मां बगलामुखी : कलयुग की संकटहारिणी
मां बगलामुखी : कलयुग की संकटहारिणी

मां बगलामुखी : कलयुग की संकटहारिणी  

व्यूस : 15516 | मार्च 2008
मां बगलामुखी: कलयुग की संकटहारिणी डाॅ. संजय बु(िराजा रतवर्ष के प्राचीन शास्त्रों यजुर्वेद, अथर्ववेद, पीतांबरोपनिषद, रुद्रयामल तंत्र अग्निपुराण, मेरु तंत्र षट्कर्म दीपिका, सांख्यायन आदि में मां बगलामुखी का विशद उल्लेख मिलता है। शत्रुओं को नष्ट करने की इच्छा रखने वाली व परम पिता परमात्मा की संहार शक्ति ही बगला हैं। बगलामुखी दस महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या हैं। इनकी तीन आंखें हैं। इनके एक हाथ में शत्रु की जीभ और दूसरे में मुद्गर है। यह पीले वस्त्र और रत्न पहनती हैं। टोडल तंत्र के अनुसार इनके दायीं ओर महारुद्र बैठते हैं। मां बगलामुखी को ‘ब्रह्मास्त्र’ के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें ‘पीतांबरा व ’स्तंभिनी’ भी कहा जाता है। पौराणिक तथ्य स सर्वप्रथम ब्रह्मा जी ने बगला महाविद्या की उपासना की थी। इसके दूसरे उपासक भगवान विष्णु व तीसरे परशुराम हुए। परशुराम ने ही यह विद्या आचार्य द्रोण को बताई थी। स रावण के पुत्र मेघनाद ने अशोक वाटिका में हनुमान के वेग को श्री बगलामुखी की स्तंभन शक्ति के बल पर ही अवरुद्ध किया था। स इसी शक्ति के बल पर रावण की सभा में अंगद ने अपना पैर जमा दिया था जिसे उठाने में कोई भी सफल नहीं हुआ था। स महारथी वीर अर्जुन ने भी महाभारत के युद्ध में विजय के लिए मां पीतांबरा बगलामुखी की साधना की थी। स महाबली द्रोण पुत्र अश्वत्थामा ने भी मां के इसी शक्तिशाली रूप की पूजा की थी। स 1962 में चीन के भारत पर आक्रमण के समय भी श्रद्धा माता के कहने पर पंडित नेहरू ने मां बगलामुखी के दतिया मंदिर जाकर यज्ञ व पूजा अर्चना की थी और फिर चीन ने आक्रमण रोक दिया था। मां बगलामुखी साधना का उद्देश्य व लाभ स शत्रु शमन, मुकदमों, किसी तरह की प्रतिस्पर्धा आदि में विजय स मन चाहे व्यक्ति से भेंट स अनिष्ट ग्रहों के दुष्प्रभावों का शमन स कार्यक्षेत्र में सफलता स वाक् सिद्धि स फंसे हुए धन की प्राप्ति स रोंगो से मुक्ति स शरीर में ‘वात’ का संतुलन बनाए रखना स बुरी आत्माओं से बचाव व प्रेत बाधा आदि से मुक्ति स दुर्घटना, घाव, आपरेशन आदि से रक्षा 14 बार इंद्र या वरुण मंत्र से अभिमंत्रित यंत्र को बाढ़ के जल में फेंक देने से बाढ़ रुक जाती है साधना या उपासना विधि इसकी उपासना में हरिद्रा अर्थात हल्दी की माला, पीले फूल व पीले वस्त्रों का विधान है। उपासना का सर्वोत्तम समय रात्रि 10 बजे से प्रातः 4 बजे तक का है। दिन रविवार या गुरुवार और योग रविपुष्य या गुरुपुष्य सर्वाधिक होते हैं। उपासना शुक्ल पक्ष में की जाती है। नवरात्र का का काल सर्वदा उत्तम होता है। साधना उत्तर दिशा की ओर मुंह करके की जाती है। उपासना के लिए बगलामुखी यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद उसे पूजा घर में लकड़ी की चैकी पर पीले कपड़े पर इष्ट देवता के साथ रखें। स्नानादि के पश्चात पीले वस्त्र पहन कर पूर्वाभिमुख होकर बैठें, दिया जलाएं तथा पीले फूल व फल लें। किसी पेड़ के पत्ते के साथ पहले अपने पर व फिर यंत्र पर जल छिड़कें। 