नजला-जुकाम एक बहुत ही आम और हमेशा परेशान करने वाला रोग है। वास्तव में यह रोग नहीं, शरीर की एक सांवेदनिक प्रतिक्रिया है, जो मौसम बदलने, नाक में धूल कण जाने आदि से उत्पन्न होती है। पूरे विश्व के लोग कभी न कभी, इसके शिकार होते ही हैं। नज़ला-जुकाम शीत के कारण होने वाला एक ऐसा रोग है, जिसमें नाक से पानी बहने लगता है। मामूली- सा दिखने वाला यह रोग, कफ की अधिकता के कारण अधिक कष्टदायक हो जाता है। यों तो ऋतु आदि के प्रभाव से दोष संचय काल में संचित हो कर अपने प्रकोप काल में ही कुपित होते हैं, परंतु दोषों के प्रकोपक कारणों की अधिकता, या प्रबलता के कारण तत्काल भी कुपित हो जाते हैं, जिससे जुकाम हो जाता है; अर्थात नज़ला-जुकाम शीत काल के अतिरिक्त भी हो सकता है।
आयुर्वेद में नजला-जुकाम 6 प्रकार के बताये गये हैं। आचार्य चरक ने इसके चार प्रकार बताये हैं, जबकि आचार्य सुश्रुत ने पांच प्रकार माने हैं।
वायुजन्य (वातज) : वायु से उत्पन्न जुकाम में नाक में वेदना, सुंई चुभने जैसी पीड़ा, छींक आना, नाक से पतला स्राव आना, गला, तालु और होठों का सूख जाना, सिर दर्द और आवाज बैठ जाना आदि लक्षण होते हैं।
पित्तजन्य (पित्तज) : नाक से गर्म और पीले रंग का स्राव आना, नाक का अगला भाग पक जाना, ज्वर, मुख शुष्क हो जाना, बार-बार प्यास लगना, शरीर दुबला और त्वचा चमकरहित होना इसके लक्षण हैं। नाक से धुंआ निकलता महसूस होता है।
कफजन्य (कफज) : आंखों में सूजन, सिर में भारीपन, खांसी, अरुचि, नाक द्वारा कफ का स्राव, लाला स्राव और नाक के भीतर, गले और तालु में 'खुजली होती है।
त्रिदोषज : उपर्युक्त तीनों दोषों से उत्पन्न जुकाम बार-बार हो जाता हैे। साथ ही तीनों दोषों के मिलेजुले लक्षण दिखाई देते हैं। शरीर में अत्यधिक पीड़ा होती है।
रक्तजन्य (रक्तज) : नाक से लाल रंग का स्राव होता है। रोगी की आंखें लाल हो जाती हैं। मुंह से बदबू आती है। सीने में दर्द, गंध का ठीक तरह से पता न चलना आदि लक्षण होते हैं।
दूषित : नजला-जुकाम के सभी दोषों की अत्यंत वृद्धि हो जाने से बार-बार नाक बहना, सांस में दुर्गंध, नाक का बार-बार बंद होना-खुलना, सुंगंध-दुर्गंध पता न चलना आदि लक्षण होते हैं।
नजला-जुकाम के प्रमुख कारण : नजला-जुकाम मस्तिष्कजन्य रोग होते हुए भी इस रोग का मूल कारण अग्नि है; अर्थात जब जठराग्नि मंद होती है, तो इसमें अजीर्ण हो जाता है। पाचन क्रिया बिगड़ जाती है और भोजन ठीक से पच नहीं पाता एवं कब्ज हो जाने के कारण उपचय पदार्थ का विसर्जन नही होता, जिसके कारण जुकाम की उत्पत्ति होती है क्योंकि शरीर में एकत्रित विजातीय तत्व जब अन्य रास्तों से बाहर नहीं निकल पाते, तो वे जुकाम के रूप में नाक से निकलने लगते हैं। यह जुकाम अत्यधिक कष्टदायक होता है। इससे सिर, नाक, कान, गला तथा नेत्र के विकार उत्पन्न होने लगते हैं।
जुकाम का कारण मानसिक गड़बड़ी भी देखा गया है। इसके अतिरिक्त अन्य कारण हैं। मल, मूत्र, छींक, खांसी आदि वेगों को रोकना, नाक में धूल कण का प्रवेश होना, अधिक बोलना, क्रोध करना, अधिक सोना, अधिक जागरण करना, शीतल जल और ठंडे पेय पीना, अति मैथुन करना, रोना, धुएं आदि से मस्तिष्क में कफ जम जाना। साथ ही साथ मस्तिष्क में वायु की वृद्धि हो जाती है। तब ये दोनों दोष मिल कर नजला-जुकाम व्याधि उत्पन्न करते हैं।
