शरीर के अंगों को बेकार करने वाला कुष्ठ रोग आचार्य अविनाश सिंह मानव शरीर में एक ऐसी शक्ति विद्यमान है, जिसे जीवन शक्ति कहते हैं। इसका मुखय कार्य बाहरी विषैले जीवाणुओं के आक्रमण की रोक-थाम करना है। जब जीवन शक्ति कम हो जाती है, तो हमारे शरीर पर बाहरी जीवाणु आक्रमण कर शरीर को अस्वस्थ और दुर्बल बना देते हैं और हमारा शरीर रूपी तंत्र सुचारु रूप से काम करने में असमर्थ हो जाता है।
बाहरी जीवाणुओं की रोक-थाम हमारी त्वचा भी करती है, इसलिए त्वचा का स्वस्थ होना भी आवश्यक है और स्वस्थ त्वचा जीवन शक्ति पर निर्भर करती है। जब जीवन शक्ति कमजोर हो जाती है, तो त्वचा पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है, जिससे बाहरी जीवाणु के आक्रमण कई प्रकार के रोग उत्पन्न कर देते हैं, जिनमें एक कुष्ठ रोग है। कुष्ठ रोग त्वचा से ही आरंभ होता है।
जब त्वचा की सभी मुखय परतें दूषित और बाहरी जीवाणुओं की रोक-थाम करने में असमर्थ हो जाती हैं, तो कुष्ठ रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। कुष्ठ रोग न तो वंशानुगत रोग है और न ही संक्रामक। पहले इसको संक्रामक रोगों में गिना जाता था। लेकिन आधुनिक चिकित्सा अनुसंधान से यह सिद्ध हो चुका है, कि यह संक्रामक रोग नहीं है। कुष्ठ रोग के जीवाणुओं को दंडायु कहा जाता है। ये दंडायु विकृत अंगों से निकलते रहते हैं। प्रायः देखने में आया है, कि यह रोग निर्धन लोगों को होता है।
इससे स्पष्ट है कि रोग का कारण सफाई और स्वास्थ्य के बारे में जानकारी न होना है। अगर सफाई और स्वास्थ्य के प्रति मानव जागरूक रहे और समय पर देखभाल करता रहे, तो जीवन शक्ति बनी रहेगी और किसी प्रकार का रोग होने की संभावना समाप्त हो जाती है, चाहे वह कुष्ठ रोग ही क्यों न हो। रोग के कारण : दंडायुओं के शरीर में प्रवेश करने के कई महीनों बाद लक्षण स्पष्ट होते हैं।
रोग के दंडायु त्वचा की ग्रंथियों, रक्त नाड़ियों, यकृत आदि में रह कर विष फैलाते हैं और घाव बन जाते हैं। एक बार घाव बन गया, तो फिर ठीक नहीं होता। पहले कुष्ठ रोग को असाध्य रोग की श्रेणी में रखा जाता था। परंतु आधुनिक युग में इसकी समुचित चिकित्सा संभव है। रोग के लक्षण रोग के प्रारंभ में मांसपेशियों में दर्द रहता है, या खुजली होती है। त्वचा चिकनी लगने लगती है। धूप और परिश्रम से त्वचा में जलन होने लगती है।
त्वचा सुन्न हो जाती है, लाल-लाल धब्बे बनने लगते है और पीप बहने लगती है तथा अंग, नाक, हाथ, उंगलियों, पैरों पर गांठ बन कर वे गलने लगते हैं। घरेलू उपचार कुष्ठ रोगी अगर जिमीकंद की सब्जी प्रतिदिन नियमित रूप से खाए, तो अवश्य लाभ होगा। लहसुन के रस का उपयोग भी रोग में लाभकारी है। नीम के फूलों का अर्क पीने से कोढ़ चला जाता है। नीम के तेल की मालिश और नीम की पत्तियों का रस पीने से कोढ़ में लाभ मिलता है।
रोगी को अधिक से अधिक नीम के पेड़ के पास या नीचे बैठना चाहिए। बथुए का साग दोनों वक्त, तीन मास तक, खाने से कोढ़ में अवश्य लाभ होता है। बथुए को पीस कर, शरीर के कोढ़ प्रभावित भागों पर लगाएं। सांप की केंचुली पानी में घिस कर लेप करने से कोढ़ चला जाता है। अमलतास पत्तों को कांजी में पीस कर लेप करने से कुष्ठ नष्ट हो जाता है।
करेले के रस में नींबू का रस मिला कर, खाली पेट चुस्कियां लेते हुए, पीने से लाभ होता है। कम से कम पांच माह तक लगातार पीना चाहिए। आंवले का चूर्ण और आंवले के रस का सेवन कुष्ठ रोगी के लिए लाभकारी है। अरंडी के पत्तों, अथवा मकई के पत्तों को पीस कर, अथवा कनेर के पत्तों को पीस कर मालिश करने से कोढ़ ठीक होता है। चने, बेसन की रोटी और घी के अलावा कुष्ठ रोगी कुछ न खाएं, तो रोगी अवश्य ठीक हो जाता है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण ज्योतिषीय विचार से कुष्ठ रोग सूर्य के दूषित होने और दूषित प्रभाव में रहने के कारण होता है। जैसा कि