21 बार निम्न मंत्र बोल कर अपने आप को भगवान को समर्पित कर दंे। ‘¬ ींीं बगलामुख्यै नमः’ फिर दायें हाथ में जल लेकर बगलामुखी मंत्र का जप मन ही मन करें और यंत्र पर जल छिड़कें। ग्यारह दिन की अवधि में एक लाख मंत्रों का जप करने पर एक संपूर्ण अनुष्ठान होता है। 36 अक्षरों वाला बगलामुखी मंत्र, जिसके देवता महर्षि नारद हैं, इस प्रकार है। ¬ींीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं। स्तभ्ं ाय जिह्नां कीलय बुिद्धं विनाशय ींीं ¬ स्वाहा।। हवन: मां बगलामुखी के मंत्रों का जप के पश्चात दशांश हवन भी किया जाता है, जिसके लाभ इस प्रकार से हैं। स चंपा पुष्प से हवन करने पर साधक सभी देवताओं को अपने वश में कर सकता है। स दूध व तिल की खीर से हवन करने से धन लाभ होता है। स घी, शक्कर और मधु से हवन करने पर आकर्षण बढ़ता है। स अशोक के पत्तों से हवन करने से संतान सुख मिलता है। गुग्गुल व तिल से हवन करने से कारागार से मुक्ति मिलती है। स सेंवल के फलों से हवन करने से शत्रु पर विजय मिलती है। स तालपत्र और नमक युक्त हल्दी की गांठ से हवन करने पर शत्रु स्तंभित होता है। स राई, भैंस के दूध का घी और गुग्गल से हवन करने पर भी शत्रु का शमन होता है। स गुग्गुल व तिल से हवन करने से जेल से छुटकारा मिलता है स लकड़ी, शहद और घी से हवन करने से रोगों से मुक्ति मिलती है स चीनी व मधु मिली दूर्वा व धान के लावा से हवन करने पर रोग से मुक्ति मिलती है। जप के बाद माला गले में धारण कर लें। फिर ब्राह्मणों को भोजन कराएं, यह अत्यावश्यक है। इसके बाद आंखें बंद कर मां बगलामुखी के सामने अपनी मनोकामना निवेदित करें, पूरी होगी। बगलामुखी मंत्र के बारे में कहा गया है कि यह मंत्र प्रचंड तूफान को भी रोकने में सक्षम है। बगलामुखी यंत्र बगलामुखी यंत्र में मां बगलामुखी का वास होता है। यह एक शक्तिशाली यंत्र है, जो मंगल ग्रह की शक्तिशाली ऊर्जा को ग्रहण कर साधक को लाभ पहुंचाता है। कलयुग मंे बगलामुखी यंत्र जीवन के हर मोड़ पर मदद कर सकता है। योगियों व तांत्रिकों का मानना है कि जहां दूसरे सभी उपाय काम नहीं करते वहां बगलामुखी यंत्र की साधना काम आती है। इस साधना से साधक की सभी बाधाएं दूर होती हैं। बगलामुखी यंत्र के बारे में कहा गया है ‘त्रिजगतम् नक्षत्र स्तंभिनि’ अर्थात इसमें नक्षत्रों को रोक देने की भी शक्ति है। इसकी साधना से अश्ुाभ ग्रहों के अशुभ फलों से बचा जा सकता है। इसे गले में भी धारण किया जा सकता है और पूजा घर में भी रखा जा सकता है। यह तांबे की प्लेट पर बनाया जाता है। हल्दी