जुकाम को साधारण रोग मान कर उसकी उपेक्षा करने से यह अति तकलीफदह हो जाता है; साथ ही अन्य विकार भी उत्पन्न होने लगते हैं। जुकाम बिगड़ने पर वह नजले का रूप धारण कर लेता है।
नजला हो जाने पर नाक में श्वास का अवरोध, नाक से हमेशा पानी बहना, नाक पक जाना, बाहरी गंध का ज्ञान न होना, मुख की दुर्गंध आदि विकार उत्पन्न हो जाते हैं।
कष्टदायी है जुकाम का बिगड़ना : जुकाम के बिगड़ जाने की अवस्था के बाद मस्तिष्क की अनेक व्याधियां होती हैं, जो कष्टदायी हो जाती हैं। इस रोग के कारण बहरापन, कान के पर्दे में छेद तथा कान, नाक, तालु, श्वास नलिका में कैंसर होने की संभावना रहती है। अंधापन भी उत्पन्न हो जाता है। कहा जाता है कि नजले ने शरीर के जिस अंग में अपना आश्रय बना लिया, वही अंग वह खा गया। दांतों में घुस गया, तो दांत गये, कान में गया, तो कान गये, आंखों में गया, तो आंखे गयी, छाती में जमा हो, तो दमा और कैंसर जैसी व्याधियां उत्पन्न कर देता है। सिर पर गया, तो बाल गये।
चिकित्सा : सबसे पहले रोग को उत्पन्न करने वाले कारणों को दूर करें। कफवर्द्धक, मधुर, शीतल, पचने में भारी पदार्थ न खाएं। दिन में सोने, ठंडी हवा का झोंका सीधे शरीर पर आने देने, अति मैथुन आदि से दूर रहें। पचने में हल्का, गर्म और रूखा आहार लें। सौंठ, तुलसी, अदरक, बैंगन, दूध, तोरई, हल्दी, मेथी दाना, लहसुन, प्याज आदि सेवनीय चीजें हैं। सोंठ के एक चम्मच को चार कप पानी में पका कर बनाया गया काढ़ा दिन में 3 -4 बार पीना लाभदायक है।
अन्य घरेलू उपचार :
- सुहागे को तवे पर फुला कर चूर्ण बना लें। नजला-जुकाम होने पर गर्म पानी के साथ दिन में तीन बार लेने से पहले ही दिन, या ज्यादा से ज्यादा तीन दिनों में जुकाम ठीक हो जाएगा।
- काली मिर्च और बताशे पाव भर जल में पकावें। चौथाई रहने पर इसे गरमागरम पी लें। प्रातः खाली पेट और रात को सोते समय तीन दिन उपयोग करें। नजला-जुकाम से राहत मिलेगी।
- 5 ग्राम अदरक के रस में 5 ग्राम तुलसी का रस मिला कर 10 ग्राम शहद से लें।
- काली मिर्च को दूध में पका कर सुबह-शाम पीएं।
- अमरूद के पत्ते चाय की तरह उबाल कर पीएं।
- षडबिंदु तेल की 4-4 बूंदे दोनों नथुनों में टपकाने से शीघ्र ही सिर के विकार नष्ट हो जाते हैं।
- गर्म दूध के साथ सौंठ का चूर्ण सुबह-शाम सेवन करें।
- दिन में 2 बार अनार, या संतरे के छिलकों को उबाल कर उसका काढ़ा पीने से जुकाम ठीक हो जाता है।
- चूने के पानी में गुड़ घोल कर पीने से जुकाम ठीक हो जाता है।
- दो ग्राम मुलहठी चूर्ण को शहद के साथ दिन में 3 बार चाटने से जुकाम ठीक होता है।
ज्योतिषीय कारण : यों तो यह रोग आम तौर पर सभी को कभी-कभी होता ही है, लेकिन फिर भी कुछ लोग इससे विशेष प्रभावित रहते हैं और जिंदगी भर इस रोग से ग्रस्त रहते हैं। जाहिर है कि उनकी ग्रह स्थितियां ही कुछ ऐसी रही होंगी।
नज़ला-जुकाम मस्तिष्कजन्य रोग है। फिर भी इसका मूल कारण अग्नि है; अर्थात् पाचन क्रिया बिगड़ जाती है। काल पुरुष की कुंडली में पाचन का स्थान पंचम भाव है, जिसका प्रतिनिधित्व सिंह राशि करती है। मस्तिष्क का स्थान प्रथम भाव है। इन दोनों भावों का आपसी त्रिकोणिक संबंध है। अग्नि के कारक ग्रह सूर्य और मंगल हैं और इसके विपरीत चंद्र और शुक्र शीतलता के प्रतीक हैं। नजले का स्राव नाक से होता है। इसलिए द्वितीय और तृतीय भाव भी इससे जुड़े हैं। यदि कुंडली में लग्न, लग्नेश, पंचम भाव, पंचमेश, सूर्य, मंगल, चंद्र, शुक्र दुष्प्रभावों में हों, तो नजला-जुकाम जातक को सदैव तंग करता है। खास तौर पर जब संबंधित ग्रह की दशांतर्दशा चल रही हो और गोचर ग्रह भी अशुभ फल दे रहे हों, तब रोग अपनी चरम सीमा पर होता है।
