बगलामुखी की साधना पं. विजय सूद शास्त्री इस विद्या का प्रयोग दैवी प्रकोप से रक्षा, धन-समृद्धि की प्राप्ति और शत्रु के शमन के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त तांत्रिक षट कर्मों की सिद्धि, वाद मुकदमों में विजय, राजनीतिक लाभ आदि के लिए भी यह प्रयोग किया जाता है। राम पर विजय प्राप्त करने के लिए राक्षसराज रावण ने महाविद्या के इसी रूप की उपासना की थी। महाभारत काल में श्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन, महाबली द्रोणपुत्र अश्वत्थामा और स्वयं द्रोण ने भी मां के इसी रूप की पूजा की थी। आज भी राजनीतिज्ञगण इस महाविद्या की साधना करते हैं। चुनावों के दौरान प्रत्याशीगण मां का आशीर्वाद लेने उनके मंदिर अवश्य जाते हैं। भारतवर्ष में इस शक्ति के केवल दो ही शक्ति पीठ हैं -एक दतिया में पीतांबरा पीठ और दूसरा हिमाचल में ज्वालामुखी से 22 किमी दूर वनखंडी नामक स्थान पर। साधना में सावधानियां बगलामुखी तंत्र के विषय में बतलाया गया है - बगलासर्वसिद्धिदा सर्वाकामना वाप्नुयात’ अर्थात बगलामुखी देवी का स्तवन पूजा करने वालों की सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं। ‘सत्ये काली च अर्थात बगला शक्ति को त्रिशक्तिरूपिणी माना गया है। वस्तुतः बगलामुखी की साधना में साधक भय से मुक्त हो जाता है। किंतु बगलामुखी की साधना में कुछ विशेष सावधानियां बरतना अनिवार्य है जो इस प्रकार हैं। पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। साधना क्रम में स्त्री का स्पर्श या चर्चा नहीं करनी चाहिए। साधना डरपोक या बच्चों को नहीं करनी चाहिए। बगलामुखी देवी अपने साधक को कभी-कभी भयभीत भी करती हैं। अतः दृढ़ इच्छा और संकल्प शक्ति वाले साधक ही साधना करें। साधना आरंभ करने से पूर्व गुरु का ध्यान और पूजा अनिवार्य है। बगलामुखी के भैरव मृत्युंजय हैं। अतः साधना से पूर्व महामृत्यंजय का कम से कम एक माला जप अवश्य करें। वस्त्र, आसन आदि पीले होने चाहिए। साधना उत्तर की ओर मुंह कर के ही करें। मंत्र जप हल्दी की माला से करें। जप के बाद माला गले में धारण करें। ध्यान रखें, साधना कक्ष में कोई अन्य व्यक्ति प्रवेश न करे, न ही कोई माला का स्पर्श करे। साधना रात्रि के 9.00 से 12.00 बजे के बीच ही करें। मंत्र जप की संख्या अपनी क्षमतानुसार निश्चित करें, फिर उससे न तो कम न ही अधिक जप करें। मंत्र जप 16 दिन में पूरा हो जाना चाहिए। मंत्र जप के लिए शुक्ल पक्ष या नवरात्रि सर्वश्रेष्ठ समय है। मंत्र जप से पहले संकल्प हेतु जल हाथ में लेकर अपनी इच्छा स्पष्ट रूप से बोल कर व्यक्त करें। साधना काल में इसकी चर्चा किसी से न करें। साधना काल में घी अथवा तेल का अखंड दीपक जलाएं। उपासना विधि: किसी भी शुभ मुहूर्त में सोने, चांदी, या तांबे के पत्र पर मां बगलामुखी के यंत्र की रचना करें। यंत्र यथासंभव उभरे हुए रेखांकन में हो। इस यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा कर नियमित रूप से पूजा करें। इस यंत्र को रविपुष्य या गुरुपुष्य योग में मां बगलामुखी के चित्र के साथ स्थापित करें। फिर सब से पहले बगला माता का ध्यान कर विनियोग करें और दाएं हाथ में जल में जल