व धतूरे के फूलों के रस से इसे भोजपत्र पर भी बनाया जा सकता है। इस यंत्र को तैयार करने के लिए होली, दीवाली या गेहण के दिन अधिक शुभ माने जाते हैं। मुंडमाल तंत्र में कहा गया है कि इसकी सिद्धि के लिए नक्षत्रादि विचार व कालशोधन की भी आवश्यकता नहीं है। साधना मंे सावधानियां सांख्यायन तंत्र में कहा गया है कि गुरु से विधिवत दीक्षा प्राप्त कर ही इस देवी की उपासना करनी चाहिए। बिना दीक्षा प्राप्त किए पुस्तक में लिखित मंत्र को देखकर जप करने से साधक के चांडाल अथवा विक्षिप्त हो जाने की संभावना रहती है। साधना काल में अलौकिक अनुभूतियों से विचलित नहीं होना चाहिए। चंद्रमा का साधक की जन्म राशि भाव 4, 8 या 12 में वास नहीं होना चाहिए। बगलामुखी के भैरव मृत्यंुजय हैं, इसलिए साधना से पूर्व महामृत्युंजय मंत्र का एक माला जप अवश्य कर लेना चाहिए! साधना काल में घी का दीपक लगातार जलता रहना चाहिए। साधना में ब्रह्मचर्य का पालन, भूमि शयन तथा बाहर भीतर की पवित्रता अनिवार्य है। माता श्री बगलामुखी की स्तुति जय, जयति, सुखदा, सिद्धिदा स्वार्थ साधक शंकरी। स्वाहा, स्वधा, सिद्धा, शुभा, दुर्गा नमो सर्वेश्वरी।। जय सृष्टि, स्थिति कारिणी, संहारिणी साध्या सुखी। शरणागतोऽहं त्राहिमाम, मां त्राहिमाम बगलामुखी।। जय प्रकृति पुरूषात्मक जगत, कारण करणी आनन्दिनी। विद्या-अविद्या, सादि, कादि, अनादि ब्रह्म स्वरूपिणी।। ऐश्वर्य- आत्मा- भाव अष्टक, अंग परमात्मा सखी। शरणागतोऽहं त्राहिमाम्, मां त्राहिमाम् बगलामुखी। जय पंच प्राण प्रदासुदा, प्रज्ञान ब्रह्म प्रकाशिका, संज्ञान-धृति-अज्ञानमति, विज्ञान शक्ति विधायिका। जय सप्त व्याहृति रूप ब्रह्म, विभूति सुंछरी शशिमुखी। शरणोगतोऽहं त्राहिमाम्, मां त्राहिमाम बगलामुखी।ं आपत्ति - अम्बुधि - अगम- अम्ब, अनाथ आश्रयहीन मैं। पतबार- श्वास- पर श्वास क्षीण, सुषुन तन-मन दीन मंै। शरणोगतोऽह त्राहिमाम, मां त्राहिमाम बगलामुखी।। जय परम ज्योतिर्मय शुभम, ज्योति परा अपरा परा। नैका-एका-अनजा-अजा, मन बाग बुद्धि अगोचरा। पाशा कुशा की तासना, पीताम्बर पंकज मुखी। शरणागतोऽहं त्राहिमाम, मां त्राहिमाम् बगलामुखी।। भवताप रीतिमति-कुमति, कर्तव्य कानन अति घना, अज्ञान दावानल प्रबल, संकट निकल मन अनमना। दुर्भाग्य धन द्वारि पीत पट, विद्युत झरो करुणा अग्नि। शरणागतोऽहं त्राहिमाम, मां त्राहिमाम बगलामुखी।। हिय पाप-पीत पयोधि मे, प्रगटो जननी पीताम्बरा। तन-मन सकल व्याकुल विकल, त्रयताप वायु भयंकरा।। अंतःकरण-दस इन्द्रियां, मम देह देवि चतुर्दशी। शरणोगतोऽहं त्राहिमाम् मां त्राहिमाम बगलामुखी।। द्रारिद्र्य दग्ध क्रिया कुटिल, श्रद्धा प्रज्वलित वासना, अभिमान ग्रंथित भक्ति हार, विकारमय भक्त की साधना। अज्ञान-ध्यान विचार चंवल, वृत्ति वैभव उन्मुखी, शरणोगतोऽहं त्राहिमाम्, मां त्राहिमाम बगलामुखी।।



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