विभिन्न लग्नों में नजला-जुकामः
मेष लग्न : यदि लग्नेश अष्टम भाव, सूर्य जल राशि, चंद्र पंचम भाव में शनि, या राहु-केतु से प्रभावित हो। शुक्र अष्टम, बुध तृतीय भाव में हों, तो जातक को नजला-जुकाम और सर्दी जल्द लगती है, जिससे वह सदैव इस रोग से पीड़ित रहता है।
वृष लग्न : लग्नेश मीन, या कर्क राशि में हो, सूर्य वृश्चिक राशि में हो, चंद्र पंचम भाव में हो और गुरु से दृष्ट हो, तो जातक को नजला-जुकाम होता है।
मिथुन लग्न : लग्नेश षष्ठ भाव में सूर्य से अस्त हो, पंचमेश शुक्र, पंचम, या अष्टम भाव में मंगल से दृष्ट हो और मंगल स्वयं जल राशि में हो, चंद्र भी मंगल से दृष्ट हो, तो जातक को नजला -जुकाम सदैव तंग करता रहता है।
कर्क लग्न : लग्नेश चंद्र षष्ठ भाव, या अष्टम भाव में हो, बुध लग्न में हो, पंचमेश मंगल भी लग्न में हो और सूर्य द्वितीय भाव में हो, शुक्र द्वितीय भाव में हो और राहु-केतु से दृष्ट, या युक्त हो, तो जातक को नजला संबंधित रोग देता है।
सिंह लग्न : लग्नेश सूर्य अष्टम भाव में, शनि तृतीय भाव में, मंगल कर्क राशि में, पंचमेश गुरु जल राशि में हो, शुक्र अष्टम भाव में हो, राहु लग्न में, या लग्न को देखता हो, तो जातक को नजला-जुकाम की शिकायत बनी रहती है।
कन्या लग्न : लग्नेश बुध जल राशि में हो और सूर्य से अस्त हो, मंगल भी जल राशि में हो और चंद्र को देखता हो, चंद्र-शुक्र एक साथ हों, या एक दूसरे से द्विर्द्वादश हों, गुरु तृतीय भाव में हो, तो जातक को नज़ला-जुकाम बना रहता है।
तुला लग्न : लग्नेश शुक्र और पंचमेश एक दूसरे से युक्त हो कर जल राशि में हों, सूर्य पंचम भाव में हो, राहु-केतु से दृष्ट हो, मंगल नीच का हो, लग्न में गुरु देखता हो, या सूर्य को देखता हो, तो जातक को नज़ला-जुकाम होता है।
वृश्चिक लग्न : मंगल लग्नेश और षष्ठेश हो कर सूर्य से अस्त हो और मीन राशि हो, चंद्र त्रिक भावों में हो और राहु से दृष्ट हो, शुक्र तृतीय भाव में हो, तो जातक को उपर्युक्त रोग होता है।
धनु लग्न : लग्नेश अष्टम भाव में, सूर्य द्वादश भाव में, बुध लग्न में, सूर्य द्वितीय, या तृतीय भाव में हो, चंद्र शुक्र, या बुध से युति कर रहा हो, बुध अस्त नहीं हो, राहु लग्नेश को देखता हो, तो नजला-जुकाम होता है।
मकर लग्न : लग्नेश शनि तृतीय, या एकादश भाव में हो, सूर्य पंचम भाव में राहु से दृष्ट, या युक्त हो, पंचमेश शुक्र कर्क राशि में चंद्र से दृष्ट, या युक्त हो, अकारक गुरु लग्न में हो, तो जातक को आम तौर पर नज़ला-जुकाम रहता ही है।
कुंभ लग्न : लग्नेश षष्ठ भाव में, पंचमेश बुध मीन में, लग्न में सूर्य, शुक्र तृतीय भाव में, गुरु अग्निकारक राशियों में हो, राहु-केतु द्विस्वभाव राशियों में हों, चंद्र जल राशियों में हो, तो जातक को नज़ला-जुकाम होता ही रहता है।
मीन : लग्नेश अष्टम भाव में चंद्र से युक्त हो, शुक्र तृतीय भाव में, पंचम भाव में शनि सूर्य से युक्त हो, राहु लग्न में हो, तो जातक को नज़ला-जुकाम होता है। उपर्युक्त सभी योग चलित पर आधारित हैं। जब संबंधित ग्रह की दशा-अंतर्दशा और गोचर प्रतिकूल रहते हैं, तो जातक को संबंधित रोग से जूझना पड़ता है।
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