बगलामुखी शाबर मंत्र प्रयोग मध्ये सुधाब्धि मणि मंडप रत्न वेदी सिंहासनोपरिगतां परिपीत वर्णाम। पीताम्बराभरण माल्य विभूषितांगी देवीं नमामि धृतमुद्गर वैरि जिह्नाम।’ र्थात सुधा समुद्र के मध्य वस्थित मणि मंडप पर अन्न देवी है, उस पर रत्न सिंहासन पर पीत वर्ण और पीत वर्ण के आभूषण माल्य से विभूषित अंगों वाली बल्गा है। उसके एक हस्त में शत्रुजिह्ना और दूसरे में मुद्गर है, उस बल्गा देवी को नमस्कार करता हूं। कृत्या प्रयोगादि का माध्यम प्राणी का ‘अथर्वा सूत्र’ है जिसे सक्रिय करके काम में लाया जा सकता है। स्वाभाविक रूप से वह काक और कुत्ते में अधिक विकसित रूप में मिलता है। हमें विश्वास नहीं होता कि हमारे घर में आने वाले की पूर्व सूचना काक दे देता है। राजकीय निमंत्रण में एक विशेष उद्देश्य से पोषित कुत्तों के चमत्कार प्रायः देखने में आते हैं, जब वे अनेक व्यक्तियों में छिपे चोर को वह पहचान लेते हैं। जिस मार्ग से चोर जाता है, उसे संूघते हुए ही वे उस तक पहुंच जाते हैं। यह उनकी विकसित अथर्वा शक्ति का ही परिणाम है। अक्सर ऐसा होता है कि सैकड़ों मील दूर अपने किसी परिजन के दुख से हम अक्रांत हो जाते हैं। यह अथर्वा सूत्र के माध्यम से ही होता है। इसे अनुभव किया जा सकता है, देखा नहीं जा सकता। इसकी सहायता से मारण प्रयोग किए जाते हैं। यदि किसी व्यक्ति विशेष के शत्रु पग-पग पर उस पर हावी होने की, उसे हर प्रकार से नीचा दिखाने की चेष्टा करते हों, उसे बगलामुखी शाबर मंत्र की साधना करनी चाहिए। यदि किसी के शत्रु अस्त्र आदि लेकर सामने आते हों और उसके सामने प्राण का संकट खड़ा हो जाता हो या कोई उसकी जीविका को नष्ट करना चाहता हो या सब तरफ से शत्रुओं में घिर जाए और उसे बचने का कोई उपाय न सूझे, तो ऐसी भयंकर विपत्ति में ही यह साधना करनी चाहिए क्योंकि महा विद्या बगलामुखी इससे कीलित हैं और केवल इसे जांचने की दृष्टि से इसकी साधना करने वाले का अनिष्ट होता है या प्रयोग निष्फल हो जाता है। यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु शनिवार को हुई हो और उसी दिन उसे जलाया गया हो, तो उसी दिन अर्धरात्रि में गुड़ और शराब लेकर उसकी चिता के समीप जाएं, उसे प्रणाम कर गुड़ को अग्नि में डाल दें और शराब से चिता के कोयलों को बुझा कर ले आएं। फिर उन कोयलों बगलामुखी शाबर मंत्र प्रयोग स पं. डाॅ. महेश मोहन झा यदि शत्रु का समूल नाश चाहते हों, तो दीपक को 108 बार विलोम मंत्र पढ़कर बाएं हाथ से इस प्रकार उलटा कर दें कि नीचे रखा ठीकरा टूट जाए। दीपक मूल, आद्र्रा या भरणी नक्षत्र में शनिवार को श्मशान से मिट्टी लाकर बनाना चाहिए। का चूरा बनाकर उसमें हरताल मिलाकर स्याही बना लें। उस स्याही से नीम की कलम से, श्मशान में जिस घड़े से मुर्दे को नहलाया गया हो, उसके पेंदे को ठीक कर उस पर पुरुष की आकृति बनाकर मंत्र लिखें जैसा कि चित्र में दिखाया गया है। फिर महा विद्या का विलोम मंत्र लिखें - ‘हा’ दाएं पैर में, ‘स्वा’ बाएं पैर में। ‘सर्वदुष्टानां’ विलोम इस प्रकार लिखें कि नाभि हृदय में वर्तुल बन जाए। ब्रह्मरंध्र पर बीज मंत्र ‘ह्लीं’ लिखें। इसमें प्रणव को त्याग देना चाहिए। हृदय प्रदेश पर शत्रु का नाम लिखकर चारों ओर ‘ह्रीं’ लिख दें। अब एक दीपक में सरसों के तेल या मीठे तेल के साथ श्मशान में छोड़े हुए वस्त्र की बत्ती बनाकर जलाएं। दीपक को उड़द की दाल के ऊपर रखें। फिर पीला वस्त्र पहनकर और पीला तिलक लगा कर हल्दी से उसकी पूजा करें। पीले पुष्प चढ़ाएं और दीपक की लौ में भगवती का ध्यान कर बगलामुखी के मंत्र का एक हजार बार विलोम जप करें। मद्य और मांस का भोग लगाएं। यदि दीपक की लौ सीधी जाए, तो यह कार्य के शीघ्र सिद्ध होने का सूचक है। किंतु यदि लौ टेढ़ी जाती हो या बत्ती से तेल में बुलबुले उठें, तो कार्य की सिद्धि में विलंब होगा। यदि शत्रु का समूल नाश चाहते हों, तो दीपक को 108 बार विलोम मंत्र पढ़कर बाएं हाथ से इस प्रकार उलटा कर दें कि नीचे रखा ठीकरा टूट जाए। दीपक मूल, आद्र्रा या भरणी नक्षत्र में शनिवार को श्मशान से मिट्टी लाकर बनाना चाहिए। इस मंत्र के प्रयोग से बलवान से बलवान शत्रुओं का समूह उसी प्रकार नष्ट हो जाता है जैसे अग्नि से भूसी का ढेर।