजं स्मरेत् पार्थिवम्, तस्यामित्र-मुखस्य वाचि हृदये जाड्यं भवेत् तत्क्षणात्।। वादी मूकति रंकति क्षिति-पतिर्वैश्वानरः शीतति, क्रोधी शाम्यति दुर्जनः सुजनति क्षिप्रानुगः खंजति। गर्वी खर्वति सर्व-विच्च जड़ति त्वंमंत्रिणा यंत्रितः, श्री नित्ये, बंगलामुखी! प्रति-दिनं कल्याणि! तुभ्यं नमः।। मंत्रास्तावदलं विपक्ष-दलने स्तोत्रं पवित्रं च ते। यंत्र वादि-नियंत्रण त्रि-जगतां जैत्रं च चित्रं च ते। मातः श्री बगलेति नाम ललितं यस्यास्ति जन्तोर्मुखे, त्वंनाम-स्मरणेन संसदि मुख-स्तंभो भवेद् वादिनाम्।। दुष्ट-स्तंभनमुग्रंविघ्न-शमनं दारिद्रय-विद्रावणम्, भूभृद्-सदमनं चलंमृग-दृशां चेतः समाकर्षणम्। सौभाग्यैक-निकेतनं सम-दृशःकारूण्य-पूर्णेक्षणम्, मृत्योर्मारणमाविरस्तु पुरतो मातस्त्वदीयं वपुः।। मातर्भजय मद्-विपक्ष-वदनं जिह्नां च संकीलय, ब्राह्मीं मुद्रय दैत्य-देव-धिषणामुग्रां गति स्तंभय। शत्रूंश्चूर्णय देवि! तीक्ष्ण-गदया गौरांगि पीतांबरे, विघ्रौघं बगले! हर प्रणमतां कारूण्य-पूर्णेक्षणे।। स मातभैरवि! भद्र-कलि विजये! वाराहि! विश्वाश्रये। श्रीविद्ये! समये! महेशि! बगले! कामेशि! वामे रमे। मातंगि त्रिपुरे! परात्पर-तरे! स्वर्गपवर्ग-प्रदे! दासोऽहं शरणागतः करुणया विश्वेश्वरि! त्राहिमाम्।। संरम्भे चैर-संघे प्रहण-समये बंधने व्याधि-मध्ये, विद्या वादे विवादे प्रकुपित-नृपतौ दिव्य-काले निशायाम्। वश्ये वा स्तंभने वा रिपु-वध-समये निर्जने वा वने वा, गच्छंस्तिष्ठंसित्र-कालं यदि पठति शिव प्राप्नुयादाशु धीरः।। त्वं विद्या परमा त्रिलोक-जननी विघ्रौघ-संच्छेदिनी, योषाकर्षण-कारिणी त्रि-जगतामानंद-संवर्द्धिनी। दुष्टोच्चातन-कारिणी पशु मनः संमोह संदायिनी, जिह्नां कीलम-भैरवी विजयते ब्रह्मास्त्र-विद्या परा।। विद्या-लक्ष्मीर्नित्य-सौभाग्यमायुः, पुत्रैः पौत्रैः सर्व- साम्राज्य-सिद्धिः, मानं भोगो वश्यमारोग्य सौख्यं, प्राप्त सर्व भू-तले त्वत्-परेण। यत्-कृतं जप-सन्नाहं गदितं परमेश्वरि! दुष्टानां निग्रहार्थाय तद् गृहाण नमोऽस्तु ते। पीतांबरा च द्वि-भुजां त्रि-नेत्रां गात्र -कोमलाम्। शिला-मुद्गर-हस्तां च स्मरेत् तां बगलामुखीम्।। स ब्रह्मास्त्रमिति विख्यातं त्रिषु लोकेषु विश्रुतम्। गुरु भक्ताय दातव्यं न देयं यस्य कस्यचित्।। नित्यं स्तोत्रमिदं पवित्रमिह यो देव्याः पठत्यादरात्, धृत्वां यंत्रामिदं तथैव समरे बाहौ करे वा गले। राजानोऽप्यरयो मदांध करिणः सर्पा मृगेंद्रादिकाः, ते वै यांति विमोहिता रिपु-गणा लक्ष्मी स्थिरा सर्वदा।।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.