ऊपर कहा गया है, जीवन शक्ति क्षीण होने के कारण, दंडायु का आक्रमण कुष्ठ रोग पैदा करता है। जीवन शक्ति का कारक ग्रह सूर्य है। इसलिए ज्योतिष में सूर्य के दुष्प्रभावों में रहने के कारण कुष्ठ रोग और कुष्ठ रोग जैसे अन्य रोग मानव शरीर में उत्पन्न होते हैं। जो ग्रह सूर्य को दूषित करते है, उनमें मुखय हैं राहु-केतु और उससे न्यून शुक्र और शनि हैं। जब कुंडली में लग्न, लग्नेश और सूर्य दुष्प्रभावों में रहते हैं, तो कुष्ठ रोग होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। सूर्य की तरह मंगल भी ऊर्जा का कारक है। इसलिए अगर कुंडली में सूर्य के स्थान पर मंगल दुष्प्रभावों में रहे, तो भी कुष्ठ रोग होने की संभावनाएं बन जाती हैं।
प्राचीन गं्रथों में कुष्ठ रोग के ज्योतिष योग इस प्रकार हैं : सूर्य, शुक्र एवं शनि, तीनों एक साथ कुंडली में स्थित हों। मंगल और शनि के साथ चंद्र मेष या वृष राशि में हो। चंद्र, बुध एवं लग्नेश राहु या केतु के साथ हों। लग्न में मंगल, अष्टम में सूर्य और चतुर्थ में शनि हो। मिथुन, कर्क या मीन के नवांश में स्थित चक्र पर मंगल और शनि की दृष्टि हो। वृष, कर्क, वृश्चिक या मकर राशिगत पाप ग्रहों से लग्न एवं त्रिकोण में दृष्ट या युक्त हों। शनि, मंगल, चंद्र जब जलीय तत्व राशि में हों और अशुभ ग्रह से दृष्ट हों, तो चर्म रोग होता है।
मंगल लग्न में, सूर्य अष्टम में और शनि चतुर्थ में हो। चंद्र लग्न में, सूर्य सप्तम में, शनि और मंगल द्वितीय या द्वादश में हों। मंगल, शनि, सूर्य षष्ठेश हो कर लग्न में हों। विभिन्न लग्नों में कुष्ठ रोग के कारण : मेष लग्न : सूर्य सप्तम भाव में शुक्र के साथ हो और शनि लग्न में तथा मंगल अस्त हो कर बुध के साथ हो, तो कुष्ठ रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। वृष लग्न : सूर्य लग्न में शनि के साथ हो और शनि अस्त हो, शुक्र, बुध द्वादश भाव में हों और राहु पंचम या नवम् भाव में हो, तो कुष्ठ रोग का प्रारंभ पैर या उंगलियों से होता है। मिथुन लग्न : लग्नेश बुध छठे भाव में मंगल के साथ हो, सूर्य पंचम भाव में राहु या केतु से युति बनाए और चंद्र एकादश भाव में रहने से कुष्ठ रोग होता है।
नाक से रोग प्रारंभ होने की संभावना रहती है। कर्क लग्न : सूर्य तृतीय भाव में, चंद्र एकादश भाव में, केतु सप्तम भाव में गुरु के साथ हो, तो कुष्ठ रोग का कारण बनते हैं। सिंह लग्न : शुक्र और राहु लग्न में हो और सूर्य तृतीय या एकादश भाव में हो तथा शनि से दृष्ट या युक्त हो, तो कुष्ठ रोग होने की संभावना होती है। कन्या लग्न : लग्नेश त्रिकोण में अस्त हो और लग्न पर मंगल की दृष्टि हो, सूर्य, शनि से दृष्ट हो और शनि केतु के साथ हो, तो कुष्ठ रोग की संभावना पैदा होती है। तुला लग्न : सूर्य लग्न में हो, शुक्र, मंगल दशम भाव में हों, राहु-केतु त्रिकोण में, गुरु सप्तम में और शनि केंद्र भाव में हो, तो कुष्ठ रोग देता है।
वृश्चिक लग्न : बुध, लग्न, शुक्र अस्त हों, लग्न पर राहु-केतु की दृष्टि हो, शनि केंद्र में मंगल से युक्त हो, तो कुष्ठ रोग होता है। धनु लग्न : सूर्य अष्टम भाव में, चंद्र अस्त हो, शुक्र सप्तम भाव में, गुरु त्रिक स्थानों पर शनि से दृष्ट या युक्त हो, तो कुष्ठ रोग पैदा करता है। मकर लग्न : गुरु लग्न में मंगल से युक्त हो और चंद्र सप्तम भाव में, राहु-केतु से दृष्ट हो, शनि अष्टम भाव में सूर्य से अस्त हो, तो कुष्ठ रोग उत्पन्न करता है। कुंभ लग्न : राहु, मंगल और गुरु तीनों सूर्य से केंद्र में अस्त हों और चंद्र लग्न में केमधूम योग हो, तो कुष्ठ रोग होता है।
मीन लग्न : शुक्र और चंद्र लग्न में राहु-केतु से दृष्ट एवं युक्त हों और शनि-बुध सूर्य से अस्त हों, तो कुष्ठ रोग होता है। उपर्युक्त सभी योग चलित कुंडली के आधार पर दिये गये हैं। ग्रह अपनी दशा संतुलित अंर्तदशा और गोचर के अनुसार रोग उत्पन्न करता है।