लेकर मंत्र का उच्चारण करते हुए चित्र के आगे छोड़ दें। विनियोग मंत्र: ¬ अस्य श्री बगलामुखी मंत्रास्य नारद ऋषिः त्रिष्टुपछंदः श्री बगलामुखी देवता ींीं बीजं स्वाहा शक्तिः प्रणवः कीलकं ममाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः। अब करन्यास, हृदयादिन्यास कर देवी बगलामुखी का ध्यान करें। कण्यादिन्यास: नारद ऋषये नमः शिरसि त्रिष्टुपछंदसे नमः मुखे बगलामुख्यै नमः हृदये ींीं बीजाय नमः गुह्येः स्वाहा शक्तये नमः पादयोः प्रणव कीलकाय नमः स्र्वांगे। करन्यास: ¬ ींीं अगुष्ठाभ्यां नमः बगलामुखी तर्जनीभ्यां नमः सर्वदुष्टानां मध्यमाभ्यां नमः वचं मुखं पदं स्तंभय अनामिकाभ्यां नमः जिह्वां कीलय कनिष्ठिकाभ्यां नमः बुद्धिं विनाशय ीं्रीं ¬ स्वाहा करतल कर पृष्ठाभ्यां नमः ¬ ींीं ींदयाम नमः बगलामुखी शिरसे स्वाहा, सर्वदुष्टानां शिखायै वषट् वाचं मुखं पदं स्तम्भयं कवचाय हुं जिह्नां कीलय, नेत्रत्रयाय वौषट् बुद्धि विनाशय ींीं ¬ स्वाहा अस्त्राय पफट्। अब मां का निम्नलिखित मंत्र से ध्यान ध्यान करें। मध्ये सुधाब्धि मणि मंडप रत्नवेदी सिंहासनो परिगतां परिपीतवर्णाम्। पीताम्बरा भरणमाल्य विभूषितांगी देवी नजामि घृतमुद्गर वैरिजिह्नाम्।। जिह्नाग्रमादाय करेण देवीं। वामेन शत्रून् परिपीडयंतीम्।। गदाभिघातेन व दक्षिणेन। पीतांबराढ्यां द्विभुजां नमामि।। मंत्र: ¬ ींीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्ना कीलय बुद्धिं विनाशय ींीं ¬ स्वाहा। पहले ध्यान मंत्र द्वारा देवी का स्तवन कर उनके मंत्र का जप करना चाहिए। जप के पश्चात तर्पण मार्जन का विधान है। अंत में हवन के पश्चात ब्राह्मण भोजन कराना परमावश्यक है। सामग्रियों का महत्व देव स्तवन: बगलामुखी के एक लाख जप के बाद (दस हजार) चम्पा के दस हजार पुष्पों से हवन करने से सभी देवतागण साधक के वशीभूत हो जाते हैं। आकर्षण के लिए: मधु, घृत, शक्कर एवं नमक से हवन करने पर आकर्षण बढ़ता है। शत्रु स्तंभन हेतु: ताड़ पत्र, नमक और हल्दी की गांठ से हवन करने पर शत्रु स्तंभित होता है। रात्रि में अगर, राई, भैंस के दूध के घी और गुग्गुल का हवन करने से शत्रुओं का शीघ्र ही शमन होता है। रोग नाशक: दूर्वा मिश्रित मधु तथा चीनी, और गुरुच एवं धान की खील से हवन करने पर रोगों से मुक्ति मिलती है। कलह निवारण हेतु: तेल मिश्रित नीम की पत्तियों से होम करने पर आपस में झगड़ा शांत होता है। शत्रु शक्ति नाशक: एक वर्ण वाली गाय के दूध, चीनी एवं मधु के मिश्रण को बगलामुखी के मंत्रों से 300 बार अभिमंत्रित कर उसका पान करने से शत्रुओं की सारी शक्ति नष्ट हो जाती है। उच्चाटन: गिद्ध और कौए के पंख को सरसों के तेल में मिला कर चिता पर हवन करने से शत्रुओं का उच्चाटन होता है। ग्रह शांति के लिए: मां के मूल मंत्रों का एक हजार बार जप करें। एक माला का हवन निम्न सामग्री से करें। पीली सरसों 200 ग्राम, गाय के दूध का घी 100 ग्राम, काले तिल 20 ग्राम, करायल 20 ग्राम, लोबान 20 ग्राम, कुसुम का फूल 5 ग्राम, गुग्गुल 25 ग्राम कपूर 20 ग्राम, चीनी 200 ग्राम, नमक 50 ग्राम काली मिर्च 20 दाने और नीम की छाल। हवन करने के बाद पांच गांवों का पानी मिलाकर घर के चारों ओर धार से घेरा बना दें।